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Showing posts from November, 2020

'धर्मयुग' में सुमहेन्द्र : अखिलेश निगम

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      ' धर्मयुग '    साप्ताहिक में राजनीति , समसामयिक विषय , फिल्म के साथ-साथ साहित्य और ललित कलाओं पर भी काफी कुछ प्रकाशित होता रहता था। इसीलिए उसके विभिन्न क्षेत्रों के अच्छे-खासे पाठक हुआ करते थे , और उन्हें उसके अंक की प्रतीक्षा रहती थी। कला-क्षेत्र की विभिन्न विधाओं के चर्चित कलाकारों की किसी एक कृति के साथ उस कलाकार पर मित्र मनमोहन सरल जी की टिप्पणी भी प्रकाशित होती थी। इस श्रृंखला का प्रकाशन वर्ष 1973-74 से प्रारंभ हुआ था। प्रसंगवश बताता चलूं कि मनमोहन जी की कला और फिल्म समीक्षाएं चर्चित रही हैं। मुंबई में बस गये मनमोहन जी मूलत: उत्तर प्रदेश के ही निवासी हैं। उक्त चर्चित श्रृंखला में उस समय तेजी से उभर रहे जयपुर के कलाकार महेंद्र कुमार शर्मा को भी स्थान मिला था अर्थात ' सुमहेन्द्र ' को। यह वह समय था जब सुमहेन्द्र को राष्ट्रीय ललित कला अकादमी ' राष्ट्रीय पुरस्कार ' (1972) से सम्मानित कर चुकी थी , और वे मुंबई से अपनी एकल प्रदर्शन ( 1974) करके जयपुर वापस लौटे थे। प्रकाशित चित्र उनकी ' महाराणा प्रताप ' श्रंखला की एक कृति है , जिसमें प्रताप के...

सुमहेन्द्र और उनका रचना-संसार

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Dr. Sumahendra कला-गुरु डाॅ० महेन्द्र कुमार शर्मा "सुमहेन्द्र" (1943 - 2012) के 77वें जन्मोत्सव (2 नवम्बर) पर विशेष : सुमहेन्द्र और उनका रचना-संसार  Gods, Tempera, 1975 सुमहेन्द्र भारत के उन चंद कलाकारों में हैं जिन्होंने देश की परम्परागत कला-शैलियों को जीवन्त बनायें रखा है। उन्होंने परम्परा का निर्वाह करते हुए अपनी कृतियों में आधुनिक प्रयोग किये हैं, और उस सतह को तोड़ने के बावजूद परम्परागत शैली की विशेषताओं एवं प्रभाव को बरकरार रखा है। यूं तो कई परम्परागत कला शैलियों में सुमहेन्द्र ने दक्षता प्राप्त कर रखी थी परंतु मुख्यतः किशनगढ़ शैली में ही उन्होंने चित्रांकन किया, और अपनी कृतियों में अधिकांशतः इसी शैली के नायक-नायिका (बणींठणीं और नागरीदास) को प्रतीक स्वरूप समसामयिक समस्यओं से जूझते हुए या उनकी प्रेमकथा को आधुनिक प्रसंग में उतारा। Lady with pigion, Acrylic on bord उनकी रंग-संयोजना में अनोखा आकर्षण दिखता है, जिसने उनकी भावाभिव्यक्ति को और प्रखर बना दिया है। उनकी नेता, भेंट, लाशें, आधुनिक नारी तथा युवा आदि कृतियां आधुनिक समाज पर तीखा व्यंग्य करती हैं। लघु चित्रों की शास्त्री...

सुमहेन्द्र : भारतीय परंपरा का एक आधुनिक कलाकार

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  कला-गुरु डाॅ० महेन्द्र कुमार शर्मा "सुमहेन्द्र" (1943-2012) के 77 वें जन्मोत्सव (2 नवम्बर) पर विशेष : ♦ अखिलेश निगम   भारतीय आधुनिक कला के नाम पर जो आपा-धापी मची है, उसने कला के मापदंड में परिवर्तन किया है, इसे स्वीकारना ही होगा। ‘आधुनिक-कला’ संज्ञक आज की कला (अधिकतर) को समाज ने मान्यता दी है अथवा एक सीमित दायरे के कुछ व्यक्तियों को ही ‘समाज’ मानकर उनकी मान्यता को ही लक्ष्य की इतिश्री समझा जा रहा है, यह प्रश्न भी इसके साथ ही विचारणीय है। यह एक लम्बी बहस का मुद्दा है इसलिए फिर कभी, खैर… ऐसे वातावरण के मध्य जब लीक से हटकर हमें कुछ ‘नया’ देखने को मिलता है तब एक सुखद अनुभूति होती है। ऐसी ही अनुभूति राजस्थानी चित्रकार सुमहेन्द्र की कला कृतियों को देखकर मिलती है। ‘सुमहेन्द्र’ नाम से बहुचर्चित राजस्थान के प्रतिनिधि चित्रकार महेन्द्र कुमार शर्मा (जन्मः 1943) भारत के उन चंद कलाकारों में हैं जिन्होंने देश की परम्परागत कला-शैलियों को जीवन्त बनाये रखा। जयपुर में रसे-बसे सुमहेन्द्र पर आंचलिकता का प्रभाव प्रचुर मात्रा में पड़ा, यही कारण है कि राजस्थान की प्रख्यात किशनगढ़ शैली में...