आध्यात्मिक सृजनकर्ता : हिम्मत शाह जी से मेरी यादगार मुलाकात
पांच वर्ष पूर्व 2015 में कलावृत्त संस्था एवं राजस्थान विश्वविद्यालय के विजुवल आर्ट डिपार्टमेंट के सयुक्त तत्वाधान से आयोजित "नेशनल स्कल्पचर वर्कशॉप" के समापन के अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे वरिष्ठ कलाकार श्री हिम्मत शाह जी से दुबारा मिलने की मेरी स्वयं की बहुत समय से इच्छा थी। मन में था कि कभी इस विशिष्ट मूर्तिकार एवं चित्रकार से व्यक्तिगत रूप से मिलकर कला के बारे में चर्चा कर अपने ज्ञान में वृद्धि की जाये। कभी ऐसा सुअवसर प्राप्त हो मैं श्री हिम्मत शाह जी के पास बैठकर उनसे बातचीत करके कला के कुछ रहस्यों को जानूं, खासकर मूर्तिकला के बारे में।
और आखिरकार यह शुभ अवसर मुझे प्राप्त हुआ 17 जनवरी 2020 को, मुलाकात हुई स्वयं उनके अपने निवास पर, जहां उनकी कला के एक से बढ़कर एक उनके कलात्मक विचारो से सृजित मूर्तिशिल्प देखने के साथ ही उनकी कला की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के बारे में खुद उन्ही के साथ चर्चा करते गए देखने और उन्हें समझने का अवसर मिला । चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि कोई भी कलाकार अपने आप में पूर्ण नहीं होता है क्योकि जो उसके विचारों में आता है उसे अभिव्यक्त करने के लिए वो जमीन ही नहीं मिल पाती, जिसकी उसे दरकार होती है। उनका मानना है की "पूर्ण हो के अपूर्णता को जीने वाला ही पूर्ण कलाकार होता है"
श्री शाह जी के कहे अनुसार कला की शुरुआत इमैजिनेशन से होती है और कला का कभी भी, किसी भी रूप में अंत नहीं होता है। असल में कला एक निरंतर किए जाने वाला प्रयास है, जिसे हर कलाकार को हमेशा करते रहना चाहिए। स्वयं हिम्मत शाह जी भी इसी प्रयास में जुटे हुए हैं कि जो उन्हें चाहिए, वो मील जिसे वे अपने हाथों से मूर्त रूप दे सकें तभी उनकी कला यात्रा पूर्ण हो सकेगी, जिसकी उन्हें अभी भी तलाश है।
श्री शाह ने बताया की आज के ज्यादातर कलाकार इस तरह की सोच रखते ही नहीं वे व्यर्थ को ज्यादा ढ़ोते है अपने साथ इस लिए भी उनकी कला में वो पराकाष्ठा नहीं आती है जो उन्हें चाहिए या जिसे वो अपने शिल्प या कैनवास पर अभिव्यक्त करना चाहते है।
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