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Showing posts from June, 2020

कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-01)

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देश के जाने माने प्रसिद्ध चित्रकार प्रोफेसर देवकी नंदन शर्मा विश्व में पक्षी चित्रकार के रूप में विख्यात है। वॉश, टेंपरा , जल रंग चित्रों व अपने रेखांकनों की विशिष्टता के कारण अकादमी द्वारा अनेक पुरस्कारों से विभूषित राजस्थान के कलाविद के रूप में अलंकृत प्रोफेसर शर्मा ने देश में अपनी अलग पहचान बनाई। उपरोक्त अलंकारों से विभूषित होने के बावजूद प्रोफेसर शर्मा की सहजता , सरलता और सादगी बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। प्रकृति अंकन , जनजीवन , धार्मिक , पौराणिक , ऐतिहासिक एवं पशु पक्षियों से संबंधित चित्रों की बहुल संख्या आप की कला में जीवन यात्रा के सुंदर वृतांत हैं। रूपाकारों की सहज अभिव्यक्ति और आत्मा संचारित रेखांकन आपकी कलाकृति के प्रमुख गुण हैं। चित्रों की प्रयोगधर्मिता व विविधता के साथ चित्रगत तकनीकी गहराई आपको देश में प्रथम श्रेणी के कलाकारों में विशिष्ट बनाती है। आपने शिक्षक और कलाकार दोनों ही भूमिकाओं का निर्वाह बड़ी कुशलतापूर्वक किया है और अपनी अलग छवि एवं पहचान बनाई है। प्रोफेसर शर्मा वनस्थली विद्यापीठ में 1937 से 2005 तक कला शिक्षा व अनुसंधान से जुड़े रहे। स...

कला गुरु श्री तारा पदों मित्रा: राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स में क्ले-मॉडलिंग विभाग के संस्थापक

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तारा पदों मित्रा जी अपने शिल्प के साथ "अरे तुम कलाकार हो क्या...?? तुम्हारे बाल तो बिल्कुल कलाकारों जैसे हैं" अस्पताल के पलंग पर लेटा बालक मित्रा नर्स के यह शब्द सुनकर उस क्षण सोच भी नहीं पाया होगा कि वो एक दिन ऐसा महान कलाकार बन जाएगा जिसे लोग सदियों तक याद करेंगे। किंतु यह सत्य है कि यहीं से 'कलागुरु' स्वर्गीय तारा पदों मित्रा के अंतःस्थल में कलाकार बनने की प्रेरणा ज्योति प्रज्वलित हुई और फिर पेंसिल से टेढ़ी-मेढ़ी आकृतियों का प्रयास...........। संघर्ष और परिश्रम का प्रतिफल ---- सरस्वती वरदान। कला के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने वाले प्रत्येक कलाकार का अतीत यही है। फिर वह स्व. श्री तारा पदों मित्रा इसके अपवाद कैसे हो सकते थे। प्रतिष्टित जमीदार परिवार में जन्मे बालक मित्रा के सर से डेढ़ माह की आयु में ही पिता श्री खिरोद प्रसाद मिश्रा का साया उठ गया, एवं 9 वर्ष की आयु में मातुश्री हीरबाला के ममत्व ने भी आंखें मूंद ली। अब रह गया निःसहाय अकेला मित्रा। कहने को तो मित्रा को सात बड़े भाई बहनों का सहारा हो सकता था, किंतु वास्तविकता कोई पूछता उस निराश मित्रा से तब। ...

राजस्थान की संस्कृति, साहित्य को अपनी कल्पना और कौशल से साकार किया शब्द संस्कारित चित्रकार शिक्षक : कन्हैयालाल वर्मा

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यह अपने प्रिय से बिछुड़ने की पीड़ा ही तो है जो अमर कविताओं और गीतों को जन्म देती है। वियोग की पीड़ा ही ऐसी कालजयी रचनाओं के जन्म से पूर्व की प्रसव पीड़ा का कार्य करती है। यह पीड़ा ही वह मूल्य है जो अमर कृतियों के रचयिताओं को अपने निजी जीवन में चुकाना पड़ता है। ऐसे ही एक विरही की घनीभूत पीड़ा से उद्भूत भावों का सागर है महाकवि कालीदास द्वारा संस्कृत में रचित खंड-काव्य ‘मेघदूतम’ और उस काव्य को आधार बनाकर सृजित चित्रों की एक श्रृंखला प्रस्तुत है संप्रति समीक्षित पुस्तक ‘मेघदूत-चित्रण’ में। ‘मेघदूत-चित्रण’ एक विलक्षण पुस्तक है जिसमें विरह-वेदना दो पृथक-पृथक स्वरूपों में उपस्थित है – शब्दों में एवं चित्रों में। इसके सृजक हैं पारंपरिक राजस्थानी शैली में बनाए गए अपने चित्रों के लिए देश-विदेश में ख्याति प्राप्त मूर्धन्य भारतीय चित्रकार कन्हैयालाल वर्मा। मूल रूप से एक शिक्षक तथा अपना सम्पूर्ण जीवन चित्रकला की साधना को समर्पित करने वाले कन्हैयालाल वर्मा ने महाकवि के अमर काव्य पर चौंतीस चित्रों की एक श्रृंखला तैयार की है जो समीक्षित पुस्तक में इस प्रकार प्रस्तुत की गई है कि दाईं ओर के पृष्ठ पर चित्र ...