आधुनिक कला व एनवायरमेंटल कला के उद्भव व विकास के कारक तत्व-एक विवेचना : प्रोफ़ेसर भवानी शंकर शर्मा

कलर सिफंनी - मेरे द्वारा निर्मित ग्राफ़िक प्रिंट्स का कोलाज, पार्टीशन 
आधुनिक जीवन की आत्मा को प्रतिबिंबित करने वाली वर्तमान कला हमारे दैनिक जीवन के अनुभवों से विकसित हुई हैl बीसवीं शताब्दी में हुए परिवर्तनों ने हमारे जीवन तथा विचारधारा को ही बदल दिया हैl हमारी नई चेतना व दृष्टि विकसित हुई जिसने कला को भी प्रभावित किया और यही मूल कारण रहा आधुनिक कला के उद्भव व नवाचार काl आधुनिक जीवन में परिवर्तन का मुख्य कारण सामाजिक चेतना तथा राजनीतिक परिवर्तन हैl व्यक्ति दासता से मुक्त हुआ स्वतंत्र चिंतन करने लगा हैl लोकतांत्रिक ढांचे का उद्भव हुआ हैl विज्ञान में सांस्कृतिक आदान-प्रदान की सुविधाएं प्रदान की हैl जिससे व्यक्ति में स्वतंत्र विचार तथा नए प्रयोगों के प्रति आस्था बढ़ी हैl औद्योगिकरण के विस्तार से व्यैक्तिक कला का विकास हुआ हैl प्रकाशन की सुविधा व विकास से पूर्वी-पश्चिम कला एवं संस्कृति पर पुस्तके व पत्रिकाएं प्रकाशित हुई हैl संचार के साधनों टी.वी., इंटरनेट व डिजिटल टेक्नोलॉजी ने भी विचारों को आदान-प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान किया है तथा पूर्व पश्चिम की दूरी को कम किया है l कला जगत में क्रांति की आधार भूमि इसी से तैयार हुई हैl आज का कलाकार परंपरा या किसी शैली में बंधा हुआ नहीं हैl वह संवेदनशील है अपने जीवन के अनुभवो, कल्पना व सृजनात्मकता की आधार भूमि पर ही सृजन करता हैl

रॉयल ट्राइबल फेमेली - क्वीन, प्रिंस एंड किंग :
भवानी शंकर शर्मा
 
आज कलाकार जब बड़े शहर की भीड़ से गुजरता है तो बड़े-बड़े शोरूम, आकर्षक विज्ञापन, सड़कों पर जाती मोटरकार, साइकिल स्कूटर आदि के कोलाहल, ऊंची अट्टालिकाएं, चहल-पहल से भरे रेस्ट्रॉ, व्यावसायिक मेले आदि दिखते हैंl मुख्य बाजारों में वह अपने मित्र के साथ रेस्ट्रॉ में बैठकर खिड़की से सड़कों और जुलुस के नारों के साथ कॉफी का आनंद लेता है तो उसके मानस पर अनेक विचार उथल-पुथल मचाते हैंl साथ में शोरूम के ग्लास पर पड़ते विभिन्न प्रति बिम्ब अनेक कोलाज बिम्ब सृजित करते हैंl हवाई जहाज के उड़ान भरते ही दूर हो जाने के कारण वस्तुएं अपनी पहचान खोती है तो व्यक्ति अमूर्त रंग व आकर देखता हैl इन्हीं विभिन्न अनुभवों से जब वह सृजन करता है तो नित्य नए आकारों का उद्भव होता हैl आधुनिक जीवन की विविधता व गति ने कलाकारों को अमूर्त व नई रूपाकारों की दुनिया रचने के लिए प्रेरित किया हैl आज कलाकार की दृष्टि अपने लौकिक अनुभवों से ही नहीं वरन विभिन्न संस्कृतियों के कला 
फ्रेंड्स विद बर्ड्स : भवानी शंकर शर्मा 
इतिहास से भी परिष्कृत हुई हैl उसे भारतीय, चीन, जापानी, पाश्चात्य कला कि विभिन्न तकनीकों का ज्ञान होता तो होता है-साथ में आज के विज्ञान द्वारा नवनिर्मित माध्यमों में कार्य करने की सुविधा भी हैl कांच, स्टील, फाइबर ग्लास, सीमेंट, तेल रंग, ऐक्रेलिक, एनेमल, डिजिटल व इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे अनेक टेकनोलोजी माध्यमों से काम करने के साधनों से वह नित्य नए प्रयोग करता हैl छोटी-बड़ी नाप की बाधा भी नहीं हैl बड़ी से बड़ी संरचना के एफिल टावर, जॉर्ज पूम्पेदुए सेंटर जैसे विचित्र स्थापत्य के अनेक उदाहरण हैl अनीश कपूर के बड़े मॉन्यूमेंटल शिल्प व इंस्टॉलेशन, सतीश गुजराल के म्यूरल व शिल्प, सुबोध गुप्ता के स्टील व अन्य माध्यमों में बने इंस्टॉलेशन व शिल्प सृजनात्मकता के नए आयाम उजागर करते हैंl सस्टेनेबल व फ्यूचरिस्ट आर्किटेक्ट ने ग्रीन आर्किटेक्चर में एनवायरमेंट की नकारात्मकता को कम तो किया ही है साथ में सामग्री व ऊर्जा की बचत के साथ कलात्मक आधुनिक रूपाकार सृजन किए हैंl

फुचरिस्ट ग्रीन आर्टिटेक्ट 
आजकल स्थापत्य में ग्लास का अत्याधिक प्रयोग को होने लगा है उन पर आसपास की इमारतों व गतिविधियों का बिम्ब-प्रतिबिम्ब से अनेक आकृतियों का निर्माण होता है जिसमें समय के साथ रूप बदलते म्यूरल के आकर्षक संयोजन देखे जा सकते हैंl नेगेटिव, पॉजिटिव स्पेस का आकर्षक प्रयोग होता हैl आजकल कॉन्सेप्चुअल आर्ट, साइट स्पेसिफिक आर्ट, म्यूरलस व इंस्टॉलेशन के साथ देश, इलेक्ट्रॉनिक टेक्नोलॉजी तथा आर्ट परफॉर्मेंस का प्रयोग भी स्थापत्य के साथ किया जाता हैl स्थापत्य के साथ लैंडस्कैपिंग, इंटीरियर आर्ट, एनवायरमेंटल आर्ट में योगदान होता हैl

दुआने हेंसन - टूरिस्ट, फाइबर ग्लास एंड पोलिक्रोममड पोलीस्टर 
आज आधुनिक कलाकार की दृष्टि जीवन के केओटिक अनुभवों को नवरूपाकारों में रूपांतरित कर देती हैl साधारण व्यक्ति मेटल स्क्रेप व जंकयार्ड में पड़े कबाड़ जैसी वस्तुओं को देखकर अनदेखा कर देता है उसे कलाकार अपने चित्र शिल्प व इंस्टॉलेशन द्वारा इस तरह रूपांतरित करता है कि वह विशिष्ट कलाकृति हो जाती हैl मैंने भी मेटल, कबाड़, कांच के स्क्रेप से म्यूरल के कई प्रयोग किये हैl दर्शक इन नई संभावनाओं को देख आत्म विभोर हो जाता हैl सृजन प्रक्रिया में आकार बदलते रहते हैंl उसको सरलीकृत किया जाता है, कभी उनको तोड़ा-मरोड़ा जाता है कभी जोड़ा-घटाया जाता हैl यह सब चित्र संयोजन की आवश्यकता के अनुसार होता रहता हैl आकारों की संरचना व लयात्मक स्वरूप ही उनकी मूल आत्मा होती हैl आधुनिक कला ने समसामयिक जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है चाहे वह उद्यान, चौराहे, सरकारी या व्यक्तिगत स्थापत्य, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, घर की साज-सज्जा, फर्नीचर हो या वस्त्र या आधुनिक उद्योग सभी क्षेत्रों में Piet Mondrian, पोप-ओप कलाकारों व आधुनिक समकालीन कलाकारों का प्रभाव देखा जा सकता है आज कला को समझने के लिए यदि दर्शक बिना किसी पूर्वाग्रह खुलेपन व संवेदनशीलता से देखें और कलाकृति से संवाद स्थापित करने की इच्छा रखे तो वह कलाकृति से तादात्म्य स्थापित कर सकेगाउसका आनंद ले सकेगाl वह कलाकृति के रूपांतरित रूपाकारों की भाषा समझ सकेगाl सौंदर्यशास्त्र की विचारधाराऐ हमें नई दृष्टि व कला के विभिन्न पक्षों की जानकारी प्रदान कर सकती है जिससे निरपेक्ष होकर हम कलाकृतियों में निहित सौन्दर्य को देख सकते हैंl प्रत्येक कलाकृति सौन्दर्य के विभिन्न रूपों का साक्षात्कार हैl परिभाषा में बंधकर कलाकृति जड़ रह जावेगीजल प्रवाह की भांति जीवंत व चैतन्य रहने के लिए कला में नित्य नए रूपों का समावेश होता है तब उसके द्वारा जीवन संवेगो का परिष्कृत विलक्षण रूप उजागर होता हैl

रॉबर्ट कोटिंघम - रॉक्सी 
जीवन के संवेगो, अनुभूतियों, तकनीकी ज्ञान व रचनात्मक प्रयोगों द्वारा कलाकार नित नयी आकृतियों का निर्माण करता हैआज की उन्नत तकनीक कलाकार के रूपगत प्रयोगों को अभिव्यक्त करने में महत्वपूर्ण योगदान करती हैl डिजिटल टेक्नोलॉजी द्वारा ग्राफिक कला चित्रों को असीम संभावनाओं वाला प्रभावकारी माध्यम मिल गया है जिसमें तीव्रगति से इच्छानुसार असंख्य संभावनाओं को जन्म दे सकता है, अपनी सघन विलक्षण कल्पनाओ को साकार कर सकता हैl तकनीकी उपलब्धियों द्वारा कल्पना के अद्भुत चमत्कार दर्शाता हैl आज चित्र व मूर्तिकला के अंतर भी कम हुए हैंl कभी चित्रों में रिलीफ  तो कभी शिल्पचित्र गुणों से सरोबार रहते हैं, मिक्स मीडिया में अनेक आकर्षक संरचनाओं को जन्म दिया हैl

 म्यूरल - पिंकसिटी  : भवानी शंकर शर्मा
कला में विषय वस्तु व आकर के सामंजस्य से आज कला का समग्र बिम्ब उपजता है इन्ही बिम्बों से वह शून्य से अनुभूति तक की यात्रा पूर्ण करता है इस विस्तार से वह दर्शकों को अपनी अनुभूति में समेट लेता हैl कलाकार की चेतना उसकी विशिष्ट दृष्टि  वस्तु का विशुद्ध रुप देखती हैl कला द्वारा वह भौतिक जगत या कल्पना के संसार में विचरण कर बिम्बों को शाश्वत करता हैचेतन-अवचेतन से उपजे इन बिम्बों को सशक्त रूपाकार देने के लिए व चित्रपटल पर रंगो, टेक्सचर आदि से स्पेस में क्रीड़ा  करता हैl इसी क्रीड़ा से वह विशिष्ट संयोजन को उभरता हैl इन संयोजनों की विशिष्ठता होती है उनकी सार्वभौमिकताl रंगाकारो की भाषा सभी समझ सकते हैं देश परिवेश अथवा भाषा की विभिन्नता उसमें कहीं आड़े नहीं आतीl आवश्यकता होती है भावनात्मक तादात्म्य स्थापित करने कीl समकालीन कलाकारों की प्रमुख विशेषता उनकी सूक्ष्म दृष्टि रही हैl जिसके द्वारा उन्होंने वस्तुओं को जानने-समझने व उनमें रंगात्मक तादात्म्य स्थापित किया हैl कला के आधारभूत तत्व रेखा, आकार, रंग, लय, टेक्स्चर व स्पेस के गुणों के विश्लेषण से सूक्ष्म दृष्टि मिलती हैl इस सूक्ष्म दृष्टि से ही कलाकारों ने बीसवीं इकीसवीं सदी में आकारों की दुनिया में नयी खोज की हैl

क्रिस्टो - वेली कर्टेन, 1970-72
आज कलाकार अपनी समय सीमा में बंधे होते हुए भी अपनी सृजनात्मकता द्वारा अपने समय की सीमाओं से आगे निकल जाता हैl वह द्रष्टा है, साधारण वस्तुओं को भी अपनी आधुनिक दृष्टि से नया जीवन व अर्थ देता हैl कलाकार में अनुकृति करने की वृति नहीं वरन चाह है, सदा नए सृजन की द्विआयामी, त्रिआयामी और चतुर्थ आयाम  में खो जाने कीl आधुनिक कला दृष्टि ने सृजक को अपनी कलाकृति में मूर्त-अमूर्त, लौकिक-अलौकिक व काल्पनिक जगत का निर्माण करने की स्वतंत्रता हैl वह स्वप्नों तथा दिवास्वप्नों के लोक से अपनी कलाकृति द्वारा फिर लौकिक जगत की वास्तविकता में लौटता हैl इस तरह कलाकृति दर्शक कि नीरस मानसिकता को भी सरस बनाने लगीl

सत्य का भ्रम उत्पन्न करने वाले रचनाकारों से लेकर अमूर्त आकारों के मध्य कलाकारों ने अनेक नए आयाम उजागर किए हैंजो उनके गहन चिंतन के द्योतक हैंl यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस शताब्दी ने कला जगत में तकनीकी व रूपाकारों को जितनी विविधता प्रदान की है वह पहले कभी नहीं देखी गईl आज मान्यताओं के कोई बंधन नहीं हैl कलाकार स्वतंत्र हैनया कुछ रचने के लिए अपने संवेगो की अभिव्यक्ति के लिए विभिन्न तकनीकी प्रयोगों के लिए वह मूलवृति व दृष्टि वर्तमान कला के अंकुरण का आधार है और कलाकार के लिए चुनौती भी है चैतन्य रहने के लिए, नया कुछ मौलिक सृजन करने के लिएl इसी दृष्टि से उसने जीवन के हर क्षेत्र को सौंदर्य व गरिमा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैl आज कला किसी देश व व्यक्ति के साथ नहीं बंधी है वरन उसका अंतरराष्ट्रीय स्वरूप उजागर हुआ है जो उसकी व्यापकता का द्योतक हैl

रॉबर्ट स्मिथसन - स्पाइरल जेटी - 1970
एनवायरमेंट आर्ट व कॉन्सेप्चुअल आर्ट का आरंभ कलाकारों ने 1970 में गैलरी के बढ़ते प्रभाव के विरोध में किया थाl भविष्य में अनेक कलाकार विभिन्न विचारधाराओँ के साथ इससे जुड़ते गएl एनवायरमेंटल आर्ट व कॉन्सेप्चुअल आर्ट के कलाकारों ने पृथ्वी, जल, स्थापत्य, शिल्प, लकड़ी, पत्थर, चट्टान, पर्वत आदि माध्यमों तथा डिजिटल आर्ट व टेक्नोलॉजी द्वारा सामाजिक न्याय, पोलूशन, ग्लोबल, वार्मिंग, इकोफ्रेंडली विचारों को प्रशस्त करने हेतु नये-नये प्रयोग कर रहे हैं जिससे जनमानस प्रकृति के प्रति संवेदनशील हो तथा पृथ्वी को नष्ट होने से बचा सकेंl इस आंदोलन में पूरे संसार में कला जगत को आंदोलित किया तथा सौन्दर्यशास्त्र के नए मानदण्ड स्थापित किएl

लेखक : प्रोफ़ेसर भवानी शंकर शर्मा 
15 लखनपुरी दुर्गापुरा कृषि फार्म हाउस के पास,
जयपुर 3030 2018
मोबाइल नंबर 98871 17561


अनीश कपूर के सृजन 


सतीश गुजराल के सृजन 


सुबोध गुप्ता के सृजन 







Comments

  1. Very much Artistic article.it is inspiring or very informative article for art reader and artists ..thanks you share it ..

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    1. Thank you very much for your response...Yodendra Ji

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  2. Replies
    1. Thank you very much for your response...Dr Taruna Ji.

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  3. A beautiful & deep anytical article of the art journey. Thanks & congratulations Prof. Sharma for sharing his great thoughts.

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  4. A beautiful & deep anytical article of the art journey. Thanks & congratulations Prof. Sharma for sharing his great thoughts.

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