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Showing posts from October, 2020

प्रोफ़ेसर मदन लाल नगर स्मृति दिवस 27 अक्टूबर पर विशेष

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  दर्द छुपा था उनके चित्रों में चित्रकार मदन लाल नागर उत्तर प्रदेश के उन अग्रणी कलाकारों में रहे है , जिन्होंने समकालीन भारतीय चित्रकला में नये आयाम जोड़े हैं। यह उनकी लगन , संघर्ष और रचना-धार्मिता की कहानी भी अपने में समेटे है और अपने ' नगर ' की बिखरती प्राचीन संस्कृति का दर्द भी। इधर करीब दो दशकों से श्री नागर केवल ' नगर ' ( सिटी) शीर्षक से अपने शहर के विभिन्न रूपों को अपने चित्र-फलक पर उतारते रहे थे। उनका यह ' शहर ' कोई और नही वही तहजीब का जाना-माना ' लखनऊ ' था - जहां वे जन्में ( 1923), पले कला की शिक्षा पाई और दी भी। उनके जेहन से इन शहरों की वे गालियां , जिनमें उनका बचपन बीता। जिसे उन्होंने अपने कदमों से नापा और मकान की छत पर चढ़ कर देखा भी था , बिसर ना सका था। सुबह , दोपहर , शाम और न जाने कितने रूपों में देखा था उसे उन्होंने , और यह उनके चित्रों में मुखर होता रहा था एक ' मिथक ' की तरह। पर साथ ही उनमें एक दर्द भी था - ' लखनऊवीं तहजीब से कहीं बहुत गहरा लगाव था। ' देहरी का मोह ' भी शायद ऐसा ही होता है। उसके बदलते रूप को उनका ' कला...

ज्यामितीय रूपाकारों के रचेयता - मोहन शर्मा

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नाथद्वारा की आध्यात्मिक भूमि पर जन्मे मोहन शर्मा को बाल्यकाल से ही रंगों और कुंचियों से खेलने का अवसर प्राप्त हुआ। पिता नाथद्वारा की पारंपरिक कला के धनी थे अतः प्रारम्भ से ही आप कला संसार में विचरते रहे। प्रारम्भ में आपका मेडिकल में जाने का विचार था किंतु लम्बी बीमारी से प्रथम वर्ष विज्ञान में ही आपको पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसी समय आपको यह अनुभव हुआ कि कला ही उनको जीवन आधार दे सकेगी और उनकी कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति में सहचरी बन सकेगी। परिवार के कलात्मक वातावरण व नाथद्वारा के पारंपरिक कला परिवेश से ओत-प्रोत उनका मन कलाकार बनने को छटपटाने लगा। उनके बड़े भ्राता ने उन्हें जब जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में प्रवेश दिलवाया तो वहाँ के परिवेश से उन्हें अनुभव हुआ कि वे सही स्थान पर आ गए हैं। वे पूर्ण उत्साह से अध्यन में लग गए। इनके शिक्षकों ने इनमें जब कलाकार की विशेष प्रतिभा देखी तो इन्हें प्रोत्साहित किया। इसी दौरान जे.जे. के प्राचार्य पलसीकर ने इनका संपर्क प्रसिद्ध कलाकार एफ.एन. सूजा से करवाया। सूजा ने अपने कुछ चित्रों के सृजन में इनका सहयोग लिया और इनकी तकनीकी कौशल की भूरी-भूरी प्रसंशा की। वे चित्र ...

सामाजिक संदर्भों को जीती प्रो. बी. पी. काम्बोज की चित्र कृतियाँ : डाॅ. एस. वर्मा

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       प्रकृति अपने विविध रूपों में सभी को आकर्षित करती रहती है। प्रो. काम्बोज को भी बचपन से इसने अपने विशुद्ध रूप में सदैव प्रभावित भी किया और प्रेरित भी। उस समय का देहरादून (प्रो. काम्बोज का जन्म स्थल) एक छोटा पर शांत व सुरम्य वातावरण और सरल व सहज स्वभाव वाले लोगों का नगर था। बस्ती से निकलते ही थोड़ी दूर पर खेत, फलों व चाय के बागान और घने वनों से आच्छादित सुरम्य दून (घाटी) का दर्शन होता था। नगर में और आसपास छोटी कच्ची व पक्की नहरों का जाल था तो इसके थोड़ी दूर पर ही चारों ओर पहाड़ियों से घिरे, छोटे-बड़े विषम आकृतियों वाले गोलाकार शिलाखण्डों से टकराती, बलखाती, पहाड़ी नदियाँ व नाले घाटी की छटा को एक नैसर्गिक रूप प्रदान करते थे। सारा वातावरण बड़ा मनमोहक था। प्रसिद्ध लेखिका ’डाॅ. लक्ष्मी श्रीवास्तव’ के शब्दों में -  “वस्तुतः कलाकार प्रकृति के अनगिनत रूपों की सौन्दर्यमयी सृष्टि का आस्वादन और जनजीवन के यथार्थ भोगों के भावों के साथ जीवनयापन करते हुए उससे प्रेरणा पाता है, और अभिव्यक्ति के लिए जीवन और सौन्दर्य को वह महसूस करता है अपनी कल्पना शक्ति और सृजन शक्ति के माध्यम से स...

कलाविद रामगोपाल विजयवर्गीय - जीवन की परिभाषा है कला : डॉ. सुमहेन्द्र

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एक गुलाबी सी मुस्कान बिखेरता समग्र रूप से पहली दृष्टि में ही जो कलाकार दिखाई दे - सौम्य सी मूर्ति, अत्यंत संवेदनशील , करुणामय और प्रेममय तथा उम्र के नवें दशक में भी चुस्त-दुरुस्त और रसिकता में कोई कमी न हो तो ऐसे व्यक्तित्व को आप बिना संकोच राम गोपाल विजयवर्गीय कह सकते हैं। विजयवर्गीय जी अपनी कला-यात्रा की जिस मंजिल पर आज पहुंचे हैं उस तक पहुंचाने के पहले उन्हें कई रास्तों से गुजरना पड़ा है और शायद यही कारण है कि उनका व्यक्तित्व बहु आयामी बनता गया। समग्र रूप से इन्हें कलाकार इसलिए कहा जा सकता है कि ये मात्र एक चित्रकार ही नही वरन कवि , कहानीकार , कला गुरु , कला संग्राहक और कला के पोषक भी रहे हैं। ई.बी. हैवल के प्रयासों से भारतीय कला की सोच में , रचना के स्तर पर जो देशज रुझान आया वह तत्कालीन स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन की तरह पूरे देश में व्याप्त हो गया। बंगाल शैली या पुनर्जागरणकाल शैली के नाम से भारतीय कला को तकनीकी स्तर पर नये रूप में प्रस्तुत करने की समझ चीन से आई , स्याह कलम चित्रकारी तथा जल रंगों से चित्र निर्माण की तकनीक के कारण। भारतीय टेंपरा पद्धति और चीनी जल रंगों की परंपरा...