कलावृत्त : परंपरागत लघुचित्र शैलियों की धरोहर को बचाने में प्रयासरत - डॉ. रेणु शाही
इस शिविर का शुभारंभ स्कूल ऑफ आर्ट के पूर्व प्राध्यापक श्री हरिदत्त कल्ला के साथ विशिष्ट अतिथि पद्मश्री शाकिर अली और पारंपरिक चित्रकार नाथूलाल वर्मा, शिवशंकर शर्मा, प्राचार्य नरेन्द्र सिंह यादव एवं कलावृत्त के अध्यक्ष संदीप सुमहेन्द्र की उपस्थिति में हुआ।
इस उद्देश्यात्मक शिविर में अपनी स्वंय की विकसित शैली एवं पारंपरिक शैलियों में लघु चित्रों के सिद्धहस्त एवं विख्यात वरिष्ठ चित्रकारों के साथ ही आर्ट स्कूल एवं राजस्थान विश्वविद्यालय के कला विभाग के युवा कला विद्यार्थियों सहित कुल पच्चीस चित्रकारों ने अपना-अपना चित्रण कार्य किया। वरिष्ठ चित्रकारों में राज्य के ऐसे सिद्धहस्त चित्रकार हैं जिन्होंने अलग-अलग पारम्परिक शैली में वर्षो से निरंतर सृजन साधना करते हुए अपनी-अपनी स्वयं की विकसित की गई शैलियों में मौलिक चित्रण करते हुये उल्लेखनीय कार्य कर रहें हैं l इन वरिष्ठ चित्रकारों के सानिध्य में युवा पीढ़ी के चित्रकार एवं कला विद्यार्थियों को लघु चित्रण की निर्माण विधि एवं तकनीकी बारीकियों के साथ - साथ इनमे उपयोग होने वाले प्राकृतिक रंगों को बनाने की पद्धति एवं इसमे उपयोग होने वाले विशेष कागज (वसली) को बनाने की प्रक्रिया का लाइव डेमो द्वारा विधिवत रूप से समझाई और सिखाई गई। उक्त परम्परागत विधियों एवं तकनीकीयों को सीखने में विद्यार्थियों ने अत्याधिक उत्साह से रुचि लेते हुए चित्रण किया।
श्री संदीप सुमहेन्द्र जी के विशेष आग्रह पर शिविर के तीसरे दिन लघु चित्रण के साथ ही पारम्परिक मूर्तिकार श्री पृथ्वीराज कुमावत जी के द्वारा प्रिशियस और सेमिप्रिशियस जैम स्टोन्स तथा बहुमूल्य रत्नों एवं सीप को उकेर कर अलग-अलग प्रकार के आभूषण बनाने की विधि का लाइव डेमो द्वारा इस कला की बारीकियों से विद्यार्थियों को अवगत करवाया। पृथ्वीराज जी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कलाकार हैं तथा वर्तमान में जयपुर में रहते हुए अपनी कला साधना कर रहे है।
शिविर में प्रतिभागिता कर रहे लघु चित्रण के पारम्परिक वरिष्ठ कलाकारों में श्री राजकुमार चौहान जी आपने 1985 में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट से कला शिक्षा पूर्ण की है, तथा वर्तमान में वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी एवं लघु चित्रण के क्षेत्र में सक्रिय है। आपने "श्रृंगार" नामक चित्र बनाया।
श्री आसाराम मेघवाल जी जो मुगल शैली के निपुण चित्रकार है आपने "प्राकृतिक पृष्ठभूमि में नेचर ऑफ मदर" चित्र का सृजन किया। मेघवाल जी नागौर, राजस्थान के मूल निवासी है।
जयपुर निवासी श्री वीरेंद्र बन्नू जी ने काग़ज़ (वसली) बनाने की विधि एवं पारम्परिक चित्रण में उपयोग होने वाले रंगों को बनाने की प्रक्रिया से विद्यार्थियों एवं नए कलाकारों को अवगत कराया। वर्तमान में ये 7वीं पीढ़ी के चित्रकार है। पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे पारम्परिक चित्रण में ये 7वीं पीढ़ी के चित्रकार है। इनके पिता श्री वेदपाल शर्मा "बन्नूजी" भी लघुचित्रण के सिद्धहस्त कलाकार रहे हैं जिन्होंने खराब हुए चित्रों को रेस्टोरेशन में महारथ हासिल थी। वीरेन्द्र जी ने "प्रतीक्षा" नामक चित्र का सृजन किया।
जयपुर के ही श्री कैलाश चंद्र शर्मा, जैन शैली के सिद्धहस्त चित्रकार है। आपने "कृष्ण- कन्हैया" नामक चित्र बनाया है। 1963 में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट में वास्तुकला के विद्यार्थी रह चुके हैं। इनके पिता श्री सुन्दरलाल जी भी परम्परागत चित्रकार थे।
राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से सन 1992 में कला शिक्षा पूर्ण कर वर्तमान में जयपुर में निवास करने वाले चित्रकार श्री गौरी शंकर शर्मा जी ने "नायिका" नामक चित्र बनाया।
नाहीरा, दौसा (जयपुर) के रहने वाले श्री दामोदर गुर्जर जी यथार्थवादी वस्तुचित्रण के विशेषज्ञ है आपने नये प्रयोगात्मक तकनीक को लघु चित्रण में स्थान देकर अपनी एक मौलिक शैली में चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। आप भी वर्तमान में जयपुर में रहते है। आप 1982 में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट के विद्यार्थियों रहे हैI इनके चित्र को देखकर लगता है जैसे कैमरे से खिंचे फोटोग्राफ होने का भ्रम होता है। क्योंकि बारीक से बारीक रेशों को भी चित्र में बनाने की दक्षता रखते है। आप सजीव व निर्जीव दोनों प्रकार के विषयों को चित्रित करते हैं। इस शिविर में इन्होंने फलों का बहुत ही वास्तविक चित्रण किया है।
परंपरागत लघु चित्रण परम्परा से ही संबंध रखने वाले श्री लक्ष्मी नारायण कुमावत जी ने "कृष्ण संग मीरा" नामक चित्र बनाया। आपके पिता श्री सीताराम जी जयपुर के मूर्तिकारो में अपना विशिष्ठ स्थान रखते थे।
राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट में चित्रकला विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष श्री हरशिव शर्मा जी ने "अनटाइटल्ड" नामक चित्र का रचनात्मक चित्रण किया। इन्होंने 1984 में स्कूल ऑफ आर्ट से पेंटिंग विधा में आपना डिप्लोमा किया तथा स्कूल ऑफ आर्ट में ही शिक्षक रहें एक वर्ष पूर्व 2021 में वहां से सेवानिवृत्त हुए तथा अब वर्तमान में जयपुर में रहते हुए कला सेवा एवं अपने सृजनात्मक चित्रण कार्य में पूर्ण सक्रिय है।
चित्रकार श्री बृजराज सिंह राजावत जी ने "गोवर्द्धन धारण" चित्र बनाया। ये भी 1987 में स्कूल ऑफ आर्ट विद्यार्थी रह चुके है।
चित्रकार
एवं मूर्तिकार के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले श्री संदीप सुमहेन्द्र जी ने भी इस शिविर में "होप" नामक चित्र की रचना की। 1987 में स्कूल ऑफ आर्ट से पेंटिंग विधा में डिप्लोमा कर अपनी कला शिक्षा पूर्ण की। इस समय आप कलावृत्त "ए क्रिएटिव आर्टिस्ट फोरम" कला संस्था, जयपुर के अध्यक्ष भी हैं।
परंपरागत लघु चित्रण के इस पांच दिवसीय शिविर में स्कूल ऑफ आर्ट के विद्यार्थियों की सहभागिता भी सराहनीय रही, जिसमें कृष्णा जाग्रत ने "प्रकृति", अभिषेक सैनी ने "वस्तु-चित्रण", टीना लालावत ने "तोते संग बात करती नायिका", ममता ने "बनी-ठनी", केशव कश्यप ने "किंग ऑफ द पैलेस", दिशांक शर्मा ने "केश सवारति नायिका", राहुल मीना ने "मोर", रितिका वर्मन ने "मुखमुद्रा", प्रिया राठौर ने "लाइफ आफ बर्ड", गीत जांगिड़ ने "सेल्फ पोट्रेट", छवी माली ने "श्रृंगाररत नायिका", जान्हवी चावड़ा ने "बेलों से खेलती नायिका" तथा विपुल शर्मा द्वारा "श्रीनाथ जी" तथा रेखा सोनी (राजस्थान विश्वविद्यालय) ने "हस्तमुद्रा" शीर्षकों से अपने-अपने चित्रों की रचना की l
इस प्रकार युवा पीढ़ी के कलाकारों द्वारा अपने-अपने चित्रों में वसली काग़ज़ पर एक नए अनुभूति को प्रकट किया गया। अधिकतर विद्यार्थियों ने पहली बार परम्परागत शैली में कार्य किया है, लेकिन उनके चित्रों को देखकर ऐसा नहीं प्रतीत होता कि उन्होंने पहली बार लघु चित्रण तकनीक से चित्र बनाए हैं। यहां तक कि वरिष्ठ चित्रकारों द्वारा शैलीगत बारीकियों को भी विद्यार्थियों ने आत्मसात किया। लगभग सभी विद्यार्थी पहले चुपचाप वरिष्ठ चित्रकारों के कार्यों को देखते रहें और उनसे इस विधा की जानकारी लेते रहे फिर धीरे-धीरे वह पारम्परिक शैली से इतने प्रभावित हुए कि स्वयं ही चित्रांकन प्रारम्भ कर दिया। सभी युवा चित्रकारों ने अलग-अलग विषयों को लेकर संयोजन तैयार किया। कुछ ने शुद्ध पारम्परिक तो कुछ ने समसामयिक विषयों पर चित्र अंकित किये।
इस प्रकार के कलात्मक परिवेश को देखते हुए राजस्थान स्कूल आफ की सहायक आचार्य श्रीमती आकांक्षा कौशिक ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम होने आवश्यक है क्योंकि ऐसे आयोजनों से नई पीढ़ी के विद्यार्थियों और कलाकारों को हमारी परंपरा से अवगत होने के अवसर प्राप्त होंगे। इसमें कई ऐसे भी कलाकार है जिन्होंने विश्व स्तर पर आपनी पहचान बनाई है। ऐसे व्यक्तित्व से मिलने पर युवा कलाकारों को प्रेरणा मिलती है।
प्राचार्य श्री नरेन्द्र सिंह यादव ने यह कहा की नवीन वातावरण एवं वर्तमान समय में यह कला लगभग लुप्त ही होती जा रही है अत: इसे जीवित रखने के लिए इस प्रकार के शिविर का आयोजन होना चाहिए। जिससे आने वाले समय में नए कलाकार अपने परंपरागत विधाओं से परिचित हो सके।
अंतिम दिन शिविर में बने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई। जो आने वाले दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रही। वस्तुत: भारतीय पारम्परिक शैलियां अधिकांशतः लौकिक साहित्य संस्कृति एवं धार्मिक ग्रंथों पर आधारित रही है। जिसमें रामायण, महाभारत, गीत-गोविंद, शकुंतला-दुष्यंत, राधा-कृष्ण, नल-दमयन्ती, शिव-पार्वती, पौराणिक कथाओं के अतिरिक्त घटनाओं व जैन तथा बौद्ध ग्रंथों का प्रमुख स्थान है। इनमें वर्णित प्रसंग स्वयं ही दर्शकों का मन मोह लेते हैं। यही कारण है कि वैश्विक परिपेक्ष्य में भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं एवं पसंद की जाती हैं। इन लघु चित्रों में प्रेम प्रसंग भी देखने को मिलते हैं जिनका बहुत ही मार्मिक चित्रण किया गया है। जैसे सोनी- महिवाल, ढ़ोला- मारु आदि के अलावा प्रेमी युगलों में राधा-कृष्ण लगभग सभी चित्रकारों के प्रिय विषय रहे हैं I
लघु चित्रण के परम्परागत शैलियों में राजस्थान में मेवाड़, मारवाड़, हाडौती, ढूंढाड़ प्रमुख शैलियों के अतिरिक्त पहाड़ी, मुगल तथा दक्खिनी शैली के रूप मे अकादमिक स्तर पर केवल कला इतिहास के पाठ्यक्रम के संदर्भ मे ही कला विद्यार्थियों को इसे पढ़ाया जाता है। परंतु प्रायोगिक तौर पर किसी भी कला महाविद्यालय में इनकी शिक्षा नहीं दिया जा रहा। केवल कुछ पीढ़ी दर पीढ़ी सीखे हुए कलाकारों तक ही ये शैली सिमटकर रह गई है। इन कलाकारों ने भी अपनी मौलिकता बनाये रखने के लिये कुछ अलग विषयों को चित्रित करना प्रारंभ कर दिया है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें 14 से 18 फरवरी 2022 के मध्य आयोजित इस लघु चित्रण शिविर में देखने को मिला है। कहीं किसी ने स्वयं का व्यक्ति चित्र, किसी ने वस्तु चित्र, किसी ने मुद्राओं तो किसी ने भावो को अंकित किया है। किसी ने पशुओं के जीवन और किसी ने शैलीगत विषयों पर ही चित्र बनाये हैं।
अन्तत: यही कहना उचित होगा कि भारत भारतीयता से है और भारतीयता उसकी संस्कृति एवं परंपराओं में मिलती है। जिसे वर्तमान समय में बचाने की आवश्यकता है। जिसके संदर्भ में एक सफल प्रयास ' कलावृत्त कला संस्थान' एवं 'राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट, जयपुर द्वारा किया गया है, तथा मैं पूर्ण आशान्वित हूँ आगे भी किया जाता रहेगा। जो हमारे सांस्कृतिक धरोहर को पोषण देने का कार्य करते रहेंगे।
इसलिए इस प्रकार के गतिविधियों के लिए सरकारी प्रयास भी अनिवार्य है। इस पूरे आयोजन को सफल बनाने में स्कूल ऑफ आर्ट के शिक्षकों की भूमिका सराहनीय है। जिनमे डॉ. रेणु शाही, डॉ. नमिता सोनी, डॉ. लक्ष्मीकांत शर्मा, डॉ. नमिता वर्मा, श्री पवन शर्मा, श्री मनीष शर्मा, श्रीमती दीपिका शर्मा एवं दीपेन्द्र कुमार के साथ-साथ अन्य व्यवस्थाओं में प्रदीप सोनी जी का विशेष योगदान रहा।
धन्यवाद
लेखिका- डॉ. रेणु शाही,
सहायक आचार्य, चित्रकला विभाग,
राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट जयपुर।
Phone N. 9838752535
email- Dr.renushahirajvansh@gmail.com
बहुत ही उत्तम लेख
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद आपका डॉ. संजय कुमार जी
Deleteअतिसुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएं
Deleteविश्लेषणात्मक सम्पूर्ण समीक्षा... शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद 🙏
DeleteCongratulations .....
ReplyDeleteThank you very much D D Sharma ji 🙏
DeleteBahut hi badiya
ReplyDeleteThankyou Krishna you also done good work in this camp 👍👍👍
DeleteBahut badiya
ReplyDeleteThankyou very much for your veluable blesings 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद 👍👍👍
ReplyDeleteCongratulations 💐 Renu
ReplyDeleteBhut pyara likha h mam😍🥰
ReplyDeleteNice initiative and wonderful interpretation of the event.
ReplyDeleteशिविर आयोजन हेतु बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर समीक्षात्मक आलेख के लिए रेणु शाही बधाई की पात्र हैं।
Congratulations Renu !
ReplyDeleteRajathan school of Art dwara Bhartiya paranparik laghu Chitrakala shivir ka ayojan kiya gaya jo ati sundar raha hai, is hetu aayojako , chitrakaro, tatha ispar sundar samiksha lekhan ke liye Dr. Renu Shahi ko badhai .
ReplyDeleteबहुत अच्छी बातें 1970 में स्थापित क्लावृत्त के साथ प्रत्येक पहलुओं पर सार्थक बहस...सुम्हेंद्र जी को हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआपकी लेख अत्यंत ज्ञानवर्धक है, जिससे हमें राजस्थान के लघुचित्र परंपरा के वर्तमान कलाकार के बारे में जानकारी मिल सकी।
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