कोरोना प्रकृति का कलात्मक रूपांतरण : संदीप सुमहेन्द्र

राज्य के आला गीला पद्धति के श्रेष्ठ चित्रकार एवं शिक्षक आदरणीय प्रो. देवकीनन्दन शर्मा जी के सुपुत्र वरिष्ठ चित्रकार भवानी शंकर शर्मा ने आकृति कला संस्था के 10वें वर्ष के अवसर पर आयोजित मंजू मिश्रा के चित्रों की प्रदर्शनी के दूसरे दिन भीलवाड़ा के स्थानीय युवा चित्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि आज युवाओं को ज्ञान प्राप्ति के लिए उनकी भूख जगनी चाहिए जिससे वें अधिक से अधिक देखकर पढ़कर अपनी सृजन यात्रा में अच्छी सफलता प्राप्त कर सके।

युवा कला छात्रों से चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि कोविड -19 के समय एक बहुत बड़ा बदलाव सामाजिक जीवन में आया। परिवार से  जुड़ाव अधिक हुआ। अपनी बात कहूं तो मैं इन दिनों आत्म केंद्रित और अपने को समझने की कोशिश में लगा रहा। मेरे स्टूडियो में रखे कैनवास पर नए नए रूप आकार और रंग संयोजित होने लगे। मेरा प्रकृति से व अपने परिवेश से को संवाद हुआ, कोविड - 19 कोरोना का जो मनोवैज्ञानिक बदलाव आया, उससे मन में सृजनात्मक हलचल हुई।

घर में लगे पेड़ पौधे सुबह शाम छत पर खुले आकाश का आनंद, सूर्य - चांद, बादलों के बदलते रूप, आकार और रंग सभी ने अपनी और से आकर्षित किया। मैंने अपने आप को प्रकृति के रंगो मे रंगा हुआ पाया। उसके परिणाम स्वरूप कैनवास पर नित नए रूपकरों का सृजन हुआ। संलग्न चित्र श्रंखला कोरोना समय की सकारात्मक अभिव्यक्ति है।

इन चित्रों में मेरे परिवेश व प्रकृति की अनुकृति या प्रति कृति नहीं है। इनमें मेरे संवेग व भावों का विजुअल रूपांतरण है। मेरे हृदय का संगीत, धड़कन और प्रकृति का आंतरिक लय और स्पंदन है। 

चित्रण एवं कला शिक्षा के 45 वर्षो के अनुभव को बच्चों से सांझा करते हुए उन्होंने आगे कहा कि हमारे नवोदित चित्रकार को हमारी सांस्कृतिक धरोहर एवं हमारी लोक एवं पारंपरिक कलाएं और शिल्प इत्यादि को समझकर आधुनिक परिपेक्ष में सृजन करना चाहिए। आज के आधुनिक युग में कला के विभिन्न क्षेत्र में अपने आप को अपनी रुचिनुसार स्थापित करन चाहिए, इससे वे अपना सफल कैरियर बनाया  सकते है। इसके लिए भारत में अनेक संस्थाएं ऐसी है जो कलाओं को संरक्षण (कंजर्वेशन) देने एवं उनको नए नए अनुसन्धान एवं पाठ्यक्रम  संचालित कर रही है जिससे हमारी समृद्ध परम्परा/विरासत सुरक्षित रह सके, कला शिक्षण में ललित कला, डिज़ाइन व् क्राफ्ट क्षेत्र में अध्ययन कर विद्यार्थी अपनी सृजनात्मकता व् अनुसन्धान द्वारा सामाजिक आवश्कताओ की पूर्ति के लिए अनेक सम्भावनाओ को विकसित कर सकता है इसके द्वारा आर्थिक लाभ के साथ आत्मसंतोष प्राप्त कर सकता है आज संग्राहलयों का स्वरूप भी बदल गया है म्युजियमोलोजी के अनेक पाठ्यक्रम देश-विदेश में विभिन्न संग्राहलयों के अंतर्गत उपलब्ध है जिनके ज्ञान से संग्राहलयों के स्वरूप के विविध आयामों के शिक्षण व् हमारी पुरानी विरासत एवं संस्कृति की धरोहर के कंजर्वेशन/संरक्षण में योगदान कर शिक्षार्थी अपने सामाजिक दायित्व को निभा सकता है

21 वि शताब्दी की वैज्ञानिक उपलब्धियों ने हमें सृजन के लिए अनेक माध्यम व् तकनीक उपलब्ध करवाई, ज्ञान का असीम भण्डार इंटरनेट पर उपलब्ध है जिसके द्वारा नित नए उपयोगी एवं सौन्दर्य अभिरुचि से सम्बंधित कलाकृतियों का निर्माण कर सकते है इस तरह कलाकार अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करते हुए अपने योगदान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पहचान बना सकते है अंत में सभी छात्रों को उनके सुखद भविष्य की कामना करते हुए चित्रकारों और कला छात्र छात्राओं के साथ आयोजको का भी धन्यवाद भी ज्ञापित किया।


 

संदीप सुमहेन्द्र

2 ट 8, जवाहर नगर, जयपुर
मोबाइल : 98294 37374
 

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