पारंपरिक लघु चित्रण कला को समर्पित महिला चित्रकार एवं शिक्षिका : संदीप सुमहेन्द्र

पंजाब की निवासी चित्रकार जसप्रीत कौर वर्तमान में गवर्नमेंट कॉलेज फॉर गर्ल्स, लुधियाना में असिस्टेट प्रोफेसर के पद पर अपनी सेवाएं दे रही है। लघु चित्रण के प्रति अपने लगाव एवं कलागुरू डॉ. सुमहेन्द्र द्वारा वर्ष 2005 से पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में आरंभ किए लघु चित्रण के विशेष पाठ्यक्रम में विधिवत लघु चित्रण विधा को अपने गुरु डॉ. सुमहेन्द्र के सानिध्य में वर्ष 2009 से 2011 तक प्रशिक्षण ले कर सीखा और इसकी बारीकियों को समझा, और निरंतर अभ्यास से दिन प्रतिदिन अपनी कलम को और उत्कृष्टता प्रदान कर नये नये प्रयोग कर लघु चित्रण में सृजन कर रही है।

जसप्रीत इस विधा में प्रयोग होने वाले प्राकृतिक रंगो का ही उपयोग करती है जिन्हें ये स्वयं ही बनती है। परम्परागत चित्रण के साथ साथ इसी विधा में समसामयिक विषयों पर भी बहुत उत्कृष्टता और सुंदर संयोजन के साथ रंगो का चयन बड़ी सावधानी से करती है जिससे चित्र की मौलिकता देखते ही बनती है।

अपनी यादों को ताजा करते हुए जसप्रीत ने बताया कि जब मैंने पंजाब यूनिवर्सिटी में पहली बार सुमहेन्द्र सर को पेंटिंग बनाते हुए देखा तो लघु चित्रण के प्रति मेरा भी इंट्रेस्ट और बढ़ा और उनसे इंस्पायर हो कर मैंने फाइन आर्ट डिपार्टमेंट में दाखिला लिया और यही से मेरी लघु चित्रण को सीखने और समझने की यात्रा आरंभ हुई।

फिर मैंने इसी कला पर अपना रिसर्च भी आरंभ किया जो राजस्थान और हिमाचल की लघु चित्रण शैली पर आधारित है। ये सारी प्रेरणा मुझे सुमहेन्द्र सर से ही मिली, उन्होंने भी मुझे बहुत प्रोत्साहित किया, जिससे मैं निरंतर अपने पथ पर बढ़ती रही।

आज इतने सालों बाद भी मुझे अच्छे से याद है कि 2009 में उन्होंने पहली बार एक शानदार ब्रश स्ट्रोक लगते हुए जो चित्र बनाया था उसे देख मैं बहुत प्रभावित हुई और साथ ही खड़िया (लघु चित्रण में उपयोग होने वाला सफेद रंग) पेवड़ी (पीला रंग) गेरू (गहरा भूरा रंग) एवं बहुत से अन्य सभी प्रकार के प्राकृतिक रंगों को बनाना सीखा, खड़िया से बना उस समय का सफेद रंग इतने वर्षो बाद भी मेरा पास आज तक है, यह मेरे लिए बहुत ही सुखद अनुभव रहा। सुमहेन्द्र सर को ब्रश चलते देखकर सच में मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे कितनी सफाई और कोमलता से कुछ ही देर में सर सुंदर चित्र बना दिया करते थे। उनके द्वारा स्थापित गुरु शिष्य परंपरा इस यूनिवर्सिटी के कला विभाग में आज भी विद्यमान है और नई पीढ़ी के चित्रकार यहां पूरी लगन और मेहनत से लघु चित्रण कला के तकनीकी पक्ष की विशेष बारीकियों के साथ सीख और पढ़ रहे है।

2012 में उनका स्वर्गवास होना हमारे कला विभाग के लिए बहुत बड़ा नुकसान रहा। लेकिन उनका उद्देश्य था कि लघु चित्रण शिक्षा को पटियाला की पंजाबी यूनिवर्सिटी के कला विभाग में स्थापित प्रमुखता से स्थापित किया जाए, और उनका यह प्रयास बहुत सफल हुआ, उनकी इसी प्रेरणा से प्रेरित होकर और बहुत से चित्रकार राजस्थान और हिमाचल से यहां समय समय पर आए। स्वयं मैंने वहां विद्यार्थी के रूप में भी कार्य सीखा भी और एक शिक्षिका के रूप में भी कार्य किया है। सुमहेन्द्र सर जी की प्रेरणा और मार्गदर्शन से हम आज भी उन्हीं के बताए अनुसार वर्कशॉप, सेमिनार, डेमोंस्ट्रेशन करवाते है जिसकी परम्परा उन्होंने आरंभ की थी। जिससे आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी यह उसी तरह जारी रहे। इन 17 सालों के दौरान उसी मेहनत से यह करवाई जाती है जिसमें हिमाचल से विजय शर्मा, राजस्थान जयपुर से समदर सिंह खंगारोत 'सागर' नाथद्वारा से युगल किशोर जैसी बड़े चित्रकारों का सानिध्य मिला।

और मैं गर्व से कह सकती हूं कि डॉ. सुमहेन्द्र सर द्वारा लगाया यह पौधा आज इस यूनिवर्सिटी में एक बड़े वृक्ष का रूप ले चुका है और हम सभी उन्हीं की बदौलत इस लुप्त होती पारंपरिक लघु चित्रण विधा में परंपरागत एवं समसामयिक चित्रण एवं सृजन कार्य कर रहे है।

आदरणीय सुमहेन्द सर जी को याद करते हुए मैं उन्हें नमन: करती हूं, जिनके आशीर्वाद से मैं परम्परागत लघु चित्रण शैली में अपना सृजन करते हुए कला जगत मैं अपने लिए स्थान और पहचान बना पाई हूं।

कुछ दिनों पूर्व एक टीवी चैनल में मिनिएचर पेंटिंग के बारे में इनसे हुए संवाद का वीडियो भी आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रहा हूं...देखिएगा।





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