भारतीय चित्रकला का इतिहास पुस्तक समीक्षा : योगेन्द्र कुमार पुरोहित
पुस्तक समीक्षा
चित्रकार मित्रों एवं कला विद्यार्थियों इस सप्ताह मुझे डॉ. राकेश गोस्वामी (आर्ट हिस्टोरियन) की पुस्तक "भारतीय चित्रकला का इतिहास" (प्रागेतिहासिक काल से बंगाल स्कूल तक) की प्रति प्रकाशक गोस्वामी पब्लिकेशन एंड डिस्ट्रीब्यूटर, 14 कटरा रोड, प्रयागराज-211002 द्वारा प्राप्त हुई, जिसकी समीक्षा के लिए मुझे भारतीय डाक के माध्यम से भेजी गई।
जिसका मैंने एक कला विद्यार्थी की भांति गहनता से अध्ययन किया और पाया की पुस्तक आसान भाषा में कला विद्यार्थी शोधार्थियों के बौद्धिक स्तर को ध्यान में रख कर लिखी गयी है। पुस्तक के लेखक डॉ. राकेश गोस्वामी ने भारतीय कला के इतिहास को अपनी पेनी नजर से खंगालते हुए पुनः नए सिरे से शुरुवात की है जो कला अध्ययन के लिए बहुत जरुरी और उपयोगी है। भारतीय चित्रकला के इतिहास को डॉ राकेश गोस्वामी ने करीब 400 पृष्ठ की इस पुस्तक में पूर्ण तथ्यों और घटनाओं के साथ भारतीय चित्रकला और उसके चित्रकारों को उल्लेखित किया है।
पुस्तक के अध्ययन से ज्ञात हुआ की अजंता, बाघ, सिंघिरिया आदि चित्र गुफाओं का लेखक ने स्वयं वहाँ जाकर गहन अवलोकन और शोध करके इस पुस्तक में व्याख्यायित किया है। इतिहास और तथ्यों की प्रमाणिकता तभी सिद्ध हो सकती है जब उसे प्रस्तुत करने वाला लेखक या इतिहासकार उसे अपनी प्रमाणिकता की कसौटी और मूल्यों में पहले टोले फिर उसे बोले।
"डॉ. राकेश गोस्वामी ने ये काम स्पष्ट रूप से किया है जिसका सुखद प्रमाण है कि उनकी पुस्तक भारतीय चित्रकला का इतिहास पुस्तक हमारे सामने है"
पुस्तक की छपाई साफसुथरी है त्रूटियाँ न के समान है, मह्त्वपूर्ण बिन्दुओं को मोटे अक्षरों (बोल्ड टैक्सट) में प्रिंट किया हुआ है पुस्तक का टाइटल कवर भी अजंता के भित्ति चित्रों से एक उत्कृष्ट एवं सुंदर चित्र लिया गया है। डॉ. राकेश गोस्वामी ने अपनी ये पुस्तक अपने गुरु डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल (पूर्व विभाग अध्यक्ष ललित कला विभाग, इलाहबाद विश्वविद्यालय (प्रयागराज) को समर्पित की है जो स्वयं भी अपने गुरु के प्रति समर्पित व्यक्तित्व है। डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल जी भारत के महान चित्रकार क्षितिन्द्र नाथ मजूमदार के शिष्य रहे है।
डॉ. राकेश गोस्वामी की इस पुस्तक की लेखनी धारा प्रवाह है, पुस्तक पढ़ते समय ऐसा प्रतीत होता रहा था मानो शब्दःधारा में बह रहा हूँ और ये शब्द धारा प्रस्फुटित हो रही है। शब्द ऋषि डॉ. राकेश गोस्वामी की लेखनी से जो की भारतीय चित्रकला के इतिहास को प्रकाशित और एक नए रूप में सबके समक्ष प्रस्तुत कर रही है भारतीय चित्रकला के इतिहास को ठीक से अध्ययन कर पाने हेतु।
यहाँ कुछ छाया चित्र मेरे कैमरा से उन जीवंत पलों के जिन पलों में बीकानेर के कला व्याख्याताओं और कला विद्यार्थियों ने डॉ. राकेश गोस्वामी की पुस्तक भारतीय चित्रकला का इतिहास (प्रागेतिहासिक काल से लेकर बंगाल स्कूल तक) के बारे में जाना उसे हार्ड कॉपी फॉर्म में देखा अपने हाथ में लिया जो आगे उनके अध्ययन और अध्यापन का एक सफल माध्यम बनेगी।
योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर, इंडिया
मोबाइल : 9829199686
E-mail : y.k.purohit@gmail.com
आदरणीय संपादक कलावृत्त कला पत्रिका सर संदीप सुमहेन्द्र शर्मा जी ,
ReplyDeleteमैं आपके सहयोग और कला के सकारात्मक पक्ष को आप की पत्रिका के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करने के लिए जो आप की प्रतिबद्धता है उसके लिए आभारी हूँ !
आप ने भारतीय चित्रकला का इतिहास पुस्तक और इसके लेखक युवा इतिहासकार डॉक्टर राकेश गोस्वामी को कलावृत्त में स्थान दिया है उसके लिए भी मैं आप का आभारी हूँ , क्योंकि कलावृत्त की इस पोस्ट के जरिये अनेकों कला विद्यार्थी लाभान्वित होंगे और भारतीय कला के इतिहास को और बेहतर रूप में समझ सकेंगे इस भारतीय चित्रकला का इतिहास पुस्तक को संगृहीत करके !
मैं आपसे भविष्य में भी इसी प्रकार के कलात्मक और रचनात्मक सहयोग का अपेक्षी रहूँगा !
आपका योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट ,
बीकानेर , इंडिया
कलावृत्त जैसा कलात्मक मंच आज देश ही नही दुनिया में भी अपना स्थान सुनिश्चित कर चुका है।संदीप सुमहेन्द्र जी स्वयं भी एक महान कलाकार और स हृदय व्यक्तित्व है। श्रद्धेय दिलीप दवे ,दिगंत शर्मा और सन्दीप सुमहेन्द्र जी की त्रिवेणी इस नाते सम्माननीय हैं।
ReplyDeleteयुवा चित्रकार योगेंद्र कुमार पुरोहित एक कुशल चित्रकार होने के साथ साथ सफल कला विद्यार्थी भी रहे हैं जिनके प्रिय लेखक राकेश गोस्वामी जी ने प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल
तक के कला इतिहास को एक अंजुरि भर अर्थात समुंदर के जल को पुस्तक रूप में समाहित कर आज के अल्प-अध्यायी या शॉर्टकट पाठ्यक्रम आधारित प्रश्नोत्तरी पूर्ण पथगामिनी अर्थात गाइड लिखकर कला विद्यार्थियों के उपयोग हेतु एक प्रशंसनीय प्रयास किया है।
योगेंद्र पुरोहित जी इन्हें "कला इतिहासकार" की संज्ञा से नवाज रहे हैं जिसका में सिरे से खंडन करते हुए कला इतिहासकारों का कुछ नाम उल्लिखित कर स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि अगर अमुक लेखक ने कला के इतिहास में कोई लोथल,हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, पिरामिड,मूर्ति स्थापत्य गुफा टेराकोटा, ममी कंकड़ पत्थर रंग या कला के इतिहास में प्रयुक्त या दबे कुचले पांडुलिपि शैलाश्रय में अंकित आदिम चित्र इत्यादि कुछ भी खोजा हो या अन्वेषित कर कोई नायाब कोहिनूर का हीरा देश के सम्मुख लाया हो में इस महान इतिहास खोजकर्ता के चरण को सौ बार धो कर मस्तक पर लगाता हूँ अन्यथा मुझे आत्मीय योगेंद्र कुमार पुरोहित जी की अतिशय भावुकता पर संशय पैदा होना लाजिमी है।
देश के कला खोजकर्ताओं और इतिहासकारों का सम्मान और आदर करता हूँ राकेश गोस्वामी जैसे कला संबंधी प्रश्नोत्तरी और गाइड लेखक को किसी सिरे से कला इतिहासकार नहीं मानता। यदि आप लोगो को ऐतिहासिक स्थलों पर जाकर सेल्फी खिंचवा लेने और अपने पूर्ववत महान लेखकों और शोधकर्ताओं इतिहासकारों को खारिज कर अपनी वाह वाही बटोरने के लिये सतत प्रयासरत ऐसे कला जगत में अपना इतिहास या नाम सुनिश्चित करने हेतु प्रयासरत व्यावसायिक लेखक के दोमुहे व्यक्तित्व की घोर निंदा करता हूँ जो खुद को कला इतिहासकार कहलवाने और मुफ्त में किताबें भेजकर कला जगत में हीरो बनने का कुत्सित प्रयास कर किसी भी बड़े से बड़े चित्रकार महापुररुष का मख़ौल उड़ाने वाले इस लेखक की कड़ी निंदा करता हूं। आप चाहेंगे तो कला जगत के कुछ महापुरुषों की खिल्ली उड़ाते हुये इनके वौइस् रिकॉर्डिंग मेरे पास है में देश के समक्ष कभी भी सार्वजनिक भी कर के ऐसे लेखक की दोहरे जीवन का स्वरूप से परिचय भी करवा दूंगा।
यद्यपि इनकी पथगामिनी किसी भी कला विद्यार्थी के कामयाबी के लिये निश्चित तौर पर उपयोगी है इस बात का में भी समर्थन करता हूँ।
शुभकामनाएं और बधाई।
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धनंजय सिंह
कला जगत में एक मुकम्मल आसमान की तलाश में अनवरत यात्रा में रत)