मथेरण कला और बीकानेरी लोक देवता गोधा बाबा : योगेंद्र कुमार पुरोहित
लोक अपनी परिभाषा स्वयं रचता है वो समय की मांग और आवश्यकता के आधार पर नए किरदार भी रच लेता है समाज को सही दिशा दिखाने को। इसी बात का एक और प्रमाण सामने आया मथेरण कला के चित्रकार / कलाकार श्री मूलचंद महात्मा (मथेरण परिवार बीकानेर का सदस्य) के द्वारा। चित्रकार / कलाकार श्री मूलचंद महात्मा ने मुझे सूचित किया की इन दिनों बीकानेर के श्री मरूनायक मंदिर (वैष्णव सम्प्रदाय) में एक दो सौ साल पुराने कागज लुगदी (पेपर मेसी) में बने मूर्ति शिल्प के जीर्णोद्धार के कार्य में व्यस्त हूँ, आप आकर देखे। मैंने समय निकला और पहुंचा बीकानेर के मोहता चौक स्थित श्री मरूनायक मंदिर में। मुझे प्रथम बार ही ये अवसर मिला की मैं मरूनायक मंदिर में प्रवेश कर पाया बीकानेर में रहते हुए भी। हजारों बार उस मंदिर के आगे से गुजरा हूँ पर अंदर जाने का कोई कारण नहीं बना था अब से पहले।
मैं पिछली प्रोल (बड़ा लकड़ी का दरवाजा) से मंदिर परिसर में दाखिल हुआ और वहाँ देखा की चित्रकार श्री मूलचंद महात्मा व्यस्त थे दो सौ साल पुराने एक मूर्तिशिल्प को साफ़ करने में जो की जीर्णशीर्ण अवस्था में थी। उस मूर्ति शिल्प को बीकानेर के लोक ने एक किरदार के रूप में खड़ा किया या रचा समाज को अध्यात्म के साथ सामाजिक मूल्यों को पूरा करने की प्रेरणा देने की दृष्टि से।
बीकानेर के होली महोत्सव की शुरुवात श्री मरूनायक मंदिर से आरम्भ होती है, होली से कोई एक सप्ताह पहले। जिसमे गेवर (गैर) थम्भ स्थापना के साथ ही होलका लगने की हिन्दू पंचांग के आधार पर घोषणा की जाती है विशिष्ठ पंडितों के द्वारा और फिर बीकानेर एक अलग रंग में डूब जाता है और वो होता है होली का लोक रंग। मन को समस्त सांसारिक बंधनो से मुक्त करता बीकानेर वासी अपनी मस्ती खो जाता है, वो लोक में रम जाता है। इसी लोक की रमत में दो सौ साल पहले किसी खास व्यक्ति और किसी खास कारण से बीकानेर लोक की होली में एक किरदार को रचा गया। जिसे नाम दिया गया गोधा बाबा। उस किरदार को शिल्प रूप दिया बीकानेर के मथेरण कला के कलाकारों ने और उसका संरक्षण आज भी दो सौ साल से करते आ रहे है श्री मरूनायक मंदिर बीकानेर के ट्रस्टी।
होली के बाद बीकानेर लोक जीवन में ये गोधा बाबा का लोक किरदार श्री मरूनायक मंदिर परिसर में पूजन और आराधना के साथ प्रार्थना और मनोकामना पूर्ण करने वाला लोक देवता के रूप में भी पूजा जाने लगा। अब ये मिथिक है या लोक की शक्ति ये बात लोक ही जाने।
पर मैंने महसूस किया की किस प्रकार मथेरण कलाकारों ने एक परिकल्पना को मूर्त रूप दिया और बीकानेर की लोक संस्कृति ने उसे दो सौ साल तक संग्रक्षित रखा है उसे पूजा है एक लोक देवता के रूप में। सो साधुवाद मेरी बीकानेरी लोक संस्कृति को।
लोक परंपरा के आधार पर ये लोक देवता गोधा बाबा होली के होलका लगते ही श्री मरूनायक मंदिर परिसर से बाहर निकलते है और जहाँ जहाँ थम्भ स्थापित होते है और गेवर पहुँचती है वहाँ-वहाँ ये गोधा बाबा भी जाते है मानव पालकी पर विराजकर, बीकानेर के लोक में इस लोक देवता को होली में बार-बार पूजा जाता है उन्हें प्रसाद भेंट किया जाता है और ये क्रम दो सौ साल से चलता आ रहा है। अदभुद लोक अभिव्यक्ति है ये बीकानेर के लोक की।
इस वर्ष भी ये होली के लोक देवता बीकानेरी लोक परम्परा का हिस्सा बनेगे। सो पूर्व की तैयारी में श्री मरूनायक मंदिर ट्रस्ट बीकानेर ने मथेरण कला के कलाकार श्री मूलचंद महात्मा को ही आमंत्रित किया है मूर्ति शिल्प के जीर्णोद्धार के लिए (ये भी विशेष बात है की लोक के इस पुराणिक किरदार को जिन्होंने रचा "मथेरण" उनके परिवार के सदस्य ही इसे पुनः वास्तविक स्वरुप में लाने का कार्य करेंगे। ये लोक की प्रतिबद्धता का एक सटीक प्रमाण यहाँ देखा जा सकता है।)
जब मथेरण कलाकार मूलचंद महात्मा जी लोक देवता गोधा बाबा की शिल्प पर रंग कर रहे थे। उस समय मैं उनके पास बैठा था और ये उनका आज का तीसरा दिन था मूर्त शिल्प को अंतिम स्वरुप देने का। उन्होंने पहले पहल चेहरे पर चमड़ी का रंग जो की मथेरण मूर्त शिल्प पे उपयोग किया जाता है, वो किया फिर, पगड़ी का रंग और आँखें और होठों के साथ मुछे उभारी। जैसे ही उन्होंने आँख की पुतलियां बनायीं उस मूर्त में मानो जान सी भर आयी। ये जादू ही कहा जाएगा मथेरण कला का की जिसने एक लोक परिकल्पना को जीवंत खड़ा कर दिया अपनी कूंची और कलाकारी से। जिसे बीकानेर की लोक संस्कृति ने दो सौ साल से संग्रक्षित रखा और पूजा है और आगे भी हजारों सालों तक ये संरक्षित रहेगी पूजी जायेगी ऐसा मेरा विश्वास है। मेरी बीकानेरी लोक संस्कृति पर।
कुछ छाया चित्र लोक देवता गोधा बाबा की मूर्त शिल्प जीर्णोद्धार होते हुए के कलाकार मूलचंद महात्मा मथेरण के हाथों।
योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट्स
बीकानेर, इंडिया
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