आत्मचेतना से सौंदर्य एवं संस्कृति के सजीव चित्रण की सिद्धहस्त चित्रकार विनीता शर्मा

कला मूर्त हो या अमूर्त सौंदर्यात्मक अभिव्यक्ति ने चित्रकार के काल्पनिक विचार, रेखांकन की लय और भावों का गहराई से संप्रेषण ही चित्रित चित्र मे चित्रकार की अभिव्यक्ति को सार्थक और सजीव बनती है। 
चित्र में भाव की प्रधानता और लयात्मकता रेखांकन को दर्शाने के लिए साधना करनी पड़ती है वर्षो तक, तब कहीं जाकर चित्रकार उस स्तर को छू पाता है कि उसको प्रतिष्ठित चित्रकार के रूप में देखा जाएं

गुलाबी नगरी जयपुर की चित्रकार "विनीता शर्मा" भी एक ऐसी ही चित्रकार है जिन्होंने अपनी हर मुश्किल को किनारा दिखते हुए हर परिस्थिति में सृजनरत रहते हुए आज भी निरंतर चित्रण कर रही है। यूं तो हर क्षेत्र में उत्तम कार्य करने के लिए स्वास्थ्य बहुत बड़ा सहायक होता है, लेकिन कुछ लोग अपने दृढ़ संकल्प से इन समस्याओं को नियंत्रित कर अपना कार्य करते है तो वह निश्चित ही कुछ अलग रूप लेते है।


चित्रकार विनीता शर्मा से मेरा परिचय 2018 में हुआ, पारिवारिक पृष्ठभूमि भी इसका कारण बनी साथ ही कलावृत्त की गतिविधियां भी। इसके उपरांत कोरोना काल में कलावृत्त द्वारा आयोजित "समसामयिक लघु चित्रण की ऑनलाइन कार्यशाला में भाग लेने के लिए विनीता ने आवेदन किया तो मुझे उनके चित्रण के बारे में और अधिक जानकारी मिली, साथ ही स्वास्थ्य समस्या के बारे में भी। कार्यशाला की व्यस्तता के कारण उस समय तो ज्यादा चर्चा नहीं हो सकी परन्तु उसके बाद उनके चित्रण और व्यक्तित्व को और गहराई से सुना और समझने का प्रयास किया मैंने। विनीता ने 2020 और 2022 की दो कार्यशालाओं में भाग लिया चित्र भी बहुत सुंदर और आकर्षक बनाएं।

अभी कुछ समय पूर्व ही मुझे लगा कि इन आत्मशिक्षित चित्रकारों के चित्रण एवं स्तिथि पर मुझे लिखना चाहिए, ताकि उन्हें भी कला जगत में एक सम्मानजनक स्थान मिले। दिक्कत ये है की कला जगत में चित्रकार दो भागों में बटे हुए है एक आत्मशिक्षित जो अपनी रुचि से कला को आत्मसात करते है साथ है साथ किसी वरिष्ठ सिद्धहस्त चित्रकार के सानिध्य में उन्हें अपना गुरु बनाकर उनसे सीखते है। और दूसरे जो कला संस्था से डिप्लोमा या डिग्री ग्रहण कर इस क्षेत्र में आए है। ये दोनों ही एक दूसरे को कलाकार नहीं मानते, और समस्या यही से खड़ी होती है। और मेरे हिसाब से यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्तिथि है। अच्छा इसी में एक वें कलाकार भी एकदम अलग-थलग है जो संस्थाओं से विधिवत शिक्षा लेकर पारिवारिक पृष्ठभूमि को आगे बढ़ाते हुए पारंपरिक शैलियों या लोक कलाओं की चित्रण परम्परा को आगे बढ़ाते हुए कार्य कर रहे है। यहां मैं उल्लेख करना चाहूंगा वीरेन्द्र बन्नू एवं शम्मी बन्नू का जो अपने परिवार की सात वीं पीढ़ी के चित्रकार है, राजस्थान की पारंपरिक लघु चित्रण विधा में श्रेष्ठ स्थान पर है वेदपाल बन्नू जी के दोनों सुपुत्र।

इस संबंध में मेरी विनीता से खुलकर बात हुई और मैंने पुछा कि ... चित्रकला में आपकी रुचि कब और कैसे हुई ? विनीता ने बताया कि "वैसे तो हर बच्चे की तरह मेरी भी रुचि थी चित्रकला में लेकिन मुझे अच्छे से याद है कि मैं जब 10 वर्ष की थी तो अपने पिताजी को फ्री हैंड स्केच बनाते हुए बड़े ध्यान से देखती थी और सोचती थी कि ये कितनी आसानी से इतने सुन्दर चित्र बना लेते है। फिर मैं भी उनके साथ बैठकर चित्र बनने लगी तो उन्होंने मुझे और प्रोत्साहित किया और समय समय पर मेरी गलतियों के बारे में मुझे समझते भी की इसे ऐसे बनाओगी तो और अच्छा बनेगा बस इसी तरह धीरे धीरे हर बार और अच्छा चित्र बनने की इच्छा से मैं प्रोत्साहित होती गई और अंततः इसी क्षेत्र में अपने आपकी स्थापित करने के उद्देश्य निरंतर चित्रण कार्य करने लगी।

तब मैंने पूछा कि आपको कितना समय हो गया एक प्रोफेशनल चित्रकार के रूप में कार्य करते हुए ? इस बात पर उन्होंने कहा कि "संदीप जी मुझे लगभग 36 साल हो गए, मैं बच्चों को सीखने के लिए क्लासेज भी लेती हूं और धीरे धीरे कला प्रेमी मुझसे अपनी पसंद की पेंटिंग अपने घर में लगाने के लिए भी बनवाने लगे, बहुत सारे ऑर्डर वर्क किए है अब भी कर रही हूं। विशेषकर मैंने पोर्ट्रेट बहुत बनाएं है इसके अलावा भी यदि किसी और विधा का कार्य भी मेरे समक्ष आया तो मैंने उसे किया है चाहे समय थोड़ा ज्यादा क्यों ना लगा हो।

मेरा अगला सवाल था कि एक आत्मशिक्षित चित्रकार के लिए व्यावसायिक रूप में कार्य करने में किस तरह की परेशानियां आती है विशेषकर महिलाओं के लिए ? इस बात के बारे में उन्होंने बताया कि "हां महिला होने के कारण घर की जिम्मेदारियों को भार भी हम पर होता है इसलिए दोनों मोर्चों पर कार्य करने में परेशानी तो बहुत होती है। पर यहां हमें अपने स्वविवेक से निर्णय लेना पड़ता है, अगर कार्य योजना ठीक है तो आसानी से मैनेज हो जाता है वरना कोई काम समय पर नहीं हो पाता जिससे किसी एक कार्य में अधिक नुकसान होता ही है। परन्तु सहनशीलता का जो विशेष गुण महिलाओं में होता है जिससे वें सब-कुछ व्यवस्थित करके चलती है तो कर भी लेती है। देखिए मैं ये नहीं कहती की इस मामले के पुरुषों की भागीदारी कम है लेकिन स्वभाव और सोचने का तरीका दोनों का मेल हो तो हर समस्या का निराकरण भी जल्दी हो जाता है।

अच्छा विनीता जी, एक बार आपने मुझे स्क्रैच पेंटिग के बारे में बताया था उसके लिए आपने किसी वरिष्ठ चित्रकार से शिक्षा भी ली है, उनका नाम क्या था उनके बारे में जानकारी दें ? इस सवाल के जवाब में थोड़ी भावुक होकर बोली कि "हां मैं जब 10वीं क्लास में पढ़ रही थी तभी गर्मी की छुट्टियों में मैंने स्क्रैच पेंटिंग श्री चिरंजी लाल बोहरा जी से सीखी थी। आपको बताऊं की मेरी जानकारी में यह विधा उन्हीं की है जिसमे हार्डबोर्ड को उल्टी साइड से लोहे के चाकू तथा बारीक औजारों से कुरेद-कुरेद कर बनाया जाता है। उस समय इस विधा में बहुत कम लोग कार्य करते थे क्योंकि बहुत मेहनत करनी पड़ती थी इस विधा में, लेकिन धीरे धीरे मुझे खूब कार्य मिलने लगा मैं निरंतर इस विधा में कार्य करती रही।

आज भी करती है ? 
जोर से हंसते हुए "जी बिल्कुल कर रही हूं।"

अच्छा विनीता जी, ये बताईए कि वर्तमान कला जगत को आप किस रूप में देखती है ? इसके जवाब में वें कहती है कि "देखिए वर्तमान परिपेक्ष में देखा जाए तो संसाधनों और उपकरणों के कारण सब कुछ चीजें और तकनीक सीखना बहुत आसान तो हो गया है। इंटरनेट से हम कभी भी कुछ भी सीख सकते हैं। लेकिन हमारे टाइम ऐसा नहीं था हमें सीखने के लिए घर से दूर किसी शिक्षण संस्था या गुरु के पास जाना पड़ता था। पूरा टाइम भी देना पड़ता था और गुरु के पास बैठ के उनके सामने कार्य करते हुए सीखते थे। आज बहुत साधन हो गए हैं आजकल के बच्चे होशियार तो बहुत है लेकिन उनमें जो एक सबसे बड़ी कमी मुझे लगती है वह है स्थिरता की है। दिमाग स्थिर नहीं है, उनको बहुत जल्दी सिखना है और बहुत जल्दी आर्टिस्ट बन कर बहुत जल्दी बहुत सारा पैसा कमाना होता हैं। थोड़ी सी भी पेंटिंग करना सीख लिया तो बस वह क्लास लगाकर बैठ जाता है इंटरनेट पर सिखाने के लिए, खुद पूरा सीखा नहीं और गुरु बनने के लिए लालायित हो उठता है। मुझे ये सही नहीं लगता है। पेंटिंग करना मेरे लिए तो एक साधन है जो मैं बचपन से करती आई हूं एक तरह से कहूं तो ईश्वर की पूजा की तरह मैंने सीखा है वर्षों तक तक जाकर सीखने की हिम्मत आई। कहते है ना सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है। अगर सफलता चाहिए तो वह आपसे मेहनत और समय दोनों मांगती है। जो मुझे लगता है एक हाथ का काम होता है वह हाथ से किया जाए तो ही अच्छा होता इसमें हम नए-नए तरीके ईजाद कर सकते हैं। आजकल डिजिटल आर्ट भी बहुत चल रहा है उसको भी पेंटिंग का दर्जा दे रखा है ठीक है उसमें भी मेहनत लगती है परन्तु वो बात नहीं आती जो हाथ से बनाई हुई पेंटिंग में आती है ऐसा मेरा मानना है। अगर हम अपना दिमाग स्थिर रखकर चित्रण करें तो चित्रों के भाव बहुत निखार के सामने आते है।


विनीता जी अमूर्त कला या चित्रण को आप किस परिपेक्ष में देखती है ? मेरे इस आखिरी सवाल का जवाब देते हुए विनीता ने कहा कि "मेरे हिसाब से अमूर्त वो है जो किसी भी देखे गए दृश्य, वस्तु, व्यक्ति या कोई अन्य चीज या दृश्य को कलाकार द्वारा अपने तरीके से कोई रूप दिए बिना चित्रण को हम अमूर्त कला कह सकते है या किसी आकृति को उसमें कुछ बदलाव करके उसको अलग कर देना अमूर्त कला कहलाती है। वैसे तो अमूर्त कला की भी अपनी एक अलग खूबसूरती है एक ही चीज को हम कई तरीके से बना सकते हैं। 

चित्र में हम रंगो द्वारा तकनीक को अलग-अलग तरीके काम में ले सकते हैं ऐसे में एक ही चित्र को कई रूप से बनाया जा सकता है। एक अच्छा विकल्प मान सकते है मूर्त को अमूर्त रूप से प्रदर्शित करना। लेकिन मेरा मानना है कि अमूर्त तो कुछ है ही नहीं, हां इसे एक ऐसी कमी तो मना जा सकता है कि रंग और आकृतियों को कैसे भी प्रदर्शित कर उसे अमूर्त कहा तो जा सकता है परन्तु उस अमूर्त में भी कुछ ऐसा प्रभाव तो होता ही है जो आपको आकर्षित करता है। वैसे तो कलाकार कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र होता है लेकिन व्यक्तिगत मेरे लिए कुछ भी अमूर्त नहीं है।"


विनीता के साथ यह चर्चा बहुत अच्छी रही अगली कड़ी में किसी नये चित्रकार के साथ बातें होंगी।

धन्यवाद

संदीप सुमहेन्द्र
चित्रकार एवं कला समीक्षक
संपादक, कलावृत आर्ट मैगज़ीन एवं ब्लॉगस्पॉट
E-mail : kalavritt.jaipur@gmail.com
              sundipsumahendra@gmail.com

Comments

  1. चित्रकार विनीता शर्मा जी , फेसबुक कलाकार मित्र भी है आप मेरे , आप के चित्र नारी मन और नारी सौन्दर्य को अभिव्यक्त करते हुए भावनात्मक स्पर्श की भी अनुभति करवाते है ! आप के चित्रों के रंग आप के कलाकार मन के चिंतन और मनन को मुखरित करते से प्रतीत होते है आप के चित्रों में ! आप के चित्रों का मूल उदेश्य मुझे जहाँ तक समझ आया कला के सौंदर्यबोध की और कला दर्शक को ले जाना और कला के रूप सौन्दर्य के दर्शन करवाना है ! इस आलेख में संपादक कलावृत्त श्री संदीप शर्मा जी ने भी बहुत गहराई से आप की कला पर अध्ययन करते हुए आप की कला यात्रा को प्रकाशित किया है अपनी कला की पारखी नजर से सो उन्हें साधुवाद और कलाकार विनीता शर्मा जी को आभार इस बात के लिए की आप ने कला दर्शक को कला से कला का सौंदर्यबोध करवाने की इस कलात्मक मुहीम को अनवरत जारी रखा है !
    चित्रकार - योगेंद्र कुमार पुरोहित
    मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
    बीकानेर , इंडिया

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