गुलाबी नगरी - बरसाती शाम में चित्रकार “सागर” जी के गहरे अनुभवों, स्मृतियों-संस्मरणों की रोचक ज़ुबानी : दिलीप दवे
गुलाबी नगरी जयपुर में
27 दिसंबर 2024
की बरसाती शाम को
“राजस्थान फ़ोरम” व “आई.टी.सी राजपूताना, जयपुर के वार्षिक कार्यक्रम
“Desert Soul”
में जाने माने वरिष्ठ चित्रकार
समदर सिंह खंगारोत “सागर”
की कला यात्रा के कलात्मक अनुभवों से “सीधा संवाद” का रोचक कार्यक्रम आयोजित हुआ।
“सागर” जी से सार्थक और प्रेरणादायक संवाद वरिष्ठ लेखक व कला समीक्षक “विनोद भारद्वाज” ने विस्तृत बातचीत के माध्यम से किया, जिसमें “सागर” जी के साथ उनके अनुभवों और कला की बातों का स्मरणीय का समावेश कर उपस्थित सभी कलाकार व कला प्रेमियों का ज्ञानवर्धन किया साथ ही कलाकार व कला जगत की अग्रणीय कला संस्था कलावृत्त के अध्यक्ष “संदीप सुमहेन्द्र” और उनकी टीम द्वारा इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का फ़ेसबुक के माध्यम ऑनलाइन लाइव प्रसारण भी किया गया, जिससे बहुत लोगों ने देखा और सराहा।
यूँ तो सागर जी का परिचय किसी का मोहताज नहीं हैं फिर भी विशेष रूप से युवा पीढ़ी के लिए उनका संक्षिप्त परिचय यहाँ करवाना मुझे तर्क संगत प्रतीत होता हैं, इसी क्रम में सागर जी का परिचय आगे हैं।
॰ “सागर” जी का संक्षिप्त परिचय :-
नाम : समदर सिंह खंगारोत “सागर”
जन्म : 15 अक्टूबर 1951,
जन्म स्थान : खंडेल (जयपुर)
कला शिक्षा : राजस्थान एम.ए. ड्राइंग और पेंटिंग, अजमेर विश्वविद्यालय, राजस्थान राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स, जयपुर से पेंटिंग और क्लेमॉडलिंग में डिप्लोमा। वरिष्ठ विख्यात चित्रकार पद्मश्री “कृपाल सिंह शेखावत” पर शोध प्रबंध कार्य (एक लघु शोध कार्य) तथा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मास्टर आर्टिस्ट “कृपाल सिंह” जी करीबी शिष्य रहें।
प्रशासनिक अनुभव : राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर के सचिव के रूप में प्रशासनिक अनुभव, अकादमी, जयपुर में अवधि मार्च 1996 से जून 2002 तक अकादमी “सचिव” जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहकर अनेकों उल्लेखनीय कार्यक्रमों के ज़रिए कला जगत को अपना योगदान प्रदान किया।
सम्मान व पुरस्कार : देश विदेश की उल्लेखनीय कला संस्थाओं द्वारा आयोजित विभिन्न कला आयोजनों में अपनी पहचान व भागीदारी के साथ भाग लेकर अनेकों राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय सम्मानित सम्मान व पुरस्कार प्राप्त किए।
कला के प्रति “सागर” जी की अपनी गहरी रूची व सेवा को उन्होंने अपने शब्दों में कुछ यूँ बयॉं किया …
“कला केवल अभिव्यक्ति नहीं, यह हमारी संस्कृति और आत्मा का प्रतिबिंब है”।
इस तरह के कलात्मक आयोजन से यह स्पष्ट रूप से रेखांकित हुआ कि “यह आयोजन न केवल कला और संवाद का गहरा संगम है, बल्कि यह राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा और विविधता को उत्सव के रूप में प्रस्तुत करने का एक सफल प्रयास है”।
इस चर्चा में सागर जी ने राजस्थान ललित कला अकादमी और राजस्थान स्कूल ऑफ आर्टस, जयपुर द्वारा राजस्थान कला जगत के लिए विशिष्ठ महत्ता पर इशारा करते हुए बड़ी बेबाक़ी से कहा - कि इन संस्थाओं को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखकर सार्थक व दूरगामी निर्णय कर कला और कलाकारों के उत्थान के लिए निरन्तर कार्य करना चाहिए। वर्षों पूर्व देश की गरिमामय कला शिक्षा संस्थान राजस्थान स्कूल ऑफ ऑर्ट्स, जयपुर की दशा सुधारने मे सागर जी के झूझारू सार्थक प्रयासों और समर्पण का साक्षी रहा हूं, इसीलिए मैं इस लेख का लेखक हूँ।
चित्रकार सागर जी की कलात्मक जीवन यात्रा में नित्य नवीन “सृजन और संस्कृति” का उत्सव मानों रोज़ाना झलकता, वहीं खुद के पर और खुद के काम पर गर्व करना सागर जी के व्यक्तित्व का अहम हिस्सा हैं इस तथ्य को इस कार्यक्रम के आरंभ में कला समीक्षक विनोद भारद्वाज ने उल्लेखित करते हुए सागर जी के व्यक्तित्व पर एक शेर कहा कि ...
"मैं तो झुक जाऊं, अगर रस्म ये डाली जाएं, सर तो नीलाम हो, पर पगड़ी ना उछाली जाएं।"
सागर जी की तथ्यात्मक चर्चा ने दर्शकों को उनके काम की गहराई और उनके भारतीय पौराणिक कथाओं के प्रति प्रेम व प्रेरणा दोनों से उनके कला दृष्टिकोण से परिचित कराया। उन्होंने अपने द्वारा सृजित अनेक यादगार श्रृंखलाओं जैसे ‘इंडियन फोर्ट्स’ और महाकाव्य “कालिदास’ के प्रसंगों पर उनके अनुसंधान और अध्ययन के बाद सृजन फलक पर उभरे काम पर विस्तार से प्रकाश डाला।
सागर जी अपने मौलिक सृजन के लिए निरन्तर अनुसंधान और अध्ययन करते रहते हैं जिसके परिणाम स्वरूप अब वो अपनी अति महत्वाकांक्षी मौजूदा 12 चित्रों की चित्रण की परियोजना “दिग्पालों पर चित्रांकन श्रृंखला” के बारे में दर्शकों से रूबरू हुवे। यहाँ मैं यह बताता चलूँ कि विषय “दिग्पाल” पर अभी तक भारतीय कला जगत में कोई भी चित्रण कार्य नहीं हुआ हैं, इस प्रकार से सागर जी देश के प्रथम चित्रकार होंगे जो अपनी मौलिक रचनाओं के साथ में कला जगत को अपना योगदान प्रदान करेंगे।
कार्यक्रम की अपूर्व सार्थकता समीक्षक विनोद भारद्वाज के सवालों से चर्चा में बनी जहां सागर जी अपने प्रभावी व तार्किक जवाबों से पूरी चर्चा मानों एक दस्तावेज बन गयी और “सागर” का काम भारतीय कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।
कार्यक्रम का समापन “राजस्थान फोरम” के सदस्य और विख्यात चित्रकार डॉ विद्या सागर उपाध्याय और डॉ. प्रदीप चतुर्वेदी द्वारा समदर सिंह खंगारोत 'सागर' को उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए “सम्मान” स्वरूप स्मृति चिह्न भेंट कर सम्पन्न हुआ। इस सारगर्भित आयोजन के अवसर पर बड़ी संख्या में शहर के प्रमुख कलाकार, सांस्कृतिक और कलाप्रेमीयों में इतिहासकार राघवेन्द्र सिंह मनोहर, सर्वेश भट्ट, गोपाल सैनी, राजेंद्र मिश्रा, प्रदीप चतुर्वेदी, डॉ. विद्यासागर उपाध्याय, आर.बी. गौतम, मनीष शर्मा, सोहन जाखड़, संदीप सुमहेन्द्र, स्मिता शुक्ला, अलका बत्रा, मीनाक्षी भारती, खुश नारायण, किशोर सिंह, विनय शर्मा, सचिन सहारण एवं गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे, और मैं स्वयं इस चर्चा में फेसबुक लाइव के जरिए पूरे समय जुड़ा रहा।
दिलीप दवे,
+91 94133 40282
E-mail: dilipdave403@gmail.com
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