कलाविद रामगोपाल विजयवर्गीय - जीवन की परिभाषा है कला : डॉ. सुमहेन्द्र
एक गुलाबी सी मुस्कान बिखेरता समग्र रूप से पहली दृष्टि में ही जो कलाकार दिखाई दे - सौम्य सी मूर्ति, अत्यंत संवेदनशील , करुणामय और प्रेममय तथा उम्र के नवें दशक में भी चुस्त-दुरुस्त और रसिकता में कोई कमी न हो तो ऐसे व्यक्तित्व को आप बिना संकोच राम गोपाल विजयवर्गीय कह सकते हैं। विजयवर्गीय जी अपनी कला-यात्रा की जिस मंजिल पर आज पहुंचे हैं उस तक पहुंचाने के पहले उन्हें कई रास्तों से गुजरना पड़ा है और शायद यही कारण है कि उनका व्यक्तित्व बहु आयामी बनता गया। समग्र रूप से इन्हें कलाकार इसलिए कहा जा सकता है कि ये मात्र एक चित्रकार ही नही वरन कवि , कहानीकार , कला गुरु , कला संग्राहक और कला के पोषक भी रहे हैं। ई.बी. हैवल के प्रयासों से भारतीय कला की सोच में , रचना के स्तर पर जो देशज रुझान आया वह तत्कालीन स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन की तरह पूरे देश में व्याप्त हो गया। बंगाल शैली या पुनर्जागरणकाल शैली के नाम से भारतीय कला को तकनीकी स्तर पर नये रूप में प्रस्तुत करने की समझ चीन से आई , स्याह कलम चित्रकारी तथा जल रंगों से चित्र निर्माण की तकनीक के कारण। भारतीय टेंपरा पद्धति और चीनी जल रंगों की परंपरा...

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