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Showing posts from 2020

यादों के झरोखों से - कला गुरू श्री सी.बी. बरतारिया : डाॅ. प्रेमकुमारी मिश्रा ‘रश्मि’

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शिक्षा-जगत से जुड़ी अपनी जीवन कहानी के पन्नों पर लिखी वे सभी यादें पुनः आँखों के सामने तैरने लगी जब अखिलेश निगम जी का अनुरोध श्री छैल बिहारी बरतारिया के सम्बन्ध में लेख लिखने को कहा गया-अचानक वे सभी यादें स्मरण हो आयीं जब मैं शिक्षा जगत में विचरण कर रही थी। सन् 1964 में मेरा दिल्ली से कानपुर आना हुआ और हिन्दी, संस्कृत साहित्य के साथ-साथ कला में रूचि होने के कारण साहित्य, संगीत और कला की कानपुर की गतिविधियों में भी अपने पिता के साथ अनेक कार्यक्रमों में जाती रहती थीं। चित्रकला के सन्दर्भ में पं. सिद्धेश्वर अवस्थी जो ललित कलाओं के मर्मज्ञ थे उनसे ज्ञात हुआ कि कानपुर का साहित्य और संगीत अधिक मुखर है, हाँ चित्रकला सामन्ती एवं कुलीन समाज की माँग पर कानपुर के चित्रकार रामशंकर त्रिवेदी, प्रभुदयाल तथा रूप किशोर कपूर आदि ने पोट्रेट पेंटिंग का बहुत सा कार्य किया किन्तु मौलिक एवं भावाभिव्यक्ति से रहित उक्त रचनायें मात्र नकल पर आधारित होने के कारण चित्रकला की वास्तविक परिभाषा में शामिल नहीं हो सकी। हाँ कुछ चित्रकार श्री प्रभुदयाल कालीचरण तथा सिद्धेश्वर अवस्थी उस समय पर स्वतंत्रभाव से चित्रांकन कर रह...

'धर्मयुग' में सुमहेन्द्र : अखिलेश निगम

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      ' धर्मयुग '    साप्ताहिक में राजनीति , समसामयिक विषय , फिल्म के साथ-साथ साहित्य और ललित कलाओं पर भी काफी कुछ प्रकाशित होता रहता था। इसीलिए उसके विभिन्न क्षेत्रों के अच्छे-खासे पाठक हुआ करते थे , और उन्हें उसके अंक की प्रतीक्षा रहती थी। कला-क्षेत्र की विभिन्न विधाओं के चर्चित कलाकारों की किसी एक कृति के साथ उस कलाकार पर मित्र मनमोहन सरल जी की टिप्पणी भी प्रकाशित होती थी। इस श्रृंखला का प्रकाशन वर्ष 1973-74 से प्रारंभ हुआ था। प्रसंगवश बताता चलूं कि मनमोहन जी की कला और फिल्म समीक्षाएं चर्चित रही हैं। मुंबई में बस गये मनमोहन जी मूलत: उत्तर प्रदेश के ही निवासी हैं। उक्त चर्चित श्रृंखला में उस समय तेजी से उभर रहे जयपुर के कलाकार महेंद्र कुमार शर्मा को भी स्थान मिला था अर्थात ' सुमहेन्द्र ' को। यह वह समय था जब सुमहेन्द्र को राष्ट्रीय ललित कला अकादमी ' राष्ट्रीय पुरस्कार ' (1972) से सम्मानित कर चुकी थी , और वे मुंबई से अपनी एकल प्रदर्शन ( 1974) करके जयपुर वापस लौटे थे। प्रकाशित चित्र उनकी ' महाराणा प्रताप ' श्रंखला की एक कृति है , जिसमें प्रताप के...

सुमहेन्द्र और उनका रचना-संसार

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Dr. Sumahendra कला-गुरु डाॅ० महेन्द्र कुमार शर्मा "सुमहेन्द्र" (1943 - 2012) के 77वें जन्मोत्सव (2 नवम्बर) पर विशेष : सुमहेन्द्र और उनका रचना-संसार  Gods, Tempera, 1975 सुमहेन्द्र भारत के उन चंद कलाकारों में हैं जिन्होंने देश की परम्परागत कला-शैलियों को जीवन्त बनायें रखा है। उन्होंने परम्परा का निर्वाह करते हुए अपनी कृतियों में आधुनिक प्रयोग किये हैं, और उस सतह को तोड़ने के बावजूद परम्परागत शैली की विशेषताओं एवं प्रभाव को बरकरार रखा है। यूं तो कई परम्परागत कला शैलियों में सुमहेन्द्र ने दक्षता प्राप्त कर रखी थी परंतु मुख्यतः किशनगढ़ शैली में ही उन्होंने चित्रांकन किया, और अपनी कृतियों में अधिकांशतः इसी शैली के नायक-नायिका (बणींठणीं और नागरीदास) को प्रतीक स्वरूप समसामयिक समस्यओं से जूझते हुए या उनकी प्रेमकथा को आधुनिक प्रसंग में उतारा। Lady with pigion, Acrylic on bord उनकी रंग-संयोजना में अनोखा आकर्षण दिखता है, जिसने उनकी भावाभिव्यक्ति को और प्रखर बना दिया है। उनकी नेता, भेंट, लाशें, आधुनिक नारी तथा युवा आदि कृतियां आधुनिक समाज पर तीखा व्यंग्य करती हैं। लघु चित्रों की शास्त्री...

सुमहेन्द्र : भारतीय परंपरा का एक आधुनिक कलाकार

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  कला-गुरु डाॅ० महेन्द्र कुमार शर्मा "सुमहेन्द्र" (1943-2012) के 77 वें जन्मोत्सव (2 नवम्बर) पर विशेष : ♦ अखिलेश निगम   भारतीय आधुनिक कला के नाम पर जो आपा-धापी मची है, उसने कला के मापदंड में परिवर्तन किया है, इसे स्वीकारना ही होगा। ‘आधुनिक-कला’ संज्ञक आज की कला (अधिकतर) को समाज ने मान्यता दी है अथवा एक सीमित दायरे के कुछ व्यक्तियों को ही ‘समाज’ मानकर उनकी मान्यता को ही लक्ष्य की इतिश्री समझा जा रहा है, यह प्रश्न भी इसके साथ ही विचारणीय है। यह एक लम्बी बहस का मुद्दा है इसलिए फिर कभी, खैर… ऐसे वातावरण के मध्य जब लीक से हटकर हमें कुछ ‘नया’ देखने को मिलता है तब एक सुखद अनुभूति होती है। ऐसी ही अनुभूति राजस्थानी चित्रकार सुमहेन्द्र की कला कृतियों को देखकर मिलती है। ‘सुमहेन्द्र’ नाम से बहुचर्चित राजस्थान के प्रतिनिधि चित्रकार महेन्द्र कुमार शर्मा (जन्मः 1943) भारत के उन चंद कलाकारों में हैं जिन्होंने देश की परम्परागत कला-शैलियों को जीवन्त बनाये रखा। जयपुर में रसे-बसे सुमहेन्द्र पर आंचलिकता का प्रभाव प्रचुर मात्रा में पड़ा, यही कारण है कि राजस्थान की प्रख्यात किशनगढ़ शैली में...

प्रोफ़ेसर मदन लाल नगर स्मृति दिवस 27 अक्टूबर पर विशेष

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  दर्द छुपा था उनके चित्रों में चित्रकार मदन लाल नागर उत्तर प्रदेश के उन अग्रणी कलाकारों में रहे है , जिन्होंने समकालीन भारतीय चित्रकला में नये आयाम जोड़े हैं। यह उनकी लगन , संघर्ष और रचना-धार्मिता की कहानी भी अपने में समेटे है और अपने ' नगर ' की बिखरती प्राचीन संस्कृति का दर्द भी। इधर करीब दो दशकों से श्री नागर केवल ' नगर ' ( सिटी) शीर्षक से अपने शहर के विभिन्न रूपों को अपने चित्र-फलक पर उतारते रहे थे। उनका यह ' शहर ' कोई और नही वही तहजीब का जाना-माना ' लखनऊ ' था - जहां वे जन्में ( 1923), पले कला की शिक्षा पाई और दी भी। उनके जेहन से इन शहरों की वे गालियां , जिनमें उनका बचपन बीता। जिसे उन्होंने अपने कदमों से नापा और मकान की छत पर चढ़ कर देखा भी था , बिसर ना सका था। सुबह , दोपहर , शाम और न जाने कितने रूपों में देखा था उसे उन्होंने , और यह उनके चित्रों में मुखर होता रहा था एक ' मिथक ' की तरह। पर साथ ही उनमें एक दर्द भी था - ' लखनऊवीं तहजीब से कहीं बहुत गहरा लगाव था। ' देहरी का मोह ' भी शायद ऐसा ही होता है। उसके बदलते रूप को उनका ' कला...

ज्यामितीय रूपाकारों के रचेयता - मोहन शर्मा

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नाथद्वारा की आध्यात्मिक भूमि पर जन्मे मोहन शर्मा को बाल्यकाल से ही रंगों और कुंचियों से खेलने का अवसर प्राप्त हुआ। पिता नाथद्वारा की पारंपरिक कला के धनी थे अतः प्रारम्भ से ही आप कला संसार में विचरते रहे। प्रारम्भ में आपका मेडिकल में जाने का विचार था किंतु लम्बी बीमारी से प्रथम वर्ष विज्ञान में ही आपको पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसी समय आपको यह अनुभव हुआ कि कला ही उनको जीवन आधार दे सकेगी और उनकी कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति में सहचरी बन सकेगी। परिवार के कलात्मक वातावरण व नाथद्वारा के पारंपरिक कला परिवेश से ओत-प्रोत उनका मन कलाकार बनने को छटपटाने लगा। उनके बड़े भ्राता ने उन्हें जब जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में प्रवेश दिलवाया तो वहाँ के परिवेश से उन्हें अनुभव हुआ कि वे सही स्थान पर आ गए हैं। वे पूर्ण उत्साह से अध्यन में लग गए। इनके शिक्षकों ने इनमें जब कलाकार की विशेष प्रतिभा देखी तो इन्हें प्रोत्साहित किया। इसी दौरान जे.जे. के प्राचार्य पलसीकर ने इनका संपर्क प्रसिद्ध कलाकार एफ.एन. सूजा से करवाया। सूजा ने अपने कुछ चित्रों के सृजन में इनका सहयोग लिया और इनकी तकनीकी कौशल की भूरी-भूरी प्रसंशा की। वे चित्र ...