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Showing posts from April, 2020

अन्नपूर्णा नगरी बारां के स्थापना दिवस पर विशेष : कुलदीप भार्गव

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राजस्थान का हाड़ौती भौगोलिक प्रदेश जो किसी समय हाड़ा राजवंश के द्वारा शासित होता था। विस्तृत कोटा रियासत के एक भू-भाग के रूप में बारां नगर स्थित था। बारां शहर की प्राचीनता के प्रमाण यहाँ पुरानें शहर में निर्मित परकोटा औऱ विभिन्न रियासत कालीन दरवाज़े हैं। वराह नगरी के नाम से विख्यात इस नगर को 10 अप्रैल 1991 को प्रशासनिक रूप से ज़िले का दर्जा मिला। इस से पूर्व यह नगर कोटा ज़िले की एक तहसील थी। बारां ज़िले का प्राकृतिक परिवेश ईश्वर प्रदत्त हरियाली से युक्त है। नदियां, झरनें, पहाड़, घाटियों औऱ पठारी भू-भाग में विस्तृत यह जिला भौगोलिक रूप से समृद्ध है। शाहबाद की घाटियां, वन क्षेत्र के रूप में सागवान, खेर, शीशम आदि वृक्षों की यहाँ बहुतायत है। सांस्कृतिक रूप से भी यह जिला बेहद धनी है। यहाँ धरती के आँचल में पूरा-संपदा यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हुई है। स्थापत्य औऱ धर्म-प्रेमियों के लिए यह स्थान अत्यंत रमणीक सरोवर की भांति शांति प्रदान करनें वाला है। रामगढ़ क्षेत्र में पहाड़ स्थित अन्नपूर्णा कृष्णाई माता का गुफा मंदिर धर्म प्रेमियों की गहन आस्था का केंद्र रहा है। रामगढ़ क्षेत्र में स्थित रामगढ़ क्र...

सामाजिक कुरूतियों के खिलाफ एक युवा चित्रकार महेश गुर्जर

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राज्य के युवा चित्रकार महेश गुर्जर अधिक्तर समाज मे व्याप्त सामाजिक कुरूतियों को अपने कैनवास पर चित्रित करते है। इन्होंने अपने पिता, प्रसिद्ध चित्रकार नाथूलाल गुजर से 10 वर्ष की आयु से ही कला ज्ञान लेना प्रारम्भ कर दिया था। तत्त्पश्चात राजकीय स्नाकोत्तर  महाविद्यालय टोंक महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, अजमेर से स्नातक व स्नातकोत्तर में चित्रकला की विधिवत शिक्षा ग्रहण की। जल, तेल एवं ऐक्रेलिक  तेल रंगों के माध्यम से हर तरह के आधार पर अपने विचारों को मूर्त रूप देते हैं। सामाजिक कुरूतियों में बाल विवाह, मृत्युभोज, छुआ-छूत, कन्या भ्रूण हत्या  आदि विषयों पर बहुत ही प्रभावी एवं आकर्षक चित्रण कर्म समय-समय पर करते रहते हैं।  वतर्मान में कोरोना वायरस से विश्व स्तर पर जन्मी महामारी पर किया चित्रण भी बहुत प्रभावशाली है। महेश को चित्रकला के साथ लेखन एवं नृत्य कला में भी खासी रुचि है, वें स्वयं बहुत अच्छा लोक नृत्य भी करते है। इसके साथ ही वर्ष 2007 से कक्षा 10 तक अनिवार्य  कला शिक्षा विषय के लिए आंदोलन प्रारम्भ किया जो अभी तक निरंतर जारी है। इस आंदोलन द्वारा वे चाह...

चार-चौमा का गुप्तकालीन ऐतिहासिक शिव मंदिर : कुलदीप भार्गव

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भारतभूमि पर सहस्त्रों पाषाण संरचनाएं वर्षों से इस राष्ट्र के सांस्कृतिक गौरव को अक्षुण्य रखे हुए हैं। मंदिर स्थापत्य कला के द्वारा प्राचीन काल से ही यहाँ के निवासियों ने सम्पूर्ण विश्व को स्थापत्य संरचनाओं का अद्वितीय उपहार प्रदान किया है।            प्राचीन काल से ही रूपप्रद कलाएँ इस महादेश में धर्मरूपी वटवृक्ष की गहन छाया में पल्लवित हुई हैं। धर्म को ही ध्येय मानकर यहाँ के राजाओं, श्रेष्ठियों औऱ धनिक वर्ग के लोगों ने मंदिरों के रूप में अद्भुद संरचनाओं की एक श्रृंखला का अद्भुद सौन्दर्यलोक निर्मित करवाया है। चार चौमा का शिव मंदिर भी इन्हीं श्रेष्ठ संरचनाओं में से एक है। यह स्थान राजस्थान के हाड़ौती भौतिक प्रदेश के अंतर्गत कोटा जिलें में अवस्थित है। कोटा से कैथून होते हुए भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग- 27 के द्वारा सिमलिया से पश्चिम दिशा में लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर ये मंदिर स्थित है। आदि देव महादेव को समर्पित यह मंदिर रचना निर्माण की दृष्टि से साधारण श्रेणी का ही है। भारी शिल्प श्रृंखलाओं का यहाँ पूर्णतः अभाव है। स्थानीय ...

उत्तरप्रदेश का रहस्यमय कालिंजर दुर्ग : कुलदीप भार्गव

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भारतवर्ष की स्थापत्यकला प्राचीनकाल से ही उन्नत रही है। आज भी प्राचीन भारत की सहस्त्रों संरचनाएं हमें हैरत में डाल देती हैं। इन संरचनाओं की विशालता और भव्यता देखकर आज के इंजीनियर भी दाँतों तले अंगुली दबाने को विवश हो जाते हैं। वास्तव में अभी तक हम हमारे प्राचीन समृद्ध स्थापत्यकला से लगभग अनभिज्ञ ही हैं। हमारा राजस्थान तो इन समृद्ध दुर्ग और महलों का खजाना है। दुर्भाग्य बस यह है कि हमारी शिक्षा में इन प्राचीन खजानों को लगभग भुला दिया गया है। इन रचनाओं में से एक भव्य स्थापत्य है कालिंजर दुर्ग जो उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में स्थित है। इसे भारत के सबसे विशाल और अपराजेय दुर्गों में गिना जाता है।  प्राचीन काल में यह दुर्ग जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। बाद में यह दसवीं शताब्दी तक चन्देल राजपूतों के अधीन और फिर रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू आदि ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। कालिंजर विजय अभियान में ही तोप के गोला लगने से शेरशाह की मृत्यु हो गई थ...