सामाजिक कुरूतियों के खिलाफ एक युवा चित्रकार महेश गुर्जर

राज्य के युवा चित्रकार महेश गुर्जर अधिक्तर समाज मे व्याप्त सामाजिक कुरूतियों को अपने कैनवास पर चित्रित करते है। इन्होंने अपने पिता, प्रसिद्ध चित्रकार नाथूलाल गुजर से 10 वर्ष की आयु से ही कला ज्ञान लेना प्रारम्भ कर दिया था।

तत्त्पश्चात राजकीय स्नाकोत्तर  महाविद्यालय टोंक महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, अजमेर से स्नातक व स्नातकोत्तर में चित्रकला की विधिवत शिक्षा ग्रहण की। जल, तेल एवं ऐक्रेलिक  तेल रंगों के माध्यम से हर तरह के आधार पर अपने विचारों को मूर्त रूप देते हैं। सामाजिक कुरूतियों में बाल विवाह, मृत्युभोज, छुआ-छूत, कन्या भ्रूण हत्या  आदि विषयों पर बहुत ही प्रभावी एवं आकर्षक चित्रण कर्म समय-समय पर करते रहते हैं। 

वतर्मान में कोरोना वायरस से विश्व स्तर पर जन्मी महामारी पर किया चित्रण भी बहुत प्रभावशाली है। महेश को चित्रकला के साथ लेखन एवं नृत्य कला में भी खासी रुचि है, वें स्वयं बहुत अच्छा लोक नृत्य भी करते है। इसके साथ ही वर्ष 2007 से कक्षा 10 तक अनिवार्य  कला शिक्षा विषय के लिए आंदोलन प्रारम्भ किया जो अभी तक निरंतर जारी है। इस आंदोलन द्वारा वे चाहते हैं कि सभी स्कूलों में द्वित्तीय व तृतीय श्रेणी के कला शिक्षकों की नियुक्ति हो जिससे स्कूली स्तर पर सभी छात्रों को कला की शिक्षा मिलती रहे। इसके लिए उन्होंने पूरे राजस्थान में कला यात्राएं कर चित्रकला, मूर्तिकला, नृत्यकला एवं संगीत कला की रैलीयां व कला चर्चाएं कर बेरोजगार कला शिक्षकों को भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया तथा इस कला आंदोलन के द्वारा कला शिक्षा के महत्व को बताया। इस युवा कलाकार ने कला शिक्षा में सन 1992 से बंद पड़ी कक्षा 1 से 10 तक के बच्चों की अनिवार्य कला शिक्षा के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार के स्तर पर भी अपनी आवाज़ बुलंद की। अपने इस अनिवार्य कला शिक्षा के आंदोलन को पूर्ण सफल बनाने के लिए इन्होंने लगभग 980 आर टी आई लगाई हैं एवं अपनी कला से की कमाई को इस आंदोलन के लिए समर्पित किया।

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