बणी-ठणी और चित्रकार सुमहेन्द्र

राजस्थानी चित्रकला में किशनगढ़ शैली का अपना महत्त्व हैl जयपुर के कलाकार सुमहेन्द्र ने प्राचीन शैली को आधुनिक परिवेश देने का प्रयास किया हैl चित्रकार सुमहेन्द्र से अखिलेश निगम की एक भेंट यहाँ प्रस्तुत है- 

राजस्थानी चित्रकला में किशनगढ़ शैली को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैl इस शैली के चित्रों में साहित्य और कला का अद्भुत सामंजस्य हैl इस शैली के चित्रों की नायिका बणी ठणी नामक एक स्त्री थीं, जिसकी ख्याति नागरीदास जी की प्रेयसी के रूप में हुईl कहते हैं इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपताl फिर नागरीदास और बणी-ठणी का इश्क तो एक अमर कथा बन गयाl जिसे स्वयं नागरीदास जी ही काव्य और चित्रों में बंधवा गए हैंl 

नागरीदास जी किशनगढ़ के महाराज थेl भावुक ह्रदय कवि तथा संगीत एवं कला के मर्मज्ञl नागरीदास जी कलाकारों का सम्मान करना बखूबी जानते थेl बणी-ठणी का वास्तविक नाम क्या था ? यह तो आज तक अज्ञात है, पर कहा यह जाता है कि गुलाम स्त्री थींl 

"बणी-ठणी" नाम उसको नागरीदास जी का दिया हुआ थाl इस नाम के अनुरूप ही उसकी काया व छाया दोनों ही थीं अर्थात एक सुसंस्कृत-श्रृंगारयुक्त-पूर्ण नारीl हीरे की परख जौहरी ही बखूबी कर पता हैl बस, यह हीरा नागरीदास जी की नज़र चढ़ गया और मिल बैठे दीवाने दोl 

राधा का रूप
दो कवि ह्रदयों के मिलन से जिस काव्य का प्रस्फुटन हुआ वह किसी से छुपा तो नहीं हैl नागरीदास जी ने उस रूप में राधा को निहारा और स्वयं में कृष्ण को पायाl इसी कल्पना पर आधारित उन्होंने अपने दरबारी चित्रकारों से चित्रों की संरचनायें करवाईl जिनका रूप लावण्य आज भी उतना का उतना ही बना हुआ हैl मुख्यत: यह चित्र "राधा कृष्ण" नाम से प्रचलित हुए हैl 

इसी में एक चित्र "बणी ठणी" के नाम से भी विख्यात हुआ है, जिसे निहाल चन्द नामक चित्रकार ने रूपायित किया थाl चित्र में नागरीदास जो बणी-ठणी से प्रेम-वार्ता करते हुए उसे पान के बीड़े पेश कर रहे हैंl 

सुमहेन्द्र की चित्रशाला
ऐसे ही कितनी परम्परावादी वस्तुएं, चित्र तथा कथाऐं मस्तिष्क में जम जाती हैं, जिनसे हटकर मस्तिष्क कभी - कभी सोचने से भी इंकार कर बैठता हैl ऐसे ही एक दिन मैं राजस्थान के प्रख्यात युवा चित्रकार सुमहेन्द्र की चित्रशाला पर पहुँच गयाl सुमहेन्द्र राजस्थान को चित्रकला के क्षेत्र में आगे बढ़ा रहें हैं, इसमें कोई दो मत तो है ही नहींl 1972 मेँ प्रथम बार ही सुमहेन्द्र ने राष्ट्रीय प्रदर्शनी की प्रतियोगिता मेँ भाग लिया और सौभाग्य से प्रथम बार मेँ ही उन्हें "राष्ट्रीय पुरुस्कार" का सम्मान प्राप्त हो गयाl 

उनकी चित्रशाला में आज मुझे एक चित्र बरबस ही अपनी ओर खींच रहा था ओर ये चित्र था "बणी ठणी" काl इसकी चर्चा मैं ऊपर कर चुका हूँ पर ऊपर जिस चित्र की मैनें चर्चा की थीं, वह बना था सन 1700 ई. के मध्य, और  यह चित्र बना था सन 1972 ई. में...एक लम्बा अंतराल और इसे रूपायित किया था सुमहेन्द्र नेl 

दो चित्रों का अन्तर
दोनों चित्रों में अन्तर था तो यह कि चित्र में नागरीदास जी ही भेंट दे रहें थे और वह भी पान कीl और दूसरे चित्र में नागरीदास जी भेंट कर रहें हैं - एक कप चाय और एक डिब्बा निरोधl आपके अवलोकनार्थ भी चित्र पेश कर रहा हूँl जरा ध्यान से देखियेl 

आखिर ऐसा क्या था जो सुमहेन्द्र ने ऐसा चित्रण किया ? परम्परा से हटकर...आखिर यह आकाश कैसा ? कलाकार भी आज के अवमूल्यन से कैसे बच सकते हैंl मेरे मन ने स्वयं ही उत्तर भी दे लियाl स्वयं कलाकार होने के कारण मैं कलाकार को सृष्टा ही नहीं दृष्टा भी मानता हूँl ऐसी मेरी मान्यता हैl बस मैं सुमहेन्द्र को टटोलने लगा-अच्छा, सुमहेन्द्र तुमने ऐसा क्यों चित्रित किया ?

सुमहेन्द्र अपने उसी पुराने लहजे में बोल उठा - सुनो बंधु, तुमसे क्या छुपानाl आज जो कुछ भी हमारे देश में घट रहा है। उससे आज यह मध्य वर्ग और निचले वर्ग की क्या हालत हो रही है, तुम खुद भी देख ही रहे होl फिर हम भी तो उन्हीं में एक हैं l हम भी कहाँ बचे हैं l मेरे मुख से केवल "हाँ" निकला और मैनें उसको बात पूर्ण करने दी l 

यदि आज नागरीदास होते
बस यही वह कारण था, जिसे मेरा मस्तिष्क मुझे बार-बार सोचने पर प्रेरित कर रहा थाl अपनी बात आगे बढ़ाते हुए सुमहेन्द्र बोला, और तभी भारत-पाक युद्ध शरू हो गयाl एक दिन ब्लैक-आउट के समय मैं पता नहीं क्या सोच रहा था कि एकदम से मेरे मस्तिष्क में यह आया कि आज से इस समय में यदि नागरीदास जी एक सामान्य व्यक्ति के रूप में जीवन-यापन कर रहें होते तो उनका क्या हाल होता ? क्या वह तब भी वैसे रहते !

यहीं से मेरी रचना प्रक्रिया मेँ अन्तर आ गयाl मेरे चित्रों के विषय तो सामान्य व्यक्ति की बात लिए होते, और वह बात मैनें कहलानी चाही जन मानस के नायक-नायिकाओं के माध्यम सेl क्योंकि यदि मैं, इन्हीं बातों को एक सामान्य मुखौटा दिखाकर रूपायित करता तो शायद वह उतनी चुभती हुई न हो पाती जो इस कारण मेरे चित्रों में आयीl 

किशनगढ़ शैली से प्रभावित
राजस्थान का होने के कारण मैनें इन्ही नायक-नायिकाओं को पहले लिया हैl पर यह कोई बंधन नहीं, विषयनुसार जहां जिस नायक-नायिका को लेकर मुझे बात कहानी होगी मैं कहूंगाl पर "किशनगढ़ शैली" से मैं अधिक प्रभावित रहा हूँl अतः मेरे चित्रों में इधर नागरीदास जी और बणी-ठणी विशेष रूप से प्रतीक स्वरूप आ गए हैंl 

मैं उसकी इस बात से पूर्णत: सहमत हूँl देश, काल औऱ परिस्थितियों से भला प्रभावित हुए बगैर कैसे कोई कलाकार रह सकता हैl वह उससे कितना भी बचना चाहे पर बच न सकेगा औऱ यही समय की मांग हैl आखिर कलाकार को समाज की बात उठानी पड़ेगी, कहनी पड़ेगी - एक क्रांति का सृजन करना होगाl अब यह एक अलग बात है कौन कहाँ, कैसे अपने ध्येय में सफल होता हैl 

आधुनिक परिवेश
सुमहेन्द्र ने नायक-नायिकाओं को लेकर चलने का जो प्रयास किया है वह वास्तव में सराहनीय हैl बणी-ठणी का आधुनिक परिवेश में यह बदला चित्र आज के जनमानस के मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डालेगा हीl क्योंकि यह एक परम्परावादी चित्र में युगांतकारी परिवर्तन लिए हैंl क्यों न परिवार नियोजन विभाग इस चित्र के कैलेण्डर बनवा डालेl मैं समझता हूँ यह एक सफल प्रयोग सिद्ध हो सकता हैl 

बणी-ठणी की गाथा की तरह ही सुमहेन्द्र, जिसका पूरा नाम महेंद्र कुमार शर्मा है, की चित्रकला भी दिन दुगनी रात चौगुनी प्रगति करेगी यदि वो इसी प्रकार अपनी साधना में रत रहेl सुमहेन्द्र आजकल जयपुर में महाराजा कॉलेज ऑफ़ आर्ट में प्रवक्ता हैंl राजस्थान को इस कलाकार पर गर्व होना चाहिएl 


लेखक :
अखिलेश निगम

नोट :-  वरिष्ठ चित्रकार अखिलेश निगम द्वारा कलावृत्त संस्था के संस्थापक चित्रकार सुमहेन्द्र द्वारा बनाई कलाकृति पर लिखित यह आलेख राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ठ में दिनांक 17 जून 1973 को प्रकाशित हो चुका है जिसकी मूल कतरन भी संलग्न है।

Comments

  1. बेहतरीन लेख,

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    1. बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद राम सोनी जी 🙏🙏🌹

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद अजय जी 🙏🙏🌹

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  3. Yes ... very true Devendra ji 🙏🙏🌹

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  4. Srajan ka sach or sach ka aaina kala guru Dr. sumhendra sharma ji ..ki advitiya abhivyakti ko naman ..aalekh ke liye lekhak Akhilesh ji ko sadhuwad ..

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    1. Thankyou very much Yogendra ji. Akhilesh Nigam ji is the best friend of my father's

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  5. Saadhuvaad Saadhuvaad Saadhuvaad

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