जवाहर कला केन्द्र, कला एवं कलाकारों का गढ़ - राकेश जैन
जवाहर कला केन्द्र लगभग साढ़े नौ एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। भारत भवन भोपाल और गोवा आर्ट एकादमी जैसे कला संस्थानों के ख्याति प्राप्त वास्तुविद चार्ल्स कोरिया की वास्तुकला पर खड़ा और विशाल परिसर में करौली के लाल पत्थरों से निर्मित यह भवन अपने विशिष्ट वास्तुशिल्प के कारण दूर से ही आकर्षित करता है। इस बहुआयामी कला संस्थान में आडियो विजुअल विभाग, चाक्षुक कला विभाग,
संगीत एवं नृत्य तथा नाटक विभाग के अलावा एक समृद्ध पुस्तकालय भी है जहां कला-संस्कृति संबद्ध हजारों दुर्लभ ग्रन्थ संग्रहित है।जवाहर कला केन्द्र के विशाल तोरणद्वार से प्रवेश करते ही दाईं और थियेटर है जिसमें मुख्यद्वार पर नाट्यकला के प्रतीक दो कठपुतलियां गोल स्तम्भों पर खडी है। थियेटर भवन में मुख्य थियेटर और
'एरेना' है जिन्हें क्रमशः
'रंगायन' एवं
'कृष्णायन' कहते हैं। इसी भाग में नाट्य विभाग का कार्यालय भी है।नाट्य विभाग के ठीक सामने संदर्भकक्ष है जिसके निचले खंड में पुस्तकालय और ऊपर आडियो विजुअल भाग है,
जहाँ दुर्लभ सामग्री के अलावा रेकार्डस
(ग्रामोफोन) और आडियो-वीडियो कैसेट्स संग्रहित है। जवाहर कला केन्द्र का उदघाटन
8 अप्रेल 1993 ई. को राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने किया था।
मुख्यद्वार से प्रवेश करने के बाद बरामदा पार करके गोल गुंबद है। इस गुंबद के ऊपरी हिस्से में ढाई द्वीप का चित्र बना है जिसका चित्रांकन प्रसिद्ध चित्रकार श्रीलाल जोशी, घनश्याम निम्बार्क और मोहन सोनी ने किया है। गोल गुंबद से ही गोलाकार मंच और प्रेक्षागृह दिखाई देता है जो 'मध्यवर्ती' कहलाता है । राजस्थान के बावड़ी स्थापत्य पर आधारित इस खुले प्रांगण के बीचोंबीच गोलाकार रंगमंच है जो लोकनृत्यों और लोक नाट्यों के प्रदर्शन के लिए आदर्श स्थान है। गोल गुंबद के नीचे से बाईं ओर जो सीढ़ियाँ बनी है उन्हें चढ़ कर प्रशासनिक विभाग में जा सकते हैं और नीचे सत्कार गृह है। सत्कार गृह के बाईं ओर लोक कला केन्द्र अथवा संग्रह-1 है जिसमें 'सुकृति' 'सुरेख' एवं 'सुदर्शन' कक्ष है । यहां अस्थायी प्रदर्शनियां आयोजित की जाती है। लोक कला के ऊपर जो वीथिका है वह चारों ओर होने के कारण 'चतुर्दिक' कहलाती है । लोक कला केन्द्र से हम संग्रह-2 और अलंकार गैलरी की ओर जाते हैं जहाँ राजस्थान के जनजीवन से सम्बद्ध घरेलू बर्तन-भांडे, रंग-बिरंगे कपडे, तरह-तरह के आभूषण और शादी-विवाह के अवसरों पर काम आने वाली मूर्तियाँ तोरण-थंभ, मन्दिरों में रथयात्रा के अवसर पर प्रयुक्त होने वाले रथ, हाथी, घोड़े, दरवाजे-चौखट और पालने आदि प्रदर्शित है। अलंकार गैलरी से सृजन खंड, सृजन खंड में बाईं ओर पारिजात -1 एवं पारिजात-2 नामक दो कला कक्ष है। आगे सर्वश्रेष्ट कलादीर्घा स्फटिक है।
लेखक : राकेश जैन
मोबाइल : 98290 09806
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