वीरेंद्र बन्नू के पारंपरिक लघु-चित्रण और वर्तमान पीढ़ी - पंकज तिवारी

पुराने विषय को नए ढंग से प्रस्तुत करने विशेषकर ज्वैलरी पर किए गए कार्यों के साथ ही आधुनिक विषयों पर भी लगातार सधी हुई तूलिका चलाने वाले सीधे-सादे सरल स्वभाव के धनी कलाकार विरेन्द्र बन्नू के कृतियों में पारंपरिक लघुचित्रों की पूरी थाती है साथ ही भंडार है और अन्य माध्यमों के कृतियों की। मिनिएचर में विशेष तौर से आप ज्वेलरी को बहुत खास तवज्जो देते रहे हैं, ज्वेलरी को एकदम अलग ढंग से बहुत ही सुंदर ढंग से बनाया है आपने।


'कोई चीज जो हमारे हाथ से छूट जाती है, अमूल्य एवं महान हो जाती है, जब तक हमारे पास होती है, आसानी से उपलब्ध होती है उसकी उपयोगिता कम ही आंकी जाती है, लोग उसके महत्व को कम समझ पाते हैं। मिनिएचर पेंटिंग (लघु चित्रकारी) के साथ भी कुछ ऐसा ही है। समय चक्र घूमता रहता है मिनिएचर का समय जल्द ही फिर लौटेगा' पारंपरिक मिनिएचर कलाकार परिवार से संबंध रखने वाले वीरेंद्र बन्नू के ये वाक्य वाकई विचार करने योग्य हैं।

“हम अपनी विरासत को संभाल पाने में इतने कमजोर क्यों हैं? अपनों से दूरी का कारण क्या है? जबकि वही बाहरी हेतु अमूल्य है”

वीरेंद्र बन्नू अपने मिनिएचर कला के पारंपरिक कलाकार परिवार में सातवीं पीढ़ी पर हैं और निरंतर सृजनशील हैं। आपके पिता वेदपाल शर्मा जो बन्नू जी के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिन पर अमेरिका से पुस्तक प्रकाशित हुई है, को मिनिएचर का गुरू कहा जाता था, जिन्होंने मिनिएचर में नये-नये प्रयोग किए, एक नई शैली 'बन्नू शैली' को जन्म दिया। आपके परदादा मोहनलाल जी जयपुर दरबार से सेवानिवृत्त होने वाले आखिरी कलाकार रहे, पहले भी आपके परिवार के लोग राज दरबार में चित्रकार हुआ करते थे।

मिनिएचर का काम इस समय लगभग कम हो गया है कारण यह काम बहुत ही धीरज का होता है, इसमें रंग, पेपर आदि के बारे में गहरी जानकारी होनी चाहिए, समझ होनी चाहिए कला के बारीकी की, पेंसिल, ब्रश चलाने आना चाहिए, उसका चुनाव आना चाहिए। इसे सीखने के साथ ही रियाज में भी पर्याप्त समय चाहिए जो आज भागती दुनिया में लगभग नये लोगों के पास नहीं है। पहले मिनिएचर का काम जहां होता था उसे कारखाना बोला जाता था जहां पर मुख्य कलाकार ड्राइंग बनाता था कोई दूसरा उसमें रंग भरता था, कोई उसमें पेड़ बना रहा होता था, कोई शरीर में रंग भर रहा होता था, कोई कपड़ा, ऐसा करते हुए फिर अंत में मुख्य कलाकार के पास आता था वह उसमें फाइनल टच देता था। इस तरह कई हाथों से गुजरने के बाद कलाकृति पूरी होती थी इसीलिए उसे कारखाना बोला जाता था। जहां तैयार कलाकृति दरबार की अमानत होती थी और जिस पर किसी भी कलाकार का हस्ताक्षर नहीं हुआ करता था। बाद में समय बदला और बन्नू यानी आपके पिता जी द्वारा हस्ताक्षर करने की प्रथा भी चालू हुई।

बचपन से ही पिता जी को पेंटिंग करते हुए देखना साथ ही रंग घोंटना, ट्रेस करना, कह सकते हैं कि आपकी ट्रेनिंग बचपन से ही शुरू हो चुकी थी। बड़ी-बड़ी ओरिजनल कृतियों को हाथ में लेकर देखना कितनी खुशी भर जाता था कहना मुश्किल है। आप निरंतर सृजनशील रहते हुए आगे बढ़ रहे थे उसी दरमियान राजस्थान कॉलेज आफ आर्ट में दाखिला हुआ जहां माॉडर्न आर्ट की तरफ लोगों का रुख देखने के बाद भी मिनिएचर पर ही अडिग रहना और उसमें भी बहुत कुछ नया करना, विशेषतः आकृतियों के आभूषणों में, आप के लिए बहुत फायदेमंद रही। हालांकि कोर्स वर्क करने का फायदा ये रहा कि वहां से कुछ विशेष आप अपने कृतियों में ला सके विशेषतः डेफ्थ, पर्सपेक्टिव में। आपके विषय अधिकतर पुराने हैं पर आधुनिकता के साथ हैं।

कृति 'आधुनिका' में केश, आभूषण के साथ ही चश्में का संयोजन समय के साथ हो रहे नयेपन को दर्शाता है जबकि 'लेडीज फर्स्ट' में अब तक के हुए सबसे बड़े बदलाव को दिखाया गया है, गाड़ी नायिका चला रही है और नायक पीछे बैठा हुआ है वो भी नींबू- मिर्च के संयोजन के साथ, आपकी कृतियां मिनिएचर होते हुए भी संदेशप्रद हैं। लघु को दीर्घाकार में भी करने का प्रयास आप लगातार करते रहे हैं हालांकि आपके पहले पीढ़ी में भी हुआ था। छः से आठ फिट बड़े चित्र प्राकृतिक रंगों के साथ ही तैल रंगों में भी आप बनाते रहे हैं। कॉटन के कपड़े पर खड़िया के साथ तैयार पेपर पर तैल से पारंपरिक मिनिएचर के काम करना आपकी विशेषता है। एक्रेलिक, ऑयल, कैनवास, पेपर, कपड़े, शीशे लगभग हर विधा और हर धरातल पर आपने काम किया है। ताज होटल्स ग्रुप, ओबेरॉय और वेलकम ग्रुप होटल्स के लिए प्रतिष्ठित प्रोजेक्ट्स में भी आपकी कृतियां शामिल हैं। एक्सपोर्ट भवनों हेतु भी क्रियात्मक कार्य आपने किया है। आपके द्वारा निर्मित कांच का कार्य लंदन के एक रेस्टोरेंट में सजा हुआ है। एयर इंडिया की पत्रिका 'स्वागत' के आवरण पर भी आपकी पेंटिंग प्रकाशित है।

माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा आपकी कृतियां दूसरे देशों में उपहार स्वरूप भेंट की गई हैं जो भारतीय संस्कृति की झलक के साथ निर्मित थीं, जिसमें भारतीयता की झलक थी, जिसमें से एक सिख स्कूल पर आधारित थी। 25 जनवरी 1964 को जयपुर में पैदा हुए वीरेंद्र बन्नू की कृतियां 'चाइना आर्ट फेस्टिवल', 2015 में प्रदर्शित हुईं, पहले अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर कला और संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित "योग चक्र" प्रर्दशनी में भी प्रर्दशित हुईं। आपके द्वारा तैयार झांकी को 26 जनवरी 1996 में दिल्ली में प्रर्दशित किया गया, जहां वो पुरस्कृत भी हुई। राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर कला मेला, जवाहर कला केंद्र, जहांगीर आर्ट गैलरी आदि जगहों पर आप प्रर्दशित एवं पुरस्कृत भी हुए। कुवैत संग्रहालय, सिख संग्रहालय ओंटारियो, नेपाल आर्ट गैलरी सहित आपकी कृतियां भारतीय एवं विदेशी संग्रह में संरक्षित हैं।

 




पंकज तिवारी
संपादक- बखार कला पत्रिका
कवि, कलाकार एवं कला समीक्षक

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