भारतीय चित्रकला में गुरु-शिष्य परम्परा का विशेष महत्व : डॉ रेणु शाही

 भरत के नाम से संबोधित भारत वर्ष योगियों संतों तथा महान ऋषि-मुनियों का देश रहा है। इन्ही में महर्षि वेदव्यास संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है। वे आदि गुरु हैं। इसलिए उनके जन्मदिन आषाढ़पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। वेदांत दर्शन व अद्वैत वाद के संस्थापक वेदव्यास ऋषि पाराशर के पुत्र थे तथा उनकी माता का नाम सत्यवती था। पत्नी आरुणि से उत्पन्न महान बाल योगी सुखदेव इनके पुत्र हैं। एक परंपरा के अनुसार पांडू, धृतराष्ट्र और विदुर भी महर्षि वेदव्यास  के संतान माने जाते हैं। वेदव्यास ने महाभारत, ब्रह्मसूत्र, 18 पुराण, 18 उपपुराण की रचना किए हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने वेदों को उनके विषय के अनुसार ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के रूप में चार भागों में विभाजित किया है। महर्षि वेदव्यास की शिष्य परंपरा में पैल, जैमिनी, वैशंपायन, समन्तु मुनि, रोमहर्षण आदि का नाम महत्वपूर्ण रूप से सामने आता है। यह आषाढ़ पूर्णिमा गुरु महात्मा का पर्व है। इस दिन गुरु की पूजा का विधान शास्त्रों में मिलता है। गुरुपूर्णिमा वर्षा ऋतु में पङती है। इस दिन से 4 महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान का प्रकाश चारों ओर बिखेरते हैं। यह 4 माह प्राकृतिक रूप से बहुत रमणीय होता है। ना अधिक गर्मी पड़ती है ना सर्दी का भान होता है। इसलिए चाहे ज्ञान क्षेत्र हो या अध्ययन क्षेत्र हो दोनों दृष्टि से यह समय बड़ा ही उपयुक्त माना जाता है। ऐसे समय में साधक द्वारा की गई साधना फलीभूत होती है। ठीक वैसे ही जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा की शीतलता एवं पौधे उत्पन्न करने की शक्ति मिलती है वैसे ही गुरु के सानिध्य में उपस्थित होकर साधकों की ज्ञानशक्ति, भक्ति, शांति और योग की प्राप्ति होती है।                            

भारतीय संस्कृति में गुरु का विशेष महत्व माना गया है। गुरु ही मनुष्य में ज्ञान का आधान करता है। इसलिए आषाढपूर्णिमा के दिन गुरुपूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। यद्यपि भारत देश ऋषि प्रधान देश रहा है, हर युग में ऋषियों के प्रति आदर-सम्मान का भाव देखने को मिलता है। कश्यप, आंगिरा, भृगु, वशिष्ठ, अगस्त्य, भारद्वाज, जमदग्नि, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य, जैमिनी, बाल्मीकि, दुर्वाषा आदि  की  एक वृहद ऋषि परंपरा देखने को मिलती है। इन सभी के प्रति शिष्यों द्वारा अपार श्रद्धा का भाव भी दृष्टिगोचर होता है। यह देश ज्ञान वैभव का देश है। यहाँ अपरा और परा विद्याओं का संगम है। आत्मा तथा शारीर के साथ ही आदिभौतिक, आदिदैविक और आध्यात्मिक चिन्तन परम्परा का विकास ऋषियों के मनीषा से ही व्यक्त होती है। भारत में ज्ञान के मूलभूमि ऋषि ही हैं। क्योंकि सभी शास्त्र उन्ही के द्वारा श्रुत परंपरा से संरक्षित रहे  हैं। इसलिए ऋषि परंपरा को ही गुरुपरंपरा के रूप वन्दना की जाती है। लेकिन एक मान्यता के अनुसार महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। उन्हीं के सम्मान में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही गुरुपूर्णिमा पर्व का आयोजन होता है। ऐसा भी बताया जाता है कि इसी दिन महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों व मुनियों को सर्वप्रथम श्रीमाद्भागवद्पुरण का उपदेश दिया था। श्रीमाद्भागवद्पुरण उनके अट्ठारह पुराणों में इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि इसमें भगवत- भक्ति के द्वारा मोक्ष का मार्ग बतलाया  गया है। कुछ लोगों का यह भी  मानना है कि महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्र को लिखना इसी दिन प्रारंभ किया था। इसलिए वेदांत दर्शन के प्रारंभिक दिन को गुरुपूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। ब्रह्मसूत्र वेदान्त दर्शन का वह ग्रन्थ है जो जीव–व्रह्म की एकता की घोषणा करता है। यहाँ यह भी बताना का उचित होगा कि भक्ति काल के संत श्रीघासीदास का जन्म भी आषाढ़पूर्णिमा के दिन ही  हुआ था। जो कबीर दास के शिष्य माने जाते हैं। पूर्णिमा के दिन का भौगोलिक रूप से भी अत्यधिक महत्व माना जाता है। इस दिन चंद्रमा का पृथ्वी के जल से सीधा संबंध होता है। फलत: समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न हो जाता है। चंद्रमा समुद्र के जल को अपनी ओर खींचता है। यह क्रिया मनुष्य को भी प्रभावित करती है क्योंकि मनुष्य के शरीर में भी अधिकांश भाग जल का ही है। इसलिए मनुष्य के शरीर की जल की गति बदल जाती है। गुण में भी परिवर्तन हो जाता है। आत्म- विस्तार की स्थिति बनने लगती है जिससे एक अपूर्व आनंद की अनुभूति है।   

यद्यपि भारतीय संस्कृति ऋषियों का आचरण–व्यावहार द्वारा परिष्कृत संस्कृति है। यहाँ पर ऋषियों–मुनियों के प्रति जीवन के प्रारम्भिक काल से ही श्रद्धा का भाव देखने को मिलता है। ऋषि अपने आचरण मात्र से शिष्यों के अन्त: करण में ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित कर देता है। ऋषि ज्ञान का  प्रकाश अत्यंत गंभीर, गुरु व भारी होता है। इसीलिए उपदेशक ऋषियों को गुरु की संज्ञा से विभूषित किया गया है। गुरु शब्द दो वर्णों के योग से बना है–गु और रु अर्थात गु का अर्थ होता है–अंधकार या अज्ञान तथा रु का अर्थ होता है–हटाने वाला या अवरोधक, इसलिए गुरु शब्द का अर्थ अज्ञान को हटाने वाला या अंधकार को दूर करने वाला होता है। गुरु का ज्ञान भारी है, गुरु का कार्य भारी है और गुरु की सेवा भी भारी ही है। इसलिए वह गुरु कहलाता है। गुरु ही अज्ञान तिमिर का अपने ज्ञानांजन शलाका से हरण कर देता है। यानि अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य गुरु ही करता है। जिसके सम्बन्ध में ठीक ही कहा गया है–

                अज्ञान तिमिरंध्श्च  ज्ञानांजन शलाकया।

                चक्षुन्मिलितं   येन तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

 एक  बात और ध्यान देने योग्य है कि गुरु का महत्व सभी धर्मों व सम्प्रदायों में है। जैन, बौद्ध, सिक्ख, इसाई, पारसी, इस्लाम आदि सभी किसी न किसी रूप में गुरु की सत्ता में विश्वास रखते है। सभी गुरु का आदर करते हैं। क्योंकि गुरु ही सबके ज्ञान का आधार है। मैं ऐसा धर्म, संप्रदाय, जाति नहीं देखता हूँ जो बिना गुरु का हो, सबके अपने–अपने गुरु हैं। गुरु के महात्म्य के सम्बन्ध में आदिकवि वाल्मीकीय भी कहते हैं –

                स्वर्गोधनं वा धान्यं वा विद्या पुत्रा: सुखानि च ।

                गुरुवृत्यनुरोधेन न किंचिदपि  दुर्लभम् ।। (१/३०/३६)

अर्थात् गुरुजनों की सेवा का अनुसरण करने से स्वर्ग, धन, धान्य, विद्या, पुत्र और सुख कुछ भी दुर्लभ नहीं होता है। यहाँ सेवा से अभिप्राय गुरु का अनुशासन है, उसका निर्देश ही सेवा है। भारतीय परंपरा में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समकक्ष मानते हुए का गया है,

                 गुरुर्वह्मा  गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।

                 गुरु साक्षात् परव्रह्म तस्मै श्री गुरवे नाम।।

हिंदी के भक्तकवि तुलसीदास भी गुरु -गौरव के विषय में कहा है –

                 श्रीगुरुचरन  सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारी।

                 वरनऊँ रघुवर विमल जसु जो दायक फल चारी।।

इस प्रकार भारतीय संस्कृति  में गुरु का स्थान बहुत श्रेष्ठ है। सभी मनुष्य के जीवन में  ज्ञानी गुरु की महती आवश्यकता होती है। गुरु ही जीवन लक्ष्य का पथ प्रदर्शक  होता है। मनुष्य जीवन तो एक हाड.–मास के पुतले  के समान है l उस पुतले को ज्ञान संपन्न, गुण सम्पन्न और विवेक संपन्न गुरु ही बनता है। उसके विना देवता भी अधूरे हैं। राम और कृष्ण भी बिना गुरु के ज्ञानी नहीं बन सके। गुरु शास्त्र और शस्त्र से शिष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। वही जीवन में परम ज्योति जलाता है। इतिहास साक्षी बिना गुरु के ज्ञान से कोई भी संवृद्ध नहीं हुआ है। यह गुरुपूर्णिमा पर्व समस्त ऋषि व गुरुपरंपरा का प्रतीक शुभ दिवस है। परंतु वर्तमान में इस दिन का महत्व धुँधला पड़ गया है। हमें प्रयास करना चाहिए की भावी पीढ़ी को इस बहुमूल्य संस्कृतिक परंपरा से अवगत कराये और अन्य दूसरे दिवसों के तरह ही सभी शिक्षण संस्थानों में इस दिवस के उपलक्ष में कार्यक्रम का आयोजन किया जाए जिसमें की भारतीय संस्कृति - परंपरा से विद्यार्थियों को परिचित होने का अवसर मिले। 

डॉ. रेणु शाही 

सहायक आचार्य, चित्रकला विभाग, 

राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट, जयपुर एवं 

कला समीक्षक 

मोबाइल : 7734073291


Comments

  1. अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम
    तत पदम् दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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    2. Fentastic

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    3. अतिउत्तम

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    4. Bahut accha

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    5. एक गुरु अनंतकाल तक को प्रभावित करता है; वह कभी नहीं बता सकता कि उसका प्रभाव कहा तक जाएगा।

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    6. Very nice jai ho

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    7. Very nice ji

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  2. Bahut sundar

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  3. Bahut acccha…. Shandaar 👏🏻👏🏻👌👍

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  4. Replies
    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  5. बहुत अच्छा लेख संपूर्ण जानकारी के साथ। आपको साधुवाद।

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  6. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  7. ❤️👌🏻

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  8. Wha ! Ati Sundar vyakhya hai yah Renu ma'am thanks for this

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  9. बहुत सुंदर

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  10. Adorable..bhaut..khoobsurat

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  11. सभी को बहुत - बहुत धन्यावाद l

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  12. साधुवाद !
    गुरु की कृपा बनी रहे और गुरु सदृश कार्य का निर्वहन होता रहे।
    शुभकामनाएं !

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  13. Bhot badiya 🙏🙏

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  14. Beautifully written , 👌💐🙏👌💐

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  15. अति उत्तम

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  16. बहुत सुंदर आलेख, आपको बहुत बहुत बधाई एवम शुभकामनाए

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  17. Veryy nicee

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  18. Very nice dii

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  19. गुरु बिन ज्ञान न उपजै,
    गुरु बिन मिलै न मोक्ष।
    गुरु बिन लखै न सत्य को,
    गुरु बिन मैटैं न दोष ।।

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  20. Wow so beautiful written 🙏🙏

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  21. सभी को शुभकामनाएं l

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  22. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  23. Replies
    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  24. Me sarojini mohapatra bahut achha h aap ki soch me sehmat huin aap ki updesh me .actually humari bhartiy sanskriti ko Jindal rakhne k liye hum log ko aisehi koshish karna chahiye. Sabhi k9 Mera hardik shubhkamnayein. Jai hind jai bharat

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    1. बहुत बहुत धन्यावाद आपको l

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  25. Bhut acha h dii 👌👌👌 hme guru ka samman karna chahiye aur unke diye gaye gyan ke marg ko apne jivan me apanana chahiye🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  26. आप सभी के विचार जानकर बहुत प्रसन्नता हुई l

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  27. जानकारी से भरपूर बढ़िया आलेख

    गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

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  28. Bahut hi Acha h maam Guru bina hum kuch nhi

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  29. Replies
    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  30. Nice Article

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    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  31. Absolutely right mam

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  32. Replies
    1. आभार एवं धन्यवाद 👍

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  33. Bahut hi achcha article hai didi...guru hi sab kuchh hai.. guru ke bina kuchh bhi sambhav nhi..🙏

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  34. साधुवाद

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  35. बहुत सुंदर

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  36. Bahut sundar 😍❣️

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  37. 🙏🙏🙏🙏

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  38. सभी पाठकों को हृदय से धन्यवाद l

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  39. Very informative

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  40. उम्मदा लेखन

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  41. रेणु शाही जी का गुरुपरंपरा पर बहुत ही सार्थक और तथ्यपरक लेख है आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

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    1. आप को भी शुभकामना l

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  42. Well written and informative article.

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  43. Nice 👌👌👌👌👌🤘

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  44. बहुत ही अच्छा लेख है

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  45. साधुवाद !
    गुरु की कृपा बनी रहे और गुरु सदृश कार्य का निर्वहन होता रहे।
    शुभकामनाएं

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  46. बधाई और शुभकामनाएं

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  47. अतिउत्तम,,, बहुत सुंदर रचना

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  48. बहुत सुन्दर लेख।

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  49. अत्यंत समृद्ध और प्रमाणिकता से परिपूर्ण आलेख,,
    बधाई

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  50. भारतीय परिपेक्ष में बहुत प्रासंगिक और सारगर्भित

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  51. Bahut hi Sundar aur bahut hi acchi Kitab aapane likhi Hai Renu aur aap ISI Tarah Hamesha likhate rahiye Guru ashish se ka ek bahut hi Achcha Sneh hota hai vah Hamesha isane aapane is kitabon Mein dikhaya hai aur Bhagwan Kare banaa Rahe Hamesha aur aap ISI Tarah अच्छी-अच्छी kitaben likhen aur aage badhati Rahe god bless u🙏🌷🌷🌿😊 congratulation Dr Renu Shahi ji

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  52. शानदार लेखनी। मंगलकामनाएं...

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    1. गुरु शिष्य परंपरा आदिकाल भारतीय परंपरा में आदिकाल से चलती आ रही है
      गुरु का महत्व आजकल के विद्यार्थी समझे यह बहुत जरूरी है ज्ञान लेना और ज्ञान अनुभव करना दोनों अलग-अलग बातें हैं जो गुरु बिना संभव नहीं
      डॉ. रेनु जी आपको साधुवाद

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  53. शानदार अत्यंत समृद्ध और प्रमाणिकता से परिपूर्ण आलेख बधाई हो

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  54. गुरु हमे अंधकारमय जीवन से प्रकाश की ओर ले जाते है। गुरु एक दिये की तरह होते है, जो शिष्यों के जीवन को रोशन कर देते है। खासकर विद्यार्थी जीवन में गुरु की अहम भूमिका होती है। गुरु विद्यार्थी को हर प्रकार के विषयो से संबंधी जानकारी देते है ओर जीवन के अलग अलग पड़ाव में उन्हें मुश्किलों से लड़ना सीखाते है।

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  55. बहुत ही सुन्दर व्याक्यान गुरु शिष्य परम्परा पर
    आभार एवम धनयवाद

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  56. Well written article.

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  57. 👌👌🙏🙏

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  58. Very articulated piece of writing... Keep it up

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  59. अति सुंदर

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  60. अति सुंदर

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  61. गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण
    शिष्य और गुरु, जगत में दो ही हैं वर्ण
    अत्यंत समृद्ध और प्रमाणिकता से परिपूर्ण लेख,,

    गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

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  62. भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य का अच्छा समवेश दिया है👏👏💯✌️👍🆗✅👍

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  63. It’s beautifully presented 🙏

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  64. Bahut bariya prayash

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  65. Bahut sundar ❤️🙏🙏

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  66. अति सुंदर

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  67. Very informative Article.

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  68. Beautiful thoughts mam 👌👌

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  69. बहुत ही अच्छा लेख लिखा है।

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  70. Liked this article of yours, which is completely authentic and correct, keep it like this so that those who are research candidates also get the benefit of it.

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  71. ज्ञानवर्धक लेखन.....शुभकामनाएं

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  72. Very nice.... Best

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  73. Very Great written article👍🏻

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  74. Hello mam aap bahut accha likhate ho or aap ki painting bhi bahut acchi hai aap se kya meri koi baat ho shekti hai aap se kuch shikhane ko milega mam

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  75. , अच्छी जानकारी मिली
    शिष्य के लिए गुरु का महत्व के विषय में अच्छा लिखा है

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  76. Great Renu ji

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  77. Written really very good...Can't find such writing in this time....

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  78. Guru & shisya relation everlasting

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  79. बहुत ही सुंदर

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  80. मैडम आपने बहुत ही सुंदर तरीक़े से गुरू का गुणगान किया है व गुरु का महत्व बताया है जो क़ाबिले तारीफ़ है। आपको साधुवाद।

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  81. गुरु बिन ज्ञान न होत है, गुरु बिन दिशा अजान,
    गुरु बिन इन्द्रिय न सधें, गुरु बिन बढ़े न शान।

    गुरु मन में बैठत सदा, गुरु है भ्रम का काल,
    गुरु अवगुण को मेटता, मिटें सभी भ्रमजाल।

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