गोंड चित्रकला शिविर जवाहर कला केंद्र में हुआ संपन्न: डॉ. रेणु शाही

 राजस्थान की गुलाबी नगरी "जयपुर" की शानो-शौकत पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जयपुर अपनी कला और संस्कृति परंपराओं में बहुत अदभुद और श्रेष्ठ स्थान रखता है जिसका किसी से कोई जोड़ नहीं है। वैसे तो पूरा राजस्थान अपनी विभिन्न लोक कलाओं के लिए पूरे विश्व मे विशेष रूप से जाना ही जाता है। यहां पर कला एवं कलाकार को आगे बढ़ाने एवं विकास  हेतु अनेक आयोजन किसी ना किसी रूप में संपन्न होते ही रहते है। इस बहुउद्देशीय कार्य के लिए बहुत से कला केंद्रों की स्थापना यहां पर हुई है जो निरंतर इसकी प्रसिद्धि के लिए प्रयासरत है, इसमें सबसे अधिक प्रसिद्ध जयपुर का जवाहर कला केंद्र (जे.के.के) है, जो मुख्य रूप से कलात्मक गतिविधियों कराने मे अग्रणी संस्था है। यह संस्थान कला और संस्कृति का मुख्य केंद्र है। इसकी स्थापना सन-1993 में हुई थी, इसके वास्तुकार चार्ल्स कोरिया थे। 

कलात्मक गतिविधियों के मुख्य संस्थानों में जवाहर कला केंद्र,  राजस्थान के कला को बढ़ावा देने के साथ ही साथ अन्य राज्यों के कलाओं के विकास के लिए भी सदैव तत्पर रहता है। यहां वर्ष में कई बार कला उत्सवों व मेलों का आयोजन नियमित रूप से होता ही रहता है जिसमें देश के अन्य राज्यों के कलाकारों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का पूरा मौका मिलाता है।

देश की लोक कलाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यहां पर अनेक कला शिविरों, प्रदर्शनियों एवं कला चर्चाओं का आयोजन होता ही रहता है। इसी के अंतर्गत मध्य प्रदेश की गोंड चित्रकला को यहां के कला विद्यार्थियों एवं अन्य चित्रकारों को सिखाने के उद्देश्य से पांच दिवसीय कला शिविर आयोजित किया गया। इस शिविर में मध्यप्रदेश के पारम्परिक लोक चित्रकार आत्माराम श्याम द्वारा विद्यार्थियों को लोक चित्रकला का प्रशिक्षण दिया गया, यह चित्र तकनीकी "गोंड चित्र शैली" के नाम से प्रसिद्ध है। शिविर का आयोजन 18 से 22 जुलाई किया गया था। जिसमें विभिन्न कला संस्थाओं के विद्यार्थियों ने उत्सुकता से भाग लिया। शिविर में आत्माराम ने गोंड चित्रकला से संबंधित सभी प्रकार के पहलुओं से कला विद्यार्थियों एवं कला शिक्षकों को अवगत कराया। यहां के कला विद्यार्थियों एवं कलाकारों के लिए यह चित्र कला एक नई शैली के रूप में सामने आई, क्योंकि अकादमी स्तर पर कला पाठ्यक्रम से इस प्रकार की लोक कलाओं को हटा दिया गया है। यह लोक कला सिर्फ सैद्धांतिक रूप से ही पाठ्यक्रम में उपलब्ध हैं इनका कोई प्रायोगिक कार्य कलाकक्ष में नहीं कराया जाता। यही मुख्य कारण है कि जब इस प्रकार के कला शिविरों का आयोजन होता है तो लोक कलाएं विद्यार्थियों के समाने एक नवीन कला शैली के रूप में आती है।

चित्रकार आत्माराम ने बताया कि वर्तमान में लोक कलाओं में भी बहुत से परिवर्तन आने लगे हैं रंग प्राकृतिक ना होकर बाजार से बनने वाले प्रयोग किए जाने लगे हैं। चूंकि उन्होंने अपने बाल्यावस्था से ही इन कलाओं को आत्मसात किया है अतः वह इसमें हुए सभी प्रयोग एवं परिवर्तन से भी भली प्रकार अवगत हैं इनके पिताश्री तुलाराम श्याम डिंडोरी, मध्य प्रदेश के निवासी वर्तमान में भोपाल में रहते हुए इस कला की साधना कर रहे हैं  तथा इस लोक कला को जीवित रखने के  लिए  प्रयासरत हैं। आत्माराम बताते हैं कि इनकी रूचि बचपन से ही इस कला के प्रति थी क्योंकि इनका पारिवारिक वातावरण कलात्मक था। लेकिन इन्हें इनकी बहन सुशीला श्याम ने यह चित्रण सिखाया है।

गोंड लोक चित्रकला के विषय के रूप मे आदिवासी जीवन संस्कृति, परंपरा, लोक जीवन शैली, लोक कथाएं, गोंड की ऐतिहासिक कथाएं एवं प्रकृति का चित्रण होता है। क्योंकि आदिवासी जनजातियों द्वारा इस कला का प्रारंभ हुआ इसलिए इसमें नदी पहाड़ झरने भी बहुत चित्रित किए जाते थे। इन जनजातियों के जंगल में रहने के कारण ही इनकी कला में इस प्रकार के विषय आते हैं। मिट्टी के घरों में रहने के कारण वो दीवारों और भूमि पर चित्र बनाते थे। इसे लोक भित्ति चित्रण भी कहते है। इस कला का इतिहास लगभग 1400 वर्ष पुराना है जो गोंड जाती के साथ जुड़ा है। मूलरूप से इसका उपयोग मिट्टी की दीवार को अलंकृत करने के लिए ही किया जाता था। मुख्यत सभी चित्र शुभता के प्रतीक होते थे और उस शुभ कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्यों में भी कभी- कभी प्रयोग में लाए जाते थे। इसे गोंड जनजाति द्वारा बनाया जाता था इसीलिए इसे गोंड चित्र कहते हैं। इसे प्रकाश में लाने का श्रेय भारत के प्रसिद्ध चित्रकार जे. स्वामीनाथन द्वारा किया गया जिन्होंने लोक एवं जनजाति कलाकार जनगण सिंह श्याम को इसे भारत भवन, भोपाल की दीवारों सजाने के उद्देश्य से करने के लिए कहा।

आकृतियों के सपाट धरातल पर धागे की बुनावट जैसी दिखती यह कला बहुत ही लुभावनी लगती है जो काथा वर्क जैसी दिखाई देती है। वर्तमान में इस कला के धरातल के रूप में कागज, बोर्ड, कपड़े एवं कैनवास आदि पर भी चित्रण किया जाने लगा है। चित्रण के लिए पहले जो रंग उपयोग में लाए जाते थे वह प्रकृतिक एवं खनिज रंग होते थे जिसमे प्रमुख रूप से गेरू मिट्टी, काली मिट्टी, फ़ूलों एवं पत्तियों के रस व रंग, लाल मिट्टी, खड़िया, कोयला आदि है। परन्तु वर्तमान में आधुनिकीकरण एवं नये कलात्मक परिवेश के कारण इनमें भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगा है l उदाहरण स्वरूप इस कला में पोस्टर रंगों का उपयोग होना है l

गोंड चित्रकला को एक नया रूप देने तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का श्रेय श्री जनगण सिंह श्याम जी को जाता है, इनके अथक प्रयास ने इस लोक कला को नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं। जनगढ़ सिंह आत्माराम जी के पूर्वज एवं गौड चित्रकला के पारंपरिक कलाकार थे। इनके प्रयोगवादी विधि ने एक नई "गोंड चित्र शैली" का रूप प्रदान किया जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पाने में सक्षम रही।  

इस प्रकार इस चित्र शैली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही जवाहर कला केंद्र में इसका शिविर लगाया गया। इस शिविर में कला जिज्ञासु के अतिरिक्त कई कला महाविद्यालयों के कला विद्यार्थी एवं अन्य विद्यार्थी भी आए जिन्होंने बहुत ही रुचि से इस कला विधा में अपने चित्रों का निर्माण किया। उन्हें एक नई चित्र शैली को सिखने में काफी आनंद आया और उन्होंने पूरे मनोभाव के साथ इसमें प्रतिभागिता की।

शिविर में कुछ बाहर से आए उम्र दराज लोग भी सम्मिलित हुए और इस कला की तकनीक एवं बारीकियों को समझने का प्रयास किया। सभी ने अपने - अपने चित्र में प्राकृतिक दृश्य, मानव जीवन, पशु- पक्षी (नभचर- जलचर) आदि को चित्रित किया है। प्रतिभागियों का उल्लास सराहनीय है। सभी चित्र अपनी सहजता एवं सरलता के साथ इतने आकर्षण बने है कि जिन्हें बार बार देखने का मन करता है। चटक रंगों का प्रयोग, लयात्मक रेखाएं एवं सरल आकृतियां, सहज अभिव्यक्ति इस शैली की शोभा बढ़ा देती हैं। चित्र में आकृतियां किसी खिलौने की भांति प्रतीत होती हैं जो दृष्टि को अपनी तरफ खींचती हैं। इन कलाओं के दर्शन मात्र से ही प्रतीत होता है कि कलाएं हमारे जीवन के लिए कितनी आवश्यक हैं और बिना कलाओं के हमारा जीवन संभव नहीं है इसलिए इस प्रकार के आयोजन निरंतर होते भी रहने चाहिए और इन्हें बढ़ाने का प्रयास भी करना चाहिए जो कि जवाहर कला केंद्र द्वारा किया सराहनीय प्रयास है।

गोंड शैली के चित्रकार आत्माराम श्याम के निरीक्षण में इस शिविर में लगभग 15 प्रतिभागियों ने अपने चित्रों का निर्माण किया जिसमें अनु चौधरी, गौरव चौधरी, कार्तिक शाह, मोनिका चौधरी, सोनू आदि सम्मिलित हैं।


लेखिका : डॉ. रेणु शाही

सहायक आचार्य, चित्रकला विभाग,
राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट, जयपुर
एवं कला समीक्षक

मोबाइल : 7734073291

Comments

  1. जय श्री गणेश

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    1. V nice 👌

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    2. Very informative article and beautifully paintings

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  2. Lekhan shaili me pranjalta aur pravah sarahniya hai, is prakar ke samsamyik karyakramo ka documentation, online madhyam se nishchay hi sarahniya hai. Lekhika ko baht baht badhai aur shubhkamnaye

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  3. Replies
    1. रेणु मैडम जी बहुत सुंदर लेखनी एवं आर्ट

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  4. Nice 👍 👍 👌👌😊

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  5. शानदार लेख, खुबसूरत प्रस्तुति

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  6. Thank you Renu ma'am Mujhe and mere es art ko apriciate krne ke liye. Aapne bhut hi Achha artical likha hai aapne es art ko kafi Sarahna Kiya hai bhut bhut sukriya ma'am

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    1. शुभकामनायें l

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    2. Bahut Badiya Aatma Shyam bhai 🎉🎉🎉🎉

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    3. Great and knowledgeable article...congratulations and keep it up...doing superb job...👏👏👏😃

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  7. Congratulations!

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  8. Congratulations....

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  9. Very very nice

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  10. बधाई आत्माराम, सुंदर कला को नए आयाम देने के लिए। सुंदर आर्टिकल रेणु मैडम💐💐

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  11. लेखिका को बहुत-बहुत बधाई लोक कलाओं की जो झांकी लेखिका द्वारा प्रस्तुत की गई है वह सराहनीय और ज्ञानवर्धक है

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  12. Congratulations Mam 💐🌺💐

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  13. बहुत ही सुंदर और सारगर्भित लेख के लिए डा. रेनु शाही जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं, डा. शाही कला की गम्भीर अध्येता एवं अध्यापिका हैं, सदैव कुछ नया सोचने और करने का प्रयास करती रहती हैं |आशा है आप निरन्तर अपने प्रगति पथ पर अग्रसर रहेगी, शुभकामनाओं सहित...

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    1. आपकी शुभ कामना का प्रति फल है l

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    2. Congrats Dr. Renu

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    3. Congrats mam

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  14. Congratulations ma'am 😍🙏🌼❤🌼

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  15. Knowledgeable 👍👍👍

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  16. बहुत सुन्दर

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  17. Kya baat...behad khoob

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  18. Dr sahiba ki lekh ki jitni taarif ki jaye kam hai

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  19. Babut hi safal aayojan aur mai is kary ke liye Adarniya Dr. Renu Shahi Madam ko badhai deta hoon jinhone adivasi kala par workshop ka aayojan kiya.

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  20. Umda lekh, shabdo ka chayan, vakya gathan, lekh ki dhara pravahita aur vinyaas, prerna jagane wala hai.

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  21. बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई

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  22. Very informative Blog

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  23. Very nice 👍👍

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  24. Aati utaam prayash

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  25. Bohot sundar description Renu Ma'am! Thank you!

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  26. Well drafted 💫

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  27. Good work Great fabolous

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  28. शानदार लेख खूबसूरत प्रस्तुति धन्यवाद रेनू जी

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  29. Very informative and well described. Thanks to introduce me with new art

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  30. 🙏🙏बहुत ही सुंदर समीक्षा।
    सुंदर गोंड लोक कला के बारे में,आपके द्वारा लिखी हुई सारगर्भित लेखनी,हमे मध्य प्रदेश की आदिवासी इस कला से पूर्ण रूप से व उसकी सोंधी महक से ओत प्रोत करती है।
    इतने अच्छे लेख के लिए लेखिका का आभार, व धन्यवाद।

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  31. अति सुंदर

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  32. Just awesome 👌

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  33. बहुत बहुत बधाई....रेणु

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  34. Bhut acha likhi h dii sarahniy h👍👍👍👍👍

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  35. Bahut Sundar Prayas Renu ji aapane Kiya Hai aur bahut hi Sundar Kala Samiksha bhi aapane bahut hi acche tarike Se Sundar tarike aur apne Bhav ko aapane shabdon Mein Sundar tarikon se varnan Kiya Hai

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  36. 🙏🙏🌷🌿

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  37. Bahut sundar ma'am

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  38. सुन्दर, विस्तृत एवं वर्णात्मक
    बधाई

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  39. बहुत ही उत्तम शोध कार्य

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  40. Bahut hi sunder aur utkrisht lekh hai di🙏

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  41. Appreciable, commendable

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  42. Well written highly informative, keep it up

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  43. Bohat khoobsurat words ko ek khoobsurat mala ki tara piro kar is khoobsurat kala ka byaan kia hai apne,,,, congratulations Renu mam,,,,

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  44. आप की सशक्त लेखनी द्वारा सुन्दर गोंड लोक कला की शानदार प्रस्तुति के लिऐ आप को बहुत बधाई एवम् शुभकामनाएं ।💐👏

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  45. 👌Superb 👌

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  46. 👌Suppar 👌

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  47. Nice & good read.

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  48. Bahut sundar

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  49. कला और संवेदना के समन्वय से ही सृजन होता है। इस तरह की कार्यशाला भाव को सृजन तक पहुंचाने का माध्यम है। बेहतरीन पहल के लिए साधुवाद

    बृजेश
    वाराणसी

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  50. रेनू जी आपने बहुत सुंदर और सजीव कार्यक्रम और कला का चित्रण किया है आपकी लेखनी अद्भुत है और जिस सरल ढंग से आप कला के बारे में लिखती हैं पढ़ने वाले के मस्तिष्क में उसकी छाप छूट जाती है मैं चाहूंगा कि आप भारत की विभिन्न कलाओं के उपाय इसी प्रकार लिखें और उस पर पुस्तक प्रकाशित की जा सके जिसमें मैं आपका सहयोग करूंगा

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  51. Renu mam bahut hi khoobsurat likha hai..keep it up

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  52. This is a good initiative to promote folk arts, a very good effortThis is a good initiative to promote folk arts, a very good effort

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  53. Bahut sunder.....

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  54. Very knowledgeable and valueable information for everyone... heartiest congratulations ma'am

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  55. डॉ. रेनू शाही जी को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत लेख को लिखने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं इस प्रकार के लेख भविष्य में मैं पढ़ना चाहूंगी एवं आने वाली नई पीढ़ी को यह शिक्षा प्रदान करेगी l

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  56. Good job 👏 👏

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  57. अति सुंदर आप की लेखनीय अतुल्य है।।
    नमन है आप को।।।

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  58. Bht sundar👌👌

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  59. Shubhkamnaye 🙏

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  60. Bahut sundar

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  61. बहुत ही उत्तम जानकारी

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  62. Fabulous 🙌🏻

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  63. Fantastic 🤘🏻

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  64. Rocking 🤘🏻

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  65. Aatma ko prafullit kar diya

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  66. Written very beautifully you are the inspiration of youth writers 🙏🙏

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  67. डॉ. रेनू शाही जी को सुंदर ढंग से प्रस्तुत लेख को लिखने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनायें एवं धन्यवाद। कला से संबंधित लेख भविष्य में मैं पढ़ना चाहूंगी। 🙏🙏

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    1. अवश्य, आपके प्रेरणा के लिए धन्यवाद l

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  68. Very nice jangan shing great artist aap bhut achcha likha

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  69. Congratulatiom , Written very well.keep it up

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  70. Niche work
    Thanku Renu jii 😊🙏🙏

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  71. very nice mam...🤘🤘

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  72. This is Epic 😅❤️❤️ Renu ma'am

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  73. बहुत ही अद्भुत प्रदर्शन जयपुर के कलाकारों की और जयपुर की विभिन्न प्रसिद्धियो को हमने इस कहानी के माध्यम से जाना है।
    -धन्यवाद

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  74. Wow very well written ma'am. ❤️

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  75. Mam It looks very well planned, very well written and well organized.....congratulations 👌👏👏👍😊

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  76. गोंड चित्रकला शैली की आकृतियों में अत्यधिक "कर्व" का कारण क्या है ?

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