पुरा सम्पदा का संरक्षण सिर्फ सरकार का काम नहीं : डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल

 कुछ बरस पहले का वह दृश्य मुझे बार-बार याद आता है। हम लोग भ्रमण के लिए दुबई गए हुए थे। एक सुबह हम वहां अल फ़हीदी क़िले में स्थित दुबई संग्रहालय देखने गए। संग्रहालय बहुत समृद्ध और सुव्यवस्थित था, लेकिन अभी मैं उसकी बात नहीं कर रहा हूं। मैं उस दृश्य की बात कर रहा हूं जो मुझे बार-बार याद आता है। दृश्य यह था कि लगभग तीन से सात-आठ बरस की उम्र के कोई एक सौ बच्चे अपनी अध्यापिकाओं के संरक्षण में उस संग्रहालय में घूम रहे थे, या घुमाये जा रहे थे। निश्चय ही उन अबोध बच्चों ने उस संग्रहालय को उस  तरह नहीं देखा होगा जैसे हम देख रहे थे, लेकिन इसके बावज़ूद मुझे यह बात बहुत भली लगी कि एक स्कूल प्रबंधन को अपने बच्चों को संग्रहालय में भेजना ज़रूरी लगा। इस तरह उस स्कूल ने अपने बच्चों के अबोध मनों में संग्रहालय के प्रति रुचि का बीजारोपण किया. बहुत सम्भव है कि आगे चलकर उन बच्चों में से कुछ दुबारा उस या किसी अन्य संग्रहालय में जाएं और उन्हें यह बात याद आए कि पहले भी कभी वे यहां या ऐसे ही किसी अन्य संग्रहालय में आए थे।  हम सब में विभिन्न रुचियां इसी तरह आई और विकसित हुई हैं।


 दुनिया के कई अन्य देशों में घूमते हुए मैंने पाया कि वे लोग अपनी विरासत को बड़े जतन से सहेजते और उसे प्रदर्शित करते हैं। दुनिया के बहुत सारे देश हैं जिनका अतीत उतना समृद्ध नहीं है जितना हमारा है। लेकिन यह देखकर आश्चर्य होता है और ईर्ष्या भी कि उनके पास जो भी है उसे वे बहुत सलीके से संजोते और दिखाते हैं। अमरीका जैसे देश में बहुत छोटी-छोटी जगहों पर बहुत थोड़ी सामग्री वाले अनेक संग्रहालय मैंने देखे। नाम से लगता है कि बड़ा संग्रहालय होगा लेकिन जाने पर पाते हैं कि बस, नाम मात्र का संग्रह वहां है। लेकिन उसे बहुत बढ़िया तरह से रखा-दिखाया जाता है। ऐसे छोटे-छोटे संग्रहालय मिलकर एक छवि गढ़ते हैं।  

इन बातों को करने का अभिप्राय यह है कि हमें अपनी विरासत को न केवल सहेजना चाहिए उससे आने वाली पीढ़ियों को परिचित भी कराना चाहिए। निश्चय ही हमारे पास बहुत अधिक संग्रहालय नहीं हैं, लेकिन हमें इस बात के प्रयास क्यों नहीं करने चाहिएं कि उनकी संख्या में वृद्धि हो। यह काम सरकारें भी कर सकती हैं, निजी संस्थान भी और समर्थ व्यक्ति भी। बल्कि सब मिल जुलकर काम करेंगे तभी सार्थक कुछ होगा। और संग्रहालय बना देना ही काफी नहीं होगा, उनके प्रति जन-रुचि भी उत्पन्न करनी होगी. अभी जहां  अच्छे और समृद्ध संग्रहालय हैं वहां भी दर्शकों का टोटा रहता है। इसलिए रहता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में संग्रहालयों को अपेक्षित महत्व नहीं दिया जाता और विभिन्न संचार माध्यम भी उनकी महत्ता को उजागर करने में उदासीन नज़र आते हैं। असल में हमने संग्रहालयों के महत्व को समझा ही नहीं है और यही कारण है कि हमारी बहुत सारी पुरा सम्पदा बहुत तेज़ी से विलुप्त होती जा  रही है।

आज हमारे देश में क्लाइमेट चेंज और सस्टेनेबिलिटी में संग्रहालयों की भूमिका की चर्चा होने लगी है। इण्डियन म्यूज़ियम्स अगेंस्ट क्लाइमेट चेंज जैसी मुहिम चलाई जा रही है। इतना ही नहीं, पर्यावरण की चुनौतियों को समझाने के लिए भी अनेक नवाचारी काम हो रहे हैं, जैसे बेंगलुरू के इण्डियन म्यूज़िक एक्सपीरिएंस म्यूज़ियम में पूरे जून महीने में बर्ड सॉंग और सोलिगा आदिवासियों के पक्षियों से जुड़े गीतों पर कार्यक्रम आयोजित कर यह बताया गया कि ध्वनि प्रदूषण का परिंदों पर क्या असर पड़ रहा है। केरल के कोच्चि स्थित संग्रहालय को सौर ऊर्जा से चलाने की तैयारियां चल रही हैं। हमारे अपने राजस्थान में भी ग़ैर सरकारी स्तर पर कुछ अच्छे संग्रहालय निर्मानाधीन हैं। इन गतिविधियों से निश्चय ही एक उम्मीद बंधती है कि संग्रहालयों के महत्व को थोड़ा तो समझा जा रहा है, लेकिन ज़रूरत इस बात की है कि पूरी ऊर्जा से इस काम को आगे बढ़ाया जाए।


 इस बात को समझा जाना चाहिए कि संग्रहालय शिक्षा के बहुत प्रभावी माध्यम हैं। अपने अतीत को जानने के लिए ये किताबों के बहुत सशक्त पूरक हैं। जो कुछ आप किताबों में पढ़ते हैं जब उसी को साक्षात देखते हैं तो वह चीज़ आपकी स्मृति में स्थायी रूप से अंकित हो जाती है।

राजस्थान के  जिन शहरों में संग्रहालय हैं वहां के स्कूलों कॉलेजों को उनसे संबंध बनाकर अपने विद्यार्थियों को नियमित रूप से वहां भेजना चाहिए। संग्रहालयों को भी पहल करके विद्यालयों महाविद्यालयों को अपने यहां आमंत्रित करना चाहिए। जिनके पास किसी भी तरह की पुरा सम्पदा है उन्हें उस सम्पदा के संरक्षण और प्रदर्शन की दिशा में सचेष्ट होना चाहिए। एक बार फिर कहूं, यह काम सरकारी और निजी दोनों ही स्तरों पर होना चाहिए, और यह भी कि यह काम केवल विश्व संग्रहालय दिवस तक सीमित नहीं रहना चाहिए।


लेखक : डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल
अनुवादक और स्तम्भकार
ई मेल: dpagrawal24@gmail.com

Comments

  1. Replies
    1. Yes that's true, this is only the way to teach new jenretion about our privious time. Thankyou Devendra ji 🙏

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  2. यह शतप्रतिशत सही है कि अकादेमी स्तर पर इनकी शिक्षा नहीं दी जाती, जो की होना चाहिए l अपने शहर के ही कला विद्यार्थियों को इसकी जानकारी नहीं होती औरों की तो कुछ कहा नहीं जा सकता l इस दृष्टिकोण से शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन अवश्यक है l
    हम सभी का ध्यान इसके प्रति दिलाने के लिए लेखक को बहुत बहुत धन्यवाद !

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  3. यह सही हैं शिक्षा प्रणाली में सुधार हो साथ ही माता-पिता जहां भी घूमने जाऐ अपने बच्चों को संग्रहालय जरूर ले जाऐं व अपनी पुरा सम्पदा से अवगत कराये।

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  4. It's necessary for parents to update their children for their past..and same for teachers also.

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  5. Then only students will see the culture and heritage of india

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