25 वाँ लोकरंग विभिन्न संस्कृतियों का समन्वय - डॉ. रेणु शाही
"लोकरंग 2022"
का भव्य आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम लोकरंग के 'रजतजयन्ती' के रूप में मनाया गया है। इस कारण इसका विशेष महत्व है।
दिनांक 10 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक आयोजित होने वाले इस समारोह का उद्घाटन श्रीमती गायत्री राठौड़ (प्रमुख शासन सचिव, कला, साहित्य, संस्कृति, पुरातत्व व पर्यटन विभाग) द्वारा दीप प्रज्वलित करके किया गया। इस मौके पर डॉ. अनुराधा गोगिया अतिरिक्त महानिदेशक जवाहर कला केन्द्र जयपुर, अब्दुल लतीफ उस्ता, संग्रहाध्यक्ष जकेके, रामपाल कुमावत, प्रशासनिक अधिकारी, भरत सिंह केयरटेकर तथा कला एवं कलात्मक गतिविधियों से जुड़े गणमान्य लोग एवं कलाकार उपस्थित थे। लगभग हर वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी देश के विभिन्न राज्यों से हस्तशिल्प एवं कलाकृतियों की दुकाने सजाई गयी। इसमें राजस्थानी चित्र कला के विविध रूपों को दिखने का मौका मिला, जैसे लघुचित्र कला एवं आधुनिक चित्रकला के मूर्त - अमूर्त दोनों रूपों को देखा गया। इसमें कुछ यथार्थवादी चित्रण भी देखने को मिलें जिनमें दैनिक जीवन से संबधित दिनचर्या एवं व्यक्ति चित्रो का विशेष आकर्षण रहा। इन कृतियों में तेजपाल सिंह द्वारा बनाया गया प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी जी का व्यक्ति चित्र, मनोहर सिंह राजपूत द्वारा सचिन पायलट, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं प्रताप सिंह खाचरियावास के व्यक्ति चित्रों को लोगों द्वारा काफी सराहना मिली। जयपुर के ही युवा चित्रकार जाकिर कुरैशी द्वारा राजा रविवर्मा के चित्रो की प्रतिलिपिया भी दर्शको का मन मोह लेने में सफल रही, बावजूद इसके विडम्बना यह है की इन चित्रकारों के चित्र को कोई खरीदार नही मिल पाया। 11 दिवसीय इस आयोजन में उल्लास के रंग तो थे ही परन्तु कुछ कलाकार एवं शिल्पकारों को निराशा ही हाथ लगी। जबकी जवाहर कला केन्द्र द्वारा इस प्रकार के आयोजनों को कराने के पीछे यही उद्देश्य होता है कि कलाकारों व उनकी कलाओं को प्रोत्साहन मिल सके।
दीपावली के त्योंहार के पहले आयोजित होने के कारण इस समारोह में दर्शकों की भी अच्छी भीड़ रही लोगों ने खरीदारी के साथ-साथ संध्याकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आनंद भी उठाया। कुछ दर्शक तो विशेषरूप से लोकनृत्यों की प्रस्तुति देखने के लिए ही जवाहर कला केन्द्र के परिसर में नियमित रूप से प्रतिदिन आते थे जिनमें कुछ विदेशी पर्यटक एवं कला रसिक के साथ-साथ मेले के प्रतिभागियों में से भी कुछ लोग होते थे।
यह कार्यक्रम दो भागों में संचालित हो रहा था एक जवाहर कला केन्द्र के मध्यवर्ती मंच पर दूसरा केन्द्र के उत्तरी दिशा में स्थित शिल्पग्राम में मध्यवर्ती में प्रतिदिन संध्या 7 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन नृत्य एवं संगीत के रूप में किया जाता रहा। इनमें विशेष आकर्षण लोकगायन एवं लोकनृत्यों का था। इस राष्ट्रीय लोकनृत्य समारोह में असम राज्य का बिहू लोकनृत्य, आंध्रप्रदेश का बेकारजना छत्तीसगढ़ काककसार व गैडी, गोवा का समई- देखनी, गुजरात का टिप्पणी, डांगी, घरबा, डांडियारास, सिद्धि धमाल, हिमाचल का सिरमौर, हरियाणा का घूमर फाग, जम्मू का डोगरी, कश्मीर का रउफ, झारखण्ड का नागपुरी, मुण्डारी व पाइका लोकनृत्य, मध्यप्रदेश का मटकी, नौरत, बधाई व सैलाकर्मा नृत्य, महाराष्ट्र का लाव लावनी, कोली लोक नृत्य, मणीपुर का लाईहरोबा, थांगता व पुंग चोलम, नागालैण्ड का हार्नबिल, ओडिसा का गोटिपुआ, सम्मलपुरी व छऊनृत्य, पंजाब का जिंदवा भांगडा, झूमर लोकनृत्य, सिक्किम का सिधी छम, तमिलनाडू का ओइल आट्टम, कड्गमथापटम नृत्य, उत्तरप्रदेश का ढेडिया और झूमर, उत्तराखण्ड का छपेली, राजस्थान से चरी, कालबेलिया, तेराताली, चिरमी, चकरी, बीन- बांसुरी, घूमर, सहरिया आदिवासी नृत्य, भवाई, चंग, टप, गणगौर, लाल आंगिगेर, मयूरनृत्य, लठमार व फूलों की होली लोकनृत्यों की शानदार प्रस्तुति दी गयी l इसी मंच पर राजकुमार द्वारा बिन-वादन, परवीन मिर्जा द्वारा राजस्थानी लोकगायन, मांगणियार गायन तथा भंवरी भोपा द्वारा लोकगायन की प्रस्तुति दी गयी। इस कार्यक्रम में मंच संचालन का कार्य श्री राजीव आचार्य जी द्वारा बहुत ही रोचक व मनोरंजक तरीके से किया गया।
केन्द्र के दूसरे भाग शिल्पग्राम में जहाँ एक तरफ मंच पर कालबेलिया, भपंग गायन, जादूगरी का खेल, चिरमी, गरासिया, अलगोजा, डेरु तेराताल, हेलाख्याल, कच्ची घोड़ी, गैरनृत्य, मांगणियार गायन आदिवासी गैर, मसक वादन, भवई नृत्य, कथौडी, चकरी नृत्य, लंगा गायन, वाद-वादन, चंग नृत्य, हैला गायन, सहरिया नृत्य, ब्रजहोरी नृत्य, तेजाजी तथा नट-नटिन नृत्य की प्रस्तुति की गई वही मेले के मध्य भाग व पूरे मेले में राजस्थान की पहचान कठपुतली के खेल का आयोजन प्रतिदिन होता था इसके साथ ही शहनाई, नगाड़ा, बम रसिया, बहुरूपिया, तीन ढोल, अलगोजा, विभिन्न नट कलाएं लोगो (दर्शकों) के मनोरंजन में चार चाँद लगा देते थे विशेषकर बच्चों के लिए यह आयोजन अति आनन्द दायक बने हुये थे। शिल्पग्राम में हुये मंचीय कलाओं का संचालन दीप जैन के जोशीले शब्दों द्वारा किया गया।
शिल्पग्राम का विशेष महत्व उसमें आयोजित शिल्प मेले से था। क्योंकि यहां लोगों द्वारा अपने घरेलू एवं आवश्यकता से संबंधित वस्तुओं की खरीददार का अवसर होता है। यह हस्तशिल्पों का केन्द्र सभी उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त स्थान होता है। मनोरंजन एवं आवश्यकता के अनुसार खरीददारी, दर्शकों द्वारा दोनो का आनंद लेते यहाँ देखा जा सकता है। खाने-पीने की वस्तुओं की भी कई सारी दूकाने होती है जहाँ सभी गतिविधियों के थकान के बाद लोग कभी स्वाद के लिए तो कभी पेट-पूजा के लिए विभिन्न प्रकार के पकवानों को खरीदते है। जहां देश के अलग-अलग राज्यों एवं अंचलों के पकवान एवं भोजन सामग्रियों की दुकाने लगी रहती है। इस प्रकार देश के अलग-अलग हिस्सों के स्वाद से परिचित होने का मौका भी प्राप्त होता है। यहां तक कि मेले में आये लोगों द्वारा आपने देश के साथ-साथ बाहरी देशों के व्यंजनों के स्वाद का आनंद भी उठाया जा रहा था।
राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में असम का बांस, केन व कपड़ो तथा चताईवो, को गुजरात के शॉलपट्टु, हरियाणा के आभूषण, मध्यप्रदेश के बाटिक, धातु से निर्मित अलंकारिक व कलात्मक वस्तुएं, दिल्ली व उत्तरप्रदेश से लकड़ी के विभिन्न उपयोगी शिल्प, पश्चिमी बंगाल से ड्राई फ्लावर एवं लकड़ी की वस्तुयें, राजस्थान से धातुओं से निर्मित वस्तुयें, आभूषण, कपडे, लाख की चूडिय़ां, मोमबत्तियां, लकड़ी के सजावटी वस्तुयें, ग्लास आर्ट, पेपर आर्ट, कारपेंट, टेराकोटा, ब्लूपॉटरी तथा विभिन्न शैलियों के चित्रों की दुकाने, उत्तरप्रदेश से बनारस की साड़ियां, लखनऊ की चिकनकारी, बाटिक, लाख की वस्तुए, बिहार से मधुबनी चित्रण शैली से चित्रित वस्तुयें आदि राष्ट्रीय शिल्प मेले की शोभा बढ़ाने में विशेष महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में असम का बांस, केन व कपड़ो तथा चताईवो, को गुजरात के शॉलपट्टु, हरियाणा के आभूषण, मध्यप्रदेश के बाटिक, धातु से निर्मित अलंकारिक व कलात्मक वस्तुएं, दिल्ली व उत्तरप्रदेश से लकड़ी के विभिन्न उपयोगी शिल्प, पश्चिमी बंगाल से ड्राई फ्लावर एवं लकड़ी की वस्तुयें, राजस्थान से धातुओं से निर्मित वस्तुयें, आभूषण, कपडे, लाख की चूडिय़ां, मोमबत्तियां, लकड़ी के सजावटी वस्तुयें, ग्लास आर्ट, पेपर आर्ट, कारपेंट, टेराकोटा, ब्लूपॉटरी तथा विभिन्न शैलियों के चित्रों की दुकाने, उत्तरप्रदेश से बनारस की साड़ियां, लखनऊ की चिकनकारी, बाटिक, लाख की वस्तुए, बिहार से मधुबनी चित्रण शैली से चित्रित वस्तुयें आदि राष्ट्रीय शिल्प मेले की शोभा बढ़ाने में विशेष महत्वपूर्ण है।
लोकरंग 2022 का एक अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण यहां के स्वयंसेवकों एवं शिल्पग्राम में दुकानें लगाने वाली महिलाओं द्वारा करवाचौथ के कथा एवं पूजन का आयोजन करना था। समारोह के चौथे दिन 13-10-2022 को सभी महिलाएं शिल्पग्राम के मध्य भाग में एकत्र होकर करवाचौथ के उपलक्ष्य में पूजन एवं कथा वाचन किया। सभी महिलाओं ने पारम्परिक लाल परिधान धारण किए हुए थे तथा पूरे श्रृंगार के साथ पूजा में सम्मिलित हुई थी, यह दृश्य भी वहां के दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया। इस दृश्य को जवाहर कला केंद्र के छायाकार धीरज शर्मा ने अपने कैमरे में कैद भी किया।
राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला व राष्ट्रीय लोकनृत्य समारोह का आयोजन इस 25 वें लोकरंग 2022 द्वारा बहुत ही सुन्दर व सुनियोजित तरीके से किया गया जिसका समापन 20/10/2022 को श्रीमती प्रियंका जोधावत (नयी अतिरिक्त महानिदेशक, जवाहर कला केन्द्र जयपुर) के कर कमलो द्वारा दीपक प्रज्वलित करके किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ बी.डी. कल्ला, (कला, साहित्य, संस्कृति एवं शिक्षामंत्री राजस्थान सरकार), व राज्यों के नृतक दल, वहां के सभी अधिकारी, स्वयं सेवक दल, जवाहर कला केंद्र के सभी कर्मचारी आदि उपस्थित थे। सभी ने बहुत ही जोशीले, नाटकीय एवं मनोरंजक तरीके के समारोह का समापन किया। वहां उपस्थित सभी युवाओं ने लोक कलाकारों के साथ नृत्य भी किया तथा अपने-अपने रूचि के अनुसार कलाकारों व गणमान्य व्यक्तियों के साथ फोटो ग्राफी भी करवाई।
सब मिलकर यह कहा जा सकता है कि "लोकरंग" एक ऐसा कलात्मक आयोजन है जो भारतीय परंपरा एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। इस प्रकार के आयोजनों में उन कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिलाता है जो अपनी आजीविका के लिए अपने कला पर निर्भर हैं। देखा जाये तो ऐेसे कार्यक्रमों में कलाकार स्वयं को प्रस्तुत करने में सम्मानित महसूस करते हैं। साथ ही लोगों को भी भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं को समझने का अवसर प्राप्त होता है।
सब मिलकर यह कहा जा सकता है कि "लोकरंग" एक ऐसा कलात्मक आयोजन है जो भारतीय परंपरा एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। इस प्रकार के आयोजनों में उन कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिलाता है जो अपनी आजीविका के लिए अपने कला पर निर्भर हैं। देखा जाये तो ऐेसे कार्यक्रमों में कलाकार स्वयं को प्रस्तुत करने में सम्मानित महसूस करते हैं। साथ ही लोगों को भी भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं को समझने का अवसर प्राप्त होता है।
धन्यवाद l
ReplyDeleteNice article ma'am
Deleteसही में अपने बहुत अच्छा लिखा हैं।
निसंदेह ऐसे कार्यक्रम कला एवम् कलाकारों के लिए अपनी कला को प्रदर्शित करने का मोका मिलता है प्रोत्साहन मिलता यह एक अच्छी पहल है l
ReplyDeleteअपने इसका विस्तृत वर्णन किया इसके लिए साधुवाद l
धन्यवाद्
आपको भी धन्यवाद l
ReplyDeleteबहुत सुंदर कार्यक्रम
ReplyDeleteऔर आप के द्वारा बहुत सुंदर वर्णन
वाह न होते हुए भी कार्यक्रम फील कर पाया
बहुत विस्तृत लेखन 🙏
बहुत ही उत्तम लेख लिखा है आपने।
ReplyDeleteलोगो और कलाकारों की भावना को इस लेख के माध्यम से दर्शाया। जो बहुत ही उत्कृष्ट है।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
लोकरंग का यह 25वां संस्करण था। इस दृष्टि से यह आयोजन विशेष महत्व रखता है। इतने वर्षों तक एक ध्येय को लेकर लोककलाओं के संरक्षण के प्रयास में निरंतरता रख पाना एक दुःसाध्य कार्य है जिसे अपनी नियमितता और समर्पण से साधने के लिए जवाहर कला केन्द्र और उसकी कर्मठ टीम बधाई की पात्र है। इस कार्यक्रम में दर्शकों का वर्षो से भावनात्मक जुड़ाव रहा है।
ReplyDeleteसमीक्षा लिखना भी एक कठिन कार्य है, थोड़ा कला शैलियों के नामों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक था, इस दृष्टि से यह समीक्षा थोड़ी किताबी ज्यादा प्रतीत होती है, जिसमें प्रत्यक्ष देखे गए नृत्यों के नाम छूट गए और जो सम्भावित शैलियां नहीं आ पाई उनके नाम अंकित हो गए।
पुनः जवाहर कला केन्द्र को इस आयोजन के लिए बधाई।
धन्यवाद आचार्य जी, आगे के लेखन कार्य में आपके अनमोल शब्दों का ध्यान रखा जाएगा l
ReplyDeleteआपने व्यवस्थित आयोजन, सुन्दर प्रस्तुति को शब्दों में बखुबी सहेजा है। सटीक शब्दों के चयन एवं वाक्य संयोजन ने आलेख को पठनीय और संग्रहणीय बना दिया है।
ReplyDeleteसाधुवाद !
धन्यवाद जी I
Deleteबेहद ही संजीदा कर दिया आपने पुनः इन तमाम कलाकृतियों और नृत्य कलाओं को शब्दों के तारों में पिरोकर।।।
ReplyDeleteलोकरंग कार्यक्रम की जीवंत समीक्षा का ये आलेख प्रस्तुत कर आपने बहुत ही अनूठा कार्य किया है।।
जवाहर कला केन्द्र द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम संस्कृति कला के संरक्षण के साथ मेरी नज़र में राष्ट्रीय एकता और परस्पर प्रेम बढ़ाने का महाकुंभ है।।
पुनःश्च आपकी कलम को,आपकी लेखन शैली को साधुवाद-धन्यवाद
आपको भी बधाई, मैं आपके शब्दों को बड़े ध्यान से सुनती थी l
DeleteThank you very much for presenting such art work in writing. It helps those who can't reach out there but crave to know about the art and other similar stuff. Your blog gives me such a good knowledge about old tradition and art of pink city.
ReplyDeleteThanks
Deleteउत्तम कार्य शैली एवं लेखन शैली
ReplyDeleteThanks to all.
ReplyDeleteसरल, सुबोध व सारगर्भित आलेख के लिए कोटिशः बधाई!
ReplyDeleteIt's very valuable and informative conclusion of the Lokrang. Ma'am your criticism provide us real essence of the 25th session of Lokrang.
ReplyDeleteCongratulations Renu! I absolutely admire your work. It's written beautifully. Your words do justice to the remarkable culture. May God bless you and you keep doing good work.
ReplyDeleteआपके लेख के माध्यम से, कलाकारों को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने से निराश हूँ। कला और संस्कृति संवर्धन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर जिनके लिए ऐसे आयोजन किये जाते हैं, शत-प्रतिशत न सही कुछ तो परिणाम दिखना चाहिए। संस्कृति संवर्धन के नाम पर कलाकार कब तक डफली बजाते रहेंगे। अच्छे और सारगर्भित लेखन के लिए बधाई।
ReplyDeleteNice article mam ☺️
ReplyDeleteCongratulations ma'am for nice article written by you
ReplyDeleteजवाहर कला केन्द्र द्वारा आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम बहुत हि अच्छा रहा ऐसे कार्यक्रम कलाकारों का मनोबल बढाते है व ऐसे कार्यक्रम को माँ सरस्वती कि कृपा से डॉ. रेणु शाही ने अपनी कलम से कार्यक्रम को अपने सुन्दर वर्णों से और भी सुन्दर बना दिया !
ReplyDeleteउत्तम, विनीत l
Deleteबहुत ही उत्तम समीक्षा .. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ..
ReplyDeleteVery nice article. Well explained , keep it up.Heartly congratulations.
ReplyDeleteBahut achhi lekh hai. Jaankari bhi mili. Aise kalatmak programme ka aayojan hote rehna chaiye. Bhavishya ke liye shubhechha 🙏
ReplyDeleteBohot hi sundar varnan Kiya hai aapne sampurn karykram ka.
ReplyDelete👏👏👏
ReplyDeleteIt's Good. Content is different and attractive. Your efforts is colorfull.
ReplyDeleteलोकरंग के रजत जयंती वर्ष के तहत 11 दिवसीय विशेष आयोजन पर आपकी रिपोर्ट समग्र, विस्तृत और विवरणात्मक तो है. इसे समालोचनात्मक बनाइए. ख़ूबियों को उजागर और खामियों को इंगित कीजिए. सुझाव भी साझा कीजिए.
ReplyDeleteअवश्य, धन्यवाद I
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लेखन 🌸
ReplyDeleteउम्दा लेखन, हार्दीक शुभकामनाएं 💐
ReplyDeleteBeautiful article,,,,,Dr. Renu Shahi you describe all well,,hard working you are in it,,many congratulations,,,, Thanks
ReplyDeleteMain aapane kala rang karykam ki achchi samiksha ki hai.
ReplyDeleteThank you mam
ReplyDeleteWonderful presentation the pictures are graphed in words... Dear Renu.. Kalavritti is getting another dimension with the flow of words.. Art forms are Proud of our Nation, is prevailing in this publish. Congratulations
ReplyDeleteVery well written mam. You kala rang karykam What has been described very well.
ReplyDeleteकला संस्कृति , धरोहर और रजवाड़ों, वीरो की भूमि पर जवाहर कला केंद्र के रजत जयंती समारोह में कला के विविध रंग अद्भुत और अप्रतिम संयोजन में सजे दिखे। आयोजक मंडल के अथक प्रयासों से संजोयी गई कला प्रदर्शनी, सम्पूर्ण देश की कीर्ति ने दिव्यता का दर्शन कराने में सफल रहा है। डा रेनू जी के समीक्षा रिपोर्ट। से समारोह की विशालता का आभास हृदय को सुकून देता है सफल आयोजन की एक बार पुनः अनंत बधाई ..... डा संदीप श्रीवास्तव 7607592575
ReplyDeleteधन्यवाद संदीप जी l
Deleteआपका लेखन प्रयास सराहनीय है।
ReplyDeleteLok rang ke bare me aapka lek bahut achcha hai.
ReplyDeleteAapka lekh achcha hai
ReplyDeleteआपने उत्कृष्ट लेख द्वारा लोकरंग आयोजन की गतिविधियों से रु ब रू करवाया । बहुत ही सुन्दर लेख 💐
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