प्रेरक कलात्मक उर्जा से लबालब व प्रभावी रेखांकनों की संग्रहणीय पुस्तक “लयात्मक रेखांकन” : दिलीप दवे

वरिष्ठ विख्यात चित्रकार व कला गुरू डॉ. नाथूलाल वर्मा विश्व विख्यात गुलाबी नगरी जयपुर के कला जगत में वर्षों से साधनारत है। उन्होंने अपनी कला यात्रा में विभिन्न विषयों पर समय समय अति प्रभावी व सुंदर रेखांकन तैयार किये हैं, उन्हीं रेखांकनो का संग्रहणीय अनुठा संग्रह “लयात्मक रेखांकन” के रूप में हाल ही में प्रकाशित होकर कला जगत के सामने आया है।

चित्रकार ने अपने विभिन्न विषयों पर अनेक माध्यमों से रेखांकन कर अपनी चित्रण व सृजन क्षमता को मज़बूत आधार प्रदान किया हैं, इन में देवी देवताओं व पुराणिक संदर्भ, धार्मिक/पौराणिक, वन्यजीवों, पालतू जानवरों, प्राचीन स्मारकों, पक्षियों, व्यक्ति चित्रों आदि विषयों पर अनुपम रेखांकन कर “सुंदर कलात्मकता व उम्दा अलंकरण के साथ चित्रकार डॉ. नाथूलाल वर्मा ने भारतीय चित्रण कला की विधा को आगे बढ़ाया” और अब उनकी प्रतिभा प्रस्तुत पुस्तक में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हैं, “लयात्मक रेखांकन” में चित्रकार के बेहतरीन 225 से अधिक विभिन्न विषयों पर रेखांकनों को एक साथ देखने का अनुभव यक़ीनन अनोखा व ज्ञानवर्धक हैं।

कला साधना के नियमित रियाज़ और तन्मयता के चित्रकार डॉ. नाथूलाल वर्मा से रेखांकनों में उनकी रेखाओं पर गहन पकड़ और स्केच के विषय के साथ गहरा तादात्म्य दिखाई देता हैं, कुछ क्षण यह भी लगता हैं, कि चित्रकार और रेखांकन विषय एकाकार ही हो गये हैं, पुस्तक की आकृतियाँ व विभिन्न विषयों को पेन, पेन्सिल, चारकोल, इंक-ब्रश आदि आदि से रेखांकित किया गया हैं। डॉ. नाथूलाल वर्मा अपनी पुस्तक के प्राक्कथन में लिखते हैं कि मैंने यह पुस्तक “लयात्मक रेखांकन” को मैं अपने कला गुरू पद्मश्री कृपाल सिंह जी शेखावत को समर्पित कर रहा हूँ, कला क्षेत्र में मेरी जो पहचान बनी हैं, ये सब उन्हीं के आशीर्वाद का परिणाम हैं।

वरिष्ठ विख्यात चित्रकार व कला गुरू डॉ. नाथूलाल वर्मा ने इतिहास के साक्षी राजस्थान व देश के हिस्सों के प्राचीन स्मारकों, मंदिरों, गढ़ों, किलो और महलों का सूक्ष्मता से अध्ययन कर उसे इंक जलरंग आदि से रेपिड चित्रांकन भी कहीं ना कहीं मोनोक्रोम रेखांकन का ही अंग बनाया है, यहाँ चित्रकार के अनुभव व रचनात्मक प्रवृत्ति में सुने पड़े इन स्मारकों को पुनः जीवंत करने उम्दा प्रयास किया हैं, ये सुंदर रेखांकन इतिहास के संवर्द्धन का भी हिस्सा बन गये हैं।


हर चित्रकार के लिए रेखांकन उसकी चित्रण क्षमता में श्रेष्ठता लाने में अति महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता हैं। यह तथ्य कला जगत में सर्वमान्य हैं। लेकिन विषयों व रेखांकनों में माध्यमों की विविधता सच ही वरिष्ठ चित्रकार डॉ. नाथूलाल वर्मा को और से अलग करती हैं, इसमें उनके कला गुरू पद्मश्री कृपाल सिंह जी की सच्ची सीख को जीवन में उतारने का प्रगाढ़ आत्मबल भी निहित हैं, कला जगत में पोर्ट्रेट या व्यक्ति चित्रण भी एक महत्वपूर्ण चित्रण विधा हैं, यहाँ दर्शित विभिन्न व्यक्ति रेखांकनों में चित्रकार का अनुभव व दक्षता स्पष्ट रूप से उजागर होती हैं, वहीं मॉडल के चेहरे के हाव-भाव भी बहुत जीवंत जान पड़ते हैं।

कला गुरू पद्मश्री कृपाल सिंह शेखावत के निकट सानिध्य से डॉ. नाथूलाल वर्मा अपनी कलात्मक उर्जा व कार्य शैली में नवीनता और मौलिकता का संगम रचकर कला जगत में अपनी अलग पहचान को मज़बूत किया विषय चाहें जीवंत मनुष्य, पशु-पक्षी हो या स्थिर स्मारक, पेड़-पौधे, सभी का बारिकी से अध्ययन और फिर उचित माध्यमों में बेहतरीन रेखांकन-चित्रण चित्रकार की निजी विशेषता रही हैं।
वरिष्ठ चित्रकार डॉ. नाथूलाल वर्मा की यह पुस्तक यक़ीनन नवआगंतुक युवा पीढ़ी के लिए एक उपहार स्वरूप प्रयास हैं, पुस्तक में पक्षियों पर किए गये, उम्दा इंक ब्रश तकनीक के प्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करने पर यह तथ्य ओर भी अधिक स्पष्ट होता हैं कि विषय परिवर्तन का चित्रकार पर कोई विशेष फ़र्क़ नहीं पड़ता, बल्कि वे अपने सृजन में अधिक परिपक्व और दक्ष नज़र आते हैं, अन्त में मुझे यह पक्का विश्वास हैं, कि नवीन पीढ़ी इस संकलन से लाभ उठाकर अपनी कला यात्रा के मार्ग को प्रशस्त करेगी।

“लयात्मक रेखांकन” पर कला जगत की हस्तियों के विचार-

कला समीक्षक हेमंत शेष के विचार यह पुस्तक चित्रकार की तपस्या, लगन, चित्रानुराग, कला धर्म की प्रतिबद्धता को बख़ूबी सामने रखती हैं, उनके सृजित 225 गिने चुने रेखांकन केवल एवं वानगी भर हैं, एवं समुद्र में लहर की तरह।

वरिष्ठ चित्रकार व कलाविद् राम जैसवाल के विचार : डॉ. नाथूलाल वर्मा के इन द्रुतगति-रेखांकित आकारों (स्केचस) में प्रत्यक्ष जीवन की मुद्राएँ हैं, चाहे वे स्त्री-पुरूष के सहज जीवन की मुद्राएँ हो अथवा वे गायों, बकरियों, कोवे, मोर, कबूतर की सभी एक क्षण में समाहित-चित्रित हो गई हैं, पलक झपकते ही, मुद्रा परिवर्तन से पूर्व ही रेखांकित हो गई हैं।

पूर्व सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, राजस्थान व वरिष्ठ लेखक डॉ. देवदत्त शर्मा, के विचार रेखांकन उतना सरल नहीं जितना यह दिखाई देता हैं। इसे साधना बड़ा कठिन हैं, जिस प्रकार संगीत में स्वर का नियमित अभ्यास करना होता हैं, उसी प्रकार रेखांकन का भी प्रतिदिन, नियमित और लगातार अभ्यास करना ज़रूरी हैं, यह इसलिए भी ज़रूरी हैं कि रेखांकन चित्रकला की नींव और सोपान हैं जब तक कला साधना का आधार मज़बूत नहीं होगा उस पर वह अपनी कला की भव्य इमारत कैसे खड़ी कर सकेगा।

पूर्व विभागाध्यक्ष, चित्रकला विभाग, नाथद्वारा (राज.) डॉ. रघुनाथ शर्मा, के विचार नाथूलाल जी ने अपने कला सफर की शुरुआत उनके गुरू पद्मश्री कृपाल सिंह जी के दिशा-निर्देश रेखांकन पर विशेष ध्यान देने की हिदायतें देश के अलग-अलग स्थानों पर स्कैच करने जैसी कई बातें अब तक मुझसे साझा की हैं। तब लगता हैं कि एक स्थायी योग्य गुरू का मार्ग दर्शन क्या रंग ला सकता हैं, नाथूलाल जी के रेखांकन देखकर हम महसूस कर रहे हैं।

पूर्व एसोसियेट प्रोफ़ेसर, चित्रकला विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर डॉ. नीलिमा वरिष्ठ के विचार लयात्मक रेखांकन पुस्तक आद्यन्त कलाकार की अदम्य साधना से परिचय करवातीं हैं, भारतीय कला तीर्थों का दर्शन, कला-गुरूजनों की कीर्तियों का सम्मुख बैठकर अध्ययन, तथा चित्रांकन आपके अध्यापन की विशेषता थी।
वरिष्ठ चित्रकार और कलाविद् आर. बी. गौतम के विचार रेखा चित्रण एकात्मक साधना हैं, जिसकी सर्व प्रमुख विशेषता उसकी चित्रात्मकता ही हैं, इसमें चित्रकार की जितनी अधिक तटस्थता होती हैं, उतना ही वह सफलता को प्राप्त करता हैं, रेखांकन के समय वह विषय-वस्तु के भीतर और बाहर दोनों की संवेदनाओं को अभिव्यक्ति देता हैं, ऐसे समय पर उसका अध्ययन भाव काफ़ी हद तक काम करता हैं।

कला पुस्तक “लयात्मक रेखांकन” पर पूर्व में 06 फ़ेसबुक पोस्ट के माध्यम से एक पठनीय श्रृंखला मेरे द्वारा फ़ेसबुक पोस्ट की जा चुकी हैं।

चित्रकार का परिचय - नाम : डॉ. नाथूलाल वर्मा - जन्म : 05 जून 1946

कला शिक्षा : राजस्थान विश्वविद्यालय से चित्रकला में एम.ए. की डिग्री व पी.एच.डी की उपाधि तथा कला गुरू पद्मश्री कृपाल सिंह शेखावत के सानिध्य में तीन वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स।

कला शिक्षा में योगदान : सेवानिवृत्त सहायक आचार्य चित्रकला विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर

विशेष सम्मान : केन्द्रीय ललित कला अकादमी, न्यू दिल्ली से राष्ट्रीय पुरस्कार, राजस्थान ललित कला अकादमी का अखिल भारतीय पुरस्कार, कालिदास सम्मान सहित अनेकों राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों व सम्मानों से सम्मानित, राष्ट्रीय स्तर पर समुह व एकल प्रदर्शनीयॉ में भागीदारी विभिन्न कल गतिविधियों में शिरकत।

विशेष उल्लेख : सिद्धहस्त लघु चित्रण शैली व भित्तिचित्र के चित्रकार, विभिन्न कला पत्र पत्रिकाओं में लेखन का कार्य, राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर की कार्यकारिणी के सदस्य, प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रूप के पूर्व सचिव व सदस्य तथा “सृष्टि” आर्ट ग्रूप, जयपुर के अध्यक्ष।

लेखक : डॉ. नाथूलाल वर्मा
प्रकाशक : राज प्रकाशन हाउस, जयपुर
मूल्य : रू. 755/-
सम्पर्क : 0141 2622141, +91 96640 69315

कॉपीराइट चेतावनी : पोस्ट के सभी रेखांकन चित्रकार द्वारा ©कॉपीराइट एक्ट के अधीन हैं, इनका किसी भी प्रकार से प्रकाशन या उपयोग सर्वथा प्रतिबंधित हैं।

दिलीप दवे
चित्रकार एवं कला समीक्षक
संपर्क : 94133 40282
dilipdave403@gmail.com

Comments

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद आपका पृथ्वी राज जी।

      Delete
  2. कलाकार (डॉ नाथूलाल वर्मा जी) का कला सृजन तथा कला इतिहासकार (दिलीप दवे जी) लेखन शैली का संबंध बहुत मार्मिक है जो इस आलेख में पूर्ण रूप से परिलक्षित होता है! 🙏💐💐

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट में स्तरीय सुधार हेतु कला शिक्षकों, पूर्व छात्रों, वरिष्ठ चित्रकारों से चर्चा एक सार्थक पहल : संदीप सुमहेन्द्र

कलाविद रामगोपाल विजयवर्गीय - जीवन की परिभाषा है कला : डॉ. सुमहेन्द्र

कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ती चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-03)