सनत दा के राम का वैभव - अखिलेश निगम

सनत कुमार चटर्जी
सनत कुमार चटर्जी "सनत दा" का अपना एक अद्भुत रचना संसार रहा है। ज्यों -ज्यों उनकी कृतियों से आप निजता का अनुभव करते जायेंगे त्यों-त्यों उनके रहस्य आप पर प्रकट होते चले चलेंगे। ठीक किसी गूढ़ कविता की तरह। वे और उनका रचना-संसार भारतीय अध्यात्म का दर्शन है।

लखनऊ कला महाविद्यालय के प्रथम भारतीय आचार्य/प्राचार्य असित कुमार हलदार जी के प्रमुख शिष्यों में से वे एक माने जाते हैं।

देवी-देवताओं के चित्रण में उन्हें सदैव रुचि रही है परंतु प्रभु श्रीराम का चित्रण वे कुछ अलग ढंग से ही करते हैं। श्री राम के प्रतिस्थापित रूपों से अलग वे "जन-जन में श्रीराम" की भावना या उनके प्रभुत्व को दर्शाते हैं।

एक कलाकार की पैनी दृष्टि, उसकी कलाकारिता, उनका रचना कौशल आदि सभी कुछ इन चित्रों में प्रस्फुटित होता है।

सनत दा (१९३५ - २०१७) ने इस श्रंखला के तैंतीस चित्रों की रचना सन् २००३ में अयोध्या से लौट कर की थी। उनके अयोध्या जाने की अपनी कहानी है। उनकी एक प्रिय शिष्या आशा सेठ बहुत समय से उनसे अपने घर अयोध्या आने का आग्रह करती चली आ रहीं थीं। यह सुयोग सनत दा को वर्ष २००३ में सेवानिवृत्त के पश्चात् ही मिल सका। वे सपत्नीक सितंबर माह में वहां पहुंचे और कोई एक माह वहां रह कर उन्होंने अयोध्या को देखा-परखा। आशा जी उन्हें मंदिर के महंत जी से मिलवाने भी ले गयीं। जहां उन्हें 'राम' नाम लिखने की पुस्तिका भेंट की गयी। बउ दी (श्रीमती चटर्जी) ने तो उसे श्रृद्धा से ग्रहण कर लिया परंतु सनत दा का उत्तर था - "मैं एक कलाकार हूं। श्रीराम को मैं अपने कर्म से लिखूंगा।"

२२ जनवरी को जब अयोध्या में प्रभु श्रीराम की पुनः प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है तब प्रसंगवश एक भारतीय कलाकार द्वारा २१वर्षों पूर्व श्रीराम पर आधारित चित्र श्रृंखला के कुछेक चित्र आपके अवलोकनार्थ और चिंतनार्थ प्रस्तुत कर रहा हूं...!!



(चलते चलते : सनत दा पर अब तक तो यूं अनेक शोध कार्य हो चुके हैं परंतु उनके संपूर्ण कार्य का वृत्तीकरण और सघन शोध होंना अभी शेष है)

चित्र सौजन्य: © डॉ. हिम चटर्जी








आलेख : © अखिलेश निगम
लखनऊ

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