"जनमानस के राम" प्रदर्शनी में श्री राम जी के चित्रों एवं शिल्पों का अदभुद सृजन-II : संदीप सुमहेन्द्र
यज्ञ फाउंडेशन, आर्ट फिएस्टा और मैत्रेय संस्था की और से आयोजित "जन मानस के राम" प्रदर्शनी में चित्रकारों एवं मूर्तिकारों ने भगवान श्री राम जी के जीवन प्रसंगों को अपनी अपनी कल्पनाओं से चित्रों एवं मूर्तियों में सृजित किया। इस प्रदर्शनी मे देशभर के 25 आर्टिस्टों ने भाग लिया।
जवाहर कला केंद्र की सुरेख कला दीर्घा में प्रदर्शित किए चित्र एवं शिल्पों के बारे में संरक्षक गोविन्द पारीक एवं आयोजक आचार्या हिमानी शास्त्री ने विस्तृत जानकारी सभी कला प्रेमियों को दी, सभी आर्टिस्टों को उनके उत्कृष्ट चित्रण कार्य के लिए प्रमुख शासन सचिव, कला एवं संस्कृति, गायत्री राठौड़ ने सम्मानित किया और गलता पीठ के अवधेशाचार्य ने स्मृति चिन्ह प्रदान किए। सभी चित्रकारों एवं शिल्पकारों के इस अदभुद सृजन द्वारा रंगों के माध्यम से अपनी अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति को चित्रित किया।
प्रदर्शनी में लगे चित्रों को देखने के पश्चात मैं अपनी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मिला जयपुर की चित्रकार नीलू कांवरिया से उन्होने बताया कि भगवान श्री राम 500 वर्षों के इंतजार के बाद अपने जन्मस्थान अयोध्या में बने भव्य मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर प्रत्येक राम भक्त उत्साहित व भाव विभोर है, यहां सभी चित्रकार श्री राम के चित्र एवं मूर्ति में अपनी कल्पनाओं को कला की विभिन्न विधाओं में चित्रित कर उनकी सौम्या छवि और अलौकिकता को देखने के लिए आतुर है। मैंने भी अपनी तस्वीर में यही भाव लेकर श्री रामलला की मूर्ति में दिखाये गए बाल स्वरूप के अद्भुत सौंदर्य और मुस्कान को अपने चित्र में दर्शाने का प्रयास किया है और पृष्ठ में हरित रंग का प्रयोग कर मैं अपनी प्रकृति प्रेम और जनमानस को पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देना चाहती थी।
नीलू जी के बाद मेरी मुलाकात हुई चित्रकार शीला पुरोहित से हुई, जो अपनी स्वयं की विधा में अपना सृजन कार्य करती है। अधिकतर उनके द्वारा सृजित कलाकृतियां इंस्टालेशन इन मिक्स मीडिया" में होती है, जिसे वें पेपरमेशी, कपड़ों की कतरनों एवं पुराने खराब हुए सामानों से बनती है, जो बहुत सुंदर आकर्षक और समकालीन भी होता है, शीला अधिकतर अपने पारिवारिक परवेश को उकेरती है जिसमें उनकी अपने परिवार के बुजुर्गों को स्मृतियां होती है। इस प्रदर्शनी में उन्होंने अपने सृजन को शीर्षक दिया "मेरी भाभू के ठाकुर जी" उनका कहना है कि भगवान राम कौन है ? यह मैंने जाना अपने बचपन में मेरी भाभू से, भाभू - मेरी बड़ी नानी, मेरी मां की ताई जी ! मेरे बड़े नाना जी का देहांत कम उम्र में ही हो गया था। भाभू बहुत बड़ी राम भक्त थी, उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान राम की आराधना में बिताया। स्वयं अयोध्या जाकर भगवान की आराधना की वही पूरा जीवन बिताया। कभी-कभी जयपुर आकर हम लोगों के साथ भी रहती थी, बहुत सात्विक और सरल हृदया, भगवान की सरल भाव से भक्ति करते हुए रात दिन बस राम नाम का जाप करती रहती थी। वो खुद जो कपड़े पहनती वही भगवान को पहनाती थी, जो खुद खाती वही भगवान को खिलाती थी और माथे पर चंदन का तिलक उनकी शोभा को और ज्यादा बढ़ाता, मुख से हमेशा राम का जाप निकलता रहता था।
मैंने उनके मुख पर वही जाप करते हुए की मुद्रा में बनाने का प्रयास किया है और श्री राम का सुमिरन करती हुई मुद्रा में उंगलियों में तुलसी की माला हाथ में दी है। उनकी अंतिम इच्छा भी थी कि उनका मृत्यु भोज ना करके अयोध्या के साधु संतों को भोजन करवाया जाए। मेरे ननिहाल पक्ष ने उनकी यह इच्छा पूरी भी की। जब भी अयोध्या का नाम आता है मुझे भाभू का "अजोध्या' जरूर याद आता है। मैंने अभी तक प्रत्यक्ष में उनसे ज्यादा बड़ा राम भक्ति करने वाला कोई नहीं देखा, जब भी राम की बात आती है तो मेरे जेहन सबसे पहले मेरी भामू की याद ताजा हो जाती है।
मेरा यह आर्टवर्क मैं पेपरमेमेशी और स्क्रैप से बनाया है, भगवान राम कभी भी हनुमान जी के बिना नहीं रहते थे इसलिए मैंने साथ में हनुमान जी भी बनाए हैं जो की विनम्रता के भाव से झुके हुए हैं। अपनी भाभू का भक्ति भाव पता चलने पर इस आर्ट इवेंट के आयोजकों ने मुझे यह बताया कि बाबू की यह पेंटिंग भाभू के' "अजोध्या" के पुराने राम मंदिर में लगवाई जाएगी। उनको मेरी यह श्रद्धांजलि भगवान ने सफल कर दी।
फिर मेरी नजर गई छवि शर्मा की तस्वीर पर, बहुत ही सुन्दर तस्वीर बनाई छवि ने, उन्होंने अपनी पेंटिंग्स में स्वयं की मूल कल्पना को सृजित करते हुए अपनी कल्पनाओं के भाव को सुन्दरता से चित्रित कर बनाए रखती है, जिसमे उन्होंने भगवान राम को तथा पृष्ठ में कार सेवक की छवि का मिश्रण करके बनाया है। इनके चित्र में सूर्योदय का मन-मोहक दृश्य बताने के लिए चमकीले पीले रंग का प्रयोग किया है साथ ही राम भगवान के प्रिय और सहयोगी पशु पक्षियों को भी दिखाया है। मूल रूप से यह कलाकृति नई सुबह का प्रतिनिधित्व करती हुई प्रतीत होती है, जिसमें आंखों की चमक स्वयं ही है बताने के लिए पर्याप्त है।
इसके उपरांत मुलाकात हुई दीपाली शर्मा से, दीपाली ने भगवान राम की वन में तपस्या को बहुत प्रभावी तरीके से उकेरने का प्रयास किया है, जिसमें जंगल के वातावरण को दर्शाने के लिए चित्र में बैकग्राउंड में बहुत सुंदरता और बारीकी से जंगल का दृश्य मनोरम बनाया है। भगवान राम के विराजने और उनकी मुख मुद्रा में ध्यान की गंभीरता को भी बाहर अच्छे से रेखांकित करने का प्रयास किया है। जंगल के पेड़ पौधे और पानी की धारा अच्छा प्रभावी चित्रण किया गया है।
22 जनवरी को राम जन्म भूमि अयोध्या में रामलला की प्रतिमा को स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा हुई तो पूरा भारत देश राममय हो गया, पूरा देश "जय श्री राम" के नारों से गूंज उठा। मेरा मानना है कि इस आयोजन से हर विधा के कलाकारों का सृजन कार्य नई अगड़ाई लेगा और हमारे देश के चित्रकारों के चित्रण में धार्मिक प्रभाव पुनः लौट आया है जो आगे एक लम्बी अवधि तक या कहे कि अगली कई पीढ़ियों तक इसी समर्पित भाव से जारी रहेगा। जय श्री राम !!!
*नोट : अगली कड़ी में इस शिविर के अन्य कलाकारों के चित्रों एवं उनके सृजन के बारे में चर्चा जारी रहेगी ... ।
संदीप सुमहेन्द्र
Excellent. Bless to all. Really heart touching. इससे इनकी सुंदर सोच व राम के प्रति आस्था स्वतः झलक रही है।
ReplyDeleteजय श्री राम🚩🚩🚩
ReplyDeleteसभी चित्रकारों और मूर्तिकारों को जय श्री राम का उद्धघोष मेरे हृदय की अनंत गहराइयों से ! आप सभी की अभिव्यक्ति में राम की भक्ति स्पष्ट रूप से दृष्टि गोचर होती नजर आ रही है जिसके लिए आप सभी कलाकारों को साधुवाद !
ReplyDeleteपूरी राम मय चित्र प्रदर्शनी को एक दर्शनार्थी के स्वरुप में श्री संदीप शर्मा सुमहेन्द्र जी ने बहुत ही सुन्दर शब्द माला में पिरोया है जिसकी अंतर ध्वनि में राम धुन मुखरित हो रही है और पाठक को साक्षात् राम दर्शन आप की लेखनी से इस कलावृत्त कला मैगज़ीन के जरिये !
पुनः साधुवाद समस्त चित्रकारों और मूर्तिकारों को और आभार श्री संदीप शर्मा सुमहेन्द्र जी को !
योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर, इंडिया
व्हाट्सअप 9829199686