चार-चौमा का गुप्तकालीन ऐतिहासिक शिव मंदिर : कुलदीप भार्गव
भारतभूमि पर सहस्त्रों पाषाण संरचनाएं वर्षों से इस राष्ट्र के सांस्कृतिक गौरव को अक्षुण्य रखे हुए हैं। मंदिर स्थापत्य कला के द्वारा प्राचीन काल से ही यहाँ के निवासियों ने सम्पूर्ण विश्व को स्थापत्य संरचनाओं का अद्वितीय उपहार प्रदान किया है।
प्राचीन काल से ही रूपप्रद कलाएँ इस महादेश में धर्मरूपी वटवृक्ष की गहन छाया में पल्लवित हुई हैं। धर्म को ही ध्येय मानकर यहाँ के राजाओं, श्रेष्ठियों औऱ धनिक वर्ग के लोगों ने मंदिरों के रूप में अद्भुद संरचनाओं की एक श्रृंखला का अद्भुद सौन्दर्यलोक निर्मित करवाया है।
चार चौमा का शिव मंदिर भी इन्हीं श्रेष्ठ संरचनाओं में से एक है। यह स्थान राजस्थान के हाड़ौती भौतिक प्रदेश के अंतर्गत कोटा जिलें में अवस्थित है। कोटा से कैथून होते हुए भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग- 27 के द्वारा सिमलिया से पश्चिम दिशा में लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर ये मंदिर स्थित है।
आदि देव महादेव को समर्पित यह मंदिर रचना निर्माण की दृष्टि से साधारण श्रेणी का ही है। भारी शिल्प श्रृंखलाओं का यहाँ पूर्णतः अभाव है। स्थानीय इतिहासविद इसका निर्माणकाल गुप्तकालीन बताते हैं वैसे भी इसका साधारण निर्माण इसके गुप्तकालीन होने की और संकेत करता है। देवस्थान विभाग से प्रदत्त जानकारी के अनुसार इसका निर्माण मंदसौर के सोलंकी राजा और उनकी रानी ने करवाया था। जनश्रुतियों औऱ देवस्थान विभाग के अनुसार मंदसौर की रानी गर्भवती हो जाती थी पर किसी कारणवश उनका गर्भ विकसित नहीं हो पाता था तब रानी और राजा चार चौमा आये और यहाँ स्थापित शिव प्रतिमा की आराधना की तब भगवान शिव की कृपा से उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई और उन्होंने इसी उपलक्ष्य में यहाँ शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
प्राप्त जानकारी से इस मंदिर के तिथिक्रम को लेकर मेरे मन में भी संशय है। क्योकि निर्माणकर्ता सोलंकी नाम का राजा था या सोलंकी वंश का राजा था, ये अस्पष्ट होनें के कारण मंदिर के तिथिक्रम के बारे में सही पुष्टि नहीं हो पाई, परंतु इसकी साधारण निर्माण पद्धति इसके गुप्तकालीन होनें के मत को पुष्ट करती है।
मंदिर का निर्माण बलुए पत्थर से पूर्णतः नागर शैली में हुआ है। मंदिर निर्माण में प्रयुक्त पत्थरों को नक्काशीदार न बनाकर चौकोर औऱ बेहद भारी शिलाखंडों के रूप में स्थापित किया गया है। एक ऊंचे प्लेटफॉर्म पर अवस्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 7 सीढ़ियां हैं। मुख्य मंदिर एक चौकोर चबूतरे पर अवस्थित है। मंदिर का प्रवेश द्वार बिल्कुल साधारण कोटि का है। मंदिर का शिखर भी साधारण प्रकार का ही हैं।
प्रवेश द्वार के ठीक सामनें चार पिल्लरों पर स्थापित भगवान का एक निज मंदिर है जो मंदिर का ही एक भाग है। यहीं स्वयम्भू योगेश्वर शिव का काले पत्थर से निर्मित एक विशाल चतुर्मुखी शिवलिंग स्थापित हैं। शिव के चतुर्मुख उनके अलग अलग स्वरूपों में है। विशाल शिवलिंग अत्यंत ही सुंदर और ओपदार है। शिव के विशाल नेत्र उपासकों को मंत्रमुग्ध कर देतें हैं। निज मंदिर के चारों और परिक्रमा पथ है जिस से शिव-प्रतिमा के दर्शन चारों दिशाओं से किये जा सकते हैं।
शिव प्रतिमा के ठीक पीछे एक कुलिका में मातृशक्ति के रूप में स्वयं माँ उमा विराजमान हैं जिसे स्थानीय भक्त भीलनी की संज्ञा देते हैं। यही दो विशाल पाषाण खम्भ इस प्रकार लगे हुए हैं जिनके बीच में से इंसान आर-पार हो सकता है। स्थानीय लोग इन्हें धर्म के नाके कहकर बुलाते हैं और उनके अनुसार निष्कपट व्यक्ति ही इसके आर-पार निकल सकता है कपटी व्यक्ति नहीं। खैर सच्चाई जो भी हो पर जनश्रुतियां होती ही दिलचस्प हैं।
मंदिर में शिवलिंग के ठीक सामनें की ओर प्रवेश द्वार के ठीक नीचे नंदी महाराज की एक विशाल प्रतिमा स्थित हैं। गठन शीलता में नंदी प्रतिमा उच्चकोटि की लगती है। सामनें ही एक चबूतरे पर भगवान विष्णु की एक प्रतिमा अवस्थित है पर भक्तों ने प्रतिमा को वस्त्र धारण करवा दिए इसलिए उनकी मुद्रा अज्ञात है। मंदिर परिसर के बाहर एक बाबड़ीनुमा कुंड है जहाँ स्नानादि के पश्चात ही भक्त अपनें आराध्य देव के दर्शन करते हैं।
इस मंदिर में विभिन्न स्थानों पर पाषाण अंकित तीन शिलालेख भी अंकित हैं जो शायद पाली या ब्राम्ही लिपि में हैं। इन शिलालेखों में ही शायद इस संरचना का मूल-पाठ निहीत है।
स्थानीय जनश्रुति इस मंदिर के साथ विभीषण मंदिर कैथून और रंगबाड़ी बालाजी मंदिर कोटा की साम्यता जोड़ते हैं। उनके अनुसार विभीषण जी कावड़ लेकर लंका जा रहे थे। कावड़ के एक पलड़े में शिव और एक पलड़े में हनुमान जी विराजमान थे किसी कारणवश विभीषण जी ने कावड़ को रखा तो दोनों देव वहीं स्थापित हो गए। आज भी कैथून विभीषण मंदिर से दोनों विपरीत दिशाओं में लगभग समान दूरी पर ही चार चौमा शिव मंदिर और रंगवाड़ी बालाजी मंदिर अवस्थित हैं। वास्तव में जनश्रुतियां बेहद ही रोचक होती हैं परंतु ये सत्यता के कितनें निकट हैं ये तो ईश्वर ही जानें।
अन्ततः मेरे अनुसार चार चौमा का यह सुंदर शिवालय पर्यटन प्रेमियों औऱ स्थापत्य प्रेमियों के लिए बेहद ही रमणीक स्थल है। आप सभी को निश्चित रूप से यहाँ आना चाहिए।
✍️:-कुलदीप भार्गव
बेहतरीन आलेख।
ReplyDeleteBahut hi sundar hai sir ....bhut bhut dhanyavad jankari pradan krne ke liye🙏
ReplyDeleteशानदार... लाजवाब... बहुत अच्छा लिखा है आपने... हमें आशा है ऐसी अनोखी जानकारी भविष्य में भी आप हमें देते रहेंगे....
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी साधु
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteबहुत जी रोचक जानकारी
बहुत ही अच्छी जानकारी
ReplyDeleteYeto apna hi gav h..ak bhar sbko ghumkr aana chahiye yha
ReplyDeleteकुलदीप जी लिखते रहिए । लेख में जनश्रुतियों को स्थान देने से लेख रुचिकर बन जाता है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई ।
चित्रकार नवल सिंह