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Showing posts from August, 2022

स्मृति शेष : डाॅ० प्रेमा मिश्रा

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 सर्व ‘दीदी’ : डाॅ० प्रेमा मिश्रा 3.10.1935- 12.08.2022 प्रेमा दीदी आज ब्रह्मलीन हो गयीं। सहजता स्मृति शेष : डाॅ० प्रेमा मिश्रा और विनम्रता ने उन्हें सर्व ‘दीदी’ का खिताब दे दिया था। इधर कुछेक वर्षों से वे अस्वस्थ चल रहीं थीं पर आज वह अंतिम घड़ी भी आ गयी। भाई प्रो.अभय द्विवेदी से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज ही कानपुर (सिद्धनाथ घाट, जाजमऊ) में उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया। कानपुर ही उनका कर्म क्षेत्र रहा है। यहां के जुहारी देवी गर्लस् पी जी कालेज के चित्रकला विभाग की वे विभागाध्यक्ष रहीं। चित्रकला में डी.लिट् उपाधिधारी डाॅ. प्रेमा मिश्रा चित्रकला के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य में भी निष्णात थीं। एक महिला चित्रकार के रुप में उनकी अपनी पहचान रही है। वहीं हिन्दी कला-लेखन पर भी उनकी पकड़ अच्छी रही है। उनके लेख आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाते रहें हैं। अस्वस्थता के बावजूद, कोई दो वर्ष (कोरोना काल) पूर्व, जब मैंने उनसे उनके कला गुरु प्रो० सी.बरतरिया पर लेख का आग्रह किया तो वे बेझिझक तैयार हो गईं, और निर्धारित अवधि के अंदर ही उन्होंने उसे लिख भी भेजा। कला-विकास के कार्यों म...

Artist Amit Kalla will join 18th Painting Symposium of Mark Rothko : Sundip Sumahendra

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Amit kalla will join 18th, Mark Rothko Painting Symposium and Residency, 2022 Daugavpils, Latvia. Jaipur based Painter and Poet, Amit Kalla is one of ten global artists selected for the Painting Symposium and Residency at Mark Rothko Art Centre in Daugavpils, Latvia, the birthplace of modern abstract artist Mark Rothko. This unique residency at the Mark Rothko Art Centre where the ten artists from world will participate in a transcultural environment to critically engage with ideas central to the Abstract Expressionist visual arts practice and will make paintings and gave talks about process, work, and influences. For symposium participants, meeting creators from other countries and sharing a workspace in the art centre’s studios is both a blessing and a challenge. It will provide a chance to immense potential to broaden creative horizons and bring new insights to every participant. By using abstract, geometric and expressive language, the artists demonstrate the diversity of their ind...

जीवन के अस्तित्व को ऑर्गेनिक फॉर्म्स द्वारा रेखांकित किया चित्रकार पल्लवी पंडित ने : संदीप सुमहेन्द्र

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 संकल्पना - जीवन की शुरुआत , चित्रकार पल्लवी पंडित की एकल प्रदर्शनी मंगलवार, 1 अगस्त को कला दलन, चौथी मंजिल, विदर्भ साहित्य संघ, सीताबर्डी में आरंभ हुई। वी.एस.एस. अध्यक्ष मनोहर म्हैसालकर ने प्रदर्शनी का विधिवत उद्घाटन किया, साथ में वनराज ट्रस्टी गिरीश गांधी, विशिष्ठ अतिथि के रूप में श्री दीपक जोशी, पूर्व विभागाध्यक्ष, चित्रकला विभाग, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज विश्वविद्यालय, नागपुर और कलाकार, कला विद्यार्थी एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। पल्लवी सिम्बायोसिस, नागपुर कैंपस में विजिटिंग लेक्चरर हैं और उन्होंने मास्टर्स ऑफ फाइन आर्ट्स, एम.एफ.ए (पेंटिंग) विधा से किया है जिसमें उन्होंने राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक जीता है। पल्लवी पंडित को वर्ष 2014-16 में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा फेलोशिप (विषय : आधुनिक भारतीय चित्रकला के प्रणेता: रवींद्र नाथ टैगोर, जैमिनी राय, अमृता शेरगिल, जॉर्ज कीट) से भी सम्मानित किया गया है। सी शिवराममूर्ति द्वारा लिखित "भारतीय चित्रकला" किताब का मराठी भाषा में अनुवाद भी किया है इसे एन.बी.टी द्वारा ...

हिम्मत शाह - शिल्पकला के श्रेष्ठ एवं अदभुद हस्ताक्षर

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  वरिष्ठ शिल्पकार हिम्मत शाह की कला यात्रा के बारे में चित्रकार एवं कवि अमित कल्ला का संवाद और टिप्पणी शिल्पकार हिम्मत शाह के कलात्मक सफर पर कुछ लिखना अपने आप में एक चुनौती भरा सबब है क्योंकि वहां कुछ भी सीधा और सपाट नहीं है। उनके अपने व्यक्तिगत जीवन से लेकर उनकी कला में एक अलग किस्म के उतार-चढ़ाव को महसूस किया जा सकता है, जो अकल्पनीय सा जान पड़ता है और आज के समयानुसार बिल्कुल भी अनुमानित नहीं है, जिसके भीतर बहुत कुछ स्वयं उनके द्वारा भी अनदेखा और अनजाना है जिसे वे 90 वर्ष के करीब की उम्र के बावजूद नित नए-नए अर्थों के साथ निरंतर खोजते नजर आते हैं। वे लगातार माटी और उससे जुड़े अनेक माध्यमों में सृजन के अनन्य रहस्यों को उजागर करते हैं, जो उनके द्वारा महसूस किए गए गहरे अनुभवों के मार्फत ही आज किसी निचोड़ के रूप में सत्व समान हमारे सामने उपस्थित है,जिसे हिम्मत शाह ने बेहद संजीदगी से बटोर कर अपने पास संचित किया है और समय≤ पर अपनी बंद मुट्ठियां खोलकर हम सभी के बीच खुले मन से बांटा भी है। हिम्मत जी से रूबरू होना घनघोर बारिश में सराबोर होने जैसा अनुभव होता है, जहां पानी का कोई झरना अनायास बह न...

कुंदन मीनाकारी के मास्टर शिल्पगुरु सरदार इंदरसिंह : राकेश जैन

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 भारत में ढूँढ़ाड़ के जैपर (जयपुर) का नाम कुंदन और मीनाकारी कला के लिए सारी दुनिया में प्रसिद्ध है। सुनहरी सी जमी पर रंगों के ताने-बाने मीनाकारी आर्ट के जरिए गुलाबी नगरी ने संजोकर रखे हैं। मीनाकारी को देशी भाषा में जड़ाई ‌का काम कहा जाता है। स्त्री की चोटी से एड़ी तक के आभूषण टीका, बोरला, राखड़ी, कड़े, चूड़ियां, हरफूल, हार, झूमर, अंगूठी, कणकती, पायजेब और चुटकी आदि कुंदन मीनाकारी के बनाए जा सकते हैं। इसी प्रकार पुरुषों के उपयोग के लिए सिरपेच, कलंगी, अंगूठी, गले के हार, सतलेवड़ा और कुंडल आदि है। मीनाकारी मध्य युगीन हस्तकला है जो फाइनीशिया से फारस तथा लाहौर होती हुई आमेर,जयपुर (ढूँढ़ाड़) आई। ढूँढ़ाड़ नरेश मानसिंह प्रथम ने लाहौर के सिक्‍खों को मीनाकारी का काम करते हुए देखा। लाहौर के सिक्‍खों ने यह कला फारस से आये मुगलों से सीखी थी। महाराजा मानसिंह कुछ मीनाकारों को आमेर ले आये। जयपुर की स्थापना के बाद सवाई जयसिंह इन्हें जयपुर ले आए जहाँ सोने-चांदी और ताम्बे पर मीनाकारी की जाती है। जयपुर में इनके पुरखों जड़ियाजी‌ के नाम से जड़ियों का रास्ता बसाया गया। अनेक कलाकारों ने मीनाकारी के लिए राष...