हिम्मत शाह - शिल्पकला के श्रेष्ठ एवं अदभुद हस्ताक्षर

 वरिष्ठ शिल्पकार हिम्मत शाह की कला यात्रा के बारे में चित्रकार एवं कवि अमित कल्ला का संवाद और टिप्पणी

शिल्पकार हिम्मत शाह के कलात्मक सफर पर कुछ लिखना अपने आप में एक चुनौती भरा सबब है क्योंकि वहां कुछ भी सीधा और सपाट नहीं है। उनके अपने व्यक्तिगत जीवन से लेकर उनकी कला में एक अलग किस्म के उतार-चढ़ाव को महसूस किया जा सकता है, जो अकल्पनीय सा जान पड़ता है और आज के समयानुसार बिल्कुल भी अनुमानित नहीं है, जिसके भीतर बहुत कुछ स्वयं उनके द्वारा भी अनदेखा और अनजाना है जिसे वे 90 वर्ष के करीब की उम्र के बावजूद नित नए-नए अर्थों के साथ निरंतर खोजते नजर आते हैं। वे लगातार माटी और उससे जुड़े अनेक माध्यमों में सृजन के अनन्य रहस्यों को उजागर करते हैं, जो उनके द्वारा महसूस किए गए गहरे अनुभवों के मार्फत ही आज किसी निचोड़ के रूप में सत्व समान हमारे सामने उपस्थित है,जिसे हिम्मत शाह ने बेहद संजीदगी से बटोर कर अपने पास संचित किया है और समय≤ पर अपनी बंद मुट्ठियां खोलकर हम सभी के बीच खुले मन से बांटा भी है।

हिम्मत जी से रूबरू होना घनघोर बारिश में सराबोर होने जैसा अनुभव होता है, जहां पानी का कोई झरना अनायास बह निकलता है और देखते ही देखते कब वह विराट नदी का रूप लेकर अथाह समंदर में विलीन भी हो जाता है, शायद ही कोई उसकी गति पकड़ पाए। उनकी सन्निधि में विश्व सृष्टि के समूचे सृजन और विसर्जन की शृंखला को भलीभांति महसूस किया जा सकता है जहां बनने और टूटने का क्रम अंश-अंश दिखलाई देता है, कभी-कभी इतनी चमक नजर आती है कि आंखें चुंधियाने लगती हैं, तो कभी गहरा अंधकार अनायास सामने आ धमकता है जो अपनी गिरफ्त में लेकर आपको अपने भीतर भर लेता है।

एक किस्म की व्यापक ‘कन्डीशनिंग‘ साफ नजर आती है जिससे गुजरे बिना उनकी रचनात्मक प्रक्रिया को जान पाना बेहद कठिन है। उनकी कला में उनके द्वारा बिताया गया समूचा जीवन प्रतिबिंबित होता है, वस्तुतः एक विचारशील मनुष्य का तमाम दुनियावी तकलीफों को सहकर उन पके हुए बिंदुओं को पा लेना ही असल रूप में हिम्मत शाह होना है, जो अपने आप में देश काल जैसी समस्त सीमाओं के पार होने का नायाब उदाहरण है, इसलिए कथात्मक ढंग से उन पर कुछ लिखा जाना किसी अनमने राग को गाने जैसा लगता है। उन्हें तो किसी कविता के जैसा ही शब्दरूप में चित्रित करना, सूक्ष्म कविता-सा पा लेना ज्यादा उचित होगा जिसकी प्रतिध्वनि उनकी रचनाओं में भी साफ सुनाई पड़ती है।

आज हिम्मत शाह के काम दुनिया के सर्वोत्तम चित्र और शिल्प हैं जिन्हें शिल्प काव्य या हम कहे कि दृश्य काव्य के समान हमारे सामने हैं, जहां कला के अंतर दर्शन सहज रूप में अपने सरल अंदाज के साथ बयान होते दिखते हैं जो उसकी अपनी प्रतीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। माटी से निपजे आकारों का माटी में विलीन हो जाना एक दार्शनिक विवेचन को उजागर करता है, जीवन और मृत्यु दोनों का बहाव जहां दिखाई देता है। हर बार जो अपने आपको एक नए आकल्पन के साथ उजागर करता है जिसकी परोक्ष प्रेरणा प्रकृति से आती हुई दिखाई देती है। वे कहते है कि प्रकृति भिन्नता को मानती है, विविधता से जिसका सबसे बड़ा सरोकार है और जो श्रेष्ठता के स्वरों को दरकिनार करती है, वैविध्यता ही उसका सबसे बड़ा सौंदर्य है। उसे स्वीकारना, उसका संसर्ग करना असल अर्थों में मनुष्यता का सम्मान है, वहीं से संधनात्मक सोच का जन्म होता है जो चेतना को भी संप्रेषित करती है।

हिम्मत शाह उस सौंदर्य के उपासक हैं, यकीनन जो भिन्नता से भरा पूरा है। वस्तु, विचार,व्यवहारिक भिन्नता से भरा, जिसका बोध मात्र होना उनके लिए परम निर्वाण का मानक है। उनके अनुसार मनुष्य का असल विकास कला के सानिध्य से ही संभव है। जो हर पल आपके लिए कुछ नया लेकर उपस्थित होती है, जिसका हर भाव नवीन भंगिमा को दर्शाने वाला है। यकीनन जो एक अद्भुत रोमांचसे जो भरा है, पता नहीं क्यों असल रोमांच हमारे जीवन से कहीं दूर चला गया है। विभिन्न कला माध्यमों की बदौलत हमें उसे फिर से पाना होगा जो ताजगी के नए आलम रचे‌। बहुतेरे कलाकारों ने जिसे अद्भुत ढंग से वर्णित किया है, कितना सारा दर्शन भी जिसके इर्द गिर्द रचा बुना गया है। संत कबीर ने कितना सटीक कहा था, इस घट में ही बाग बगीचे। यह सिर्फ शब्द नहीं है उनकी अनुभूति है जो आज हम सब के लिए सुलभ है अगर उनके कहे पर विचार करें तो हम एक बेहतर दुनिया को बना सकते हैं। आज जिसे भी देखो कैसा अपनी ही देह को देखता है, कितनी विचित्र बात लगती है कि सब देह को समझे बिना ही विदेह हो जाना चाहते हैं। बंधन को जाने बिना मुक्ति के ख्वाब देखते हैं, ऐसा लगता है कि सब कुछ हवा में ही तैर रहा है। यात्रा को कोई भी नहीं करना चाहता, सब के लिए मंजिल पर पहुंचना ही अर्थ रखता है। यात्रा ही मंजिल होनी चाहिए, सब को अपने अपने कोने की तलाश है अनिकेत कोई नहीं होना चाहता। सब तय करके ही बाहर निकलना चाहते हैं, कितनी विचित्र बात लगती है-ऐसे ही कई विषयों को लेकर बड़ौदा में बेंद्रे साहब से हिम्मत शाह खूब चर्चा किया करते थे ।

उनके अनुसार जहां शिल्प कला के आयाम और प्रतिमान दोनों ही मानवीय सृजनात्मकता के विस्तृत एवं विस्मित करने वाले परिप्रेक्ष्य को उजागर करते हैं, जिनमें मूर्त और अमूर्त दोनो ही धाराओं के स्पंदन छैनी हथौड़ी की हर टांच में परस्पर नाद स्वरूप सुनाई पड़ते हैं, जहां दृश्य और प्रदर्शनकारी कलाएं उनके ताने-बाने में रची-बुनी बखूबी महसूस होती हैं, व्यापक अर्थों में समझा जाए तो विजुअल आर्ट फॉर्म्स में शिल्प के मायने बेहद रोचक हैं, जो वास्तुकला का एक अभिन्न हिस्सा होते हुए भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं, यकीनन उसके अपने आकाश, अवकाश के बीच होने वाले मध्यांतर की उपस्थिति है जिसे अंतराल कहा जा सकता है जो निरंतर कला एवं सौंदर्य अनुभूति की अटूट लय को संप्रेषित करने वाला है। हर कलाकृति उनकी अपनी यात्रा का विस्तृत वृतांत है, उसे रचने वाली है जो अनवरत जारी रहने वाले खूबसूरत क्रम का हिस्सा है जिसे अलग-अलग ढंग से देखना ही उसे अलग-अलग अंदाज में सीखना है। यकीनन जो बहुत ही व्यक्तिगत धरातल के ऊपर संभव हो पाता है।

आजकल देखने की ललक, देखने का सलीका कहीं नजर नहीं आता, शायद हम देखने के संस्कारों को भूलते जा रहे हैं, पूर्वाग्रह कितना हावी है, सबकुछ भरे मन से किया जाता है, फिर क्रिएटिविटी की अपेक्षा की जाती, जो एक छलावा नहीं तो और क्या है! तमाम तरह के पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर उसे देखना ही उसका दिग्दर्शन है, सभी किस्म के आवरण तोड़ कर देखना होगा, तब शायद कुछ संभव हो पाए, थोड़ा धुंधलका दूर हो तब बात कुछ बनेगी, दरअसल हमने अपने आप को बहुत स्ट्रक्चर्ड कर दिया है कितनी सारी घटनाओं से अपने आप को घेर लिया है जिनसे मुक्त होना ही कला है, एक-एक कर सभी बंधनों को खोलना ही कला है। निर्भय होकर स्वतंत्र होना ही कला है, स्वयं पर चोट कर अपने आपको तराशना ही शिल्प से साक्षात्कार है, हिम्मत शाह का मैटल स्कल्प्चर ‘हैमर ऑन स्कॉयर‘ बार-बार यही कहानी कहता है। चाक पर जब माटी अपने केंद्र को पाती है और उसे पा लेने के बाद जब वह ऊपर उठने लगती है तब उसका अहंकार धीरे-धीरे नीचे बैठता नजर आता है। ठीक वैसा ही यह जीवन भी है जिसे हम परत दर परत ऊपर उठते हुए देखते हैं बशर्ते हम अपने केंद्र को जान लें इससे हमारा एकाकार हो जाए, सारी जद्दोजहद अपने-अपने उस केंद्र के साथ लय में आने की है, कुछ सीखने जानने, समझने से कहीं बड़ा रूपक खोजने में है असल साधना तो खोजने में ही निहित होती है। वह कहते हैं -इस देश में तत्व को ज्ञान के रूप में कितना खोजा गया, मुझे अपने पूर्वजों की याद आती है जो कभी राजस्थान के भीनमाल इलाके से थे उनमें से कुछ जैन मुनि भी थे, शायद मेरी आवृत्ति में उनकी खोज परिणित होती है जो क्रम दर क्रम विकासशील है। कलाओं के दरमियान कुछ भी खोजने में एक अनिश्चितता का भाव हमेशा बना रहता है, संशय के बादल आपको घेरे रहते हैं, होने न होने के बीच कि स्थिति बनी रहती है। वास्तव में जहां एक किस्म का अनजाना भय यानी डर उपस्थित रहता है, जो कि संसार का सबसे बड़ा सौंदर्य भी है, शायद वहीं से किसी नई खोज कि शुरुआत होती है उस खोज का स्वभाव भी अनिश्चितता के बिना अधूरा मालूम पड़ता है, जिसके बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। जाने-अनजाने हिम्मत शाह का पूरा जीवन और उनकी कला उस अनिश्चित रोमांच से रूबरू होना है, किसी भी सच्चे कलाकार के लिए उससे राबता होना किसी वरदान से कम बात नहीं है, जहां एक ही जीवन में हजारोंझार आघात प्रत्याघात सहने होते हैं और जो सहता है वही इस दुनिया में कायम भी रहता है। सो इस बात पर हमें चिंतन करना चाहिए जो स्वयं में अमूर्त की प्रति कृति है, अमूर्त किसी शिल्प, चित्र या काव्य में ही नहीं होता, सृष्टि में चारों और उसकी सहज उपस्थिति को देखा जा सकता है, विषय, विचार, वस्तु सभी में समूचा जीवन आलोकित है, इन सब विषयों को लेकर।

हिम्मत जी के अनुसार आर्टिस्ट को बहुत संवेदनशील होना चाहिए जो बहुत सूक्ष्म स्तरों पर कला की अनुभूतियां कर सके, उन्हें वह अपने अनुसार अप्रतिम विस्तार दे सके। जहां उसके अपने होने का अनुपम भाव बना रहे, संशय होने पर वह स्वयं में अपना रास्ता तलाश करता रहे जिसका संदर्भ आज पर आधारित है जहां अपने आप को खोजना असल सत्य को पाना हो, उसे अपने ढंग से जी लेना हो। परत दर परत जो आपके भीतर से ही अनुप्राणित होता है जहां शरीर, मन और आत्मा एक लय होकर सृजन की श्रृंखला को रचे, वस्तुतः पूर्णता से अपूर्णता को पा लेने की झलक दिखाई पड़े, जिसके अर्थ गर्भ से बाहर आने की ओर संकेत करें जो किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता के भाव से मुक्त हो । हिम्मत शाह बार-बार कहते हैं की प्रकृति प्रतियोगिता में विश्वास नहीं रखती वहां विविधता को मान्यता है, भिन्नता उसका सबसे बड़ा सौंदर्य है, इस सौंदर्य को महसूस करने की जरूरत है जो काव्यात्मक है। प्रकृति अपने आप में कविता है, ऐसी कविता जो आपको बेहतर सोचने की प्रक्रिया में हिस्सेदारी देती है। इसलिए सभी को कविता से अपने सरोकार स्थापित करने चाहिए, उसके अलग-अलग पहलुओं को आत्मसात करना चाहिए, उसके मर्म को पहचानना चाहिए द्य वह ठीक उस उगते हुए सूर्य की जैसी है जिसकी कितने ही रूपाकारों में उपासना की गई है, दुनिया भर के अलग-अलग धर्म संप्रदाय उसकी अपने अंदाज में अरदास करते हैं।

हिम्मत जी -‘मैं माटी में जिसे खोज लेता हूं, उसे कितने ही स्तरों पर महसूस कर पाता हूं, कभी वह सख्त और कभी ठोस हो जाती है, कभी लचीली होकर बंद हथेलियों से फिसलने लगती है। दरअसल यह सबसे बड़ा स्थान है, मैंने जो सृजन किया वह मेरा है, जिसे मैं इस संसार के साथ साझा करता हूं। वह मेरे लिए निष्काम योग तुल्य है, जिसे गीता में कृष्ण बताते हैं, वह बड़ा अनुभव है जो अपने आप को तलाशने, तराशने में सहयोग करता है। आपको आश्चर्य होगा कि हम एक ऐसे मुल्क से ताल्लुक रखते हैं, जहां जन्म से नियति का निर्धारण होता है। जन्म भी किसी भी मजहब, संप्रदाय, वर्ग में नहीं, अपितु इस सरजमीन पर महत्वपूर्ण है जो इस भौगोलिक क्षेत्र में महत्व रखता है, जो आपको बहुत से अनुभवों से मुखातिब करनेवाला अतुलनीय क्रम है। मैं बहुत कुछ ऐसा साझा कर सकता हूं , जो सिर्फ और सिर्फ इस जमीन पर ही संभव है या कभी सोचा, कहा और जाना गया है। विश्व कवि ऑक्टेवियो पॉज का भी ऐसा ही अनुभव रहा है, वे अक्सर कहा करते थे कि संभावना सिर्फ और सिर्फ यहीं है। अब उनके शब्दों को बेहतर ढंग से समझ पा रहा हूं, फिर से कहता हूं जिसे अनुभव करने के लिए समझौतावादी सोच को दरकिनार करना होगा,शायद उसी में मूल स्वतंत्रता है। भगवान महावीर, बुद्ध, टैगोर, रजनीश, डॉक्टर अंबेडकर ने जिसे अनुभव किया था। महात्मा गांधी से बड़ा शायद ही उच्च विचार की झलक हमारे सामने होगी, जिनके लिए उनका जीवन ही उनका संदेश रहा है, जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि इस देश ने सत्य की तलाश में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, उस निर्भय स्वभाव के स्पंदन यहां की हवा में हैं, यहां एक तरह की इनोसेंस भी है जिसे कहीं और अनुभव नहीं किया जा सकता, जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का भी है। हिंदुस्तान की कला का कतरा-कतरा काव्यात्मक और दार्शनिक भाव से सराबोर है, माटी की कला वेदों से भी प्राचीन है जो अनुभूति को रिफ्लेक्ट करती है, उसे बनाए जाने की चेष्टा ही गलत है, वह तो किसी फूल के खिलने जैसी नैसर्गिक घटित होने वाली प्रक्रिया है उसी में तल्लीन होकर अपने काम को करना, अपने भाग्य को लिखने समान है, जहां एक बड़ी यात्रा के बिंब प्रतिबिंबों को रचने जैसा प्रयोजन है। भारत जैसी माटी की कला इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं दिखाई देती है, जहां इतने व्यापक स्तर पर प्रयोग किए गए और साथ ही इतनी बड़ी संख्या में उसे बरता गया, प्राचीन भारतीय इतिहास का साक्षी है, हर काल खंड में बेमिसाल काम हुआ है, कुंभकार को प्रजापति की संज्ञा दी गई, जो अमोलक है। आज फिर से आवश्यक है उस प्रजापति के भाव को जानने और उसे जीवन से जोड़कर देखने की। जो दर्शी है जन्म और मृत्यु दोनों सच्चाइयों का, सर्जन और विसर्जन का, उसके द्वारा किसी भी आइडिया को कंसीव करने की पूरी पद्धति बड़ी रोचक है जिन्हें विभिन्न नई पुरानी कथाओं में हमारे लोक द्वारा शामिल कर जीवन से जोड़ा गया है। एक भरी पूरी रिवायत की खूबसूरत कहानी साकार होती नजर आती है, जो मुक्ति के समुच्चय मार्ग को दर्शाने वाली पद्धति है। कला के दोनों पहलू हैं- बंधन और मुक्ति। एक तरफ वह बांधती है,
वहीं दूसरी तरफ मुक्त भी करती है वह। उसका अंतर उपागम है, उसमें उसका सत्य छिपा होता है, जिसके मतले बड़े गहरे होते हैं, जिसे बतलाना अत्यंत कठिन है, बतलाने पर वह असत्य हो जाएगा, जिसे व्यक्तिगत रूप में ही पाया जा सकता है। स्वयं ही जिसेहिम्मत शाह कहते हैं- ऐसा क्यों मुझे तो कुछ समझ नहीं आता, हमें हीनता के भाव को छोड़ना होगा। उसे दरकिनार कर डिजाइन के साथ अपने आपको इनट्यून करना होगा। अपने कर्म पर चिंतन मनन करना होगा, क्योंकि वही आनंद का सर्वोच्च मार्ग है जिसमें अनेक संभावनाएं निहित है। बताइए सूर्य की कभी कोई सीमा हो सकती है। वह तो असीमित अपरिमित है, वह कभी पुराना नहीं होता, हर बार नए सिरे से अनंत ऊंचाइयों को छूता है। इसलिए पूरी कायनात और कलाकार का गहरा संबंध है, ठीक सुर और संभावना जैसा ही, जो उस अतुलनीय आनंद को बहाने वाला है, जिसके साथ आप आजीवन रह सकते हैं । यकीनन सुख में आप आजीवन रह सकते हैं लेकिन दुख के साथ हम ज्यादा समय तक नहीं रह सकते। वैसे सुख और दुख का धूप छांव जैसा संबंध है, लेकिन आनंद एक ऐसी अवस्था है जिसमें रहकर हम गहरी अनुभूति करते हैं। आर्ट हमें मुकम्मल अभिव्यक्ति प्रदान करती है सबसे बड़ी बात यह है कि उससे बड़ा कुछ भी नहीं है जो आपको आनंद देने वाली है। इस संसार में आनंद ही उस मोक्ष की अल्टीमेट अभिव्यक्ति है जो कलाओं में निहित है। भारत के नृत्य संगीत समझने का कोई दावा नहीं कर सकता। मिनिएचर ट्रेडिशन में हर बार देखे जाने पर कितना कुछ नया प्रकट होता है, नए अर्थ उपमा आकल्पन पर हम मोहित होते हैं। वहां पेंटिंग सिर्फ पेंटिंग नहीं होती। जीवन के अनुकीर्तन के रूप में आपके सामने अपनी अकल्पनीय मौजूदगी दर्ज कराती है। हमारा संगीत जैसा एक आर्ट फॉर्म ही कितने ही प्रकार के कला अनुशासन को पैदा करने की क्षमता रखता है, इसलिए हमारे पास जो कुछ है वह ज्ञान से भी आगे का सत्व और तत्व है जो अपने आप में बहुत गहरा है,जिसे बेहद गहरे बोध के साथ सामने लाया गया है। वास्तव में इस मुल्क का कोई सानी नहीं है, इसकी जगह कोई नहीं ले सकता। जो आपको बहुत से अनुभवों से गुजरता हुआ दैनिक संरचनाओं से मुखातिब करने का सामर्थ्य रखता है, आपके भीतर और बाहर के आकाश को एक करने की बात करता है।

कला सहजीवन का भी दूसरा नाम है उसे अलग से देखना जानना हमारी नादानी होगी, वह हमारे जीवन में ही रची बनी है, जो निरंतर सम्मोहित करती है। समूचा काल खंड उसकी परिधि में व्याप्त होता है व्यक्त अव्यक्त रूप में आप उसे अपने ही भीतर प्रतिफलित होते अनुभव करते हैं। विविध आयामों में उसे प्रकट होते पाते हैं, उसके अद्भुत रहस्यों के साक्षी हो सकते हैं पर शर्त है कि अपनी विशिष्टता का एहसास करें। उपनिषद भी तो बार-बार आपको अपने स्वरूप को पहचानने की बात कहते हैं। हिम्मत शाह उसी विशिष्टता को तलाशने का अनुनय करते नजर आते हैं, अपने स्वयं को खोजने की गुहार लगाते हैं जिसे आपको कोई दूसरा नहीं दे सकता आपको स्वयं ही उसके अंतर्मन में डूबना होगा। शिल्प कला अनंत संभावनाओं का समागम है जहां रचनात्मक विचारों की तन्मयी चोट से विस्तृत कल्पनाओं का प्रारूप साकार रूप में परिणित होता है जो यथार्थ की खूबसूरत अनुभूति का भी हिस्सा है। व्यापक अर्थों में समझा जाए तो दृश्य कला में शिल्प के मायने बेहद रोचक हैं, जो वास्तुकला का एक अभिन्न हिस्सा होते हुए भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। यकीनन उसके अपने आकाश, अवकाश के बीच होने वाले मध्यांतर की उपस्थिति है जिसे अंतराल कहा जा सकता है जो निरंतर कला एवं सौंदर्य अनुभूति की अटूट लय को संप्रेषित करने वाला है।

माटी में उनके द्वारा तलाशे गए रूपाकार की जब बात होती है तब वह कहते हैं, ‘माटी अपने आप में संपूर्ण है वह पूर्णता का प्रतिनिधित्व करती है। निर्माण और निरागमन दोनों ही उसके अंग हैं। वह हर क्षण आपको परिवर्तित करती है, जिसमें अथाह लचीलापन होता है, पंच तत्वों की उपस्थिति होती है, लगातार बनने बिखरने की प्रक्रिया चलती रहती है। क्या कुछ नहीं निपजता इस माटी से, इस माटी में हम तो बस स्वरूप को तलाशने का प्रयास करते हैं, वह भी अंश-अंश पलक भर के संगी होने की चाहना रखते हुए।‘ हिम्मत शाह को जो कुछ उनके इर्द-गिर्द दिखलाई दिया, जो जैसा भी उन्होंने अनुभव किया उसे सहजता से माटी के स्वरूप में उसे ढाल दिया उसे एक नई दृश्य भाषा दी, मसलन कोई पाइप का टुकड़ा, सिकोरा, नल, रस्सी, औजार, तार, टायर, डिब्बा, स्क्रू- नट, चम्मच,गिलास इत्यादि जैसे सैंकड़ों विषयों को माटी में ढाला और उसे नए रूप में नए आकार में लेकर इस दुनिया के सामने आए, सामने आए। हिम्मत शाह ने एक नई शिल्प संरचना को जन्म दिया जो अपने आपमें विलक्षण है । इस प्रक्रिया में वे अपने बोध का मिश्रण करते गए जिसे उन्होंने सेंस कहा है, जो निश्चित रूप से काव्यात्मक और दार्शनिक भाव से लबरेज है जिसे दृश्यात्मक स्वरूप में परिणत किया गया है। यह संभावनाओं का विस्तार नहीं तो और क्या है? माटी के साथ माटी हो जाने का मतलब बड़ा ही बेमिसाल है, इस पूरी प्रक्रिया में ऊर्जा के साथ संवाद होता है। उनके लिए एनर्जी, स्पेस, मैटर उसका पर्याय साबित होते हैं जिसे शब्दों में समझना और उसकी व्याख्या करना बहुत मुश्किल है, यह ठीक बहती हुई नदी में उतरने जैसा अनुभव है जहां बहुत कुछ आपको छूकर गुजर जाता है और डुबकी लगा आप नए होकर बाहर आते हैं, फूल से खिल जाते हैं। जिसके गर्भ में सत्य छिपा है। शिल्प में भावनाओं, संवेदनाओं को आंदोलित होते महसूस किया जा सकता है जिस अनुक्रम में हम हमेशा सोचते रहते हैं लिहाजा उनकी जिंदगी जिसका पर्याय है। मैंने व्यक्तिगत रूप में हमेशा उन्हें इस क्रम में डूबा हुआ पाया है। वह अपने आप में सबसे सजग विद्यार्थी हैं, निसर्ग के विद्यार्थी जो सदा उसमें तल्लीनता से रमें रहते हैं जिससे उनका अपना संवाद सतत जारी रहता है, उनके स्वभाव में ऐसे ही तमाम अक्स उतरते दिखते हैं। उनके द्वारा रचित शिल्प अपने आप में अनुनयी भाव की रूप-अरूपमयी व्यापक दर्शना को सूक्ष्म और विराट दोनों ही रूप में उजागर करने वाला प्रयोजन है। दरअसल शिल्पकला संभावनाओं का समागम है, जहां रचनात्मक विचारों की चोट से विस्तृत कल्पनाओं का प्रारूप साकार होता है जिसके हम सभी सहृदयी साक्षी हैं।

हर कलाकृति में उनकी इस यात्रा के गहरे चिह्न नजर आते हैं। माटी के कण का विस्तार उनके आत्म अनुशासन के भरे व्यवहार को दर्शाने वाला है। रूप आंखों से ओझल होने के बावजूद स्मृतियों में अपनी पुख्ता जगह बना लेते हैं क्योंकि उनसे रूबरू होना किसी दृश्य का स्मृति में तब्दील हो जाना होता है। आज बड़े स्तर पर चारों और एक अजीब किस्म का आदर्शवाद दिखाई दे रहा है, सभी महामानव बनना चाहते है। कोई सहज, सामान्य नहीं होना चाहता जो कि बेहद खतरनाक बात है। कलाकार के पास अनेक स्वप्न, स्मृतियां और अनुभव होते हैं जो उसे रास्ता दिखाते हैं, पिकासो कितनी ही स्मृतियों का स्वामी था जिसे उसने दृश्य भाषा में रच डाला। दरअसल कला बड़ी सम्पदा होती है जिसे आपको सहेजना ही होता है, उसे पोषित भी करना होता है। कला धर्म अपने आप में बहुत मायने रखता है। खोजना होगा। कृष्ण, बुद्ध, पतंजलि और गोरख जैसा जिन्होंने उस परम रस को चखा और अमर पद को पाया है। हमारे लिए भी जो सरलता के रूप में उपलब्ध है।

वह कहते हैं - बुद्ध और महावीर अपने अनुभव के सहारे ही आगे बढ़े इसलिए मैं यहां पर कला और आध्यात्मिकता को जोड़कर देखता हूं। उपनिषदों जैसी वार्ता हमें कला में रमकर कला से करनी होगी, जहां नए संवाद को तलाशना होगा, जहां कितने ही आयामों पर संवाद के अर्थ रचे गए यह सब कुछ हमारे सामने प्रत्यक्ष उपस्थित है जो बार-बार हमसे एकरूप होने का अनुभव करता है उसमें लीन होने का निमंत्रण देता है, लेकिन हमने अपने आपको न जाने क्यों जकड़ा हुआ है, हम भार मुक्त नहीं होना चाहते, संभावनाओं को नहीं तलाशते। हिम्मत शाह कहते हैं- ऐसा क्यों मुझे तो कुछ समझ नहीं आता, हमें हीनता के भाव को छोड़ना होगा। उसे दरकिनार कर डिजाइन के साथ अपने आपको इनट्यून करना होगा। अपने कर्म पर चिंतन मनन करना होगा, क्योंकि वही आनंद का सर्वोच्च मार्ग है जिसमें अनेक संभावनाएं निहित है। बताइए सूर्य की कभी कोई सीमा हो सकती है। वह तो असीमित अपरिमित है, वह कभी पुराना नहीं होता, हर बार नए सिरे से अनंत ऊंचाइयों को छूता है। इसलिए पूरी कायनात और कलाकार का गहरा संबंध है, ठीक सुर और संभावना जैसा ही, जो उस अतुलनीय आनंद को बहाने वाला है, जिसके साथ आप आजीवन रह सकते हैं । यकीनन सुख में आप आजीवन रह सकते हैं लेकिन दुख के साथ हम ज्यादा समय तक नहीं रह सकते। वैसे सुख और दुख का धूप छांव जैसा संबंध है, लेकिन आनंद एक ऐसी अवस्था है जिसमें रहकर हम गहरी अनुभूति करते हैं। आर्ट हमें मुकम्मल अभिव्यक्ति प्रदान करती है सबसे बड़ी बात यह है कि उससे बड़ा कुछ भी नहीं है जो आपको आनंद देने वाली है। इस संसार में आनंद ही उस मोक्ष की अल्टीमेट अभिव्यक्ति है जो कलाओं में निहित है। भारत के नृत्य संगीत समझने का कोई दावा नहीं कर सकता। मिनिएचर ट्रेडिशन में हर बार देखे जाने पर कितना कुछ नया प्रकट होता है, नए अर्थ उपमा आकल्पन पर हम मोहित होते हैं। वहां पेंटिंग सिर्फ पेंटिंग नहीं होती। जीवन के अनुकीर्तन के रूप में आपके सामने अपनी अकल्पनीय मौजूदगी दर्ज कराती है। हमारा संगीत जैसा एक आर्ट फॉर्म ही कितने ही प्रकार के कला अनुशासन को पैदा करने की क्षमता रखता है, इसलिए हमारे पास जो कुछ है वह ज्ञान से भी आगे का सत्व और तत्व है जो अपने आप में बहुत गहरा है,जिसे बेहद गहरे बोध के साथ सामने लाया गया है। वास्तव में इस मुल्क का कोई सानी नहीं है, इसकी जगह कोई नहीं ले सकता। जो आपको बहुत से अनुभवों से गुजरता हुआ दैनिक संरचनाओं से मुखातिब करने का सामर्थ्य रखता है, आपके भीतर और बाहर के आकाश को एक करने की बात करता है।

कला सहजीवन का भी दूसरा नाम है उसे अलग से देखना जानना हमारी नादानी होगी, वह हमारे जीवन में ही रची बनी है, जो निरंतर सम्मोहित करती है। समूचा काल खंड उसकी परिधि में व्याप्त होता है व्यक्त अव्यक्त रूप में आप उसे अपने ही भीतर प्रतिफलित होते अनुभव करते हैं। विविध आयामों में उसे प्रकट होते पाते हैं, उसके अद्भुत रहस्यों के साक्षी हो सकते हैं पर शर्त है कि अपनी विशिष्टता का एहसास करें। उपनिषद भी तो बार-बार आपको अपने स्वरूप को पहचानने की बात कहते हैं। हिम्मत शाह उसी विशिष्टता को तलाशने का अनुनय करते नजर आते हैं, अपने स्वयं को खोजने की गुहार लगाते हैं जिसे आपको कोई दूसरा नहीं दे सकता आपको स्वयं ही उसके अंतर्मन में डूबना होगा। शिल्प कला अनंत संभावनाओं का समागम है जहां रचनात्मक विचारों की तन्मयी चोट से विस्तृत कल्पनाओं का प्रारूप साकार रूप में परिणित होता है जो यथार्थ की खूबसूरत अनुभूति का भी हिस्सा है। व्यापक अर्थों में समझा जाए तो दृश्य कला में शिल्प के मायने बेहद रोचक हैं, जो वास्तुकला का एक अभिन्न हिस्सा होते हुए भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। यकीनन उसके अपने आकाश, अवकाश के बीच होने वाले मध्यांतर की उपस्थिति है जिसे अंतराल कहा जा सकता है जो निरंतर कला एवं सौंदर्य अनुभूति की अटूट लय को संप्रेषित करने वाला है।

माटी में उनके द्वारा तलाशे गए रूपाकार की जब बात होती है तब वह कहते हैं, ‘माटी अपने आप में संपूर्ण है वह पूर्णता का प्रतिनिधित्व करती है। निर्माण और निरागमन दोनों ही उसके अंग हैं। वह हर क्षण आपको परिवर्तित करती है, जिसमें अथाह लचीलापन होता है, पंच तत्वों की उपस्थिति होती है, लगातार बनने बिखरने की प्रक्रिया चलती रहती है। क्या कुछ नहीं निपजता इस माटी से, इस माटी में हम तो बस स्वरूप को तलाशने का प्रयास करते हैं, वह भी अंश-अंश पलक भर के संगी होने की चाहना रखते हुए।‘ हिम्मत शाह को जो कुछ उनके इर्द-गिर्द दिखलाई दिया, जो जैसा भी उन्होंने अनुभव किया उसे सहजता से माटी के स्वरूप में उसे ढाल दिया उसे एक नई दृश्य भाषा दी, मसलन कोई पाइप का टुकड़ा, सिकोरा, नल, रस्सी, औजार, तार, टायर, डिब्बा, स्क्रू- नट, चम्मच, गिलास इत्यादि जैसे सैंकड़ों विषयों को माटी में ढाला और उसे नए रूप में नए आकार में लेकर इस दुनिया के सामने आए, सामने आए। हिम्मत शाह ने एक नई शिल्प संरचना को जन्म दिया जो अपने आपमें विलक्षण है । इस प्रक्रिया में वे अपने बोध का मिश्रण करते गए जिसे उन्होंने सेंस कहा है, जो निश्चित रूप से काव्यात्मक और दार्शनिक भाव से लबरेज है जिसे दृश्यात्मक स्वरूप में परिणत किया गया है। यह संभावनाओं का विस्तार नहीं तो और क्या है? माटी के साथ माटी हो जाने का मतलब बड़ा ही बेमिसाल है, इस पूरी प्रक्रिया में ऊर्जा के साथ संवाद होता है। उनके लिए एनर्जी, स्पेस, मैटर उसका पर्याय साबित होते हैं जिसे शब्दों में समझना और उसकी व्याख्या करना बहुत मुश्किल है, यह ठीक बहती हुई नदी में उतरने जैसा अनुभव है जहां बहुत कुछ आपको छूकर गुजर जाता है और डुबकी लगा आप नए होकर बाहर आते हैं, फूल से खिल जाते हैं। जिसके गर्भ में सत्य छिपा है। शिल्प में भावनाओं, संवेदनाओं को आंदोलित होते महसूस किया जा सकता है जिस अनुक्रम में हम हमेशा सोचते रहते हैं लिहाजा उनकी जिंदगी जिसका पर्याय है। मैंने व्यक्तिगत रूप में हमेशा उन्हें इस क्रम में डूबा हुआ पाया है। वह अपने आप में सबसे सजग विद्यार्थी हैं, निसर्ग के विद्यार्थी जो सदा उसमें तल्लीनता से रमें रहते हैं जिससे उनका अपना संवाद सतत जारी रहता है, उनके स्वभाव में ऐसे ही तमाम अक्स उतरते दिखते हैं। उनके द्वारा रचित शिल्प अपने आप में अनुनयी भाव की रूप-अरूपमयी व्यापक दर्शना को सूक्ष्म और विराट दोनों ही रूप में उजागर करने वाला प्रयोजन है। दरअसल शिल्पकला संभावनाओं का समागम है, जहां रचनात्मक विचारों की चोट से विस्तृत कल्पनाओं का प्रारूप साकार होता है जिसके हम सभी सहृदयी साक्षी हैं।

हर कलाकृति में उनकी इस यात्रा के गहरे चिह्न नजर आते हैं। माटी के कण का विस्तार उनके आत्म अनुशासन के भरे व्यवहार को दर्शाने वाला है। रूप आंखों से ओझल होने के बावजूद स्मृतियों में अपनी पुख्ता जगह बना लेते हैं क्योंकि उनसे रूबरू होना किसी दृश्य का स्मृति में तब्दील हो जाना होता है। आज बड़े स्तर पर चारों और एक अजीब किस्म का आदर्शवाद दिखाई दे रहा है, सभी महामानव बनना चाहते है। कोई सहज, सामान्य नहीं होना चाहता जो कि बेहद खतरनाक बात है। कलाकार के पास अनेक स्वप्न, स्मृतियां और अनुभव होते हैं जो उसे रास्ता दिखाते हैं, पिकासो कितनी ही स्मृतियों का स्वामी था जिसे उसने दृश्य भाषा में रच डाला। दरअसल कला बड़ी सम्पदा होती है जिसे आपको सहेजना ही होता है, उसे पोषित भी करना होता है। कला धर्म अपने आप में बहुत मायने रखता है। आलेख : साभार नाद रंग

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  1. A wonderful personality 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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