शेखावाटी कला को समर्पित युवा चित्रकार राजेश कुमार बिदावत : योगेन्द्र कुमार पुरोहित


राजस्थान में चित्रकला की कई चित्रण पद्धतियां विकसित हुई जैन और बौद्ध कला के उपरांत। मैं राजस्थान की चित्रण शैलियों को उनकी उपशैलि ही मानता हूँ 
जैन और बौद्ध चित्रण पद्धति की, 
ये बात मैं कला इतिहास के आधार पर नहीं बल्कि चित्रित दृश्यों के आधार पर कह रहा हूँ। 
क्योंकि राजस्थान चित्रण शैलियां एक धारा की भांति 
प्रतीत होती है और उस धारा का प्रादुर्भाव मुझे दृष्टि गोचर होता है, जैन और बौद्ध कला के रूप में और 
कला इतिहास के तथ्यों के साथ भी।

 
कारण चाहे जो भी रहे हो राजस्थान के चित्रण की इन उपशैलियों के जन्म या उन्नति के, पर इनके रंग, विषय, रेखाओं का अंकन, चित्र संयोजन और माध्यम चित्र फलक भित्ति चित्रण, काष्ठ रंगांकन, ताड़पत्र, कागज और सिल्क कपडे पर चित्रण आदि की पद्धति एक समान ही प्रतीत होती है।

राजस्थान में इन चित्रण की उपशैलियों को अलग-अलग नाम और पहचान भी मिली जिनमे किशनगढ़ शैली, हाड़ोती शैली, मेवाड़ शैली, मारवाड़ शैली, नाथद्वारा शैली, शेखावाटी शैली, बूंदी शैली, इसके अतिरिक्त फड़ शैली (सिल्क पेंटिंग) आदि।

राजस्थान में इन सभी शैलियों की अपनी एक अलग पहचान भी है, देखने को समस्त चित्रण ही है पर इनकी अपनी विशेषता और प्रमुखता है हर शैली में। अब ये किस कारण से है ये शोध का विषय है।

मैं यहाँ जिक्र करने जा रहा हूँ वर्तमान में शेखावाटी चित्रण कला की, शेखावाटी राजस्थान के सीकर जिले और उसके आस पास के क्षेत्र को कहा जाता है। ये जयपुर, बीकानेर और चूरू से लगता हुआ भू भाग है। यहाँ की शेखावाटी हवेलियाँ अपनी नायाब कला के लिए विश्व विख्यात है। कला विशेषज्ञों ने इन शेखावाटी हवेलियों के बारे में बहुत विस्तार से लिखा और प्रकाशित किया है। कला के इतिहास में शेखावाटी की कला जो की भवन निर्माण, काष्ठ कला और चित्रकला का मिश्रित रूप रही है, उसे विशेष स्थान दिया है।

मैंने भी भारतीय चित्रकला का इतिहास पुस्तक अपने कला शिक्षण के समय पढ़ी और वर्तमान में डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल (प्रयागराज) और उनके शिष्य डॉ. राकेश गोस्वामी (प्रयागराज) दोनों की लिखित पुस्तकें पढ़ी हैं और बहुत ही अच्छे से समझ पाया की शेखावाटी हवेलियों और उनकी कला किस प्रकार की है। सो साधुवाद कला गुरु डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल जी और डॉ. राकेश गोस्वामी को उनके द्वारा तथ्यपरक शोध कर शेखावाटी कला को प्रकाश में लाने के लिए।

हम जानते है समय के साथ इतिहास और उसका स्वरुप बदलता रहता है। इसे एक प्राकृतिक क्रिया कहा जा सकता है इस धरा पर। तो इस क्रम में शेखावाटी कला ने भी समय की मार को झेला है। आधुनिकीकरण के अंधानुकरण ने शेखावाटी के स्वरुप को परिवर्तित कर दिया है। अब जो कुछ बचा है उसे शेखावाटी कला के अवशेष ही कहा जा सकता है। और ऐसा राजस्थान की समस्त ऐतिहासिक शैलियों के साथ हुआ है और अब भी हो रहा है। बीकानेर के एक लेखक स्वर्गीय उपध्यानचन्द कोचर जी ने एक पुस्तक लिखी हजार हवेलियों का शहर बीकानेर, पर आज बीकानेर में हवेलियों की संख्या को उँगलियों पर गिना जा सकता है जो संस्कृति की दृष्टि से बहुत पीड़ादायक बात है।

पर ऐसा नहीं है की सभी संस्कृति के मूल को नष्ट करना चाहते है। कुछ संस्कृति और सांस्कृतिक पहचान की गरिमा के महत्व को जानने और समझने वाले व्यक्ति भी हमारे बीच उपस्थित है उन्हें भी साधुवाद मेरी और से।

हाल ही में मुझे बीकानेर में एक चित्रकला शिविर के लिए नोहर, जिला हनुमानगढ़ (सिंधु घाटी सभ्यता की भूमि) में जाने का अवसर राजस्थान ललित कला अकादमी के अध्यक्ष श्री लक्ष्मण व्यास (मूर्तिकार) मूल निवासी नोहर द्वारा उपलब्ध करवाया गया। वहाँ 3 जनवरी से 5 जनवरी 2023 तक मुझे राजस्थान के अगल-अलग शहरोँ से आये हुए चित्रकारों के साथ चित्र सृजन करने का मौका मिला। तो साथ में उनसे कला चर्चा करने का भी मौका मिला।

चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ की हम सब चित्रकारों के मध्य एक परंपरागत चित्रण करने वाला युवा कलाकार मास्टर राजेश वर्मा भी उपस्थित है और वे नवलगढ़ से हमारे बीच पहुंचे है। संयोग से उनको मेरे रूम में स्थान मिला, उस कैंप में उनके साथ दो और उनके साथी थे मास्टर मुकेश बीजानिया और मास्टर छोटूराम यादव सीकर से थे।

तीन दिन के उस साथ और खुली कला चर्चा से ज्ञात हुआ की मास्टर राजेश कुमार बिदावत ने नवलगढ़ स्थित एक शेखावाटी हवेली को लगातार चार साल तक चित्रकारी करते हुए उस हवेली को उसके वास्तविक स्वरुप में पुनः ला दिया है जैसी की वो जब बनी थी। शेखावाटी (नवलगढ़) की जालान हवेली के मालिक ने करीब चार करोड़ रूपए खर्च करते हुए अपनी शेखावाटी हवेली को पुनः जीवित कर लिया है। जिसके लिए वे साधुवाद के पात्र है।

चित्रकार राजेश कुमार बिदावत का जन्म 15 अप्रैल 1986 को नीमकाथाना, सीकर में हुआ।

चर्चा करते हुए चित्रकार राजेश ने बताया की नवलगढ़ की उस हवेली में पुराने रूप से उकेरी गयी शेखावाटी शैली की भित्ति चित्रण कला, काष्ठ कला और भवन निर्माण को पुनः दोहराया गया है। सो उसमे समय, धन, और सृजन की अति खपत हुई है।

चित्रकार राजेश ने बताया की उन्होंने शेखावाटी शैली में ही वाश पद्धति / टेम्परा पद्धति / आला गीला पद्धति से परम्परागत विधियों एवं तकनीक को अपनाते हुए ही चित्रण किया है जो उन्होंने अपने गुरु श्री सुनील चेजारा से शेखावाटी पेंटिंग सीखा है साथ ही शेखावाटी कलम की कुछ चुनिंदा पुस्तकों और पुरानी हवेलियों में बने चित्रों का गहराई से अध्ययन भी किया है, जिससे वें इस शैली की बारीकियों तथा रंग बनाने की विधियों को और अधिक गहराई से आत्मसात कर अपने सृजन को नई उच्चाईयां देने में सफल हुए, और अब वे अपने युवा साथियों को भी शेखावाटी शैली की चित्रण पद्धति सिखा रहे है जो भविष्य के लिए सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण हेतु अति आवश्यक कदम है।

बड़ा मुश्किल है वर्तमान में जीना और पुरातन को आत्मसात करना जिसकी प्रसंगिगकता है भी और नहीं भी। अतीत की पगडण्डी पर वर्तमान को आगे ले जाना मुश्किल है पर ना मुमकिन नहीं इस बात को सिद्ध किया है चित्रकार राजेश कुमार बिदावत ने सो उन्हें भी साधुवाद उनके प्रतिबद्धता और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए सृजन पथ को समर्पित करने हेतु। चित्रकार राजेश कुमार बिदावत द्वारा बनाये गए शेखावाटी चित्रों के छाया चित्र इस आलेख के साथ आप के अवलोकन हेतु सलंग्न है जिससे आप ये जान सकेंगे की शेखावाटी हवेली (नवलगढ़) कितने सार्थक रुप में पुनः जीवित हुई है एक चित्रकार के अथक प्रयासों से जिसका नाम है युवा चित्रकार राजेश कुमार बिदावत नवलगढ़, सीकर से।

चित्रकार योगेंद्र कुमार पुरोहित
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट्स
बीकानेर, इंडिया

Comments

Popular posts from this blog

राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट में स्तरीय सुधार हेतु कला शिक्षकों, पूर्व छात्रों, वरिष्ठ चित्रकारों से चर्चा एक सार्थक पहल : संदीप सुमहेन्द्र

कलाविद रामगोपाल विजयवर्गीय - जीवन की परिभाषा है कला : डॉ. सुमहेन्द्र

कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ती चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-03)