लोक ही जिसका धर्म एवं लोक ही जिसकी पूजा - वो है मास्टर गोपाल बिस्सा : योगेन्द्र कुमार पुरोहित
कहते है आध्यात्मिक ग्रंथो में जहाँ बहुत से प्रश्न अधूरे रहते है उन्हें पूर्णता मिलती है लोक जीवन शैली से। ऐसा मैंने कई बार साहित्य चर्चाओं और मंचों से सुना है। पद्म पुरस्कार विजेता डॉ. चंद्र प्रकाश देवल साहब से (वरिष्ठ साहित्यकार राजस्थानी भाषा) डॉ. अर्जुन देव चारण (राजस्थानी भाषा वेता और रंग लेखक) और लोक संस्कृति के विशेषज्ञ स्वर्गीय डॉ. श्रीलाल मोहता, बीकानेर के श्री मुख से। ये सत्य भी माना जा सकता है क्यों की प्रतिदिन हमारे आस-पास जो कुछ घटता है उसमे आधार लोक संस्कृति का ही होता है। उदहारण के लिए हम हमारे दैनिक जीवन की दिनचर्या को ले सकते है, जो नींद से जागने से लेकर पुनः रात्रि में सोने तक की क्रिया में निहित है।
मेरे लिए लोक अंतर मन का स्वतंत्र आह्लाद है जो आपके मन मस्तिष्क को स्वतंत्रता से अपनी मानसिक, वैचारिक और शारीरिक क्रिया करने का अवसर उपलब्ध करवाता है ! उसका रूप-स्वरूप कुछ भी हो सकता है, लेकिन वो रहता लोक के अंतर्गत ही है। आसान भाषा में कहूं तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "कला का एक मुखरित स्वरूप है लोक" !
लोक को किसी परिभाषा या माध्यम की जरूररत नहीं वो अपनी जरूरत के आधार पर स्वयं ही माध्यम का चयन कर लेता है ऐसा होना ही लोक की सही परिभाषा माना जा सकता है।
कहते है जिसे कही कुछ नहीं मिलता उसे लोक बहुत कुछ दे देता है ये संभव हो सकता है सिर्फ और सिर्फ लोक में। बहुत सारे शिक्षित व्यक्तित्व के धनि व्यक्तियों को लोक ने वाचस्पति की उपाधि दी है और निरक्षर और सरल (भोले व्यक्ति, लोक का असली माध्यम) व्यक्तित्वों को लोक ने खुद में डुबालिया कबीर, मीरा, मीर ग़ालिब न जाने कितने अनगिनत लोग लोक के माध्यम बन कर लोक की परिभाषा बन गए हैं।
मेरे बहुत ही निकट एक युवा साथी मास्टर गोपाल बिस्सा बीकानेर निवासी का जन्म 2 मई, 1984 बीकानेर में हुआ। सरल स्वभाव का अपने में मस्त और व्यस्त रहने वाला, जिसे आप आध्यात्मिक दृष्टि से कहे तो माया और मोह से विरक्त और लोक की परिभाषा में कहे तो लोक को ही धर्म मानने वाला जिसका चरित्र है।
निश्छल, सरल, सहयोग, संस्कृति का प्रहरी, लोक को धारण करने वाला लोक की पूजा करने वाला। मास्टर गोपाल बिस्सा राजस्थानी लोक संस्कृति में जी-जान से डूबे रहने वाला व्यक्तित्व। राजस्थानी लोक परिधान, आभूषण, लोक गीत, लोक के रीती रिवाज, लोक की मुलभुत सामाजिक क्रियाओं को समझने जानने वाला। लोक के तीज त्यौहार को अपनी लोक-धर्मिता के द्वारा निखारने और उसे उभारने वाला प्रतिबद्ध लोक कलाकार है मास्टर गोपाल बिस्सा।
बीकानेर लोक संस्कृति में किसी भी प्रकार की लोक क्रिया में गोपाल बिस्सा की उपस्थिति मात्र ही उस लोक क्रिया को पूर्णता दे देती है, अब चाहे राजस्थानी साफा, पगड़ी बांधना हो या किसी शादी विवाह में किसी दूल्हे को राजस्थानी बिंद (दूल्हा) बनाना हो, वर्तमान आधुनिक काल में परिधानों के फैशन शो में राजस्थानी रणबांकुरे की वेश-भूषा में रैंप पर उतरना हो या किसी राजस्थानी लोक गीत /गाने और उसके वीडयो में राजस्थानी लोक परिवेश को दर्शाना हो मास्टर गोपाल बिस्सा हमेशा तत्पर रहता है अपनी लोक-प्रतिबद्धता के साथ, सो उन्हें साधुवाद...!!!
आप को विदित हो की कलावृत्त कला पत्रिका के संस्थापक एवं संपादक मूर्तिकार, चित्रकार, कला शिक्षक एवं लोक कला से शोधार्थी स्वर्गीय डॉ. सुमहेन्द्र शर्मा जी भी राजस्थानी लोक संस्कृति और उसकी लोक कला के पक्षधर थे। आपने भी अपने सर पर प्रतीकात्मक रूप में लोक को अपने सरमाथे पर राजस्थानी पगड़ी (जयपुरी शैली वाली) को धारण किये रखा। कलावृत्त कला पत्रिका के टाइटल पेज पर आप उनकी छवि पगड़ी के साथ देख सकते है। प्रत्यक्ष को प्रमाण ही क्या।
मास्टर गोपाल बिस्सा बीकानेर से राजस्थान और फिर भारत के बाद विदेशों तक राजस्थानी लोक संस्कृति की छट्टा बिखेर चुके है। बीकानेर का ऊंट उत्सव, जैसलमेर का मरू महोत्सव, जोधपुर का काइट फेस्टिवल, पुष्कर का पशुमेला, उदयपुर का होली फेस्टिवल और जयपुर का गणगौर एवं तीज फेस्टिवल इन सब में गोपाल बिस्सा ने किसी न किसी रूप में लोक संस्कृति और उसके आयाम को प्रस्तुत किया है।
राजस्थान से बाहर भी भोपाल बिस्सा कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चन्नेई, उड़ीसा, कटक, पंजाब, हरियाणा, कश्मीर, उत्तराखंड आदि क्षेत्रों में भी राजस्थानी लोकधर्मिता को मुखरित किया है। कही राजस्थानी पगड़ी बांधकर, कही राजस्थानी परिवेश की पोषक का प्रदर्शन करते हुए, तो कही राजस्थानी लोकगीतों के माध्यम से।
मास्टर गोपाल बिस्सा को भारत से बाहर भी जाने का अवसर मिला अपनी लोक-प्रतिबद्धता के कारण। मास्टर गोपाल बिस्सा ने दुबई में राजस्थानी लोक संस्कृति की प्रस्तुति कई आयामों में वहाँ प्रस्तुत की और दुबई से भी सम्मान प्राप्त किया। ये लोक और उसके अंदर डूबे हुए को सम्मान था किसी अन्य देश की लोक संस्कृति के द्वारा मास्टर गोपाल बिस्सा को। ये कोई कम उपलब्धि तो नहीं की विश्व के सबसे अत्याधुनिक विकास क्रम पर चलने वाले देश दुबई ने एक लोक संस्कृति को धर्म मानने वाले भारत के एक छोटे से शहर बीकानेर के बासिंदे मास्टर गोपाल बिस्सा को दुबई बुलाया और लोक को धर्म मान कर जीने की इस विशेषता को देखते हुए सम्मानित भी किया और साथ में अपने देश के लोगो को ये सन्देश भी दिया की ऐसे भी जीवन जीया जा सकता है अपनी जड़ो और लोक को आत्मसात करते हुए इस समकालीन समय में अपनी दुबई में।
लोक सब कुछ देता है हिम्मत, प्रतिष्ठा, प्रेम, विश्वास, सम्पनता, समर्पण, प्रतिबद्धता और प्रसारण की कला भी। मास्टर गोपाल बिस्सा को ये सब मिल रहा है अपने लोकधर्म की निष्ठां से पूजा करते हुए। और मुझे विस्वास है की मास्टर गोपाल बिस्सा की लोकप्रतिबद्धता उनको लोक संस्कृति का एक प्रतिक और मानदंड भी एक दिन बना देगी। क्यों की जो लोक में डूबा उसे लोगो ने हमेशा पूजा है। और मास्टर गोपाल बिस्सा का तो लोक ही धर्म और लोक ही पूजा है !
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर, इंडिया







अति सुंदर एवम सराहनीय योगदान। प्रयास जारी रखिए, विषय शुभकामनाएं
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