कुंदन मीनाकारी के मास्टर शिल्पगुरु सरदार इंदरसिंह : राकेश जैन
मीनाकारी मध्य युगीन हस्तकला है जो फाइनीशिया से फारस तथा लाहौर होती हुई आमेर,जयपुर (ढूँढ़ाड़) आई। ढूँढ़ाड़ नरेश मानसिंह प्रथम ने लाहौर के सिक्खों को मीनाकारी का काम करते हुए देखा। लाहौर के सिक्खों ने यह कला फारस से आये मुगलों से सीखी थी। महाराजा मानसिंह कुछ मीनाकारों को आमेर ले आये। जयपुर की स्थापना के बाद सवाई जयसिंह इन्हें जयपुर ले आए जहाँ सोने-चांदी और ताम्बे पर मीनाकारी की जाती है। जयपुर में इनके पुरखों जड़ियाजी के नाम से जड़ियों का रास्ता बसाया गया। अनेक कलाकारों ने मीनाकारी के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जित किए हैं।
मीनाकार सरदार कुदरतसिंह को सन् 1988 में "पद्मश्री" से नवाजा गया था। सरदार कुदरत सिंह कुंदन मीनाकारी में पद्मश्री एवं नेशनल अवार्ड हासिल करने वाले पहले व्यक्ति थे। 16वीं सदी से जयपुर में राजपरिवार के संरक्षण में निरन्तर जीवित रखने तथा देश विदेश में देशी मीनाकारी कुन्दन ज्वैलरी सोने व चांदी के काम को पहचान दिलाने वाले शिल्पी इंदरसिंह कुदरत का जन्म ख्यातनाम मीनाकार सरदार कुदरतसिंह के घर श्रीमती त्रिलोचन देवी की कोख से 24 अगस्त, 1950 को पुश्तैनी घर जौहरी बाजार स्थित जड़ियों के रास्ते में हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा तेलीपाड़ा में बदरिया जोशी के यहां हुई। इसके बाद जौहरी बाजार में सांगानेरी गेट के पास स्थित सुबोध स्कूल से हायर सैकेण्डरी कक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने अग्रवाल कॉलेज से बी.कॉम की डिग्री हासिल की। 17 जुलाई, 1975 को इंदरसिंह कुदरत का विवाह जयपुर के शास्त्री नगर निवासी रिद्धकरण सोनी लक्ष्मणगढ़ वालों की सुपुत्री परमेश्वरी देवी से सम्पन्न हुआ। इनके परमेश्वरी देवी की कोख से दो बेटियां तृप्ता एवं रितु तथा दो बेटे हरमिंदर सिंह एवं मनमीत सिंह ने जन्म लिया। पुत्र हरमिंदर सिंह क्राफ्ट डिजायनर एवं मीनाकारी में नेशनल अवार्डी एवं छोटा पुत्र मनमीत सिंह सिटी पैलेस, जयपुर स्थित महाराजा सवाई भवानीसिंह आर्ट गैलरी में मीनाकारी का लाइव डेमो करते हैं। मनमीत सिंह भी मीनाकारी में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कलाकार है। लाहौर (अब पाकिस्तान) से आमेर में बसाए गए शिल्पियों के परिवारों में कुछ ऐसी विशेषता रही कि आज तक इस शिल्प घराने ने सोने और चांदी में कुंदन की मीनाकारी के क्षेत्र में अपना नाम सदा शीर्ष पर बनाएं रखा। पद्मश्री सरदार कुदरतसिंह के पुत्र इंदरसिंह पूरी निष्ठा से अपने पुरखों के काम में लगे हैं। आज इस दिशा में नई पीढ़ी सामान्य आदमी की पहुंच के लिए भी मीनाकारी को नए व्यवसाय की चुनौतियों में ढालने में लगी है। इंदर सिंह कुदरत का इस कला के प्रति बचपन से ही रूझान रहा, ' अपनी प्रारम्भिक, शिक्षा, दिक्षा के साथ खाली समय में 15 वर्ष की उम्र से ही अपने पिता सरदार कुदरत सिंह से सीखना प्रारम्भ कर दिया। इस अल्पायु में ही इस कला के प्रति रूझान होने का मुख्य कारण अपने पिता को इस कार्य को करते देख, उसमें हाथ बंटाना, पिता को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होने, से दिल व दिमाग में यह धारणा बनी कि मुझे भी अपनी इस वंश परम्परागत शिल्प को सीख कर कुछ नया कर दिखाना है - उसी का फल है कि आज इनको इस कला के क्षेत्र में एक सिद्धहस्त शिल्पकार के रूप में जाना जाता है। इसके लिए इनको राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मंचों से पुरस्कृत किया गया। इनके द्वारा आज भी जयपुर राज परिवार के संरक्षण में सिटी पैलेस म्यूजियम में स्थित फ्रैंडस ऑफ दी म्यूजियम “महाराजा सवाई भवानी सिंह आर्ट गैलरी” में अपनी कला का देश-विदेश के आने वाले पर्यटकों के लिए प्रदर्शन कर अपनी कला के माध्यम से ये एक विशिष्ट कलाकार के रूप में आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। इन्हें यहां अपनी कला के प्रदर्शन और विक्रय की सुविधा है। इससे शिल्प प्रेमी व कद्रदानों से सीधा सम्पर्क होता है। इनके द्वारा बनाई गई मीनाकारी कुन्दन कला के कार्य से बनी हुई कलाकृतियाँ, भारत आने वाले विशिष्ट अतिथियों को अनेको अवसरों पर उपहार में दी गई है। इस तरह इंदर सिंह कुदरत के द्वारा निर्मित कलाकृतियाँ, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय एवं व्यक्तिगत संग्रहालयों में प्रदर्शित की गई है। समय की मांग के अनुसार सरदार इंदरसिंह कुदरत ने कुंदन और चांदी में मीनाकारी के नई डिजाइन के आभूषण और अन्य आइटम भी तैयार किए हैं। जयपुर स्थापना के 250 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में सन् 1977 में आयोजित जयपुर-अढाई शताब्दी समारोह में निकले जुलूस में "आभूषण" नाम की विशिष्ट झांकी में इंदरसिंह कुदरत ने अपने दादा रावलसिंह, पिता कुदरतसिंह एवं अपनी कला क्षेत्र के अन्य शिल्पकारों के साथ अपनी वंश परम्परागत ड्रेस में मीनाकारी कला का जीवित प्रदर्शन किया और महोत्सव के दौरान निकाली गई झांकियों में पहला स्थान प्राप्त किया । विरासत टेलीफिल्स दूरदर्शन केन्द्र जयपुर ने इस विश्वविख्यात कला देशी मीनाकारी कुन्दन कला पर विरासत टेलीफिल्स का निर्माण कर 1989 में इसका प्रसारण कर इंदर सिंह कुदरत व इनके पूर्वजों द्वारा 16वीं सदी से जयपुर में अब तक के विशिष्ट योगदान द्वारा विश्व के पटल पर इस कला की जयपुर कुन्दन ज्वैलरी के नाम से एक अलग पहचान बनाने के लिये विस्तार से फिल्माया गया हैं इस फिल्म में इंदर सिंह कुदरत व इनके पिता “पद्मश्री” कुदरत सिंह के इस कला को जीवित प्रदर्शन करते हुये दिखाया गया है। इन्होंने अनेक विशिष्ट एवं अतिविशिष्ट हस्तियों को मीनाकारी की अपनी कलाकृतियां भेंट की। इन्होंने भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह, शंकर दयाल शर्मा, आर.वैंकटरमण, एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल एवं प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, पी.वी. नृसिम्हा राव, राजीव गांधी तथा उपराष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्ला, भैंरोसिंह शेखावत के अलावा भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यात्री राकेश शर्मा, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी व जयपुर के वर्तमान महाराजा पद्मनाभसिंह के राजतिलक पर अपनी शिल्प कला की कलाकृति नजर की। इन्होंने मलेशिया के राष्ट्रपति की 2007 में भारत यात्रा के दौरान जयपुर आगमन पर देशी मीनाकारी कुन्दन की कलाकृति भेंट की । इसी तरह पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के भारत यात्रा के दौरान जयपुर आगमन पर मीनाकारी कला का प्रदर्शन किया जिससे अत्यधिक प्रभावित हो उन्होंने इनसे ज्वैलरी खरीदी। इंदरसिंह कुदरत ने उन्हें भी कुन्दन मीना की कलाकृति भेंट की। इन्होंने अपनी वंश परम्परागत कला मीनाकारी - कुन्दन ज्वैलरी सोने व चाँदी पर अनेको गणमान्य हस्तियों के समक्ष जीवित प्रदर्शन के दौरान प्रसिद्धी प्राप्त की तथा कलाप्रेमियों के मन को छूने में सफलता प्राप्त करने का अवसर प्राप्त किया। 71 वर्षीय सरदार इंदरसिंह कुदरत देश विदेश में अनेक स्थानों पर मीनाकारी आभूषण व अन्य वस्तुएं प्रदर्शित कर चुके हैं। अपने देश की बात करें तो दिल्ली की राष्ट्रीय क्राफ्ट प्रदर्शनी, मुम्बई की क्राफ्ट काउंसिल ऑफ इंडिया, मुम्बई की ही शिल्पी संस्थान, तमिलनाडु हस्त शिल्प डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन, असम की हस्तशिल्प प्रदर्शनी, गुजरात सरकार हस्तशिल्प प्रदर्शनी, जयपुर के जवाहर कला केन्द्र और सुरजकुंड क्राफ्ट प्रदर्शनी मुख्य हैं। विदेशों में भारत महोत्सव अमरीका, कोइन, इटली, रोमानिया, मिलान इंटरनेशनल फेयर, ब्राजील इंटरनेशनल हैंडीक्राफ्ट गिफ्ट फेयर मुख्य हैं। इंदरसिंह कुदरत ने एश्वर्या और अभिषेक बच्चन की शादी की ज्वैलरी तैयार की। प्रिंस चार्ल्स की डायना से पहली शादी में इंदरसिंह कुदरत के पिता कुदरतसिंह ने ज्वैलरी तैयार की वहीं इन्होंने प्रिंस चार्ल्स की कोमीला से हुई दूसरी शादी की ज्वैलरी बनाई। इंदरसिंह कुदरत युवा रत्न, राजस्थान श्री, राजस्थान सरकार राज्य पुरस्कार, महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय म्यूजियम ट्रस्ट जैपर सम्मान, नेशनल अवार्ड, माणिकचंद अवार्ड, इन्दिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड, राष्ट्रीय उद्योग सम्मान, भारत गौरव अवार्ड सहित देश एवं विदेश के पच्चीस सम्मानों से नवाजे गए हैं। इंदरसिंह कुदरत ने मुम्बई, अहमदाबाद, दिल्ली, नोएडा, रूड़की, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, बनारस व जयपुर के फैशन डिजाइन के विद्यार्थियों को अनेकों अवसर पर इस कला को सिखाया है। इसके अलावा ये यू.एस.ए., जापान, कोरिया, चाइना, हॉंगकाँग अनेक देशों की क्राफ्ट इन्स्टीट्यूटों में कुदरत मीनाकारी कुन्दन कार्य का प्रशिक्षण दे चुके हैं।
स्वतंत्र लेखक एवं समीक्षक
जयपुर।
V nice
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteAwesome 👍
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteCongratulations
ReplyDeleteThankyou very much 👍
Deleteधन्यवाद
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteAmazing talent, congratulations 💐
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteBahtreen sir, congratulations sir, Hi
ReplyDeleteMy name is Shadab Ahmed from Jaipur ( Raj.)
I am he descendent of the 9th generation of Lakhera (manihar) community. We basically hails from Iran when before the conception of Jaipur. Our ancestors who live in Isfahan came to Amber on the recommendtions of Maharaja Sawai Jai Singh is come to settle and practise our art in Jaipur.
My grandfather and my father Late Mr. Haji Ikram Ahmed Khan has been well recognised and became reknowned. He recieved numerous Awards and accolades showered on him from around the world.
I am the 9th generation of this ancient clan who stills practices this great Lac art. It's indeed an honour under our great Prime Minister Mr. Narendra Kumar Modi ji that he has patronised art and loves artistes..
I learnt this great ancient lac art at a very tender age of 10 years while also devoting to my studies. It been almost 30 years that i am doing and practising this art. I also have recieved awards and participated in various government and non-gov. fairs, exhibition organised by the gov. of India, ministry of textiles, DCH, MSME and ministry of minority affairs of india. My work blessings from the diginatories all around the world. This ancient Lac art which dates to the time of Mahabharata is a symbol of Indian culture and tradition. Articles of lac made by me includes chandlier, royal taanpura, mirror frames etc. I have also experimented lac with real gold and successfully created masterpieces of wonders of the world with gold inlay work on 4" broad lac bangles. Now I got India book of record's holder and asia award winner 2021. I have trained girls and womens from Britain, France, Sri Lanka and Nepal and recently I am training 650 girls of Hyderabad in lac art. Right now I'm making the exact replica of Ram Mandir and I will present to our Prime minister Sri Narendra Kumar Modi ji and I will request to establish this Ram Mandir in Ayodhya. I want to published my article in your kalavritt blog.please help me.
7014010662
ddsdiamond@gmail.com
Superbb
ReplyDeleteThankyou very much 👍
Deleteशानदार
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteCongratulations
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteCongregation
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteWow so beautiful. world class craft 🇮🇳🌹🇮🇳
ReplyDeleteThankyou very much 👍
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