त्रिलोक चंद मांडण की "काष्ठ कला" में कालीबंगा की सोंधी महक : योगेन्द्र कुमार पुरोहित
पिछले दिनों नववर्ष '2023' के प्रथम माह में आयोजित समकालीन चित्रकार शिविर नोहर, जिला हनुमानगढ़ जाना मेरे लिए बहुत ही लाभप्रद रहा। सिंधुघाटी की उस माटी से जुड़ने और वहाँ के कलात्मक वातावरण में मानव जीवन को विकसित और परिष्कृत होते देखना मेरे लिए विशेष सुखद अनुभूति ही रही। मैंने पाया की वहाँ लगभग सभी व्यक्ति, बच्चे, महिलायें किसी ना किसी रूप में कला से सीधे जुड़े हुए है। अब उसे हम लोक कला कहें या परंपरागत कला या फिर आधुनिक कला इन सब का अंतर भाव एक ही है। "अभिव्यक्ति अपने अंतर मन और मनन की" जो वहाँ के जन जीवन की एक सामान्य और प्रतिदिन की अतिआवश्यक क्रिया है।
मैंने वहाँ जिनसे भी बात की तो पाया की वे सब किसी न किसी कला में त्रिलोक चंद मांडण की "काष्ठ कला" में कालीबंगा की सोंधी महक : योगेन्द्र कुमार पुरोहित त्रिलोक चंद मांडण की "काष्ठ कला" में कालीबंगा की सोंधी महक : योगेन्द्र कुमार पुरोहित दक्ष है। अब वो चाहे कृषि कला, भवन निर्माण कला हो, चित्रकला, मूर्तिकला या फिर काष्ठ कला ! (ये सब सिंधुघाटी सभ्यता के प्रमुख आधार है प्रमाण हेतु ऐतिहासिक दृष्टि से) यहाँ मैं ये जिक्र इसलिए भी कर रहा हूँ क्योंकि ये आलेख मैं एक काष्ठ कलाकार "मूर्तिकार" को केंद्र में रखकर उल्लेखित कर रहा हूँ और वो कलाकार कालीबंगा सभ्यता के क्षेत्र से आते है।
आप को विदित हो की कलावृत्त संस्था द्वारा 1975 से ही "कलावृत्त कला पत्रिका" का भी प्रकाशन किया जाता रहा है। जिसे राजस्थान के प्रख्यात चित्रकार, मूर्तिकार एवं कला शिक्षक डॉ. सुमहेन्द्र शर्मा जी द्वारा 1970 में स्थापित किया गया था। इसके पीछे उनका उद्देश्य कला एवं सांस्कृतिक मूल्यों को जानने वाले कलाकारों को समर्पित किया है, और उनके लिये यह एक विश्वसनीय आधार है अपने सांस्कृतिक सृजन को लेखनी के जरिये "कलावृत्त" के माध्यम से समाज एवं कला जगत के समक्ष रखने का। सो यह आलेख मैं समर्पित कर रहा हूँ अपने कलागुरू डॉ. सुमहेन्द्र शर्मा जी को। साथ ही हृदय से आभार ज्ञापित करता हूँ कलावृत्त के वर्तमान संपादक सर संदीप सुमहेन्द्र शर्मा जी को भी जो उनके सुपुत्र है और अपने पिता की सोच का अनुसरण करते हुए इस संस्था को गतिमान बनाएं रखने के लिए निरंतर प्रयासरत है।
चित्रकार शिविर नोहर 2023 जिला हनुमानगढ़ में तीन दिन कला कर्म करते हुए कुछ पल सर्दी की सुहानी धुप का लुत्फ़ लेने के भी मिले। मैं जांगिड़ सुथार समाज भवन की छत पर गया साथ में वहाँ के कुछ युवा कलाकार भी मेरे साथ थे। हम कला चर्चा कर रहे थे। तभी एक लम्बे से साधारण व्यक्तित्व वाले व्यक्ति जिनकी बॉडी लैंग्वेज एक दक्ष कलाकार सी मुझे प्रतीत हुई वे आये। उन्होंने चित्रकार शिविर का गहनता से अवलोकन किया साथ ही आयोजकों और वरिष्ठ कलाकारों के साथ बातचीत भी की विस्तृत रूप से।
सामन्य रूप से मैंने भी उन्हें आदर सहित सम्बोधन किया उन्होंने मौन रूप से उसे स्वीकारा एक वरिष्ठ कलाकार के रूप में सौम्य मुस्कान देते हुए, कुछ पलों की ही वो मुलाकात थी/ छणिक भेंट।
बाद में ज्ञात हुआ की आप वरिष्ठ काष्ठ कला के बहुत सिद्धहस्त मूर्तिकार श्री त्रिलोक चंद मांडण जी है। काष्ठ कला का नाम सुनते ही मेरे भीतर एक जिज्ञासा जाग्रत हुई की वे किस प्रकार की काष्ठ कला करते है? क्या वे कालीबंगा और सिंधुघाटी सभ्यता से प्रभावित है? ऐसे कई प्रश्न मेरे भीतर उठने लगे। खैर यह समकालीन चित्रकार शिविर सम्पन हुआ और मैं अपने घर आ गया। ऑनलाइन नेटवर्क फेसबुक पर कला चिंतक एवं फोटोग्राफर श्री महेश स्वामी जी, जयपुर की एक पोस्ट में श्री त्रिलोक चंद मांडण जी नोहर का फोटो और उनका काष्ठ कला का काम के साथ वाला पोस्ट देखा। तो मैंने श्री त्रिलोक चंद मांडण जी से फेसबुक पर संपर्क साधा। आप ने मुझे फेसबुक पर जोड़ा एक कलाकार मित्र के रूप में। फिर आप ने मुझे फ़ोन किया और हमने लगभग एक घंटे तक बात की, इस विषय पर की कला मनोरंजन की नहीं आत्मरंजन की वस्तु है। उस लम्बी बात के दौरान ही ज्ञात हुआ की त्रिलोक जी ने किसी कला शिक्षण संस्था से कोई विधिवत कला शिक्षा नहीं ली है वे स्वभू कलाकार है, विश्वकर्मा पुत्र होना शायद इसे ही कहते है।
मुझे फेसबुक और उनके द्वारा भेजे गए छाया चित्रों से ज्ञात हुआ की उनका काम कितना अकादमिक है बिना किसी अकादमिक शिक्षण के बाद भी। फिर सोचा जिसने कला की जन्मदात्री कालीबंगा माटी में जन्म लिया है उसे कोई अकादमी क्या अकादमिक कला सीखा पाएगी? जरूरत ही क्या है किसी अकादमिक प्रमाण पत्र की। उस कलाकार का कालीबंगा की माटी में पैदा होना ही अपने आप में उसका अकादमिक होने का प्रमाण है अब इसे कोई स्वीकारे या न स्वीकारे पर सत्यता यही है। मैंने इसे महसूस किया है सो यहाँ लिख भी रहा हूँ।
श्री त्रिलोक चंद मांडण जी का जन्म 1 जनवरी 1968 में हुआ, आप की शिक्षा मिडिल तक ही हुई है। पर नोहर जिला हनुमानगढ़ से आप ने कला के मानदंडों को स्वीकारते हुए इस लुप्त होती काष्ठ कला को विश्व कला फलक पर एक अलग पहचान दिलाई है, जिसके लिए आप साधुवाद के पात्र है।
आप की कला अभिव्यक्ति में माध्यम काष्ठ रही है। आप ने काष्ठ में व्यक्तिचित्र म्यूरल या रिलीफ फॉर्म में रचे है जिनकी संख्या अनगिनत है। हाल ही में आप ने माननीय मुख्यमंत्री राजस्थान श्री अशोक गहलोत जी को उनके पिताजी का व्यक्ति चित्र काष्ठ कला में रिलीफ पोर्ट्रेट भेंट किया है। आप काष्ठ कला में, दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाले बरतन भी बनाते है जो की कालीबंगा की एक विशेष पहचान रही थी। आप ने नारी सौन्दर्य के लिए काष्ठ के आभूषण (कोरनि से हस्त कला) भी बनाये है, तो संस्कृत लिपि को भी काष्ठ पर उभारा है वो भी भारतीय योगदर्शन के समाधी के बावन सूत्रों को। ये आप की काष्ठ कला आप के सिंधुघाटी सभ्यता से सीधे सम्बन्ध होने के प्रमाणों मे एक प्रमुख प्रमाण है जो ईश्वरीय आशीर्वाद से आप में जन्मजात समाहित है।
आज काष्ठ कला लुप्त होती जा रही है कुछ गिने चुने कलाकार ही प्रतिबद्ध होकर काष्ठ कला को जीवित रखे हुए है और इस काष्ठ कला को जीवन देते हुए श्री त्रिलोक चंद मांडण अपनी माटी की खुशबु / कालीबंगा सभ्यता की खुशबु अपनी काष्ठ कला से बिखेर रहे है। वे वर्तमान को अपनी अतीत की जड़ो से पुनः रूबरू करवा रहे है। वे समर्पित है अपनी माटी और अपनी माटी की कला के लिए। जिसे उन्होंने जीवित रखा है अपनी काष्ठ कला के कलात्मक सृजन से। संस्कृति और सृजन के लिए समर्पित हो जाना ही सच्चा कलाकार होना है और ये बात पूर्ण होती प्रतीत होती है श्री त्रिलोक चंद मांडण जी की काष्ठ कला में।
आप की कला साधना आप को आपके लक्ष्य की प्राप्ति करवाए, इस कामना के साथ पुनः आप को साधुवाद।
मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट
बीकानेर, इंडिया
Beautifully write dost
ReplyDeleteआलेख की प्रसंशा के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏
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