76 महिला चित्रकारों ने राजस्थान के किले, महल और हवेलियों को चित्रित किया - तृतीय भाग : संदीप सुमहेन्द्र
राज्य की कला संस्था विनीता आर्ट्स एवं आर्ट ट्यून के संयुक्त तत्वावधान में "विश्व धरोहर दिवस" के अवसर पर देशभर की महिला चित्रकारों द्वारा चित्रित पेंटिंग्स की प्रदर्शनी आयोजित की गई जिसे नाम दिया गया "वीमन आर्ट ऑरा-6"
जवाहर कला केन्द्र की सुकृति कला दीर्घा में 13 अप्रैल, 2024 को आरंभ हुई और 14 अप्रैल को संपन्न हुई। प्रदर्शनी का विधिवत उद्घाटन हिमांशु गौतम, प्रधान सेवक, त्रिनेत्र गणेश मंदिर, रणथंभोर द्वारा किया गया। साथ ही कुछ महिला चित्रकारों ने द्वारा लाइव पेंटिंग और म्यूजिक द्वारा आगंतुओं एवं कला प्रेमियों को देर तक प्रदर्शनी में बांधे रखा। इस विशेष परफॉर्मेंस में गीतांजलि कोठरी, विक्रम सिंह शेखावत, लक्ष्मी गजराज, पूजा भार्गव, हर्षा गुप्ता एवं पूजा भारद्वाज, संजय सिंह की खूब सराहना हुई।
प्रदर्शनी की आयोजक एवं संचालिका विनीता प्रजापति ने बताया कि राजस्थान की धरोहरों की खूबसूरती को दिखाने के साथ इन्हें संरक्षित करने के उद्देश्य से इस प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है, इसमें चित्रकारों ने पेंटिंग, स्कल्पचर, फोटोग्राफ्स और इंस्टालेशन को प्रदर्शित किया साथ ही कुछ चित्रकारों ने लाइव पेंटिंग का डेमो भी दिया।
मैं चित्रकारों से उनकी चित्रण तकनीक एवं विचारों को जानने और समझते हुए अपना लेख लिख रहा था, मुझे किसी और कार्य में समय देना पड़ा तो अब कुछ चित्रकारों से फोन द्वारा जानकारी लेकर अपना यह लेख पूरा कर रहा हूं। इस प्रदर्शनी की समीक्षा का तृतीय भाग लिखते हुए सर्वप्रथम मेरी बात हुई उदयपुर की युवा चित्रकार सिमरन बिड़ला से।
सिमरन ने अपने चित्रों के बारे में बताते हुए कहा कि मेरी पहली पेंटिंग में मैंने उदयपुर के सिटी पैलेस की एक खिड़की को नीले मिट्टी के बर्तनों जैसी डिज़ाइन के साथ चित्रित किया, क्योंकि मुझे यह मनोरम लगता है। मुझे नीली मिट्टी के बर्तनों के डिज़ाइन का करना व्यक्तिगत रूप से बेहद पसंद है। साथ ही दूसरी चित्र में मैंने बागोर की हवेली के संग्रहालय के तत्वों को शामिल किया, यह ऐसी जगह जहां मैं हाल ही में गई थी। और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र से जुड़े होने के बावजूद, इससे जुड़ाव महसूस करती हूं। संग्रहालय राजपरिवार द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न विरासत कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है, जैसे एक चांदी का हैंडफैन, सुनहरा हुक्का, चांदी के तीर और दुनिया की सबसे बड़ी पगड़ी जो संग्रहालय में प्रदर्शित है। मैंने अपनी चित्रण में कठपुतलियों को चित्रित किया क्योंकि वे राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक हैं, जहां कठपुतली का गहरा सांस्कृतिक महत्व है और यह क्षेत्र की परंपराओं और कहानी कहने/बताने का अभिन्न अंग है। कठपुतलियों का चित्रण करने से मेरा उद्देश्य राजस्थान की जीवंत सांस्कृतिक पहचान को आज की युवा पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत करना है, ताकि वें भी अपनी विरासत से जुड़े और उसका सम्मान करते हुए उसके संरक्षण के महत्व को समझें।
फिर मेरी बात हुई जयपुर की चित्रकार शोभा विजयवर्गीय से, उन्होंने बताया कि "मैं समझती हूं, राजस्थान के गौरवशाली इतिहास से परिचित होना हो तो यहां की आकर्षक और अदभुद वास्तुकला सबसे अच्छा प्रमाण है।" विनीता आर्ट्स के माध्यम से मुझे धरोहर दिवस पर यह सुंदर अवसर मिला। मैंने राजस्थान के उत्कृष्ट महलों को जलरंगों के माध्यम से चित्रित किया है। मेरी पहली कलाकृति जलमहल की है जो 18वी शताब्दी में राजा जयसिंह द्वितीय ने मानसागर के मध्य में बनवाया था यह महल अरावली की पहाड़ियों के मध्य है जो सघन हरियाली से इसकी खुबसूरती को और भी बढ़ाता है। दुसरी तस्वीर गलता जी की है जो जयपुर शहर में स्थित है। गालव ऋषि ने अपने तपोबल से गंगा की जलधारा को जयपुर में लाएं। दोनों कलाकृति को मैंने राजस्थान की परंपरागत लघु चित्रण तकनीक में जलरंगों से चित्रित किया है।
फिर मेरी बात हुई चित्रकार सुरभि सिंह से। सुरभि ने बताया कि "कला सबसे श्रेष्ठ माध्यम है अपने भावों को व्यक्त करने का" मुझे अधिकतर वॉटर व ऑयल कलर में काम करना पसंद है, कभी मन होता है तो दूसरे माध्यमों में भी कुछ प्रयोग करती रहती हूं।
मैंने अपने पहले चित्र में हवा महल का एक झरोखे को चित्रित किया है दिन और रात में झरोखों के रंगों में परिवर्तन होता है।बाहर से देखने पर हवा महल मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है, जिसमें 953 बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं। इन खिडकियों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना यही रही होगी की बिना किसी की नजर पड़े "पर्दा प्रथा" का सख्ती से पालन किया जाएं। राजघराने की महिलायें इन खिडकियों से महल के नीचे सडकों पर हो समारोह व गलियारों में होने वाली रोजमर्रा की गतिविधियों को देख सके। सुबह-सुबह सूर्य की सुनहरी रोशनी में इसे दमकते हुए देखना एक अनूठा एहसास देता है। दूसरे चित्र में मैंने आमेर क़िले की एक दीवार का चित्रण किया है जहां की छतरियों से पूरे क़िले की तथा शहर की निगरानी की जाती थी।
अगली चित्रकार है मीना जैन। अपने चित्र के बारे में बताते हुए मीना कहती है कि "मैंने अपनी पेंटिंग में राजस्थान के ऐतिहासिक धरोहर में हवा महल एवं उदयपुर में स्तिथ लेक पैलेस का चित्रण किया है। हवा महल एक अदभुद और अनूठा शिल्प है, इस महल में रंगीन शीशे लगे हैं, सूरज की रोशनी जब इन शीशों से होकर हवा महल के कमरों में प्रवेश करती है तो पूरा दृश्य इंद्रधनुषी आभा से भर जाता है। इस इंद्रधनुषी आभा को मैंने अपनी पेंटिंग में दर्शाने का प्रयास किया है।
दूसरी पेंटिंग में उदयपुर में स्थित लेक पैलेस के एक झरोखे को दर्शाया है। इसमें लगाए गए रंगीन कांच व ब्लू आकृतियां इसकी विशेष पहचान है। उसको मैंने अपने कैनवास पर उतारने का प्रयास किया है, पैलेस का यह डिजाइन उस काल खण्ड की राजपूताना शान और शैली को दर्शाता है। अपनी दोनो चित्रों में एक्रेलिक रंगों का उपयोग किया है। इस वृहद प्रदर्शनी में अपनी कला को प्रदर्शित करने का अवसर देने के लिए मैं विनीता जी का आभार एवं धन्यवाद करती हूं, और आशा करती हूं कि आगे के आयोजनों में भी मुझे मौका मिलता रहेगा।
आगे मेरी चर्चा हुई बीकानेर की चित्रकार फराह मुग़ल से। फराह ने 2014 में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स से विजुअल आर्ट्स में ग्राफिक डिजाइन और उसके पश्चात 2023 में महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय से ड्रॉइंग एंड पेंटिंग में मास्टर्स किया है। फराह ने बताया कि में 2010 से कला क्षेत्र में कार्यरत हूं।
मैंने करणी माता तथा गणेश जी का चित्र बनाया है, जो मिक्स मीडिया के साथ पेपर पर चित्रित किया है। विभिन्न पेन और एक्रेलिक कलर्स के साथ गोल्डन फॉयल का इस्तेमाल अपने चित्रों में करती हूं। जिसकी एक विशेष तकनीक होती है। मुझे उस्ता आर्ट में भी महारत हासिल है। साथ ही मैं अरबी और उर्दू कैलीग्राफी भी करती हूं। मैं हमेशा हमारी धरोहर को संरक्षित रखने में विश्वास रखती हूं। करणी माता के चित्र में मैंने बीकानेर के किले के साथ बनाया है जिसके अंदर गोल्डन फॉयल कार्य उस्ता कला को दर्शाती है तथा मां करणी जो विश्व प्रसिद्ध देवी मां है। उनको चित्रित करने पर में उसमें चार चांद नजर आने लगे हैं। चूहे मां करणी के घर में रहते हैं जहां सफेद चूहा देखना हर आम लोगों की बड़ी कामना रहती है। मैंने अपने चित्र में उसको बनाकर आम लोगों तक धरोहर के प्रति जागरूकता रखने के लिए आतुर भी किया है और उन्हें इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास करवाने का प्रयास किया है।
मेरी दूसरी कलाकृति गणेश की है। जिसमें आमेर फोर्ट के साथ में गणेश जी को बनाया गया है तथा गोल्डन फॉयल को भी यूज किया है। इस कलाकृति को बनाने का मकसद आमेर किले के अंदर बने गणेश जी को दर्शाने तथा उस धरोहर के प्रति लोगों में जागरूकता लाना था।
फिर मेरी बात हुई निशा कुमारी से। निशा ने बताया कि मैं धागे से अपने चित्र बनती हूं, इस प्रदर्शनी में मैंने जल महल और आमेर किले को अपनी स्वयं विकसित विधा में चित्रित किया है। मैं आत्मशिक्षित कढ़ाई चित्रकार हूं सुई और धागे को तूलिका की तरह इस्तेमाल कर अपने जटिल चित्रों को बुनती हूँ जो इतिहास और संस्कृति का जश्न मनाते हैं। मैं कपड़े के टुकड़े पर कढ़ाई के टांके और कभी-कभी आवश्यकतानुसार रंगों के स्पर्श का एक जीवंत सी अभिव्यक्तपूर्ण चित्र अपना रूप लिए होता हैं।
इस प्रदर्शनी में मेरी एक कृति में राजसी जल महल का चित्रण किया है। मैंने अनगिनत टांके और धागों के साथ इसके वास्तुशिल्प विवरण और शांतिपूर्ण आभा को कैद किया है। दूसरा चित्र आमेर किला है जिस पर मुझे गर्व है। कढ़ाई के धागे और विभिन्न कपड़ों का उपयोग करके, मैंने इसकी भव्यता और इसे सजाने वाले अविश्वसनीय डिजाइन को दर्शाने का प्रयास किया है।
इसके पश्चात मेरी बात हुई कविता और निहारिका से, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ये दोनों बहनें है जहां कविता रंगों से कैनवास, पेपर या कपड़े पर अपने सृजन को रूप देती है वहीं निहारिका कैमरे में कुछ खास तकनीक और कम्पोजिशन में कैद करती है।
कविता राठौड़ ने बताया कि चित्रकला में हमेशा कुछ नया करने और सीखने की इच्छा मुझे नए-नए प्रयोग करने को प्रोत्साहित करती रहती है। इस प्रदर्शनी के लिए मैंने जयपुर के जल महल और जोधपुर के उमेद भवन पैलेस का चित्रण किया है, जो जलरंगों से चित्रित किए गए है। मैं चित्रों में हमारी धरोहर को जीवंत रूप दिखने का प्रयास करती हूं। मेरे चित्रों का प्रमुख माध्यम जल रंग ही होते है क्योंकि जलरंग जल्दी सुख जाते है तो चित्र को पूर्ण करने में समय की बचत होती है। प्रयोगात्मक चित्रण के लिए मैं अन्य माध्यमों में भी कार्य करती रहती हूं। लेकिन जल रंग मुझे सबसे प्रिय है। कविता के लिए, प्रत्येक चित्र और प्रत्येक रंग चित्रकला के सौंदर्य को उभारने का एक सशक्त माध्यम और साधना है।
निहारिका राठौड़ छाया चित्रों की विशेषज्ञ है। बात करते हुए उन्होंने बताया कि मैं विरासत से जुड़ी इमारतों की फोटोग्राफी में अत्यधिक रुचि रखती हूं। फोटोग्राफी मेरे दिल-दिमाग से जुड़ी हुई है। हमारी विरासत को अपने कैमरे से जीवंत करने को मैं निरंतर प्रयासरत रहती हूं। जैसे कि मेरे द्वारा ली गई रामबाग पैलेस और उदयपुर के महल की फोटोग्राफ्स, जिनमें मैंने फोटो की गुणवत्ता के लिए एंगल, छाया व प्रकाश का बहुत सुंदरता से उपयोग करते हुए वो दृश्य अपने कैमरे में कैद किए है। जब कभी भी मन करता है मैं हाथ कैमरा ले अपनी धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास करती हूं। अपने इसी प्रयास में निहारिका उच्च स्तर की विरासती संरचनाओं की प्रत्येक विविधता को कैप्चर करना बखूबी जानती है।
एरिना सिंह से चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि इस प्रदर्शनी के लिए "सौन्दर्य एवं संस्कृति दोनों ही दृष्टियों से डीग महल का तैलचित्र बनाना एक मनोरम प्रयास मैंने किया है"
सौंदर्य परिप्रेक्ष्य के लिए, मैं जटिल वास्तुशिल्प विवरणों पर ध्यान केंद्रित करती हूं, राजसी अग्रभागों, अलंकृत मेहराबों और नाजुक नक्काशी को सावधानीपूर्वक पकड़ने के लिए तेल रंगों का उपयोग करती हूं। एक समृद्ध रंग पैलेट भव्यता की भावना पैदा करता है, जिसके स्वरों से महलों की शाही उपस्थिति को उजागर किया जाता हैं। हरे-भरे बगीचों और शांत पानी की विशेषताओं को जीवंत रंगों और सूक्ष्म ब्रशवर्क के साथ चित्रित करना और आसपास की प्राकृतिक सुंदरता और शांति पर जोर देता है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, मैं पेंटिंग में राजस्थान की विरासत के तत्वों को शामिल करती हूं, पारंपरिक रूपांकनों और सजावटी पैटर्न को वास्तुशिल्प सुविधाओं में सहजता से जोड़ती हूं। लोक नृत्यों, संगीत प्रदर्शनों या उत्सव समारोहों जैसी सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल आकृतियाँ महल और खुले मैदानों को आबाद करती हैं, जिससे दृश्य में गहराई और जीवंतता जुड़ जाती है। प्रत्येक ब्रशस्ट्रोक का उद्देश्य राजस्थान की जीवंत सांस्कृतिक टेपेस्ट्री, इसकी परंपराओं और विरासत का जश्न मनाना है।
इसके बाद मेरी चर्चा हुई चित्रकार मीनाक्षी खींची से मीनाक्षी ने बताया कि मैंने भी अपने चित्र में राजस्थानी के किले महलों की वैभवता को चित्रित कर इनके संरक्षण किए जाने के महत्व को रेखांकित करने का प्रयास किया है। मैंने अपने पहले चित्र में बीकानेर की रामपुरिया हवेली के साथ रेगिस्तान का जहाज को उपाधि से अलंकृत ऊंट को चित्रित किया है। दूसरे चित्र में भी बीकानेर का महल ही बनाया है, जो हमारी कला एवं संस्कृति को दर्शाता है, साथ ही इस चित्र में राजस्थान का प्रसिद्ध घूमर नृत्य करती नृत्यांगनाओं को भी चित्रित कर रंगीले राजस्थान की परम्पराओं को लोगों के सम्मुख रखने की कोशिश की है।
अगली चर्चा हुई चित्रकार शीला पुरोहित से, शीला अत्यंत भावुक है, वें अधिकतर अपने चित्रण में पारिवारिक पृष्ठ भूमि को अधिक महत्व देती है। चर्चा करते हुए शीला ने बताया कि कुछ दिन पूर्व की उनके पिता के जाने का दुःख और उसी के साथ उनसे हुई अंतिम बात। "इस अंतिम वार्तालाप में उनके पापा के जाने की पूर्व संध्या पर उनसे हर दिन की तरह फोन पर जो चर्चा हुई थी उसमें पापा ने मुझे बताया था कि उन्हें सपने में दो हाथी दिखे हैं और मैं इस प्रदर्शनी के लिए हाथी ही बनाऊं" उनका इस तरह से दुनिया से चले जाना मेरे लिए बहुत दुखद घटना है ! हिंदू शास्त्रों के अनुसार 12 दिन तक पुण्य आत्मा परिजनों के साथ ही रहती है! 13 अप्रैल को पापा को मात्र 6 दिन हुए, पर पापा को अंतिम बार खुशी देने के लिए मैंने उनके जाने के बाद उनके सुझाव अनुसार यह हाथी बनाए और जवाहर कला केंद्र की सुकृति आर्ट गैलरी में प्रदर्शन के लिए भेजे। प्रत्यक्ष रूप में ये हाथी जयपुर की छोटी चौपड़ पर स्थापित श्री रूप चतुर्भुज जी के मंदिर के बाहर बने हुए है।
वही आगे मेरी मुलाकात हुई चित्रकार मोनिका देवी से, उनसे भी उनके चित्रों के बारे में पूछा तो मोनिका ने बताया कि "मैंने अपनी पेंटिंग्स में भी हमारे राजस्थान की धरोहर को ही चित्रित किया है जिसमें पहली तस्वीर हवामहल की और दूसरी एक छतरी को चित्रित किया है।
दोनों ही तस्वीरों का माध्यम ऐक्रेलिक कलर है और कागज पर बनाई गई है। हवामहल को उसके मूल गुलाबी रंग में चित्रित करते हुए मेरी अपनी शैली में गुलाब के फूलों को भी चित्रित किया है ताकि प्रकृति के साथ इनकी खूबसूरती में और अधिक प्रभावी दिखते है। मेरा मानना है कि हमें अपनी इन धरोहरों के आस-पास जहां तक संभव हो पेड़, पौधे और मौसम के अनुसार कुछ ऐसे पौधे और बेल लगानी चाहिए ताकि वें और मनमोहक दिखे जैसे आप मेरी तस्वीर में देख रहे है। दूसरी तस्वीर एक छतरी को चित्रित किया है जो जोधपुर के लाल पत्थर से बनी हुई है। बहुत सी छतरियों के गुम्बद के अंदर बहुत सुंदर और आकर्षक चित्र बने होते है सार-संभाल ना होने के कारण इनकी बहुत सी तस्वीरें तो नष्ट ही हो गई। इनकी देखरेख और सार-संभाल के लिए जिम्मेदार विभागों के साथ साथ स्थानीय लोगों की भी जिम्मेदारी है की वें भी इनका विशेष ध्यान रखें। लेकिन इसके विपरीत यही लोग इन्हें अधिक नुकसान पहुंचाते है। दीवारों को कुरेद कुरेद कर या कोयले से नाम लिखना तो आम सी बात है।"
चित्रकारों से चर्चा के क्रम में मेरी बात हुई जयपुर की चित्रकार वन्दना व्यास से। वन्दना ने बताया कि मैंने "हमारी विश्व प्रसिद्ध पुरातत्व धरोहर के संरक्षण" की संकल्पना के आधार को जानने और हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित की हुए अदभुद धरोहर की बारीकियों और उसके आकर्षक को चित्रित किया है। प्रदर्शनी में मुझे भागीदारी का अवसर प्रदान करने के लिए में आयोजकों एवं विनीता जी का आभार व्यक्त करती हूं। इसमें आपने चित्रों को प्रदर्शित करके मुझे बहुत खुशी मिली है। और विनीता आर्ट्स के द्वारा यह बहुत अच्छा प्रयास रहा की हमारी धरोहर और संस्कृति को जागृत करने के लिए इतने बड़े स्तर पर प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
मैंने जो पेंटिंग बनाई है उसमे जयपुर का आमेर किला अपनी नई सोच के साथ नया प्रयोग करते हुए मैंने पेड़ के पत्ती को कैनवास पर लगाकर उस पर आमेर का किला बनाया तथा दूसरी पेंटिंग में मैंने हवा महल का एक झरोखा चित्रित किया है, जिसमे लगे रंगीन कांच रोशनी में रंग बिखेरते है तो इन झरोखों से बाहर देखने में भी स्वयं की आंखो पर रंगीन चश्मा लगा हुआ प्रतीत होता है। अपने चित्रण द्वारा हम अगली पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति व धरोहर के बारे में बता कर उन्हें जागरूक करना चाहते हैं।
आगे बात हुई कौशल्या बांकोलिया से, उन्होंने कहा कि धरोहर दिवस के अवसर पर इस प्रदर्शनी में भाग लेने का अवसर मिलना मेरे लिए बड़ी बात है। अनेक स्मारकों किले, महल, हवेलियां हमें विरासत के रूप में मिली है l यह ऐतिहासिक और साँस्कृतिक परम्पराओं का बहुत बड़ा खजाना है, संरक्षण के योग्य है इसके लिए सभी को प्रयास करने होंगे। मैंने जो चित्र बनाएं है उनमें एक चित्र गड़ीसर झील और दूसरा जयपुर के बिरला मंदिर का है और दोनों ही चित्रों को रिलीफ स्टाइल में बनाएं हैं।
लिखते लिखते आखिर में चित्रकार धर्मेन्द्र शर्मा से बात हुई, उन्होंने बताया कि मैंने अपने दो चित्र प्रदर्शित किये है, एक जलमहल का है, जो जयपुर के मानसागर झील के मध्य स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक महल है। अरावली पहाडिय़ों के गर्भ में स्थित यह महल झील के बीचों बीच होने के कारण 'आई बॉल' भी कहा जाता है। जलमहल की पहाड़ियों के बीच अब पक्षी अभ्यारण के रूप में भी विकसित हो रहा है। दूसरा चित्र आमेर किले का है। यह एक पहाड़ी पर स्थित जयपुर का प्रमुख पर्यटक स्थल है। अपनी कलात्मक शैली के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। मैंने अपनी दोनो पेंटिंग्स एक्रेलिक कलर से बनाई है।
इस प्रदर्शनी के प्रतिभागी चित्रकारों से दो दिन में घूमते हुए हुई बातों तथा फोन से हुई बातों के आधार पर मेरा यह समीक्षात्मक लेख को तृतीय भाग द्वारा विराम देता हूं। साथ ही आशा करता हूं कि विनीता आर्ट्स और आर्ट ट्यून के संयुक्त प्रयासों से भविष्य में भी ऐसे कला आयोजन संपन्न होते रहेंगे। विशेष रूप से महिला चित्रकारों की कलात्मक अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करते हुए सबके सामने लाने में।
धन्यवाद
संदीप सुमहेन्द्र
चित्रकार एवं कला समीक्षक
संपादक - कलावृत्त आर्ट मैगज़ीन एवं ब्लॉगस्पॉट
वाह सर 👏🏻🙏🏻
ReplyDeleteआपने बहुत ही सुन्दर चित्रण व वर्णन किया है, सभी कलाकारों कि कलाकृतियों के बारे में लिख कर उनको भी सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया, आपके इस सुन्दर सराहनीय कदम के लिए मैं विनीता कार्यक्रम के आयोजक के तौर पर आपकी आभारी हूँ और हार्दिक धन्यवाद प्रेषित करती हूँ |
🙏🏻🙏🏻👏🏻💐
बहुत बहुत आभार 👍
DeleteBeautiful article 👏
ReplyDeleteThankyou very much
DeleteApne sir bhut sunder ta ke sath abhivyakti ki,kala ki,aur kalakaro ki🙏
ReplyDeleteThankyou very much Vandana ji 👍
DeleteThankyou very much Vandana ji 👍
Deleteबहुत बहुत आभार आपका 👍
ReplyDeleteThank you sincerely for affording us the opportunity to engage and demonstrate our capabilities within the realm of the art world.
ReplyDeleteThankyou very much 👍
Deleteसुंदर समीक्षा के लिए सर आपका बहुत-बहुत आभार| हम सभी का उत्साह वर्धन करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।🙏
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteThanks so much sir for appriciation with beautiful words
ReplyDeleteThankyou very much 👍
DeleteThankyou very much 👍
DeleteDear sir
ReplyDeleteThank you so much for publishing my article, I truly appreciate your support and the platform you've given me to share my talent, this made me confident about my art.
Thankyou very much 👍
DeleteThankyou very much 👍
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