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Showing posts from July, 2020

महिला सशक्तिकरण व सृजनात्मकता : प्रो. भवानी शंकर शर्मा

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महिला सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए शैक्षणिक उपलब्धि एवं आर्थिक सहभागिता प्रमुख बिंदु हैंl महिला शिक्षा में व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए शारीरिक , व्यवहारिक , कला विषयक , नैतिक व बौद्धिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए l  ज्ञान विज्ञान के साथ आध्यात्मिक चेतना विकसित हो सके ऐसा वातावरण शैक्षिक परिवेश में आवश्यक है l एक बालिका को निश्चित रूप से देखभाल में , शिक्षा में , परिवार और सामाजिक सहयोग में तथा रोजगार में एवं प्रगति में समान अवसर मिलने चाहिए l किसी ने सही कहा है "यदि हम पुरुषों को शिक्षित करते हैं तो वह केवल एक को शिक्षित करेगा एक महिला को शिक्षित करते हैं तो वह पूरे परिवार को शिक्षित करेगी" l शिक्षा का अर्थ केवल पुस्तक ज्ञान नहीं है शिक्षा एक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है मानव व्यक्ति के निर्माण की जिसके अंतर्गत सभी अंतर्निहित क्षमताओं का विकास हो l महिला सशक्तिकरण सामाजिक परिवर्तन व समुचित आर्थिक विकास की दिशा में प्रगति करने की उनकी योग्यता को बढ़ाता है इसके अतिरिक्त महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण उनके राजनीतिक सशक्तिकरण को भी बढ़ाता है , आर्थिक ...

विख्यात चित्रकार एवं मूर्तिकार के यादगार हस्ताक्षर डॉ महेन्द्र कुमार शर्मा "सुमहेन्द्र" : दिलीप दवे

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पटियाला विश्वविद्यालय में  छात्र -छात्राओं  को डेमो देते हुये   8वीं पुण्यतिथि पर विशेष आलेख    सुमहेन्द्र की कला यात्रा   गुलाबी नगरी जयपुर से 55 कि.मी. छोटे से गांव नायन में 02 नवंबर 1943 में जन्में महेन्द्र कुमार शर्मा सुमहेन्द्र ने अपनी चित्रकला व मुर्तिकला की शिक्षा विख्यात कला संस्थान राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्टस से पुर्ण की। राग माला चित्रकला पर शोध कार्य कर डाक्टेरट की उपाधि राजस्थान विश्वविद्यालय से प्राप्त की, वहीं कला शिक्षा की बेहतरी के लिए छात्र जीवन से ही जीवन के अंतिम समय तक अपनी बेबाक वाणी व संधर्षरत कलाकार के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की कला संस्था राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्टस में ही पहले व्याख्याता व बाद में प्राचार्य की शैक्षणिक जिम्मेदारी का भी सफलता पूर्वक निर्वाहन किया। वहीं लघु चित्र शैली की बारीकी पर गहरी पकड़ के साथ सफल व्यवसायिक व सटिक कटाक्ष रचने वाले चित्रकार के रूप में भी विशेष ख्याति अर्जित की। मिट्टी, पत्थर, धातु व सीमेंट व कई अन्य माध्यमों से शहर के न्यायालय व अन्य स्थानों व अन्य स्थानों पर इनकी बनाई -...

कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-09)

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उपकरण :- करनी , नेहला , गुरुमाला , झावा , बटकड़ा , घोटी (हकीक पत्थर की) सांवरसूत , गुनिया , मूंज की बनी कूंची , खजूर की डंडी से बनी कूंची , गिलहरी व नेवले के बालों से बनी ब्रश , कटर आदि प्रमुख उपकरण है l जिनका प्रयोग हमारा आरायश कार्य में करते हैं। रंग :- आरायश कार्य में प्राकृतिक मिट्टी , पत्थर पर खनिज रंगों का प्रयोग किया जाता है। चूने के साथ इन रंगों के प्रयोग में कोई बाधा नहीं आती तथा बिना माध्यम के भी अधिक स्थायीत्व होता है। साफ किया चूना व बास्को   की खड़िया सफेद रंग हेतु ,   नील व इंडिगो नीले रंगों हेतु , हरा भाटा हरे रंग के लिए , लाल व पीला भाटा लाल व पीले रंग के लिए , हिरमिच व गेरू भूरे व लाल के लिए तिल्ली के तेल से बनाया काजल काले रंग के लिए ,  रामराज (पीली मिट्टी)  पीले रंग के लिए,  सिंदूर   व हिंगलू   नारंगी व वरमिलयन रंगों का लिए प्रयोग काफी प्रचलित था , इसके अतिरिक्त भी विभिन्न पत्थर रंगों की उपलब्धता के आधार पर प्रयोग किए जा सकते हैं। उपरोक्त रंगों को एक दूसरे के साथ मिलाकर भी विविध रंगों की रचना की जा सकती ह...

कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-08)

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मिट्टी, पत्थर, खनिज रंग, बिना तेल गोंद अंण्डे या अन्य किसी माध्यम के पानी घोलकर लगाए जाते है, पहले रंगों को घोटकर व पानी में निथार कर वह छानकर साफ कर लेते है, फिर उसको अपनी आवश्यकता अनुसार सुखाकर रख लेते हैं। चित्र भरते समय रंग पानी में घोलकर पतला आलेप किया जाता है। सोने का वर्क भी सुनहरे रंग हेतु प्रयोग में लिया जाता है, जिसके प्रयोग से चित्र सुशोभित हो जाता है। कुछ लोग रंगों में गोंद मिलाकर भी काम में लेते हैं पर उससे चित्र में रंग पपड़ी बनकर निकलने का खतरा रहता है और उसमें से वैसी चमक व ताजगी नहीं आती जैसी बिना गोंद के पानी में मिलायें रंगों में आती है। रंग लगाने के उपरांत नहले से पीटने के पश्चात रंगों की तह गीली दीवार में अंदर तक चली जाती है और अकीक से पॉलिश करने के बाद उस में विशेष चमक व लुनाई आ जाती है। सूखने पर इस पर पानी का भी कोई असर नहीं होता मिटटी पत्थर व खनिज रंगों में स्थायित्व होता है। अन्य रंगों में नहीं, इसलिए उनका प्रयोग नहीं करते। चूना अन्य रंगों को खा जाता है।वे धुंधले पड़ जाते है, या बदल जाते हैं। पानी में घुले रंग पतली परत होने से नहले द्वारा पीटने पर दीवारों म...

कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-07)

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तकनीक :- जयपुर पद्धति से भित्ति चित्रण करने के लिए निम्नलिखित बातें आधारभूत हैं जिनका ज्ञान और अभ्यास नितांत ही आवश्यक है। इनके ज्ञान के अभाव का हो तो अभ्यास भी असफल रहता है।  1. भित्ति की सतह जिस पर हमें चित्र बनाना है, यह पहचान कि वह कितनी टिकाऊ है। दीवार पर दरार ना हो, पोली न हो यदि हो तो पहले उसे ठीक करना आवश्यक है।  2. मसाले व प्लास्टर की पहचान तथा उसे ठीक अनुपात में तैयार करना। 3. कार्य करने का ताव, यानी दीवार को कितना भिगोना है, मसाले की कितनी मोटी कोटिंग देना और कितने अंतर के पश्चात देना आदि।  4. पत्थर, मिट्टी व खनिज रंगों का प्रयोग व उनकी जानकारी आवश्यक है।  5. सब्र के साथ एकाग्र चित्त होकर कार्य करना, जो मन की स्थिति पर निर्भर करता है। इसके बिना यह कार्य          संभव नहीं।  6. मौसम के अनुसार दीवारों की नमी व सूखने की प्रक्रिया को समझ कर कार्य का अभ्यास।   7. बड़ा कार्य हो तो किसी की मदद से कार्य करना पूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक करने में सहायक होता है।  8. कलाकार को स्वयं पूर्ण पद्धति का ज्ञा...

कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-06)

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इन फ्रेस्को टाइल्स में प्रयोग धर्मिता विविधता , संयोजन की विशेषता के कारण सभी हमें विशेष आकर्षित करती है। जयपुर के एस. एम. एस. मेडिकल कॉलेज की सीढ़ियों पर चढ़ते समय मध्य एक फ्रेस्को चित्र "संजीवनी" विषय पर बनाया है जिसमे लक्ष्मण के मूर्छित होने के उपरांत हनुमान जी संजीवनी लाये थे।  70 के दशक में बापू नगर जयपुर में अपने पारिवारिक घर में इटालियन पद्धति में बनाया गया वाराणसी घाट व आरायश में बनाया चित्र मनन , चिंतन व आध्यात्मिक भावों की अभिव्यक्ति करने वाले संयोजन है। कुछ वर्ष पूर्व निवाई में अपने पुत्र के यहां बनाया अन्य फ्रेस्को चित्र भी मानवीय भावों , प्राकृतिक सौंदर्य व आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का अच्छा उदाहरण है। कुछ समय उपरांत पुत्र ने अपने घर को विक्रय कर दिया ।   जब सबसे छोटे पुत्र वीरेंद्र को यह ज्ञात हुआ तो उसने इसे चुनौती के रूप में लिया और 8x11 फ़ीट की दिवार को सुरक्षित निकलकर ग्राम पिल्लई में अपने घर पर स्थापित किया ।   बिना किसी सुविघा के गांव में यह कठिन कंजर्वेशन का कार्य संम्पन किया ।    यह कंजर्वेशन कार्य का अदभुद उदाहरण है ।    ...

कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-05)

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प्रोफेसर शर्मा 1953 में नियमित भित्ति चित्र प्रशिक्षण शिविर आरंभ करने के साथ नियमित रूप से जयपुर आरायश पद्धति में प्रयोग करते रहे। प्रोफेसर शर्मा के भित्ति चित्रों की प्रशंसा सुनकर 1955 में बृजमोहन रुइया हाई स्कूल विले पारले , मुंबई के प्राचार्य से एक बड़ा फ्रेस्को चित्र बनवाया ।  1964 में जयपुर में बने नए रेलवे स्टेशन पर  6X9 फीट का (ढोला मारू) चित्र रेलवे व राजस्थान पर्यटन विभाग के संयुक्त तत्वाधान में बनाने का आमंत्रण मिला। ढोला मारु का यह चित्र राजस्थानी लोक कथा की आत्मा को प्रतिध्वनि करने वाला जयपुर फ्रेस्को तकनीक का अद्भुत चित्र है। जिसमें लोग जीवन में रची-बसी मानवीय गुणों की सुंदर अभिव्यक्ति है ।   ईर्ष्या द्वेष के चक्रव्यूह में किसी तरह ढोला मारू के प्रेम की विजय होती है। यह गाथा  प्रभावकारी ढंग से व्यक्त की गई है। संगीत कला दर्शन , धर्म व प्रकृति , पशु-पक्षी , मानव किसी तरह रचे बसे हैं , एक दूसरे से जुड़े हैं , उसकी आकर्षक लोक गाथा के रूप में अभिव्यक्ति इस भित्ति चित्र में साकार हुई है। पूर्ण घटना मानव के प्रेम व विरह की प्रभावकारी लयात्मक अभिव्यक्ति...