कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-05)

प्रोफेसर शर्मा 1953 में नियमित भित्ति चित्र प्रशिक्षण शिविर आरंभ करने के साथ नियमित रूप से जयपुर आरायश पद्धति में प्रयोग करते रहे। प्रोफेसर शर्मा के भित्ति चित्रों की प्रशंसा सुनकर 1955 में बृजमोहन रुइया हाई स्कूल विले पारले, मुंबई के प्राचार्य से एक बड़ा फ्रेस्को चित्र बनवाया 1964 में जयपुर में बने नए रेलवे स्टेशन पर 6X9 फीट का (ढोला मारू) चित्र रेलवे व राजस्थान पर्यटन विभाग के संयुक्त तत्वाधान में बनाने का आमंत्रण मिला। ढोला मारु का यह चित्र राजस्थानी लोक कथा की आत्मा को प्रतिध्वनि करने वाला जयपुर फ्रेस्को तकनीक का अद्भुत चित्र है। जिसमें लोग जीवन में रची-बसी मानवीय गुणों की सुंदर अभिव्यक्ति है ईर्ष्या द्वेष के चक्रव्यूह में किसी तरह ढोला मारू के प्रेम की विजय होती है। यह गाथा  प्रभावकारी ढंग से व्यक्त की गई है। संगीत कला दर्शन, धर्म व प्रकृति, पशु-पक्षी, मानव किसी तरह रचे बसे हैं, एक दूसरे से जुड़े हैं, उसकी आकर्षक लोक गाथा के रूप में अभिव्यक्ति इस भित्ति चित्र में साकार हुई है। पूर्ण घटना मानव के प्रेम व विरह की प्रभावकारी लयात्मक अभिव्यक्ति है। बड़े चित्र को गीली दीवार पर फ्रेस्को पद्धति में एक दिन में कार्य संपन्न करने हेतु संयोजन को इस तरह विभाजित किया जाता है कि हर हिस्सा एक दिन में पूर्ण हो जाए, और भित्ति पर उसका जोड़ दिखाई ना देवे। प्रोफेसर शर्मा ने पूर्ण चित्र में विभिन्न घटनाओं को इस तरह से आकर्षक देशी रंगों में संजोया है कि पारंपरिक राजस्थानी चित्रों की ताजगी व चमक उनकी सृजनात्मकता व कल्पना में साकार हो गई है। आरायश तकनीक का यह आकर्षक चित्र जयपुर रेलवे स्टेशन पर आने-जाने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र था।

देवकीनंदन शर्मा के प्रसिद्ध भित्ति चित्रों में पांच सितारा होटल क्लार्क्स आमेर, जयपुर में 1974-75 में बनाया। 18X54 फीट आरायश तकनीक में बना बड़ा प्रतिनिधि है इसमें कृष्ण को जमुना किनारे वृक्ष पर गोपियों के कपड़े लिए हुए दिखाया है और गोपियां पानी में खड़ी कृष्ण से कपड़े देने की विनती कर रही हैं। स्वीमिंग पुल के पास खुले में इतना बड़ा चित्र आरायश पद्धति में बनाना एक बड़ी चुनौती थी। यह प्रोफेसर शर्मा ने अपने पुत्र भवानी शंकर व पुत्री मंजू के सहयोग से जनवरी व फरवरी माह के कड़ाके की सर्दी में सर्द हवाओं में बनाया। 18X54 फीट ऊंची दीवार पर कार्य करना जोखिम भरा था। पेड़ पर गोपियों के कपड़े छुपाए कृष्ण व नदी में स्नान करती गोपियों के साथ पृष्ठभूमि में वृक्षों से आच्छादित भवनों की श्रंखला सूक्ष्म अध्ययन व सृजन कौशल की अभिव्यक्ति है। इस भित्ति चित्र में लघु चित्रों की भांति सूक्ष्म अध्ययन व तकनीकी चातुर्य है। चित्र बनाते समय से पूर्ण होने तक यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना रहा। इतनी बड़ी नाप में आरायश तकनीक में किया यह चित्र सभी को अचंभित करने वाला एक विशिष्ट प्रयोग था।

दिल्ली के वास्तुकार राजीव सेठी के विशेष आग्रह पर राजेश शाह मुंबई के जुहू पर स्थित "जानकी कुटीर" में बने भवन हेतु कुछ पक्षी चित्रों की जयपुर फ्रेस्को टाइल्स बनवाई। फ्रेस्को टाइल्स की यह श्रंखला आरायश पद्धति में किए सूक्ष्म अध्ययन संयोजन की विविधता एवं इस तकनीक में किए नए प्रयोगों का अच्छा उदाहरण है।

टेम्परा तकनीक इटालियन जयपुर फ्रेस्को हेतु प्लास्टर ऑफ पेरिस, एसबेस्टोस, सीमेंट झींकी व चूने मसाले व टेराकोटा की सतह पर भी आपने अनेक प्रयोग किए हमेशा दीवार पर कार्य की सुविधा ना होने से आपने छोटी-बड़ी फ्रेस्को टाइल्स के रूप में भित्ति के अनुरूप सतह विकसित की जिस पर सुविधा के अनेक प्रयोग करना संभव हुआ। इन्हें आसानी से फ्रेम भी किया जा सकता है, और दीवारों पर भी लगाया जा सकता है। राजेश शाह के भवन में किया कार्य इसका अच्छा उदाहरण है। उसके लिए आधारभूमि के रूप में टेराकोटा के पकाए बर्तन, पतली ईंटो एसबेस्टोस की शीट, प्लास्टर ऑफ पेरिस पर अनेक चित्र विभिन्न पद्धतियों में प्रयोग रूप में बनाये पर उन्हें पारंपरिक झींकी चुने की व टेरा  कोटा के बर्तनों व एसबेस्टोस शीट अधिक सुविधाजनक लगी। एसबेस्टोस शीट पर बनी टाइल वजन में हल्की पर कार्य में अधिक कौशल की मांग करती है। सुराही मिट्टी के प्याले छोटे मटको पर आपने अनेक आकर्षण अलंकरण व संयोजन बनाये।

गुलाब, कमल, सूरजमुखी, अमलतास, हॉली-हॉक, बोगन बेलिया, आँक पुष्प, मयूर, तोते, कबूतर, गिलहरी विभिन्न ऋतु में होने वाले उत्सव, कृष्ण राधा, शिव पार्वती, ग्राम्य जीवन, पौराणिक व धार्मिक विषय व जन-जीवन से संबंधित अनेक टाइल्स, टेम्परा इटालियन व जयपुर फ्रेस्को में बनाई।

लेखक : प्रोफ़ेसर भवानी शंकर शर्मा
जयपुर 

Comments

  1. Very contemporary art history of wall painting of freshcho style late sir devkinandani ji sharma wrote if by his own brush and colors with his family artists .
    Thanks for share this great story of real art ..

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    1. Very important information
      Thankyou sir

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