कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ती चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-02)


शांति निकेतन से वापस जाने से पूर्व नन्दबाबू ने शर्मा के सृजन कार्य से एवं कला के प्रति विशेष लगाव को देखकर उन्हें शांति निकेतन में शिक्षक के रूप में शिक्षण कार्य के लिए आग्रह किया। प्रोफेसर शर्मा ने कहा, मैंने वनस्थली में जो कला विभाग का कार्य आरंभ किया है, उसे पूर्ण करना है। नन्दबाबू ने उन्हें कहा कि तुम जयपुर के  नृसिंह लाल को ले आओ तो जयपुर फ्रेस्को कार्य कला भवन शांति निकेतन में आरंभ किया जा सकेगा। नृसिंह लाल जयपुर फ्रेस्को (आरायश) के अच्छे कारीगर थे और अवनीन्द्र नाथ ठाकुर के पास कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट में कार्य कर चुके थे। अवनींद्र नाथ ठाकुर ने नृसिंह लाल की मदद से जयपुर आरायश पद्धति से कोलकाता स्कूल आफ आर्ट में कई प्रयोग किए। इन प्रयोगो से उनके बनाये हुये अनेक चित्रों में राधाकृष्ण, कच देवयानी के चित्र विशेष उल्लेखनीय है। इसके उपरांत आचार्य नन्दलाल बोस ने भी चैतन्य का जन्म तथा अन्य चित्र इस प्रणाली में बनाए जो उनकी उत्कृष्ट कृतियां हैं। इस तरह जयपुर आरायश तकनीक को फिर से समझने का और इस पद्धति में कार्य करने का पहला प्रयास हुआ।

जब प्रोफेसर शर्मा जयपुर आए तो नृसिंह लाल से मिले और नन्दबाबू का संदेश दिया। कहा नन्द बाबू ने तुम्हें याद किया है। क्या तुम शांति निकेतन चलोगे ? नृसिंह लाल ने भाव विभोर होकर कहा, आप ले चलेंगे तो अवश्य चलूंगा, जाने का समय निश्चित कर कुछ समय उपरांत जब प्रोफेसर शर्मा ने उन्हें लेने पहुंचे तो देखा कि वे गहरी बीमारी से ग्रस्त थे, उनका आना- जाना संभव नहीं था, अस्वस्थ होने पर भी उनकी शांति निकेतन जाने की गहन इच्छा थी लेकिन कुछ समय उपरांत उनका निधन हो गया। नन्दबाबू को सुनकर बहुत दुःख हुआ, वे बोले देवकी तुम तो फ्रेस्को कार्य को नया जीवन दे सकते हो। नन्दबाबू, प्रेरणा बिनोद दा के उत्साह दिलाने से शर्मा ने तय कर लिया वनस्थली में भित्ति चित्रण कार्य आरंभ करना है।

उस समय वनस्थली में पक्के भवन नहीं थे, अतः उन्होंने कच्चे भवनों में ही अजंता की भांति कुछ भित्ति चित्रों के प्रयोग कच्ची दीवारों पर किए। जयपुर फ्रेस्को अन्य भित्ति चित्रों के माध्यमों में कार्य हेतु पक्के भवन की आवश्यकता थी। उन्होंने वनस्थली विद्यापीठ के संस्थापक पंडित हीरालाल शास्त्री को भित्ति चित्र कार्य के महत्व से आश्वस्त करने के उपरांत पक्के भवन निर्माण के लिए निवेदन किया। उस समय संस्था की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के उपरांत भी पंडित हीरालाल शास्त्री ने किसी तरह धन की व्यवस्था कर वनस्थली में पहले पक्के भवन कला मंदिर का निर्माण कराया और भित्ति चित्रण का विधिवत कार्य प्रारंभ हुआ।

राजस्थान में भित्ति चित्रण की लंबी परम्परा रही है। जिसके द्वारा भारतीय जन-मानस में सौंदर्य अभिरुचि विकसित हुई भित्ति चित्रों के माध्यम से कलाकार ने चित्र, संगीत, साहित्य, दर्शन इतिहास का ही ज्ञान नहीं दिया पर धार्मिक भावना द्वारा जन सामान्य की आध्यात्मिक चेतना के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भित्ति चित्रण परम्परा हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिबिंब है। राजस्थान के कलाकारों ने अजंता, बाघ की गौरवशाली भित्ति चित्र परम्परा को आरायश से समृद्ध किया। राजस्थान में भित्ति चित्रण परम्परा का इतिहास काफी पुराना है। आमेर, जयपुर, शेखावटी, नाथद्वारा, उदयपुर, बांसवाड़ा, बीकानेर, जोधपुर, कोटा, बूंदी आदि के महलों, मंदिरों अन्य स्थापत्य की भित्तियों पर धार्मिक, श्रृंगार, सौंदर्य, आखेट, प्रकृति चित्रण, युद्ध, कृष्ण, भक्ति, गीतगोविंद अन्य काव्य, रामायण, महाभारत तथा सामान्य जनजीवन का मौलिक चित्रण, राज दरबारों, राजा-रानीयों की शबी है। धार्मिक, पौराणिक, राग-रागनियों आदि विषय से संबंधित चित्र बहुतायत से मिलते हैं। इन भित्ति चित्रों में विभिन्न कलाकारों ने अपनी शैलीगत विशेषताओं संयोजन की निपुणता से उपरोक्त विषयों को प्रभावीकारी ढंग से प्रस्तुत कर उन जन-मानस को सौन्दर्यानुभूति से उद्वेलित किया है।
लेखक :  प्रोफ़ेसर भवानी शंकर शर्मा 
 जयपुर

Comments

  1. Really it's great art history about jaipur wall painting.thanks for share this for our art education
    Yogendra Kumar purohit
    Master of fine arts
    Bikaner 'India

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