कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-09)
उपकरण :-
करनी, नेहला, गुरुमाला, झावा, बटकड़ा, घोटी (हकीक पत्थर की) सांवरसूत, गुनिया, मूंज की बनी
कूंची, खजूर की डंडी से
बनी कूंची, गिलहरी व नेवले
के बालों से बनी ब्रश, कटर आदि प्रमुख उपकरण हैl जिनका प्रयोग हमारा आरायश कार्य में करते हैं।
रंग :-
आरायश कार्य में
प्राकृतिक मिट्टी, पत्थर पर खनिज
रंगों का प्रयोग किया जाता है। चूने के साथ इन रंगों के प्रयोग में कोई बाधा नहीं
आती तथा बिना माध्यम के भी अधिक स्थायीत्व होता है। साफ किया चूना व बास्को की खड़िया सफेद रंग हेतु, नील व इंडिगो नीले रंगों हेतु, हरा भाटा हरे रंग के लिए, लाल व पीला भाटा लाल व पीले रंग के लिए,
हिरमिच व गेरू भूरे व
लाल के लिए तिल्ली के तेल से बनाया काजल काले रंग के लिए, रामराज (पीली मिट्टी) पीले रंग के लिए, सिंदूर व हिंगलू नारंगी व वरमिलयन रंगों का लिए प्रयोग काफी प्रचलित था, इसके अतिरिक्त भी विभिन्न पत्थर रंगों की उपलब्धता के आधार पर प्रयोग किए जा
सकते हैं। उपरोक्त रंगों को एक दूसरे के साथ मिलाकर भी विविध रंगों की रचना की जा
सकती है।
प्रोफेसर शर्मा (17 अप्रैल 1919 - 24 अप्रैल 2005) 86 वर्ष की आयु तक कला मंदिर वनस्थली विद्यापीठ
में प्रतिदिन आरायश तकनीक में नित नये-नये प्रयोग करते रहे तथा पोस्ट एम. ए.
डिप्लोमा की छात्राओं एवं शोध छात्राओं को भित्ति चित्रण की बारीकियों का ज्ञान
देते रहे। आपके प्रयत्नों का परिणाम है कि फ्रेस्को के प्रति रुचि बनी हुई है और
देश-विदेश से शिक्षार्थी इस तकनीक को सीखने की रुचि से वनस्थली आते हैं।
ग्रीष्मकालीन फ्रेस्को शिविर में भी प्रशिक्षार्थीयों की संख्या बढ़ती जा रही है।
भित्ति चित्रण की आरायश तकनीक व इटेलियन फ्रेस्को पद्धति के उत्थान में आपका
योगदान अनुकरणीय है। भित्ति चित्रण पुनरुत्थान हेतु वनस्थली विद्यापीठ का सहयोग भी
प्रशंसनीय हैl जिसका परिणाम है
कि आज विद्यापीठ फ्रेस्को शिक्षण के योगदान हेतु वनस्थली विद्यापीठ देश-विदेश में
जानी जाती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आधुनिक भित्ति चित्रों का तीर्थ
वनस्थली विद्यापीठ है। विभाग 2007 को प्रोफेसर भवानी शंकर शर्मा के निर्देशन में भित्ति चित्रण प्रशिक्षण के
साथ इस परंपरा में हुए कार्य पर शोध कार्य तथा कंजर्वेशन के लिए प्रयास होता रहा
है। अनेक छात्र-छात्राओं ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में भित्ति चित्र परम्परा पर अच्छा शोध कार्य किया है, और इस विषय पर अध्यन में रूचि बढ़ती जा रही हैं।
1972 से मैं पिता श्री प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा के साथ फेस्को शिविर से जुड़ा रहा। उनके उपरांत वनस्थली में 2007 तक मैंने फ्रेस्को शिविर का संचालन किया। उसके उपरांत मैं स्वतंत्र रूप से जयपुर रहकर फ्रेस्को कार्यशाला आयोजित करता रहा तथा इस पद्धति के प्रचार और प्रसार में अपने आप को पूर्ण समर्पित कर दिया। आगरा, मोदीनगर, चंडीगढ़, जयपुर, दिल्ली, बड़ौदा, चेन्नई, इंदौर में अनेक कार्यशाला आयोजित की। इनमें बड़ौदा फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट्स, चंडीगढ़ फाइन आर्ट्स कॉलेज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स दिल्ली, नेशनल गैलरी आफ मॉडर्न आर्ट दिल्ली की कार्यशाला विशेष हैं। विक्टोरिया, कनाड़ा में भी कार्यशालाएं आयोजित की।
1972 से मैं पिता श्री प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा के साथ फेस्को शिविर से जुड़ा रहा। उनके उपरांत वनस्थली में 2007 तक मैंने फ्रेस्को शिविर का संचालन किया। उसके उपरांत मैं स्वतंत्र रूप से जयपुर रहकर फ्रेस्को कार्यशाला आयोजित करता रहा तथा इस पद्धति के प्रचार और प्रसार में अपने आप को पूर्ण समर्पित कर दिया। आगरा, मोदीनगर, चंडीगढ़, जयपुर, दिल्ली, बड़ौदा, चेन्नई, इंदौर में अनेक कार्यशाला आयोजित की। इनमें बड़ौदा फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट्स, चंडीगढ़ फाइन आर्ट्स कॉलेज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स दिल्ली, नेशनल गैलरी आफ मॉडर्न आर्ट दिल्ली की कार्यशाला विशेष हैं। विक्टोरिया, कनाड़ा में भी कार्यशालाएं आयोजित की।
आशा है अन्य
विश्वविद्यालय, संस्थाएं,
राज्य व केंद्रीय सरकार
पुराने भित्ति चित्रों की सुरक्षा, संरक्षण व इस पद्धति में नये कार्यों के लिए एवं फ्रेस्को शिक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान
देंगी।
लेखक : प्रोफ़ेसर भवानी शंकर शर्मा
जयपुर
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