कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ति चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-04)


बिनोद बिहारी मुखर्जी शती के अंतर्गत इस भित्ति चित्र को मूल नाप में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट दिल्ली ने उनकी रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी में फोटोग्राफ के रूप में प्रदर्शित किया था 

भित्ति चित्रण विधि की विभिन्न पद्धतियों में प्रयोग करने व आचार्य शैलेंद्र नाथ डे एवं प्रोफेसर बिनोद बिहारी मुखर्जी के मार्गदर्शन से जन साधारण से लुप्त होती आरायश तकनीक को पुनः स्थापित करने हेतु वनस्थली विद्यापीठ में प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा ने 1953 में विधिवत भित्ति चित्रण प्रशिक्षण एवं चित्रकला प्रशिक्षण शिविर आरंभ किया जो आज भी अविरल चल रहा है। प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा के देहावसान के बाद प्रोफ़ेसर भवानी शंकर शर्मा ने 2007 तक यह कार्य देखा। अब वे स्वतंत्र रूप से विभिन्न संस्थाओ में इस तकनीक के प्रसार हेतु कार्यशालाएं आयोजित करते हैl इस शिक्षण शिविर से भारतीय विद्यार्थियों ने ही नहीं वरन सिलोन, जापान व कनाडा से आए विद्यार्थियों ने भी लाभ उठाया। यह दो माह का ग्रीष्म कालीन शिविर कला गुरु प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा के अथक प्रयास, कठिन परिश्रम व कला के प्रति समर्पण भाव का द्योतक है। यहां जयपुर व इटेलियन  फ्रेस्को व टेम्परा माध्यम से शिक्षण की व्यवस्था है। कुछ वर्षों से यहां फ्रेस्को में एक वर्षीय पोस्ट एम.ए. डिप्लोमा तथा एम.ए. में एक विषय में एक विषय के रूप में अध्ययन की व्यवस्था है। काफी छात्राएं नियमित रूप से भित्ति चित्र प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का अघ्ययन कर रही हैं।

दो माह के ग्रीष्म कालीन भित्ति चित्रण प्रशिक्षण शिविर आरंभ करने हेतु पूर्ण योजना बनाकर जब वनस्थली विद्यापीठ के प्राचार्य को दिखाई तो वे हंसे और कहा 50/- शुल्क देकर इस जंगल में राजस्थान की भयंकर गर्मी में कौन सीखने आएगा ? प्रोफेसर शर्मा कहा, आप इन कला संकायों एवं अकादमी अकादमियों में सूचना भेज कर देखिए आशातीत परिणाम आएंगे। प्रोफेसर शर्मा की दृढ़ इच्छाशक्ति और दूर-दृष्टि का परिणाम यह रहा कि प्रथम फ्रेस्को शिविर में बड़ौदा ललित कला संकाय के डीन प्रोफेसर एन. एस. बेंद्रे अपने शिष्यों ज्योति भट्ट, शांति दवे, विनय त्रिवेदी, हैदराबाद से प्रोफेसर शेषगिरी राव एवं कल्याण प्रसाद रायपुर से आए थे। उपरोक्त देश के प्रसिद्ध कलाकारों ने आज भी वनस्थली विद्यापीठ के भवनों को सुशोभित कर रहे हैं।

आरायश तकनीक से प्रभावित होकर प्रोफेसर बेंद्रे ने कुछ समय बाद वनस्थली के ग्यारसी लाल, फ्रेस्को मिस्त्री को बड़ौदा भेजने का निवेदन किया ताकि वह बड़ौदा कला संकाय में फ्रेस्को शिक्षण आरंभ कर सकें। इस तकनीक के प्रसार को ध्यान में रखकर प्रोफेसर शर्मा ने मिस्त्री को बड़ौदा भेज दिया। यहां पर मिस्त्री मनमोहन हालुका को जयपुर से वनस्थली लाकर इस कार्य हेतु तैयार किया। इनके देहावसान बाद इंद्र सहाय मिस्त्री ने कार्य कुछ वर्षों किया अब मिस्त्री प्रेम नारायण कुमावत इस कार्य में मदद कर रहे है।

शिविर में आए अन्य कलाकार मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, कलकत्ता, शांति निकेतन, वाराणसी, अलीगढ़, लखनऊ, अहमदाबाद, इलाहाबाद, चंडीगढ़, दिल्ली व देश के अन्य भागों से आए कलाकारों में प्रद्युम्न ताना, दिनेश शाह, जगजीवन शाह करिया, अजमत शाह, तरला मटानी, हरिदासन, आर. बी. भास्करन, आदिमुलम, कृष्णमूर्ति, तोटा तरनी, बिकास भट्टाचार्य, गणेश हलोई, सुखमय मित्रा, मदन राय, कुक्के, बैजनाथ, के.एल. रंगीन, पी. सागरा, रूपचंद, श्याम सुन्दर, पी. एन. चोयल, सुमहेंद्र शर्मा, शैल चोयल, भवानी शंकर शर्मा, बी. पंचनाथन, गोवर्धन लाल जोशी, युरिको, मॉलकम इगन आदि अनेक आज जाने-माने नाम है जिन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया।

प्रोफेसर शर्मा से प्रेरित होकर ललित कला संकाय बड़ौदा, जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स मुंबई, दिल्ली आर्ट कॉलेज, विजुअल आर्ट विभाग (बीएचयू) वाराणसी आदि अन्य विश्वविद्यालयों ने फ्रेस्को पद्धति के शिक्षण का प्रयास किया।

इस पद्धति के प्रसार हेतु प्रोफेसर शर्मा के खैरागढ़ विश्वविद्यालय, बैकुंठी देवी पीजी गर्ल्स, महाविद्यालय, आगरा, जवाहर कला केंद्र, जयपुर, राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्ट, जयपुर व लखनऊ ललित कला संकाय में कार्यशाला आयोजित की। 1989 में विक्टोरिया, कनाडा में आयोजित कार्यशाला विशिष्ट थी जो अपने शिक्षार्थी मॉलकम इगन के सहयोग से की, उस वर्कशॉप में स्कूल के शिक्षार्थी भी लाभान्वित हुए तथा इस वर्कशॉप के दो वर्षो पश्चात् फिर से प्रोफ़ेसर भवानी शंकर शर्मा विक्टोरिया गए जहाँ उनकी एकल प्रदर्शनी "नेशनल गैलेरी ऑफ़ विक्टोरिया" ने आयोजित की थी उस समय अपने पुराने फ्रेस्को शिक्षार्थियों से संपर्क किया और उनको फ्रेस्को कार्य में आने वाली परेशानियों को दूर किया  

 लेखक : प्रोफ़ेसर भवानी शंकर शर्मा
जयपुर

Comments

  1. Painter devkinandan sharma ji was great painter ,I have read to his art journey in my art education,i his son Bhawani Shankar sharma ji ,promoted our first student art exhibition of Manthan group and his grand son master Apoorv sharma exhibited his work in our manthan group exhibition at jkk .
    Sir devkinandan sharma ji worked on birds ,that was his great work or I inspired to his work when I visited his work at home of Sir Bhawani Shankar sharma ji ,that was great experience for me ,I visited first time live art work of senior most artist of Rajasthan he was devkinandan sharma ji ..
    Thanks for share this great article for my reading and notice ..
    Regards
    Yogendra Kumar purohit
    Master of fine arts
    Bikaner 'India
    9829199686 WhatsApp

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