कला के मौन साधक एवं राजस्थान में भित्ती चित्रण पद्धति आरायश के उन्नायक प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा (भाग-03)
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राधा कृष्णा, जयपुर फ्रेस्को |
इटली में अंकुरित एवं पल्लवित गीले प्लास्टर की भित्ति चित्रण विधि एवं भारत में शास्त्रीय ज्ञान व लोकानुभव के सम्मिश्रण से अल्पभिन्नताओ के साथ प्राचीन काल से परम्परागत रूप से चली आ रही है।
आरायश,
आलागीला मोराकसी के नाम से प्रचलित जयपुर भित्ति चित्रण पद्धति जिसे पश्चिम में फ्रेस्को से व राजस्थान में
आलागीला के नाम से जाना जाता है। पिछली शताब्दियों से राजस्थान में प्रचलित रही है। अंतर मात्र इतना है कि राजस्थान की आरायश पद्धति में पॉलिश की जाती है। इटालियन पद्धति में नहीं। इसमें इटालियन फ्रेस्को से जयपुर पद्धति अधिक स्थाई होती है। किंतु पिछले कुछ वर्षों में इसका प्रयोग बहुत कम हो गया है। फ्रेस्को तकनीक परिश्रम साध्य होने से व सीमेंट का प्रयोग आरंभ होने से कारीगरों ने इसका प्रयोग कम कर दिया। पुराने मकानों में, हवेलियों में, महलों में, दुर्गों,
छतरियों व मंदिरों में इसका चित्रण, अलंकरण तथा सादे प्लास्टर के रूप में अत्याधिक हुआ है। आरायश का कार्य संगमरमर का पर्याय व संगमरमर से सस्ता था। आरायश की यह विशेषता है कि इससे बनी दीवारें, फर्श ग्रीष्म में ठंडी रहती है और इसमें स्थायित्व काफी रहता है। पानी एकत्र करने हेतु बनाए बड़े-बड़े टैंकों के फर्श व दीवारें इससे ही बनते थे। जिससे पानी स्वच्छ व ठंडा रहता था। आरायश पद्धति से बनी दीवारें संगमरमर की तरह सपाट व काँच की तरह चमकदार होती है।
राज्य आश्रय व धनाढ्य वर्ग का आश्रय न होने के कारण सीमेंट का प्रयोग प्रचलित होने से आरायश तकनीक का प्रयोग कम होता गया। हर माप में मार्बल के आसानी से उपलब्ध होने के कारण इस पद्धति के प्रयोग पर विपरीत असर पड़ा।
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राजस्थानी उत्सव, जयपुर फ्रेस्को |
आरायश परम्परा धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। यह अनुभव कर तथा आचार्य नंदलाल बोस व बिनोद बिहारी मुखर्जी की प्रेरणा से प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा ने वनस्थली में सत्र 1947-48 से फ्रेस्को तथा म्यूरल की अन्य तकनीक में प्रयोग कार्य आरंभ किया।
प्रोफेसर शर्मा ने कला मंदिर में नए भवन की भित्ती पर 1949 में अजंता एलोरा के चित्रों की विभिन्न अनुकृतियाँ की तथा भित्ति चित्रण में नए प्रयोग किए। फिर अपने गुरु शैलेंद्र नाथ डे व बिनोद बिहारी मुखर्जी जैसे आचार्यों को आमंत्रित कर भित्ति चित्रण की तकनीकी संभावनाओं को परखा। कला मंदिर के तृतीय कक्ष में ऊपर की बड़ी दीवारों पर प्रोफेसर देवकीनंदन शर्मा ने राजा पुलकेशी दरबार के चित्र, बोधिसत्व। पदम पाणी का चित्र व अन्य जातक कथाओं पर बनाएं। प्रोफेसर शर्मा व उनके सहयोगी रामनिवास वर्मा, के. नागराज और काशीराज, चित्र अजंता भित्ति चित्र परंपरा की सजीव अनुकृतियां हैं। इसी कक्ष में आचार्य शैलेंद्र नाथ डे का बना यशोधरा का सर्वस्वदान (यशोधरा अपने पुत्र राहुल को बुद्ध को सौंपते हुए) बुद्ध के जीवन अत्यंत मार्मिक चित्र हैं। डे साहब का इतना बड़ा चित्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। उपरोक्त सभी चित्र, मिट्टी व खनिज रंगो द्वारा टेंपरा पद्धति में बनाए गए हैं। इसी कक्ष में नीचे प्रथम फ्रेस्को शिविर में दिया प्रोफेसर शर्मा का आरायश जयपुर पद्धति का डेमोन्सट्रशन व प्रथम शिविर में आए प्रोफेसर बेंद्रे का फ्रेस्को चित्र भी है। इन चित्रों की उत्कृष्टता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि ये आज भी मूल रूप की ताजगी लिए हुए हैं। आज भी दर्शक इन्हें देखकर अचंभित हुए बिना नहीं रहते।
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लोटस पौण्ड, जयपुर फ्रेस्को |
कला मंदिर की गोलाकार गैलरी के उपरोक्त कक्ष के बाहर एग टेम्परा में बना बिनोद बिहारी मुखर्जी का नेपाल के बुद्ध उत्सव की झांकी का बड़ा चित्र है। पूरे चित्र के बीच में बने दरवाजे दो भागों में विभक्त है। किंतु कलाकार ने अपने संयोजन में इस दरवाजे का चित्र के एक भाग के रूप में संयोजित कर चित्र को और विशिष्ट बना दिया है। इस चित्र की आकृतियां गति व लयात्मकता ने इस चित्र को भित्ति चित्र परंपरा का आधार चित्र बना दिया है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए सदा प्रेरणा स्रोत रहेगा। इस चित्र के साथ एक इटेलियन फ्रेस्को तकनीक में बना बिनोद बिहारी का बोल्ड चित्र है। प्रसिद्ध सिनेमा निर्देशक व कलाकार सत्यजीत राय ने बिनोद दा पर बनाई फिल्म "इनर आई" में भी इस चित्र को फिल्माया है।
जयपुर
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ReplyDeleteIt's very informative post about walk painting of jaipur technique
ReplyDeleteRegards
Yogendra Kumar purohit
Master of fine art
Bikaner 'India
Very informative post
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