विख्यात चित्रकार एवं मूर्तिकार के यादगार हस्ताक्षर डॉ महेन्द्र कुमार शर्मा "सुमहेन्द्र" : दिलीप दवे
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पटियाला विश्वविद्यालय में छात्र -छात्राओं को डेमो देते हुये |
8वीं पुण्यतिथि पर विशेष आलेख
सुमहेन्द्र की कला यात्रा
गुलाबी नगरी जयपुर से 55 कि.मी. छोटे से गांव नायन में 02 नवंबर 1943 में जन्में महेन्द्र कुमार शर्मा सुमहेन्द्र ने अपनी चित्रकला व मुर्तिकला की शिक्षा विख्यात कला संस्थान राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्टस से पुर्ण की। राग माला चित्रकला पर शोध कार्य कर डाक्टेरट की उपाधि राजस्थान विश्वविद्यालय से प्राप्त की, वहीं कला शिक्षा की बेहतरी के लिए छात्र जीवन से ही जीवन के अंतिम समय तक अपनी बेबाक वाणी व संधर्षरत कलाकार के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की कला संस्था राजस्थान स्कूल ऑफ़ आर्टस में ही पहले व्याख्याता व बाद में प्राचार्य की शैक्षणिक जिम्मेदारी का भी सफलता पूर्वक निर्वाहन किया। वहीं लघु चित्र शैली की बारीकी पर गहरी पकड़ के साथ सफल व्यवसायिक व सटिक कटाक्ष रचने वाले चित्रकार के रूप में भी विशेष ख्याति अर्जित की। मिट्टी, पत्थर, धातु व सीमेंट व कई अन्य माध्यमों से शहर के न्यायालय व अन्य स्थानों व अन्य स्थानों पर इनकी बनाई - रवींद्रनाथ टैगोर, न्यायदेवी, महर्षि दधीचि और विवेकानंद आदि के सुंदर शिल्प स्थापित कर इस कुशल शिल्पकार ने शिल्प भी बनाए साथ ही साथ कला के राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय मंचों की महत्वपूर्ण गतिविधियों में अपनी भूमिका और उपस्थिति दर्ज कराई। सुमहेन्द्र राजस्थान ललित कला अकादमी के सचिव पद पर एक कुशल प्रशासक के रूप में भी जाने जाते हैं, राजस्थान के कलाकारों की कला संस्था कलावृत के संस्थापक व संचालक के रूप में भी अपनी अहम भूमिका अदा की और समाज को एक सफल कलात्मक अभिव्यक्ति देने और विरासत को बचाने के प्रयास वाला बहुआयामी चित्रकार 19 जुलाई 2012 को अपनी अनेकों मधुर स्मृतियां देकर संसार से विदा हो गये .... !!!
एक लघु चित्र चित्रकार सुमहेन्द्र की विशिष्ट पहचान
राजस्थान में जब समसामयिक कला में परम्परा व आधुनिक शैली की कशमकश व गर्मागर्म चर्चा हुआ करती थी, तब लघुचित्र शैली के विख्यात चित्रकार सुमहेन्द्र लगभग सभी शैलियों में अपना विशिष्ट अनुभव व दक्षता रखतें थे, लेकिन किशनगढ़ शैली उनकी पसंदीदा चित्र शैली रही तभी उनकी बनाई कृतियां में अधिकांश इसी शैली में है, श्रृंगार व प्रेम रस पर उनकी रचनात्मक कृतियां आज भी शैली परम्परा की सोंधी महक व लावण्य का बेहतरीन उदाहरण बनकर हमारे सामने है !
एक लघु चित्र चित्रकार सुमहेन्द्र के व्यवस्था पर तीखे व्यंग
लघु चित्र शैली में चित्रण करने वाले चित्रकारो की छवि सामान्य तौर पर एक अनुकृति बनाने वाले चित्रकार के रुप में देखी व आंकी जाती रही हैं, लेकिन उस दौर में जहां लघुचित्रो की अनुकृतियां बनाने का व्यवसाय अपने चरम पर था, ठीक उसी वक्त विख्यात, बेबाक व अपनी धुन के पक्के चित्रकार सुमहेन्द्र ने अपने सक्षक्त लघुचित्रण के अनुभवों का उपयोग व नवीन प्रयोग परम्परा, कला, संस्कृति व कलाकार की उपेक्षा तथा बदलते सामाजिक परिवेश के साथ-साथ जन समस्याओं को भी अपनी विलक्षण कटाक्ष शैली में चित्रित किया, जहां उनके कटाक्ष व व्यंग के नायक नायिका किशनगढ़ शैली के पात्र नागरीदास व बणी-ठणी हुआ करते थे, मुख्य पात्रो का स्कूटर पर बैढना व रास्तों पर बेतरतीबी लोगो की आवा-जाही को एक ‘‘गधे‘‘ के रुप में दर्शाया जो हमारी दैनिक जीवन की कठिनाईयों पर एक तीखे प्रहार के साथ किया गया व्यंग है।
एक लघु चित्र चित्रकार सुमहेन्द्र एक कुशल प्रिन्ट मेकर
यह सच जानना हम सभी के लिए अत्यंत आश्चर्य का विषय है कि विगत 60 व 70 के दशकों में जब सामान्य रुप से राजस्थान प्रदेश में वाश पेंटिंग और लधुचित्र चित्रित करने का युग रहा तब प्रयोगवादी सोच व नवीनता के लिए उत्साह से भरे चित्रकार सुमहेन्द्र ने प्रिन्ट मेकिंग विधा में भी अपनी पसंदीदा किशनगढ़ शैली के जाने पहचाने नायक नायिका को लिनोकट वुडकट व एंचिग आदि माध्यमो में बड़ी दक्षता के साथ उकेरा यहां यह भी विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं कि उस समय प्रिन्ट मेकिंग विधा में कार्य करने के लिए आवश्यक संसाधन ना के बराबर ही थे और ऐसे समय में भी नवीनता का जुनून व पारम्परिक लधुचित्र शैली का प्रिन्ट मेकिंग विधा सृजन के साथ-साथ समावेश,वास्तव में सुमहेन्द्र जैसे विलक्षण प्रतिभा के धनी और नवीनता पर नजर रखने वाले चित्रकार ही कर सकते हैं !
एक लघु चित्र चित्रकार सुमहेन्द्र विरासत संरक्षण सिपाही
राजस्थान में हवेलियां, पैलस, मन्दिर व बारादरी आदि बेहद सुंदर आराइश व भित्ति लधुचित्रों के चित्रण और अलंकरण से भरी पड़ी हैं, जिसमें देवी-देवता, राज दरबार, शिकार मनोविनोद जैसे अनेकों विषय का चित्रण अतीत के जीवन दर्शन, सामाजिक मान्यताओं, परम्पराओं का एक कलात्मक दस्तावेज है, लेकिन यह भी एक अनदेखी है, कि वर्तमान समय में हम इस अमूल्य धरोहर को संजोकर रखने में लगभग असमर्थ हैं। ऐसे में विख्यात चित्रकार सुमहेन्द्र ने विभिन्न स्थानों के जीर्ण शीर्ण भित्तिचित्रों को बहुत ही कठोर मेहनत व उम्दा तकनीकी पकड़ के माध्यम से इन भित्तिचित्रों का रेस्टोरेशन कार्य किया जिसके लिए कला इतिहास और आगे आने वाला समय हमेशा उनका आभारी रहेगा, यहां यह उल्लेख भी आवश्यक हैं कि इस तरह का रेस्टोरेशन कर कला धरोहर को बचाने का कार्य करने वाले कलाकारो की पीढ़ी भी लगभग लुप्तप्राय होती जा रही हैं।
एक लघु चित्र चित्रकार सुमहेन्द्र उम्दा शिल्पकार भी
सुमहेन्द्र ने अपनी लघु चित्रण के चित्रकार की मूल पहचान को अपनी सिद्धहस्ता से बरकरार रखते हुवे ब्लू पोटरी, सिरेमिक्स व शिल्पकला में भी समय पर बेहतरीन सृजन कार्य किए पत्थर, टेराकोटा, मैंटल और फाइबर ग्लास जैसे विभिन्न माध्यमों में बहुत ही रचनात्मक शिल्पों का सृजन किया, यहां यह उल्लेख भी आवश्यक हैं कि वे अपने शिल्प गुरु सम्मानीय टी.पी. मित्रा जी, माड़साब के प्रिय शिष्यों में से एक थे और गुरु की भांति ही क्ले मॉडलिंग में विशेष दक्षता रखतें थे सुमहेन्द्र पूर्व में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्टस जयपुर के शिल्पकला विभाग के विभागाध्यक्ष रहे व बाद मे इसी संस्थान में प्राचार्य भी रहे, मेरे लिए अन्त तक यह विस्मय ही बना रहा कि लघुचित्रों को रचने वाले कोमल हाथों से कैसे छैनी हथोड़े चलाकर सुंदर शिल्पों की रचना करता होगा यह संभव भी होता दिखा एक बहुआयामी प्रतिभा सुमहेन्द्र के हाथों से सचमुच यही उनकी श्रेष्ठता का प्रमाण है, किन्तु ये सच भी मुंह बाए सामने खड़ा है कि राजस्थान स्कूल आंफ आर्टस का शिल्पकला विभाग लगभग बंद होने के कगार पर खड़ा है काश ऐसा ना हो सुमहेन्द्र का परिश्रम व्यर्थ ना हो जाए।
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राजस्थान विश्व विधालय में कला छात्र - छात्राओं को लाइव पोर्ट्रेट डेमो देते हुए |
एक लघु चित्र चित्रकार सुमहेन्द्र श्रेष्ठ कलागुरु
एक बहुआयामी चित्रकार को जब एक शिक्षक के रूप में सुमहेन्द्र की भूमिका पर मैंने विचार किया तब मेरे अपने हजारों लम्हे जो उनके सानिध्य में बिताए वो सभी यकायक जीवंत हो उठे, सजग चित्रकार सुमहेन्द्र में अपनत्व, आत्मीयता व मित्रवत व्यवहार का एक ऐसा अनोखा गुण था जिससे वो अपने सभी विद्यार्थियों में हमेशा सर्वाधिक लोकप्रिय गुरु के रुप में जानें जातें थे, जिसकी गवाह हैं सफल चित्रकारो व शिल्पकारों की दो पीढ़ी जो आज भी महसूस करती है कि सुमहेन्द्र उनके सफल जीवन का वो हिस्सा हैं जिसे किसी भी प्रकार से अलग नहीं किया जा सकता हैं और विद्यार्थियों की यही भावनाएं कलागुरु सुमहेन्द्र के लिए सही अर्थों में विद्यार्थियों द्वारा उन्हें उनकी और से दी गई सच्ची गुरु दक्षिणा है। कला जगत सुमहेन्द्र को छात्र जीवन से उनकी सफलताओं के चरमोत्कर्ष तक उनके द्वारा कला शिक्षा व संस्थान राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स को दिए अमूल्य योगदान को कदापि नहीं भुला सकेगा साथ ही साथ यह भी आवश्यक की एक ऐसी कला संस्था स्कूल ऑफ आर्ट्स जिसकी कीर्ति अंतराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित थी वो धीरे-धीरे समाप्ति की राह पर अग्रसित होकर हमेशा के लिए गुमनामी के अंधेरों में सिमट जाए, अतः सभी से निवेदन समय रहते जाग कर कला संस्था को बचाएं, वहीं कला गुरु सुमहेन्द्र के साथ-साथ स्व. टी. पी. मित्रा, रामगोपाल विजयवर्गीय, लल्लु नारायण शर्मा, लक्ष्मी नारायण व्यास और मोहन शर्मा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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सुमहेन्द्र द्वारा लिखित किताब स्प्लेंडिड स्टाइल ऑफ़ किशनगढ़ |
एक लघु चित्र चित्रकार सुमहेन्द्र समीक्षक व लेखक भी
सुमहेन्द्र एक समीक्षक, लेखक, ग्राफिक डिजाइनर और प्रकाशक भी थे, उनकी काम के प्रति लगन व उत्साह का अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता हैं कि अपनी कला संस्था कलावृत की मैगजीन के लिए 1975 में संस्था के लोगो की आवश्यकता थी, तब सुमहेन्द्र ने प्रिन्टर के वहां ही बैठे-बैठे लिनोलियम पर नाइफ से संस्था का एक यादगार लोगो उकेर दिया जो आज तक ना केवल काम में लिया जा रहा है, आज भी एक सुंदर व कामयाब लोगो की पहचान है, साथ ही सुमहेन्द्र के व्यक्तिव के ग्राफिक डिजाइनर होने के आयाम को भी उजागर करता है। सुमहेन्द्र ने अनेकों कैटलॉग, कला पत्रिकाओं व समाचार पत्र के डिजाइन, कला समीक्षा, लेख, फोटोग्राफी के साथ साथ सम्पादक व प्रकाशक की भूमिका भी बहुत सफलता पूर्वक निभाई, कला मैगजीन कलावृत सहित अनेकों मैगजीन व पत्र-पत्रिकाएं आज भी उस वक्त के सीमित संसाधन व टैक्नोलोजी के बावजूद अपने आप में रचनात्मक व प्रभावशाली लगते हैं लेखन व शोध के प्रति लगाव के चलते ही सुमहेन्द्र ने राग माला चित्रों पर राजस्थान विश्वविद्यालय से शोध का कार्य कर इसी विषय पर एक पुस्तक भी लिख कर प्रकाशित की साथ ही साथ उस समय के लोकप्रिय समाचार पत्रों-मैगजीनों में नियमित रूप से कला प्रदर्शनीयों की समीक्षा और कलाकारों के साथ लिए गए साक्षात्कारों को भी लिखकर प्रकाशित करवाया !
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कला संस्था कलावृत्त का वार्षिक प्रथम अंक |
उल्लेखनीय लेखन
कलावृत्त त्रैमासिक पत्रिका के 50 अंक ऽराजस्थान ललित कला अकादमी की मासिक कला पत्रिका आकृति (वर्ष 1980-81 अपने सचिव काल में) ऽ मिनिएचर पेंटिंग टेक्निक ऽ रागमाला चित्र परम्परा ऽ स्प्लेडिड स्टायल ऑफ किशनगढ़ पर ज्ञानवर्धक पुस्तकों के साथ साथ वरिष्ठ चित्रकार अखिलेश निगम, सुरेश चन्द्र राजोरिया व स्वयं पर मोनोग्राफ का लेखन व डिजाइन का कार्य किया वहीं तत्कालीन विख्यात ‘‘धर्मयुग‘‘ साप्ताहिक मैगजीन में ‘‘जयपुर की विश्व विख्यात संगमरमर पर देवी-देवताओं की मुतियों के लिये विख्याम मूर्ति मोहल्ले‘‘ विषय पर सुंदर लेख लिखकर प्रकाशित करवाया। जिसकी फोटोग्राफी का कार्य उनके घनिष्ठ मित्र एवं विख्यात फोटोग्राफर भगवान दास रुपानी ने किया था।
प्रतिभा का सम्मान
विख्यात विदेशी कला पत्रिका आर्ट्स ऑफ ऐशिया में सुमहेन्द्र के बहुआयामी व्यक्तित्व व उनकी विशेष उपलब्धियों पर लेख भी प्रकाशित हुआ।
एक लघु चित्र चित्रकार सुमहेन्द्र सबके मित्र व सहयोगी
एक बहुआयामी चित्रकार शिल्पकार सुमहेन्द्र पर बहुत कुछ कहने के बाद भी कुछ संस्मरण ऐसे बचें हैं, जिसे बताए बिना उनके व्यक्तिव की बात अधुरी सी रह जाएंगी, सुमहेन्द्र अपने बैखोफ, स्पष्टवादी व सटीक राय रखने के कारण ही वे कला क्षेत्र मे आये दिन चर्चा का विषय बने रहते थे। वहीं हमेशा मुस्कराते चेहरे के साथ सभी कलाकार मित्रों को भी सहयोग देने और यथा सम्भव सभी को साथ लेकर चलने में यकिन रखते थे।
अब बात तीन महेन्द्र की: कई वर्षों पहले एक शाम की बात है मै उनके साथ उनके स्टूडियो (बाबा हरिश्चंद्र मार्ग के एक मकान में तीसरी मंजिल पर बने दो कमरों का हिस्सा) पर बैठा था। वहीं एक सवाल मैने उनसे यह किया कि सर आपका नाम तो महेन्द्र कुमार शर्मा है, तब यह सुमहेन्द्र क्या है...? तब वो जोर से ठहाके के साथ बोले यार दिलीप जयपुर मे कुल तीन कलाकारों के नाम महेन्द्र है महेन्द्र ‘‘लम्बू‘‘, महेन्द्र दास और तीसरा महेन्द्र मै - इसलिये आये दिन बड़ी गफलत हो जाया करती थी, इसी वजह से मैने तेरी भाभी के नाम सुमन से सु लेकर महेन्द्र के आगे लगा दिया बस, बन गया ना सुमहेन्द्र और फिर हा हा हा ठहाके लगाकर कर खुब हँसे।
अब बात देश प्रेम की एक बार उनके बनाएं नये पुराने चित्रों को उनके ही छोटे से स्टूडियो पर कुछ व्यवस्थित करने का काम चल रहा, तब ही उन्होंने अपना एक सेल्फ पोट्रेट दिखाया जो जिसमें वो उनके स्वभाव और प्रकृति के विपरित दिखाई दिए जिसमें बहुत गम्भीर व गुस्से में दिखाई दिए, तब उत्सुकता वश मैंने उस गंभीर दिखने वाले सेल्फ पोट्रेट के बारे जाना तब जाकर पता चला कि वह सेल्फ पोट्रेट वर्ष 1971-72 युद्ध व बंगला देश बनने के वक्त का है, तभी हमेशा खिलखिलाते व मुस्कराते रहने वाले सुमहेन्द्र बहुत गम्भीर व गुस्से में दिखाई दिए, वहीं उनकी आंखों में एक खीज के साथ बदला लेने का भाव दिखता जो उनके स्वाभाव के सर्वथा विपरीत हैं, सुमहेन्द्र की ऐसी छवि को संभवतः बहुत कम लोगों ने देखा होगा इसलिए मैंने इसे अपनी पोस्ट में आप सभी के देखने के लिए शामिल कर लिया।
सुमहे्न्द्र अपने जानें से पूर्व कला संस्था राजस्थान स्कूल ऑफ आर्टस के भूतपूर्व विद्यार्थीयों की एक एल्यूमीनाई संस्था भी बनाकर गये, जिसके माध्यम से सभी परस्पर सहयोग के साथ स्वयं के साथ-साथ संस्था का भी कला के क्षेत्रों में अद्वितीय विकास कर गौरवशाली भविष्य बना सकें।
लेखक: दिलीप दवे
कलाकार एवं कला समीक्षक
Art teacher cum art doctor sir sumhendra sharma ji was real art master ,he was gave a right frame to contemporary sculpture art from Rajasthan school of arts .I am lucky I studied in Rajasthan school of art when dr . Sumhendra sharma ji was there a a teacher or principal too. I noticed very first my art sound by my landscape work of ridmalsar village of bikaner . Ki d your information that landscape was selected very first and last time by Rajasthan lalit kala Academy for students art exhibition .
ReplyDeleteAfter that I came close to dr .sumhendra sharma ji ,one day we went collage tour for one day study tour .there in get together we shared to each other's in front side of sir Sumhendra ji ,first I felt uncomfortable because my seniors were front of myself ,but sumhendra ji opened me ,he told to act some otherwise I will cut your marks .then I created a joke ,urdu fatiya I read that was not real urdu fatiya but that's sound like that ,when I were performing in that time I saw sumhendra ji was laughing very much I saw water in his eyes that was came by natural laugh ,he said badi mudadt ke baad aaj fir is tarah se hasa hun ..he said thanks to me ..or that day to we were living as a friends .but the respect was maintained as a student or teacher ,he was fully understood to me . I also worked at jkk for three year something in that time I saw visual art director was dr .sumhendra ji .he noticed my work practice every day . He gave two alumni art exhibition to pass out students of Rajasthan school of arts .
He was published big catalogue for alumni.it was great for us from Dr Sumhendra ji.
So i can say sir Dilip Dave write this article on dr .Sumhendra sharma,it is 100% true article with full art information about art journey of Dr . Sumhendra sharma ji ..so thanks to sir Dilip Dave
Thank you Yogendra Ji
DeleteThankyou for your nice comment ... Yogendra Ji 👍
ReplyDeleteगुरुवर की मधुर स्मृतियों को कभी भुलाया नहीं जा सकता .... बहुत है .... अनन्त हैं ..... सादर शत् शत् नमन !!!
ReplyDeleteWell written, excellent...Thank You.
Deleteसही जानकारी के लिए धन्यवाद सर l
ReplyDeleteGreat and I have a neat offer: How Much Are House Renovations Stardew Valley home renovation services
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